जन्म कुण्डली में त्रिकोण भावों को सबसे शक्तिशाली माना जाता है। लग्न, व्यक्तित्व व व्यक्ति के स्वास्थ्य का भाव है। पंचम भाव बुद्धि, संतान तथा निर्णय क्षमता से सम्बन्ध रखता है। नवम भाव भाग्य का है यह धर्म व चिन्तन का भाव भी है। इन्हीं तीनों भावों को त्रिकोण कहा जाता है।
तंत्र-साहित्य में त्रिकोण निर्माण तथा सृष्टि की उत्पत्ति का प्रतीक है। पंचम भाव संतान का है तथा इसका कारक बृहस्पति है। जातक के जीवन में संतान तथा भाग्य से इस भाव का गहरा सम्बन्ध है। बृहस्पति इसका कारण इसलिये है क्योंकि उसकी यहां उपस्थिति अपनी स्थिति व दृष्टि से त्रिकोण पर पूर्ण प्रभाव रखती है।
फलित-ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है भावात् भावम् अर्थात् भाव के भाव तक । जिस भाव पर विचार करना है उसे लग्नवत् मानकर विभिन्न भावों पर विचार। पंचम भाव से पंचम अर्थात् नवम भाव भी संतान विचार में महत्वपूर्ण है।
नवम से नवम अर्थात् पंचम भाव का भी भाग्य से गहरा सम्बन्ध है। पंचम को लग्नवत् माना जाये तो लग्न भाग्यस्थान तथा भाग्य भाव से लग्न संतान का भाव है। स्वास्थ्य, संतान तथा भाग्य एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है। संतान भाग्य से ही प्राप्त होती है। स्वस्थ संतान के 1 लग्न, व्यक्तित्व स्वास्थ्य 2 3 4 5 संतान बुद्धि 6 7 8 9 धर्म भाग्य 10 11 12 लिये माता-पिता का स्वास्थ्य भी महत्वपूर्ण है।
चन्द्र, मंगल, रवि एवं बृहस्पति गर्भाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, बशर्ते कि कुण्डली में संतान प्राप्ति के योग हांे। चन्द्रमा तिथि, रवि माह तथा बृहस्पति गर्भाधान का वर्ष बताता है। शनि एवं बृहस्पति की दशा गर्भ को पुष्ट करती है। स्त्री के मासिक धर्म का सम्बन्ध चन्द्रमा के भ्रमण तथा मंगल के प्रभाव से है।
जन्म कालीन चन्द्रमा से 3,6,10 या 11 वें भाव में चन्द्रमा हो तथा मंगल से सम्बन्ध हो तब का मासिक धर्म गर्भधारण का कारण बन सकता है। स्त्री व पुरुष की चन्द्र राशि से प्रथम, पंचम, सप्तम या एकादश भाव में गोचरस्थ शनि व बृहस्पति गर्भ की स्थिति निर्मित करते हैं। लग्न से पंचम या नवम भाव से शनि तथा पंचम भाव में बृहस्पति का गोचर गर्भधारण करवा सकता है।
मंगल-शुक्र की परस्पर युति या पूर्ण दृष्टि सम्बन्ध तथा उसका लग्न, पंचम या एकादश भाव से सम्बन्ध की स्थिति निर्मित करता है। फलित ज्योतिष में गर्भाधान के अनेक योगों का उल्लेख आया है। इसी तरह गर्भ के सुरक्षित या पुष्ट होने के योग प्राप्त होते हैं। गर्भाधान के समय व्यय भाव का स्वामी शुभ ग्रहों की संगति तथा प्रभाव में हो तथा चन्द्रमा केन्द्र या त्रिकोण भाव में हो तो गर्भ सुरक्षित रहता है।
लग्न पर सूर्य का प्रभाव हो तो बच्चे व माता दोनों सुरक्षित रहते हैं। गर्भाधान के समय रवि लग्न, तृतीय, पंचम या नवम भाव में हो तथा इनके स्वामी से एक भी सम्बन्ध हो तो गर्भ सुरक्षित रहता है तथा भाग्यशाली व दीर्घायु संतान जन्म होता है।
पंचम, लग्न या एकादश भाव पर प्रसव के समय मंगल व शनि का प्रभाव हो, या इन भावों के स्वामी इन ग्रहों के प्रभाव में हों तब शल्यक्रिया से सन्तान का जन्म होता है। पं. रामचन्द्र शर्मा ‘‘वैदिक’’ ।प्थ्।ै त्मेमंतबी श्रवनतदंस व ि।ेजतवसवहल स श्रंदण्.डंतण् 2014 51 विचार गोष्ठी ं समीक्षा भारतीय ज्योतिष ने संतान संख्या, संतान का लिंग, संतानोत्पत्ति के समय स्त्री के आस-पास का वातावरण, पिता की स्थिति, गर्भाधान के समय माता-पिता की मनः स्थिति पर विस्तार से प्रकाश डाला है।
इसके लिये जन्म कुण्डली के साथ सप्तमांश व नवांश कुण्डली के विभिन्न योगों का फलित ग्रंथों में विस्तार से वर्णन है। गर्भपात संतान चाहने वाले दम्पत्तियों के लिये एक दुःखद स्थिति है। इसके अतिरिक्त समय से पूर्व अविकसित प्रसव भी कष्टदायक है। फलित ज्योतिष ने इस विषय पर भी प्रकाश डाला है। गर्भाधान के समय पंचम भाव पाप-कर्तरी योग में हो या पंचम भाव, उसका स्वामी राहु-मंगल के संयुक्त प्रभाव में हो तब भी गर्भपात की स्थिति बन सकती है। गर्भाधान के समय लग्न व चन्द्र लग्न के स्वामी ग्रहों का गोचरीय षडाष्टक योग हो तथा चतुर्थ भाव में पाप ग्रह हो तो भी गर्भपात होता है।
6ठे एवं 7वें भाव के स्थायी ग्रह की अंतर्दशा या प्रत्यंतर दशा में गर्भाधान न ही करें तो सुखद होगा। प्रथम भाव का कमजोर होना तथा पंचम भाव पर राहु तथा शनि का प्रभाव गर्भ को कमजोर करता है। पंचम व सप्तम भाव में पाप ग्रह तथा अष्टम भाव पर मंगल का प्रभाव गर्भपात करवा सकता है।
ज्योतिष की अपनी सीमाएं हैं वह केवल मार्गदर्शन कर सकता है, ग्रहजनित पीड़ा के उपाय बता सकता है, लेकिन भाग्य तो भाग्य है। मार्गदर्शन व भावी संभावना का आभास देकर ज्योतिष गर्भपात को रोकने में मदद कर सकता है। यही कारण है कि भारत में सन्तानोत्पत्ति एक प्रमुख संस्कार है तथा इसके लिए विधिवत् मुहूर्त की व्यवस्था भी है। गर्भपात अगर ग्रहों के गोचर व दशाओं के कारण संभावित है तो उसे रोका जा सकता है।
सर्वप्रथम डाॅक्टर की सलाह मानें। पंचम भाव के स्वामी तथा बृहस्पति का रत्न धारण करें। संतानोत्पत्ति कार्य को धर्म व उद्देश्य मानें तथा संयोग के समय मन में किसी तरह के कुविचार, अशांति न लावें। बार-बार गर्भपात की स्थिति में चांदी के सर्प का पूजन करें व संतान गोपाल महामंत्र का निरंतर जप करें। श्रीकृष्ण का पूजन मन को शांति देना है। शल्यक्रिया और ज्योतिष भारतीय ज्योतिष तथा चिकित्सा विज्ञान में गहरा संबंध है।
भारतीय आयुर्वेद की मान्यता है कि एक चिकित्सक को अच्छा ज्योतिषी भी होना चाहिये। आयुर्वेद का सिद्धान्त है कि रोगी की चर्या, चेष्टा, आकृति, शारीरिक लक्षण तथा जन्मपत्रिका से रोग की सीमा निश्चित की जा सकती है। परिवर्तन की लहर ने आयुर्वेद पर आधुनिक चिकित्सा पद्धति की प्रभुता सिद्ध कर दी है। राज्याश्रय, अनुसंधान तथा लोगों की आस्था ने आधुनिक चिकित्सा पद्धति की जड़ें काफी गहरी कर दी हैं। आज का चिकित्सा विज्ञान ज्योतिष से दूर हो गया है।