फलित ज्योतिष - जीवन में महत्वपूर्ण घटनाएं कब होती हैं?
फलित ज्योतिष - जीवन में महत्वपूर्ण घटनाएं कब होती हैं?

फलित ज्योतिष - जीवन में महत्वपूर्ण घटनाएं कब होती हैं?  

रामचंद्र शर्मा
व्यूस : 10496 | अकतूबर 2005

ज्योतिष का महत्वपूर्ण भाग फलकथन है। इसी गुण के कारण उसे वेदों का नेत्र कहा जाता है। भविष्य को जानने की चाह प्रत्येक व्यक्ति को होती है, संकट तथा परेशानी में यह चाह और भी बढ़ जाती है। भविष्य को व्यक्त करने की दुनिया के अलग-अलग धर्मों में अलग-अलग पद्धतियां हैं। सर्वाधिक प्रचलित तथा विश्वसनीय विधि जन्मपत्री का विश्लेषण है। जन्मपत्री विश्लेषण के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु हैं जो जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का संकेत देते हैं। इनमें प्रमुख हैं:


अपनी कुंडली में सभी दोष की जानकारी पाएं कम्पलीट दोष रिपोर्ट में


जातक का महादशा क्रम, अष्टकवर्ग एवं गोचर तथा नक्षत्रों के विभिन्न चरण तथा उनसे ग्रहों का गोचर। वैसे तो जन्मपत्री विश्लेषण के कई सूत्र हैं यथा - योग, वर्ग कुंडलियां, तिथ, वार, पक्ष, मास, नक्षत्र जन्म फल, ग्रहों के संबंध इत्यादि लेकिन भविष्य कथन में उपरोक्त तीन ही निर्णायक हैं। महर्षि पराशर ने मानव जीवन को 120 वर्ष की अवधि मानकर महादशा प्रणाली विकसित की। इस महादशा का निर्धारण जन्मकालीन चंद्रमा की नक्षत्रात्मक स्थिति में होता है।

सभी 27 नक्षत्रों को नवग्रहों में विभक्त कर एक-एक ग्रह को तीन नक्षत्रों का स्वामी बना दिया गया तथा गहों के भी महादशा वर्ष निश्चित किए गए। यहां महादशा क्रम, अंतर व प्रत्यंतर दशा निकालने की विधि दी जा रही है, सिर्फ उन बिंदुओं की चर्चा की जा रही है जो महत्वपूर्ण घटनाक्रम का कारण बनते हैं। लग्न, पंचम व नवम भाव जन्म कुंडली के शक्तिशाली भाव हैं - इनसे स्वास्थ्य, बुद्धि व संतान तथा भाग्य का विचार किया जाता है। इन्हें त्रिकोण भाव कहा जाता है।

इन भावों में स्थित राशियों के स्वामी ग्रहों की महादशा, अंतरदशा या प्रत्यंतरदशा सदैव सुखद परिणाम देती है। इसी तरह छठा, आठवां व व्यय भाव दुःख स्थान या त्रिक् स्थान कहलाते हैं। इनके स्वामी ग्रहों की महादशा, अंतरदशा या प्रत्यंतरदशा कष्टकारी होती है। लग्न व नवम भाव के स्वामी ग्रहों की ममहादशा में चतुर्थ या सप्तम भाव के स्वामी ग्रह की अंतरदशा घर में मंगल कार्य करवाती है।

जन्म नक्षत्र से तीसरा नक्षत्र विपत, पांचवां प्रत्यरि तथा सातवां वध संज्ञक कहलाता है। इन नक्षत्रों के स्वामी ग्रहों की महादशा, अंतरदशा या प्रत्यंतरदशा दुखद परिणाम देती है लेकिन अगर ये ग्रह त्रिकोण भावों के स्वामी हों तो परिणाम मिश्रित होते हैं। द्वितीय व सप्तम भाव मारक भाव हंै। इनके स्वामी ग्रहों की दशा-अंतरदशा यह प्रत्यंतर दशा मारक होती है।

शास्त्रों में आठ प्रकार की मृत्यु बताई गई है अतः मृत्यु का अर्थ केवल जीवन की समाप्ति नहीं होता। विंशोत्तरी महादशा के अतिरिक्त अन्य दशाओं का भी प्रयोग होता है। लेकिन अष्टोत्तरी, कालचक्र, योगिनी चर तथा माण्डु मुख्य हैं। लेकिन घटनाओं के निर्धारण में विंशोत्तरी की उपयोगिता निर्विवाद है। अष्टक वर्ग एक विशिष्ट प्रणाली है जो ग्रहों के शुभ-अशुभ प्रभावों को संख्या में व्यक्त करती है। इसका आधार है ग्रहों का ग्रहों पर प्रभाव। जिस राशि में जिस ग्रह के शुभ अंक ज्यादा हों, गोचर में उस राशि में वह ग्रह अपने भाव का भरपूर लाभ देता है। लेकिन इस प्रणाली को जानकार ज्योतिषियों के माध्यम से ही जाना जा सकता है।

अष्टकवर्ग घटनाओं के निर्धारण तथा आयु निर्णय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गोचर अर्थात् ग्रहों का राशि पथ में भ्रमण और उसका जन्म कुंडली के विभिन्न भावों पर प्रभाव। गोचर सामान्यतः चंद्र राशि के आधार पर गोचर का निर्धारण कर फल कथन किया जाता है। जन्म नक्षत्र से तीसरा, पांचवां, सातवां 12वां,14वां,16वां,21वां,23वां या 25वां नक्षत्र गोचर के भाव से अशुभ है। इन नक्षत्रों से ग्रहों का भ्रमण अशुभ घटनाक्रम उत्पन्न कर सकता है।

राशि पथ 27 नक्षत्रों तथा 108 चरणों में विभक्त है। यही 108 चरण नवांश भी कहलाते हैं। कुछ फलितकार जीवन भी 108 वर्ष का मानते हैं। जीवन के आयु तुल्य नवांश में जब भी कोई ग्रह भ्रमण करता है तो वह अपने भाव का शुभ या अशुभ फल अवश्य करता है। इधर कुछ फलितकारों की विशेष रूप से प्रश्न मार्ग की मान्यता है

कि 108 चरणों को यदि जन्म कुंडली के 12 भावों में विभक्त किया जाए तो प्रत्येक भाव में 9 चरण आएंगे। यदि इन्हें क्रम से रखा जाए ता लग्न में 1,13,25,37,49,61,73,85 या 97वां चरण पड़ेगा। इन नवांशों में जब भी ग्रह गोचरस्थ होंगे वे स्वास्थ्य पर अपनी प्रकृति के अनुसार प्रभाव डालेंगे। इस प्रणाली में चतुर्थ भाव में पड़ने वाला 64वां एवं 88वां चरण अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

राहु-केतु-शनि तथा मंगल का इन चरणों से गोचर अत्यंत कष्ट देता है। ज्योतिष में राशियों के मृत्यु भाग का उल्लेख आता है। मेष का 260, वृष 120, मिथुन 130, कर्क 250, सिंह 20, कन्या 010, तुला 260, वृश्चिक 140, धनु 130, मकर 250, कुंभ 50 एवं मीन का 12वां अंश मृत्यु भाग है। लग्न से 210 से 220 अंशों को महाकष्टकारी माना जाता है।

इन अंशों से ग्रहों का गोचर कष्ट ही देता है। यहां उन विशिष्ट बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है जो अति संवेदनशील हंै। गोचर के फल तो राशि के अनुसार पत्र-पत्रिकाओं में दैनिक, साप्ताहिक, मासिक, व वार्षिक फल के रूप में छपते हैं, किंतु ये अति सामान्य फल होते हैं। विशिष्ट व व्यक्ति विशेष के जीवन के घटनाक्रम जानने के लिए इन संवेदनशील बिंदुओं का निर्धारण व जानकारी आवश्यक है। पश्चिमी जगत में एक प्रसिद्ध ज्योतिषी हुए हैं रिनोल्ड इबर्टन। इन्होंने एक सिद्धांत प्रतिपादित किया था थ्योरी आॅफ मिड पाॅइंट। इसे दो ग्रहों के मध्य का अतिप्रावी बिंदु भी कहा जाता है।

इस बिंदु पर गोचर तुरंत परिणाम देता है। जीवन के महत्वपूर्ण घटनाक्रम को जानने में सुदर्शन चक्र विधि भी अत्यंत उपयोगी है। यह चक्र लग्न, रवि व चंद्र कुंडली के आधार पर निर्मित किया जाता है। लग्न वर्ष, चंद्र कुंडली दिन तथा रवि लग्न घटना का महीना बताता है। भविष्य कथन एक अपसाध्य प्रक्रिया है।


जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें !


जन्मपत्री का गंभीर अध्ययन एक साधना है जिसमें एकाग्रता की आवश्यकता होती है। जीवन के भावी घटनाचक्र को जानने के लिये मन, वचन व कर्म से शुद्ध और सात्विक ज्योतिषी से ही परामर्श करना चाहिए। होटल, क्लब, रेल, पार्क में और रात्रिकाल, ग्रहण, अमावस्या तथा ज्योतिषी के मानसिक कष्ट के समय जन्मांग का विवेचन नहीं किया जाना चाहिए।

जातक के जीवन के भावी घटनाक्रम को बताते समय ज्योतिषी का चंद्रमा बलवान होना चाहिए तथा जातक के चंद्रमा से त्रिकभाव में नहीं होना चाहिए। फलित ज्योतिष भविष्य का मार्गदर्शक है। यह जीवन में होनेवाली महत्वपूर्ण घटनाओं का शास्त्रोक्त विधि से संकेत दे सकता है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.