प्राकृतिक ऊर्जा संतुलन
प्राकृतिक ऊर्जा संतुलन

प्राकृतिक ऊर्जा संतुलन  

गीता मैन्नम
व्यूस : 8290 | जून 2013

प्रकृति में दो प्रकार की उर्जायें होती हैं जिन्हं सकारात्मक तथा नकारात्मक ऊर्जा के नाम से जाना जाता है। ब्रह्माण्ड में सृजनात्मक व विध्वंसक दोनों प्रकार की उर्जायें विद्यमान हैं, यही सकारात्मक ऊर्जा फूलों को खिलने व बीज को अंकुरित होने में सहायता प्रदान करती है। परन्तु कुछ विनाशक उर्जायें भी ब्रह्माण्ड में उपस्थित हैं जो एक बीज को ठीक प्रकार से अंकुरित नहीं होने देता है तथा मनुष्य की उन्नति में भी बाधा उपस्थित करते हैं।

कीड़े, कीटाणु व वाइरस आदि विनाशक ऊर्जा के रूप में कार्य करते हैं। हमारा घर या इमारत केवल रहने का स्थान ही नहीं है। यह एक अन्य त्वचा की सतह की तरह है जो हमं बाहरी दुनिया की उर्जाओं के साथ जोड़ती है। लोग इनमें या तो कम समय के लिए (आफिस व फैक्टरी) या पूरे समय के लिए रहते हैं। यह हमें और हमसे जुड़ी चीजों को सुरक्षा तथा संरक्षण प्रदान करती है।

घर एक ज्यामितीय आकार लिए होता है- एक यन्त्र के समान, जिससे यह एक शक्ति के रूप में कार्य करता है, यह शक्ति उस घर में रहने वाले लोगों की शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक रूप से सहायता करती है तथा घर में सम्पन्नता का निर्माण करती है। यहाँ सम्पन्नता का अर्थ है घर में रहने वाले लोगों के लिए आवश्यक धन, बाहर की समस्याओं से स्वतन्त्र, शान्ति प्रदान करना तथा पारस्परिक सम्बन्धों को अच्छा रखना। यदि हम कहें कि इमारत को भी जीवन होता है तो कोई भी विश्वास नहीं करेगा। हम अपने यूनीवर्सल थर्माे स्कैनर की सहायता से आपको एक घर का ऊर्जा क्षेत्र नाप कर दिखा सकते हैं।

हम स्कैनर की सहायता से यह भी बता सकते हैं कि वहाँ पर कितनी सकारात्मक व नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो रहा है। यदि हम अपनी परम्परा को देखें तो पुराने समय में प्रत्येक व्यक्ति अपने घर को बनाने में कुछ नियम व कायदे का अनुसरण करते हैं। हमारे पूर्वज कुछ जानवरों जैसे- गाय व सांड़ का प्रयोग करते थे।

वह गाय को छोड़ देते थे तथा जिस स्थान पर गाय जाकर बैठती थी वहीं पर वे लोग घर बनाते थे। हमारे महाकाव्य महाभारत ग्रन्थ में भी जानवरों के संरक्षण के लिए युद्ध हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण भी बहुत सी गाय रखते थे। गाय तथा कुछ अन्य जानवर अपने रहने के लिए सकारात्मक स्थान का ही चयन करते हैं। हमारे ऋषि-मुनि अपनी शक्ति से सकारात्मक ऊर्जा वाले स्थानों का पता लगा लेते थे। शब्द गोत्र जो गाय शब्द से ही निकला है भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण परम्परा की तरफ इशारा करता है।

गाय का गोबर,मूत्र,दूध,दही व घी को मिलाकर पंचगव्य कहा जाता है। इसमें बहुत ही सकारात्मक ऊर्जा होती है। इसमें बहुत से रासायनिक मिश्रण होते हैं जो मनुष्य को बीमारी से बचाते हं गाय के गोबर को खेती के लिए एक अच्छे खाद, कीटनाशक के रूप में प्रयोग किया जाता था वे लोग मिट्टी के घर बनाकर नीचे जमीन व दीवारां पर गोबर का लीपन करते थे। गाय का मूत्र बहुत सारी बीमारियों के लिए औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है तथा गाय के घी से यज्ञ करने से वायु प्रदूषण नियन्त्रित किया जा सकता है।

मानव जीवन-बिल्डिंग बायोलाॅजी इसका अर्थ है कि हमारे चारों तरफ बहुत सारी वस्तुएं होती हैं जिनका भौतिक व रासायनिक पहलुओं का प्रभाव मनुष्य के जीवन पर पड़ता है। इस तथ्य को नंगी आँखों से नहीं देखा जा सकता है लेकिन समय के साथ-साथ इसके अच्छे व बुरे प्रभावों के साथ इसका अनुभव किया जा सकता है।

एक इमारत केवल एक ढाँचा ही नहीं होती है बल्कि इसमें भी एक अपनी ऊर्जा होती है जिसको प्राप्त करने में निम्न तत्व सहायक होते हैं जैसे- पत्थर, लकड़ी, लोहा, इत्यादि भी सकारात्मक ऊर्जा वाले हों, वस्तुयें जो घर में रखी हैं उनका भी ऊर्जात्मक सन्तुलन उस घर में रहने वाले लोगों के साथ होना चाहिए।

भूमि विज्ञान पृथ्वी में मौजूद चुम्बकीय क्षेत्र, गुरूत्वाकर्षण और सूर्य की रोशनी मानव जीवन में सहायता प्रदान करते हैं तथा इसके साथ ही साथ भूमि के अन्दर कुछ ऐसे हानिकारक रसायन विद्यमान हैं जो मनुष्य के जीवन पर दुष्प्रभाव डालते हैं। ये नकारात्मक उर्जाएँ मनुष्य की सकारात्मक ऊर्जा पर भी प्रभाव डालते हंै जिसके कारण लाइलाज बीमारी जैसे- कैंसर, टी0बी0, हृदयाघात का मनुष्य को सामना करना पड़ता है।

मृत शरीर को दफनाने के बाद कभी-कभी उसकी अस्थिां चेतन हो जाती हैं जो मनुष्य के ऊर्जा क्षेत्र को प्रभावित करती हैं जिससे उसको मानसिक व शारीरिक परेशानी हो सकती है। बाओ- बायोलाजी यह शब्द जर्मन वास्तु विशेषज्ञों ने एक आन्दोलन के रूप में दर्शाया है जो एक स्वस्थ इमारत के सिद्धान्तों के लिए प्रयोग होता है। इसका अर्थ है अच्छे रहने के स्थान के रूप में व कार्यस्थल जो अधिभोक्ता के स्वास्थ्य के साथ सम्बद्ध होता है।

प्रारम्भ में इसका अध्ययन, घर किस प्रकार का है तथा वह और उसमें रहने वाले लोग एक दूसरे के ऊर्जा क्षेत्र को किस प्रकार प्रभावित करते हैं, के रूप में करते हैं। कुछ अप्राकृतिक आकार, टूटी हुई वस्तुएँ, धातु की वस्तुएँ, विद्युतीय गैजेट्स, अधूरी मानव आकृति के मूर्ति इत्यादि इन्फ्रारेड रेडियेशन देती हैं।

इनसे नकारात्मक ऊर्जा, अज्ञात समस्या, सर दर्द और संक्रमण आदि के रूप में समस्या उत्पन्न होती है। यूनीवर्सल थर्माे स्कैनर की सहायता से इस नकारात्मक ऊर्जा की जांच की जाती है। बाओ-बायोलाजी ऊर्जात्मक रूप से पर्यावरणीय स्थिति की देखभाल कर लेती है। प्रकृति के द्वारा वास्तु समझना प्रकृति को देखकर कोई भी मनुष्य वास्तु को समझ सकता है।

जिस प्रकार फूलों और क्रिस्टल अणु के आकार से बढ़कर वर्तमान आकार में जाने के लिए ब्रह्माण्डीय ऊर्जा की सहायता आवश्यक होती है ठीक उसी प्रकार मनुष्य को चाहे वह घर हो या व्यवसाय, कली से फूल बनने के लिए बहुत अधिक सकारात्मक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसका अर्थ यह है कि ब्रह्माण्डीय ऊर्जा को ग्रहण करने के लिए सकारात्मक वातावरण होना बहुत ही आवश्यक है जो उनकी उन्नति में उनकी सहायता कर सके।

एक प्रजाति के सभी फूल एक जैसे नहीं खिलते हैं क्योंकि नकारात्मक उर्जाएँ फूल को फल में बदलने के पहले रूकावट पैदा कर देती हैं जैसे फूलों में कोई संक्रमण फैलाकर। हम प्रकृति की प्रत्येक वस्तु में रंगों को देखते हैं। रंगों का भी अपना ऊर्जा क्षेत्र होता है एक निश्चित कंपनशक्ति व वेवलैन्थ के साथ। यद्यपि हम इनका वास्तु में सीधा प्रयोग नहीं करते हैं, चाइनीज इसको फंेगशुई के रूप में प्रदर्शित करते हैं।

वास्तु में ग्रीक शब्द इरोज का अर्थ है वैदिक शब्द ‘कामा’ व समयोग के समानार्थ ही है। इसका तात्पर्य यहाँ पर आकाश और पृथ्वी के मध्य गठजोड़ से है अर्थात जब माता पृथ्वी पिता आकाश से मिलती है तभी पर्यावरण में संतुलन बना रहता है। जब पिता आकाश अपने पौरूषत्व की ऊर्जा के रूप में वर्षा करता है तथा माता पृथ्वी उसको अपने गर्भ में धारण कर लेती है तब केवल बीज प्राण ग्रहण करके बढ़ता और खिलता है।

जीवन का पूरा रहस्य इसमें छिपा हुआ है जिसके कारण पूरी पृथ्वी हरी भरी रहती है। क्या यह कोई चमत्कार नहीं है? इस प्रकार जीवन पृथ्वी पर विद्यमान है। कोई भी देख सकता है कि ब्रह्माण्ड में प्रत्येक प्राकृतिक वस्तु अपना कोई न कोई आकार ग्रहण किये होती है। हम विभिन्न प्रकार के ज्यामितीय आकारों का अध्ययन करते हैं जो भिन्न भिन्न उर्जा क्षेत्र प्रदान करते हैं, इसी प्रकार प्रत्येक प्राकृतिक वस्तु के आकार के साथ-साथ अपना एक प्रतिसाम्य भी होता है अर्थात् जब किसी एक वस्तु को दो बराबर हिस्सों में बाँटा जाये तो वे एक दूसरे के सदृश्य होती है- दर्पण के प्रतिबिम्ब की तरह जिसमं एक भाग पौरूषत्व की ऊर्जा धारण किये रहता है तथा दूसरा भाग स्त्रीत्व की ऊर्जा विज्ञान की भाषा में कहें तो एक पाजिटिव ‘+’ साइन वाला हिस्सा तथा एक नेगेटिव ’-’ साइन वाला हिस्सा। दोनों को मिलाकर ही एक संपूर्ण वस्तु निर्मित होती है।

यदि किसी भी सजीव व निर्जीव वस्तु में साम्य की कमी होती है तो ब्रह्माण्ड में उस प्रजाति या वस्तु की गुप्त होने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हं। वास्तु में ऊर्जात्मक संतुलन पृथ्वी लगभग 6-8 हटर्ज की कंपन शक्ति पर वाइब्रेट करती है लेकिन कुछ स्थानों पर जहाँ जियोपैथिक स्ट्रेस होता है वहाँ पर यह कम्पन शक्ति 250 हटर्ज तक पहुँच जाती है। इस प्रकार की दिखाई न देने वाली नकारात्मक उर्जाएँ मानव जीवन के लिए हानिकारक हैं जो लगातार तनाव को बढ़ाने का कार्य करती है।

ये सीधे तौर पर बीमारियों का कारण नहीं होती हैं बल्कि ये मनुष्य के इम्युनिटि सिस्टम को इतना कमजोर कर देती है जिससे बीमारियों से लड़ने वाली कोशिकाओं की क्षमता खो जाती है। ये नकारात्मक उर्जाएँ शरीर और मस्तिष्क की कोशिकाओं के डी.एन.ए. के रासायनिक बन्धन को तोड़ देती हंै जो इस प्रकार की कम्पन शक्ति के पास रहते हं इसी प्रकार के स्थानों पर दीमक, वायरस आदि बहुत अधिक मात्रा में मिलते हैं।

यहाँ पर मधुमक्खियां का छत्ता, बिल्ली का अधिक समय बैठना आदि प्राकृतिक पहचान है नकारात्मक ऊर्जा को पहचानने की। इस प्रकार, हम वास्तु में केवल एक चीज को ध्यान में रखकर किसी भी घर या क्षेत्र का ऊर्जा क्षेत्र नहीं बढ़ा सकते हैं। यूनीवर्सल थर्मा स्कैनर की सहायता से हम वास्तु के हर पहलु पर वैज्ञानिक तरीके से उसको जाँच सकते हैं तथा वैज्ञानिक तरीके से उसके उपाय भी ढूँढ़ सकते हैं ।

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