शत्रुनाशक बगलामुखी साधना जप
शत्रुनाशक बगलामुखी साधना जप

शत्रुनाशक बगलामुखी साधना जप  

श्री मोहन
व्यूस : 5383 | मार्च 2009

शत्रुनाशक बगलामुखी साधना जप श्री मोहन बगलामुखी देवी को नक्षत्र स्तंभिनी भी कहा जाता है अर्थात् जो नक्षत्रों की गति को भी स्तंभित करने की शक्ति रखती हैं। गोचर या महादशा के अशुभ प्रभाव से मुक्ति के लिए बगलामुखी की साधना करनी चाहिए। बगलामुखी की कृपा से ईष्र्या, राग-द्वेष, घृणा, हर प्रकार के लड़ाई-झगड़े, मुकदमेबाजी, मनमुटाव, भय आदि से मुक्ति मिलती है और शत्रुओं का शमन होता है। बगलामुखी साधना में सभी वस्तुएं पीले रंग की होनी चाहिए। साधना भी पीत वस्त्र धारण कर और पीत आसन पर बैठ कर ही करनी चाहिए।

पूजन के बाद जप भी हल्दी की माला पर करना चाहिए। मां भगवती बगलामुखी की साधना के काल में शांत चित्त व पवित्र होना आवश्यक है। इस काल में अन्य बातों के अलावा ब्रह्मचर्य का पालन परमावश्यक है। श्रेष्ठ मुहूर्त काल में साधना विशेष फलदायी होती है। कार्य सिद्धि हेतु संकल्प लेकर विनियोग का पाठ करें, तत्पश्चात ध्यान करें।

विनियोग

¬ अस्य श्री बगलामुखी महामंत्रास्य भगवान नारद ऋषिः त्रिष्टुप छंदः श्री बगलामुखी देवता ींीं बीजं स्वाहा शक्तिः मम सन्निहितानां दुष्टानां विरोधिनां वांगमुख पदजिह्ना बुद्धिना स्तम्भय नाथे श्री बगलामुखी वर प्रसाद सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः।

ध्यान - मध्येसुधाब्धिमणिमंडलरत्नवेदिं, सिंहासनोपरिगतां परिपीत वर्णाम्। पीताम्बराभरणमाल्य विभूषितांगी, देवीं स्मरामि धृतमुद्गरवैरिजिह्वाम्।। जिहवाग्रमादाय करेण देवीं शत्रुन् परिपीड्यन्तीम्। गदाभिद्यातेन च दक्षिणेन, पीताम्बराढ्य द्विभुजां नमामि।। ध्यान के पश्चात शत्रु पीड़ा से छुटकारा के लिए निम्न मंत्र का जप किया जा सकता है।

¬ ह्रीं ींीं बगलामुखी मम् सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं। स्तंभय जिह्वां कीलय बु(िं विनाशय ह्रीं ींीं

¬ स्वाहा।

¬ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं। स्तंभय जिह्वां कीलय बु(िं विनाशय ह्रीं

¬ स्वाहा।।

¬ ह्रीं बगलामुखी क्षौं क्षौं मम् शांति देहि देहि स्वाहा।।

¬ ींीं भगवती बगलामुखी देवी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभ्य स्तंभ्य जिह्वां कीलय कीलय बु(ि विनाशय विनाशय ींीं

¬ स्वाहा।

¬ बगलामुख्यै च विद्महे स्तम्भनबाणाय धीमहि तन्नोः देवी प्रचोदयात्। ;बगला गायत्राी मंत्राद्ध उक्त मंत्रों में से किसी एक मंत्र का जप हल्दी की माला से पूर्वाभिमुख होकर करना चाहिए। इस तरह मंत्र के जप से शत्रु का शमन होता है तथा भय और प्रतिकूल ग्रहों के प्रभाव से मुक्ति मिलती है



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