षट्कर्मों की विधि, आधार एवम् वास्तविकता पं. एम. सी भट्ट मंत्र विद्या में शांति, वश्य, स्तंभन, उच्चाटन, मारण व विद्वेषण इन छह कर्मों (षट्कर्मों) की प्रसिद्धि है, किंतु कई मंत्र-विशारद इसमें दस कर्मों का निरूपण करते हैं। इस आलेख में इनके संपादन की विधि, आधार और प्रभाव पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। षटकर्मों के देवता: शांति कर्म की रति, वशीकरण की वाणी, स्तंभन की रमा, विद्वेषण की ज्येष्ठा, उच्चाटन की दुर्गा व मारण की देवता काली जी हैं। षटकर्मों की दिशा: शांति कर्म के लिये ईशान दिशा, वशीकरण उत्तर, स्तंभन पूर्व, विद्वेषण र्नैत्य, उच्चाटन वायव्य कोण तथा मारण में अग्नि कोण प्रशस्त माना गया है। षट्कर्मों की ऋतु: सूर्योदय से 10 घड़ी (ढाई घड़ी का एक घंटा होता है) इस प्रकार प्रति चार घंटे के बाद ऋतुएं दैनिक स्तर पर बदलती हैं। क्रमशः वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, हेमन्त तथा शिशिर ऋतु रहती हैं।
तिथि, वार आदि का नियम: शांति कर्म में द्वितीया, तृतीया, पंचमी तथा सप्तमी तिथियां। पुष्टिकर्म में गुरुवार, सोमवार की षष्टी के अतिरिक्त चतुर्थी, त्रयोदशी, नवमी, अष्टमी व दशमी तिथियां उपयुक्त होती हैं। दशमी, एकादशी, अमावस्या तथा नवमी एवं प्रतिप्रदा शुक्र एवं शनिवार आकर्षण कर्म के लिये प्रशस्त कहे गये हैं। पूर्णिमा तिथि में सोमवार या रविवार हो अथवा अष्टमी तिथि हो तब विशेषकर प्रक्षेप के समय उच्चाटन का प्रयोग करना चाहिये। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी, अष्टमी एवं अमावस्या तिथि एवं शनिवार या भौमवार को मारण कर्म करना चाहिये। बुधवार या सोमवार को पंचमी के दिन दशमी तथा पूर्णिमा तिथि को स्तंभन करना चाहिये। शुभ ग्रहों के उदय में शांति पुष्टि आदि शुभ कर्मों को तथा अशुभ ग्रहों के समय मारण आदि क्रियाओं को करना चाहिये। रिक्ता तिथि व रविवार को विद्वेषण, उच्चाटन आदि क्रूर कर्म करना चाहिये। महेंद्र तथा वरुण मंडल के नक्षत्रों में स्तंभन, मोहन तथा वशीकरण का अनुष्ठान सिद्धिदायक होता है। वहीं मंडल तथा वायुमंडल गत नक्षत्रों में विद्वेषण एवं उच्चाटन आदि क्रियाओं को करना चाहिये। इसी प्रकार मृत्यु योगों में मारण कर्म उचित है। नक्षत्र विधान: अग्नि, वरुण, महेंद्र तथा वायुमंडल में नक्षत्र विधान निम्न प्रकार से बताया गया है।
1. महेंद्र मण्डंन हस्ति सर्वकर्म प्रसिद्धिम।
2. वरुण मंडल स्यायुत्तरा भद्रपदा मूल शतभिषा तथा पूर्वा भाद्रपदा आश्लेषा, श्रेया वरूणामध्या।
वायुमंडल: विशाखा, कृतिका, पूर्वा फाल्गुनी, रेवती तथा वायुमंडल मध्यस्थ सत्तकर्मा प्रसिद्धाः (ज्येष्ठा, उत्तराषाढ़ा, अनुराधा तथा रोहिणी - ये चार नक्षत्र महेंद्र मंडल में बताये जाते हैं। उत्तराभाद्रपद, मूल, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद तथा आश्लेषा पांच ‘वरुण मंडल’ के हैं। स्वाति, हस्त, मृगशिरा, चित्रा, उत्तराफाल्गुनी, पुष्य और पुनर्वसु- ये सात अग्नि मंडल के हैं। आश्विनी, भरणी, आद्र्रा, धनिष्ठा, श्रवण, मघा, विशाखा, कृतिका, पूर्वाफाल्गुनी तथा रेवती ये दस नक्षत्र वायुमंडल के हैं। शांति एवं पुष्टि कर्म दिन के अंतिम भाग में तथा मारण कर्म संध्याकाल में करना चाहिये। षटकर्मों के देवताओं का वर्णभेद: वशीकरण, आकर्षण व क्षोभण कार्यों के लिये देवता का शुभ्र वर्ण में ध्यान करना चाहिये। स्तंभन में पीत, उच्चाटन में धूम्र वर्ण, उन्माद में लोहित वर्ण व मारण में कृष्ण वर्ण का ध्यान करना चाहिये। षटकर्मों के विभिन्न प्रयोग:
1. अथ ईश्वरादि क्रोध शांति मंत्र: ऊँ शांते प्रशान्ते सर्वक्रोधोपशमनि क्रोधोपशमनि स्वाहा। चीज में मिलाकर खिलाने से आजीवन वशीकरण होता है।
3. स्त्री वशीकरण: ऊँ नमः कामाख्यादेवि अमुकी मे वशमानय स्वाहा। सर्वप्रथम इसे 10 हजार जपकर सिद्ध करें तथा मां कामाख्या की पूजा भोग, इत्यादि चढ़ायें। इसके बाद ब्रह्मदंडी-चिताभस्म अभिमंत्रित करके जिस स्त्री पर डाला जाता है वह शीघ्र ही दासी के समान वशीभूत हो जाती है।
4. स्तंभन प्रयोग: ऊँ नमो दिगम्बराय अनुकासन स्तंभन कुरु स्वाहा। यह मंत्र 108 बार जपने से सिद्ध होता है। विधि: मनुष्य की खोपड़ी में मिट्टी भरकर उसमें सफेद धुंधली को दें तथा प्रतिदिन दूध से सींचता रहे। वृक्ष निकल आने पर उसे उखाड़ लें, फिर इसे अभिमंत्रित करके जिसके सामने फेंक दिया जाये वह अपने स्थान पर ही स्थिर हो जाता है।
5. अग्नि स्तंभन: ऊँ नमो अग्निरुपाय मम शरीरे स्तम्भन कुरु कुरु स्वाहा। 10 हजार जप कर सिद्ध कर लें इसके बाद मेंढक की चर्बी में ग्वारपाठा का रस मिलाकर शरीर पर लेप करने से अग्नि स्तंभन हो जाता है।
6. मेघ स्तंभन: ऊँ नमो भगवते रुद्राय मेघ स्तम्भन ठः ठः ठः। इस मंत्र से 21 बार अभिमंत्रित जल से मुंह धोने से सभी ईश्वरीय क्रोधों का शमन हो जाता है।
2. अथलोक वशीकरण मंत्र: ऊँ नमो भगवते उड्डा मरेश्वराय मोहय मिलि ठः ठः स्वाहा। तीस हजार की संख्या में जपने से सिद्धि मिलती है। इसमें प्रियंगु, तगा, कूठ, चंदन, नागकेशर, काला धतूरा पंचांग समान भाग में लें। कूट-पीसकर छाया में सुखाकर गोली बनायें तथा सात बार अभिमंत्रित्र करके किसी भी इसको 10 हजार जप करके सिद्ध करने के बाद दो ईटों के बीच श्मशान के अंगारे को रखकर जंगल में गाडने से मेध स्तंभन हो जाता है।
7. नौका स्तम्भन: ऊँ नमो भगवते रुद्राय नौकां स्तम्भय स्तम्भय ठः ठः ठः । विधि: भरणी नक्षत्र में 5 अंगुल की कील क्षीर वृक्ष की लकड़ी बनाये तथा मंत्र से अभिमंत्रित करके नौका में डालने से नौका स्तम्भन हो जाता है।
8. मनुष्य स्तम्भन प्रयोग: ऊँ नमो भगवते रुद्राय अमुक स्तम्भय स्तम्भय ठः ठः ठ: । सर्वप्रथम 10 हजार जप कर सिद्ध करें तथा रजस्वला वस्त्र लेकर उस पर गोरोचन से शत्रु का नाम लिखकर घड़े में अभिमंत्रित करके डाल दें। इससे साध्य व्यक्ति स्तम्भित हो जाता है।
9. मोहन प्रयोग: ऊँ ह्रीं कालि कपालिनि घोर नादिनि विश्वं विमोहय जगन्मोहय सर्व मोहय ठः ठः ठः स्वाहा। विधि: इसे 1,00,000 (एक लाख) बार जपकर सिद्ध कर लें, फिर सफेद घुघट के रस में ब्रह्मदंडी को पीसकर अभिमंत्रित करें। इसका लेप लगाने से संपूर्ण जगत मोहित हो जाता है।
10. विद्वेषण प्रयोग: ऊँ नमो नारायणाय अमुकस्य अमुकं सह विद्वेषणां कुरु कुरु स्वाहा। विधि: सर्वप्रथम 10,000 जपकर सिद्ध कर लें तथा एक हाथ में कौवा तथा दूसरे हाथ में उल्लू का पंख लेकर अभिमंत्रित करें। फिर दोनों पंखों के अग्रभाग को काले सूत के डोरे से बांध दें, फिर दोनों पंखों को हाथ में लेकर जल में तर्पण करें। इस प्रकार एक माला प्रतिदिन जप करके करते रहें। इससे दो साध्य व्यक्तियों के साथ विद्वेषण हो जायेगा।
11. उच्चाटन प्रयोग: ऊँ नमो भगवते रुद्राय द्रष्ट्राकरालाय अमुकं स्वपुत्र बान्धवै सह हम हम दह पच पच शीघ्रमुच्चाटय उच्चाटय हुं फट स्वाहा। विधि: कौवे तथा उल्लू के पंखों के साथ-साथ व्यक्तियों के नाम का उच्चारण करते हुए 108 बार हवन करें। इससे परिवार सहित उच्चाटन हो जाता है।
12. आकर्षण प्रयोग: ऊँ नमः आदि पुरुषाय अमुकस्य आकर्षणम कुरु कुरु स्वाहा। इस मंत्र को एक लाख जप करने के बाद साध्य व्यक्ति के नाम सहित उच्चारण करें। तत्पश्चात् काले धतूरे के पत्तों के रस में गोरोचन मिलाकर श्वेत कनेर की कलम से भोजपत्र पर मंत्र लिखें तथा बीच में साध्य व्यक्ति का नाम लिखें। इसे खैर की अग्नि से तपाये तो सौ योजन तक आकर्षण होता है। अनामिका उंगली के रक्त से शत्रु या साध्य व्यक्ति का नाम लिखकर शहद में डुबोने से भी आकर्षण होता है।
13. मारण प्रयोग: ऊँ चाण्डालिन कामाख्यावासिनी वनदुर्गे क्लीं क्लीं ठः स्वाहा। विधि: गोरोचन तथा केसर द्वारा भोजपत्र पर उक्त मंत्र को लिखकर अपने गले में धारण करने से साध्य व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। शिव पंचाक्षरी मंत्र - ‘‘ऊँ.नमः शिवाय’’। समस्त देवताओं में सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले भगवान शिव का दूसरा रूप आशुतोष भी है। श्रद्धा एवं सादगी से उपर्युक्त मंत्र का 5 लाख पुरश्चरण करने से शिव शक्ति प्राप्त होती है।