श्वेतार्क गणपति: यह गणपति जी की मूर्ति दुर्लभ वस्तुओं में से एक है। अर्क के पौधे दो प्रकार के होते हैं। एक पौधा जिसमें लाल रंग के फूल खिलते हैं। वह अधिकांश रूप में प्राप्त हो जाता है, लेकिन जिस अर्क के पौधे में श्वेत रंग के फूल खिलते हैं, यह प्राकृतिक रूप से बहुत अल्प मात्रा में प्राप्त होता है। उस पौधे को श्वेतार्क रूप से जाना है। किसी शुभ मुहूर्त में इस पौधे की जड़ को लाकर उससे गणपति जी की मूर्ति का निर्माण किया जाता है। इस मूर्ति का विधिवत पूजन व प्रतिष्ठा करके नित्य पूजन दर्शन करने से कार्य क्षेत्र व्यवसाय आदि में सुख, समृद्धि बनी रहती है। गणपति जी की कृपा से सभी विघ्न बाधाएं दूर होती हैं।
दक्षिणावर्ती शंख: यह शंख दुर्लभ वस्तुओं में से एक महत्वपूर्ण वस्तु है। शंख दो प्रकार के होते हैं- वामवर्त एवं दक्षिणावर्त। वामवर्त शंख प्रायः यंत्र-तंत्र सर्वत्र मिल जाते है। लेकिन दक्षिणवर्तीय शंख प्रायः कम मिलते हैं। इस शंख का मुंह दाहिने तरफ खुला होता है। इसलिए इसे दक्षिणावर्ती कहते हैं। इश शंख को अपने घर में लाकर कच्चे दूध तथा गंगाजल से शुद्धिकरण करके रोली से रंगे चावल लक्ष्मी बीज मंत्र से शंख में भरकर इसे लाल कपड़े पर स्थापित करके अपने पूजा स्थल में नित्य धूप दीप से पूजन करें। इसके प्रभाव से घर में धन की वरकत बनी रहती है।
जीवन में लक्ष्मी के अभाव का आभास नहीं होता है। एकमुखी रुद्राक्ष: एक मुखी रुद्राक्ष भी दुर्लभ आध्यात्मिक वस्तुओं में एक है। रुद्राक्षों में एक मुखी रुद्राक्ष का भौतिक तथा आध्यात्मिक रूप से अपना खास महत्व है। इसे धारण करने से भौतिक उन्नति के क्षेत्र में श्रेष्ठ धन, यश, पद व प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। आध्यात्मिक दृष्टि से इसे धारण करने से आध्यात्मिक साधना में विशेष उन्नति होती है। साधक शिव सायुज्य को प्राप्त करता है।
कहा जाता है कि श्रीमती इंदिरागांधी को नेपाल नरेश ने एक मुखी रुद्राक्ष प्रदान किया था। इस रुद्राक्ष को सोने में मढ़वाकर विधिवत पूजा प्रतिष्ठा करके गले में धारण करना चाहिए।