पिछले अंक में हमने आपको घर की बनावट का वास्तु में ऊर्जा के रूप में क्या महत्व है, से अवगत कराया था, वास्तु क्या है? क्या यह दीवारों से संबंधित है अगर ऐसा होता है तो हम खुले स्थानों का वास्तु नहीं कर सकते हैं परंतु खुले स्थानांे का भी वास्तु देखा जाता है, तो वास्तु क्या है? वास्तु एक ऊर्जा का खेल है जो सूर्य की किरणों और पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों का मिश्रित खेल है।
सूर्य की किरणें जो हमें सफेद दिखायी देती हं वे सफेद न होकर सात रंगों (इंद्र धनुषीय रंगों) का संयोजन है। इनके साथ राहु (इन्फ्रारेड) और केतु (अल्ट्रावायलेट) भी होते हैं। यदि इन नौ रंगों का खेल और सूक्ष्म रूप से जानना चाहते हैं तो इन रंगों की कंपन शक्तियों के विषय में अवश्य जानकारी होनी चंाहिए।
ये नौ रंग हमारे वास्तु में नौ दिशाओं से संबंधित हैं। किसी भी वजह से घर में यदि इनमें से कोई रंग हमें नहीं मिल रहा है तो उस रंग की कमी से हमारे शारीरिक व मानसिक स्थिति में असंतुलन पैदा हो सकता है। ये सात रंग जो सूरज के सात घोड़ों के प्रतीक हं हमारे शरीर के सात चक्रों से भी जुड़े हैं। यही कारण है कि ये ऊर्जा हमारी नौ दिशाओं में सही न मिलने पर शारीरिक असंतुलन का कारण बन सकती है।
यही रंग हमें मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य, यही नौ कंपनशक्तियां हमारे घर में आर्थिक, आध्यात्मिक व पारिवारिक संबंधों की बुनियाद हैं। रंगों की कमी से मनुष्य में हार्मोनल असंतुलन पैदा हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप कोई भी बीमारी शरीर में आ सकती है।
अब हम बतायेंगे कि कैसे ये सात रंगों की कंपनशक्तियां मनुष्य पर सकारात्मक या नकारात्मक तरीके से प्रभाव डालती हैं। इसे हमारे ऋषियों द्वारा विज्ञान का रहस्य कहा गया है। आधुनिक विज्ञान अभी तक इस रहस्य को समझने की स्थिति में नहीं पहुंचा है। जैसे कि हम ऊपर दी गयी तस्वीरां में देख सकते हैं उभरते रंग विबग्योर (वायलेट, इन्डिगो, ब्लू, ग्रीन, यैलो, आरेन्ज और रेड) इंद्रधनुषीय रंग से संबंधित हं। लाल (रेड) लाल रंग भूमि तत्व से संबंधित होता है। इसका तरंगदैध्र्य (वेवलैंथ) 620-750 दउ होता है।
मनुष्य में इस रंग के सकारात्मक प्रभाव हैं- शारीरिक साहस, शक्ति, गरमाहट, ऊर्जा, मूल जीविका, करो या मरो, उत्तेजना, स्फूर्ति आदि। इसका तरंगदैध्र्य सबसे लंबा होता है तथा यह सबसे शक्तिशाली रंग होता है। करो या मरो की स्थिति जागृत करता है तथा लाल रंग बहुत ताकतवर व मूल रंग है।
शुद्ध लाल सबसे साधारण रंग होता है जिसमें कोई मिलावट नहीं होती है। यह स्फूर्तिदायक, जीवंत व मैत्रीवत होता है। ठीक उसी समय यह आक्रामक भी हो सकता है। यदि घर के अंदर इस रंग की कमी होती है तो इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं जैसे गुस्सा, शरीर में थकान पैसों की कमी।
इसके कारण घर में रहने वाले लोगों में हिमोग्लोबिन की कमी भी हो सकती है। व्यक्ति को कमजोरी तथा अपना नाम व प्रतिष्ठा खोता हुआ महसूस होता है। इस रंग का संबंध मनुष्य के मूलाधार चक्र से होता है तथा यह शरीर का मूल चक्र है जो शरीर को ताकत प्रदान करने के साथ बोलने व खड़े होने की क्षमता प्रदान करता है। नारंगी (आॅरेन्ज) यह रंग जल तत्व से संबंधित होता है।
इसका तरंग दैघ्र्य 590-620 दउ है। यह रंग उच्च भावनायें उत्पन्न करता है। इस रंग के सकारात्मक प्रभाव हैं-आशावादी, विश्वासी, आत्म संतुलन, मित्रता, क्रियाशीलता, तथा भावनात्मक मजबूती आदि। यह रंग मनुष्य के दूसरे चक्र स्वाधिष्ठान चक्र से संबंधित होता है। यह चक्र स्त्री पुरूष के यूरोजैनाइटल सिस्टम को ऊर्जा प्रदान करता है। यद्यपि नारंगी रंग बहुत ही मजबूत रंग होता है, मनोवैज्ञानिक रूप से यह हमारे आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को बढ़ाने में हमारी सहायता करता है। यह विश्वास और आशावादी स्थिति बनाता है।
घर में इस रंग की अनुपस्थिति में हमें कुछ नकारात्मक स्थिति का भी सामना करना पड़ता है जैसे डर, भावनात्मक असंतुलन, चिंता, निराशावाद, झुंझलाहट और आत्म हत्या जैसी स्थिति का उत्पन्न होना। डर और भावनात्मक असंतुलन आत्महत्या की स्थिति को उत्पन्न करते हैं। व्यक्तिगत रूप से यदि स्वाधिष्ठान चक्र में ऊर्जा की कमी है या इस रंग की कमी है तो बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है जैसे स्त्रियों में गर्भधारण की समस्या, बार-बार गर्भपात होना, मासिक स्राव का अनियमित होना, यूरीन आदि से संबंधित किसी भी समस्या का सामना करना।
इसलिए घर में इसका नियमित मात्रा में होना बहुत ही आवश्यक है साथ ही साथ मनुष्य के शारीरिक चक्र में भी। पीला (यैलो) इसकी वेवलैंथ 570-590 दउ तक होती है। इसके सकारात्मक प्रभाव हैं- शारीरिक आराम, खाना, गरमाहट, सुरक्षा, खुशी, चाह, भावनात्मक संबंध, इन्द्रियशक्ति। यह रंग मनुष्य के तीसरे चक्र मणिपुर से संबंधित होता है। यह शारीरिक, भावनात्मक विशेषताओं का संयोजन है। यह हमारे दिमाग को, हमें शारीरिक आराम जैसे खाना, छाया, गरमाहट तथा इन्द्रिय शक्ति प्रदान करता है तथा यह रंग अग्नितत्व से संबंधित होता है।
इस रंग या अग्नि तत्व का घर में कमी होने से कुछ नकारात्मक स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है जैसे - निराशा, खुशी से वंचित होना, विफलता, तुच्छ कार्य करने की आदत और अपरिपक्व व्यवहार करना। हमारा उदर पाचन क्रिया करने के लिए जठराग्नि उत्पन्न करता है जो भोजन को पचाने में सहायता करती है। यही हमारे पाचन का कारण है। यदि किसी की पाचन क्रिया ठीक नहीं तो यकृत, अग्नाशय तथा पित्त की थैली की समस्या हो सकती है जो खाना पचाने में सहायक हार्मोन्स को निकालते हैं। यदि शरीर व घर में इस रंग की कमी है अर्थात शरीर को चलाने के लिए पर्याप्त ईंधन नहीं है, यह बहुत सारी शारीरिक समस्याओं को उत्पन्न कर सकता है जिसके परिणामस्वरूप मूलाधार और स्वाधिष्ठान चक्र भी कमजोर हो जायेगा जिससे मनुष्य के जीवन में निराशा की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
हरा (ग्रीन) यह रंग वायु तत्व से संबंधित होता है तथा बुध ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। इसकी वेवलैंथ 495-570 दउ होती है। यह स्पैक्ट्रम के बीच का रंग होता है और सात चक्रों में भी यह बीच में ही आता है। यह रंग मनुष्य की तीन ऊपर के चक्र तथा तीन नीचे के चक्रों में संतुलन स्थापित करता है। यह सबसे अधिक संगत सुरीला रंग है। इसकी वेवलैंथ और कंपनशक्ति दोनों ही 550 दउ होती है। यह पूरे मानव शरीर को संतुलित करता है। यह हमारे शरीर में अनाहत चक्र का रंग होता है। इस रंग के सकारात्मक पहलू हैं समन्वय, संतुष्टि, शक्ति, संतुलन, सहायक, प्यार, जगरूकता आदि। हरा रंग पौधों का होता है जो कि पृथ्वी पर समन्वय स्थापित करता है। पृथ्वी पर हमारे जीवन को चलाने के लिए खाना और आॅक्सीजन को उत्पन्न करने के लिए हमेशा पेड़-पौधों से भरा होना चाहिए। इसलिए पेड़ पौधों को जहां तक संभव हो सके काटने से बचना चाहिए तथा नये पौधों को लगाने के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए। एक घास का तिनका भी जो किसी फूल या फल का भार नहीं उठा सकता है वह भी भूमि को वचन देता है कि मैं इस ग्रह पर रहने वाले जीवों का भरण पोषण करूंगा और आॅक्सीजन दूंगा।
ठीक उसी समय वह जीवों द्वारा छोड़ी गई कार्बन डाई आॅक्साईड अपने जीवन को सुरक्षित रखने के लिए ग्रहण करता है। यदि हरे रंग की पृथ्वी पर कमी हो गयी तो पृथ्वी पर अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी। मनुष्य और घर में हरे रंग की कमी होने से निराशा, निरूत्साह, कठोरता, दुर्बलता, प्रवाहहीनता आदि की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। नीला (ब्लू) यह रंग वायु तत्व तथा शनि ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। इसकी वेवलैंथ 479-495 दउ होती है।
इस रंग के सही मात्रा में होने से निम्न सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं जैसे बुद्धिमत्ता, संचार, विनिमय, विश्वास, कर्तव्य, तर्क, शांत, प्रतिबिंब, स्वच्छता प्रंशातता तथा सामथ्र्यता आदि। नीला रंग हमारे पांचवें चक्र विशुद्धि चक्र से संबंधित है। यह हमारे शारीरिक ऊर्जा को बढ़ाने के बजाय मानसिक ऊर्जा को बढ़ाने में सहायता प्रदान करता है।
नीले रंग से साफ व शुद्ध विचारों का उद्गमन होता है तथा यह रंग मानसिक शांति व ध्यान को एकाग्र करने मंे सहायता करता है। घर या शरीर में इसकी कमी होने पर व्यक्ति में मूर्खता, भावना की कमी, किसी से नहीं मिलना-जुलना आदि की स्थिति उत्पन्न होती है। नीला (इंडिगो) यह हमारे छठे चक्र आज्ञा का है। इसको आध्यात्मिक चक्र भी कहते हैं। इस रंग की वेवलैंथ 386-450 दउ है। इस रंग की नियमित मात्रा होने से व्यक्ति में आध्यात्मिक जागरूकता, दूर दृष्टि, सत्य, प्रामाणिकता, उच्च अंदरूनी व साहसिक गहरी सोच और ध्यान जैसे सकारात्मक प्रभाव दिखायी पड़ते हैं। यह राजसी गुण से भी संबंधित होता है।
इस रंग की घर या मनुष्य में कमी से वह अंतर्मुखी, तुच्छ काम करने की भावना, इच्छाओं को दबाना, हीनता की भावना का उदय होना आदि समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। बैंगनी (वायलेट) यह रंग सहस्रार चक्र से संबंधित है जो हमारे कुंडलिनी की ऊर्जा क्षेत्र को ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ सफेद रोशनी से जोड़ते हैं। यह स्थिति उनके लिए होती है अपने ध्यान की स्थिति में 1-5 भ्र तक की कंपनशक्ति में आ जाते हैं और महीनों तक अपनी ही धुन में रहते हैं तथा आंतरिक शरीर (जैसे हिमालय बाबा) स्थूल शरीर को छोड़कर ब्रह्मांड में घूमता रहता है। संतमहावीर बाबाजी भी इसी शृंखला में आते हैं।
काला (ब्लैक) यह इंद्रधनुष के सभी रंगों को अपने में समा लेता है और प्रत्येक को किसी भी परेशानी से सुरक्षा प्रदान कर सकता है। इसके कुछ सकारात्मक प्रभाव हैं- सुरक्षा, भावनात्मक सुरक्षा, सामथ्र्य, जादू टोना, मोहिनी स्थिति, मिथ्या तर्क, युक्ति, व्यक्तित्व आदि तथा नकारात्मक पहलू हैं भारीपन, अत्याचार, उत्पीड़न, निस्तेज तथा डराना धमकाना आदि।
सफेद (ह्वाइट) जबकि यह सभी रंगों को अपने में समाकर रखता है फिर भी उनकी कंपनशक्ति हमारी आंखों को चुंधिया देती है और हम लंबे समय तक इसको एकटक नहीं देख सकते हैं। यहां पर हमने लगभग सभी रंगों के बारे में बताया है कि इन रंगों की कमी या अधिकता से घर और मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा। जिस मनुष्य में जिस रंग की अधिकता होगी उसका स्वभाव उसी के अनुरूप होता है।
अतः हमें यह प्रयास करना चाहिए की हमारे घर या हमारे शरीर में सभी रंग पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हों। हम अपने यूनीवर्सल थर्मोस्कैन की सहायता से आपके शरीर में किस रंग की अधिकता या कमी है तथा आप के घर में कौन से रंग आपको प्रयोग करने चाहिए बता सकते हैं । यूनीवर्सल थर्मो स्कैनर सूक्ष्म रूप से भी यदि किसी रंग की आवश्यकता है तो पहचान कर बता देता है।
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