पूर्व में आपको मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक ऊर्जाओं का प्रभाव तथा घर या किसी भी स्थान पर नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से क्या समस्यायें उत्पन्न होती हैं तथा नकारात्मक ऊर्जा कौन-कौन सी हंै, के बारे में अवगत कराया गया है। साथ ही साथ हमारे वास्तु में फेंग-शुई, पिरामिड तथा यंत्र का क्या महत्व है तथा मंत्र, तंत्र तथा यंत्र के प्रयोग का वैज्ञानिक महत्व क्या है?
इन विषयों पर आपको वैज्ञानिक जानकारी पूर्व में दी गई है। पिछले अंकों में आपको यूनीवर्सल थर्मोस्कैनर के बारे में भी बताया गया है कि हम इनका प्रयोग किन-किन क्षेत्रों में किस प्रकार कर सकते हैं। इस लेख में उसी विषय को आगे बढ़ाते हुये वास्तु के बारे में आप लोगों को विस्तृत रूप से बताने जा रहे हैं।
वास्तु का अर्थ है - किसी घर या स्थान में किसी भी वस्तु का उसके सही स्थान पर चयन करना। वास्तु का कोई भी तरीका हम प्रयोग में लाते हैं तो सबसे पहले यही ध्यान रखा जाता है। इस अंक में आपको वास्तु में आकारीय वास्तु क्या है, वास्तु पुरुष क्या है तथा उसका वास्तु में क्या महत्व है, से अवगत करायेंगे।
आकारीय वास्तु हम देखते हैं कि प्रत्येक घर, कारखाना तथा आवासीय स्थान अपने निर्माण में एक आकार या बनावट धारण किये होता है। इस अंक में आकारीय वास्तु और उसके दिशात्मक कंपनशक्ति की ऊर्जा की मात्रा के संबंध में बताया जायेगा। प्रकृति भी रेखागणित और आकार का अनुसरण करती है।
दो महत्वपूर्ण बातें जिन्हें याद रखने की आवश्यकता है वे हैं आकार या रेखागणित तथा दिशा में प्रतिष्ठित ऊर्जा जो एक-दूसरे को प्रभावित करती हं।
1. हम पृथ्वी पर देखते हैं कि प्रत्येक वस्तु का एक आकार है और उसका रंग भी होता है। प्रकृति में फल और पत्तियों के विभिन्न आकार और रंग होते हैं लेकिन क्या हम कभी स्वयं से यह प्रश्न पूछते हैं कि वे किस प्रकार बने हैं। यह प्रकृति का एक चमत्कार है। सभी चट्टानों व खनिज लवणों में भी आकार होते हैं और कुछ स्फटिक लाइन होती हैं। वैज्ञानिक उन्हें क्रिस्ट्रलोग्राफी कहते हैं। इसीलिए सजीव या निर्जीव वस्तु किसी न किसी प्रकार का आकार लिए रहते हैं। हम किसी भी वस्तु का केवल बाहरी आकार ही देख सकते हैं लेकिन स्वाभाविक रूप से आणविक आकार से भी संबंधित रहते हैं। मानव शरीर में भी एक छुपा हुआ आकार होता है जिसे हम डी. एन. ए. कहते हैं। हमारे पूर्वजों ने भी इसको 3.5 बार मुड़े हुए सांपों के रूप में प्रदर्शित किया है। यही चिह्न चिकित्सकीय प्रतीक के रूप में प्रयोग किया जाता है। निर्जीव वस्तु में भी अणु अपने एक आकार को प्रदर्शित करने के लिए अंदर ही अंदर जुड़े रहते हैं। इन सबके साथ इनके बीच एक शक्ति होती है जिसके कारण किसी भी साधारण माध्यम से वह अपने आंतरिक आणविक शक्ति या बंधन से अलग नहीं हो सकते। रहस्य की बात यह है कि बाहरी आकार का अंतरिक आकार के साथ गहरा संबंध होता है।
2. विभिन्न प्रकार की पत्तियों के आकार से विभिन्न प्रकार के फल व फूल बनते हैं। एक प्रयोग करते समय हमने फूल की कुछ पंखुड़िेयां जब वह कली थी अलग कर दी, परिणामस्वरूप कली फूल बन कर तो खिली लेकिन वह एक स्वस्थ फल में नहीं बदल पाई। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि ऊर्जा का असंतुलन आकार में असमन्वय एवं असमानता का कारण बनता है।
घर का रेखागणित भी इसी से संबंधित होता है। यद्यपि यंत्र (ज्यामितिय आकार) हिंदु व मुस्लिम परंपरा में कुछ संतुलित आकार का ऐसा संबंध है जिन्हें आरोग्य के लिए प्रयोग किया जाता है। इससे हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि आकार व बनावट कुछ शक्ति रखते हैं व यंत्र घर को स्वस्थ बनाने की शक्ति रखते हैं तथा मानव आकार के साथ भी उनका एक संबंध होता है। यहां हमने सीखा की प्रकृति रेखागणित का यह किरदार निभाती है। सूर्य की ऊर्जा इसकी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। नौ त्रिकोण, नौ गोलाकार, एक छोर ऊपर की ओर व एक आयताकार तली में इन सबका सहयोग एक चमत्कारी यंत्र बनाता है जो श्री यंत्र कहलाता है। यह महान चमत्कार भारतीय ऋषियों के द्वारा किया गया है। यंत्र वास्तु में ब्रह्माण्ड से संबंधित ऊर्जा को ठीक करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। वास्तु पुरूष वास्तु शास्त्र के प्रत्येक प्रवक्ता ने प्रायः इस वास्तु पुरूष का जिक्र किया है।
भारत में इसको बहुत ही महत्व तथा एक विशेष स्थान प्रदान किया गया है व हममें से अधिकतर लोग इसको संतुष्ट करने के लिए धार्मिक क्रिया कलाप भी करते हैं। वह खुले आकाश की तरफ अपनी मजबूत कमर को करके सोता है जो हमारे घर की सुरक्षा के लिए काफी आवश्यक है। इसका सिर उत्तर-पूर्व की तरफ तथा पैर दक्षिण-पश्चिम की तरफ स्थापित होते हैं। इसका सीधा हाथ दक्षिण-पूर्व तथा बायां हाथ उत्तर-पश्चिम की तरफ होता है। इसका सिर उत्तर-पूर्व की तरफ ढलान दर्शाता है व इसका श्रोणी प्रदेश अधिकतम ऊंचाई वाले स्थान पर स्थापित होता है। हममें से अधिकतर लोगों को जानना चाहिए की वास्तु पुरूष क्या दर्शाता है। सूर्य की रोशनी पूर्व से पश्चिम की तरफ जाती है व पृथ्वी की चुंबकीय तरंगें उत्तर से दक्षिण की तरफ जाती है, का यह प्रतीकीय प्रतिनिधित्व करता है।
जब इस तरह की दो मजबूत शक्तियां एक दूसरे के साथ टकराती हैं तो परिणामस्वरूप शक्ति की एक ही दिशा होती है जो पूर्व-उत्तर से होती हुई दक्षिण-पश्चिम जो घर में सबसे ऊंचा स्थान है वहां तक जाती है। इसी ऊर्जा के भाव को वास्तु पुरूष दर्शाता है। सूर्य, सौरमंडल का मुखिया होने के कारण नौ ग्रह उसके चारांे तरफ घूमते हैं। ठीक इसी प्रकार एक अणु के नाभिक कंद्र के चारों तरफ परमाणु घूमते हैं। सौरमंडल ऊर्जा प्रदान करता है जो विद्युत चुंबकीय तरंगों के रूप में प्रकाश दे रहे हैं। सभी नौ ग्रह अपनी अलग-अलग कक्षा में घूमते रहते हैं। उनकी ऊर्जा भी पृथ्वी के द्वारा ली जाती है व हम उन तरंगों को आकाशीय ऊर्जा कहते हैं। न्यूटन ने यह सिद्ध किया है कि सूर्य की तरंगों को सात रंगों में विच्छेद किया जा सकता है जिन्हें हम इंद्रधनुषीय रंग कहते हैं। परिमाणित ऊर्जा व वास्तु पुरूष पृथ्वी की चुंबकीय तरंगें स्वाभाविक रूप से उत्तर-दक्षिण दिशा की तरफ बहती है। उसी सौर ऊर्जा की विद्युत चुंबकीय तरंगें स्वाभाविक रूप से पूर्व-पश्चिम दिशा की ओर जाती है।
दोनों विशाल सकारात्मक ऊर्जाओं का लगभग 900 पर एक दूसरे का टकराव होता है जिससे एक परिमाणित ऊर्जा एक दिशा में जगह लेती है। यह सकारात्मक ऊर्जा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम दिशा की तरफ बहती है। प्रतीकात्मक वास्तु पुरूष ने स्वयं को इस उच्च सकारात्मक दिशा में रखा है। जब सूर्य उदय का समय विभिन्न मौसम में बदलता है तो प्रमाणित शक्ति के बहाव में भी थोड़ा सा बदलाव होता है। थोड़ा सा उत्तर की तरफ थोड़ा सा दक्षिण की ओर। वास्तु पुरूष भी थोड़ा सा उत्तर से दक्षिण की ओर सरकता है। इसलिए हमें उत्तरी भौगोलिक व चुंबकीय स्थिति में विभिन्नता मिलती है। ये दिशाएं वास्तु शास्त्र पढ़ने वालों के लिए महत्वपूर्ण है। हमने पढ़ा कि वास्तु पुरूष का सिर उत्तर-पूर्व तथा पैर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है तथा उसके दोनों हाथ उत्तर-पश्चिम तथा दक्षिण-पूर्व की तरफ इशारा करते हैं। इसलिए अधिकतर वास्तु करने वाले इस दिशा में भारी वजन रखने की सलाह नहीं देते हैं बल्कि दक्षिण-पश्चिम दिशा में भारी वजन रखने की सलाह देते हैं।
ठीक इसी प्रकार ब्रह्म स्थान, जहां वास्तु पुरूष की नाभि है, कोई भी ढांचा नहीं बनाना चाहिए। वास्तु शास्त्र में शौचालय को वास्तु पुरूष के सिर की तरफ बनाने से तथा इस ओर अधिक वजन रखने से बचना चाहिए। यही नियम विपरीत दिशा में भी लागू होता है। यूनिवर्सल थर्मो स्कैनर से दोनों दिशाओं (उत्तरी-पूर्व व दक्षिण-पश्चिम) को भारी करके जब जांच किया गया तो पता चला कि हमारे पहले के लिखे शास्त्रों में कोई दोष नहीं है। वास्तु करते समय यही ध्यान रखना चाहिए कि उत्तर-पूर्व दिशा सकारात्मक ऊर्जा या कंपन शक्ति को लाने के लिए सबसे अच्छी दिशा है। इसीलिए यह स्थान हमेशा खुला रहना चाहिए।
यह स्थान सबसे बड़ी ताकत ईश्वर का प्रतिनिधित्व करता है। उत्तर-पूर्व के कटे होने का अर्थ है, वास्तु पुरूष के सिर का कटना जिससे घर में कई तरह की भयंकर परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ठीक उसी प्रकार सैप्टिक टैंक व शौचालय भी इस दिशा में उनके लिए बहुत बुरे परिणाम दे सकते हैं जो इस घर में रहते हैं। आने वाले अंकों में भी हम वास्तु में वैज्ञानिक तरीके से क्या-क्या बदलाव कर सकते हैं तथा इनका वैज्ञानिक महत्व क्या है, इनकी क्रमिक जानकारी देंगे।
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