उपायों का मूल उद्देश्य मीतू सहगल महाभारत में लिखा है - केवल ग्रह एवं नक्षत्र शुभ-अशुभ फल नहीं देते। वह हमारे कर्मों का ही फल होता है। कहा जाता है कि ग्रह फल दे रहे हैं, किंतु वास्तव में ग्रह केवल शुभ-अशुभ घटनाओं का समय बताते हैं। मानव अपने कर्मों से ही अपने भाग्य का निर्माण करता है। हम जाने अनजाने कितने ही अच्छे-बुरे कर्म करते हैं जिनका फल हमें मिलता है। इसी कारण हमारे पूर्वजों ने जप, दान, धर्म के नियम बनाये जिन्हें हम नित्य कर्म के रूप में अपनाते हैं। जसे हमारे कर्म होते हैं वैसे ही हमारे संस्कार बनते हैं जो हमारे भाग्य को निर्धारित करते हैं। प्रत्येक ग्रह से संबंधित कुछ गुण, लक्षण व व्यवहार हैं।
जब हम किसी ग्रह से संबंधित आचार व्यवहार का पालन करते हैं तो वे ग्रह हमें अच्छा फल देते हैं और यदि हम ऐसा नहीं करते तो हमें उस ग्रह से बुरे फल मिलते हैं। उदाहरण के लिए, शनि ऐसा ग्रह है जो राजा को भिखारी और भिखारी को राजा बना देता है। शनि ग्रह किसी की कुंडली में अच्छा और किसी में बुरा फल क्यों देता है? शनि गरीबों, शूद्रों और सेवकों का प्रतीक है। यदि किसी व्यक्ति ने इस जन्म या पूर्व जन्म में इनका निरादर किया होता है तो उन्हें शनि का प्रकोप सहना पड़ता है। इस तरह से शनि उस व्यक्ति को हर इंसान के प्रति नम्र व्यवहार करना सिखाता है और उसके अहंकार को नष्ट करता है। इसी कारण शनि का सर्वोत्तम उपाय है दीन दुखियों की सेवा करना और हर व्यक्ति का आदर करना। उपायों का मूल उद्देश्य है-मनुष्य को अनुशासित करना जिससे वह मोक्ष के पथ पर चल सके जो कि मनुष्य जीवन का लक्ष्य है। हमारे धर्मग्रंथ मोक्ष के पथ के 8 पड़ावों का वर्णन करते हैं जो इस प्रकार हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि।
यम : अहिंसा, सत्य बोलना, किसी भी प्रकार की चोरी न करना इत्यादि यम है।
नियम : शारीरिक एवं मानसिक शुद्धता, संतुष्टि, तप, स्वाध्याय व पूजा नियम है।
आसन : शरीर को स्वस्थ रखना हर प्रकार के जप और तप के लिए आवश्यक है जिसके लिए योग आसनों का वर्णन किया गया है।
प्राणायाम : शारीरिक स्तर पर संयम के बाद प्राण पर संयम किया जाता है।
प्रत्याहार : प्राण पर संयम कर लेने पर सूक्ष्म एवं स्थूल शरीर पर नियंत्रण हो जाता है जिसे प्रत्याहार कहते हैं।
धारण : किसी एक वस्तु पर चित्त को एकाग्रित करना।
ध्यान : उस वस्तु से एकीकरण हो जाना जैसे अर्जुन का मछली की आंख पर; इसे ध्यान कहते हैं।
समाधि : जब उस वस्तु का बाह्य रूप लोप हो जाये और केवल उसके आंतरिक गुण का ध्यान हो, उसे समाधि कहते हैं।
सामान्यतः बताये गए उपाय यम और नियम के अंग हैं।
ऐसा माना जाता है की जब मनुष्य अपने आदर्श पथ से विचलित होता है तो वह असंतुलन और दुखों का सामना करता है। जब वह नियमों का पालन करता है, दान, तप व जप, सबका आदर व अपना कार्य ईमानदारी से करता है और प्रतिदिन योग एवं प्राणायाम करता है तो उसका शरीर, मन और आत्मा शुद्ध हो जाते हैं। ऐसा व्यक्ति बुरे कर्म नहीं करता और उसके जीवन में बाधाएं, रूकावटें और दुख नहीं आते। मोक्ष के पथ पर प्रत्येक ग्रह की किरणों और उनकी विशेषताओं की आवश्यकता होती है। ग्रह उपचार की प्रमुख विधियां हैं- रत्न धारण, मंत्र, यंत्र, पूजा, हवन आदि वैदिक और योगिक विधियां। सही खान-पान, रहन-सहन और आध्यात्मिक जीवनशैली से भी ग्रह उपचार किया जा सकता है।
ग्रहों से जुड़ी जीवनशैली सूर्य
- आराध्य-सूर्य देव मंत्र : ऊँ सूर्याय नमः, राम नाम का उच्चारण। जीवन शैली : स्वतंत्रता और आत्म निर्भरता के कार्य करें, खुद की जिम्मेदारी लें, सूर्योदय से पहले उठकर सूर्य को जल अर्पित करें, सूर्य नमस्कार करें, काले भूरे रंगों से दूर रहें। केसर का तिलक करें। चंद्र -आराध्य-शिवजी, पार्वती मंत्र : ऊँ चन्द्राय नमः जीवन शैली : पूर्णिमा का व्रत, भक्ति योग, चंद्र मंत्र पर ध्यान करना, विश्वास, भक्ति और दया से जीवन व्यतीत करना, अपने निर्णय स्वयं लेना, व्यवस्थित जीवन, मानवजाति की सेवा करना, खुले दिल से लोगों से मिलना, शतावरी, चंदन का तेल आदि जड़ी बूटियों का उपयोग, सफेद और हल्के रंगों का प्रयोग। मंगल -आराध्य-हनुमान/ कार्तिकेय मंत्र : ऊँ मंगलाय नमः जीवन शैली : अधिकारों का दुरुपयोग न करें, समाज के कमजोर वर्ग की सहायता करें, आलस्य न करें, साहसी, सक्रिय, उर्जावान जीवन यापन करें, किसी भी प्रकार का शारीरिक व्यायाम प्रतिदिन करना चाहिए, जीवन में शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर अनुशासन आवश्यक है,
हल्दी, काली मिर्च, घृतकुमारी आदि का खाने में प्रयोग। बुध -आराध्य-गणेश मंत्र : ऊँ बुधाय नमः, ऊँ गं गणेशाय नमः जीवन शैली : ज्ञान योग का पालन करें, अध्ययन, लेखन या भाषण से अपने आपको व्यक्त करना सीखें, बाह्य और भीतरी दुनिया से जागरूक, सलाह करने पर ही निर्णय लें, शिक्षकों का सम्मान करें, प्रकृति में अधिक से अधिक समय व्यतीत करें। जड़ी बूटियों में तुलसी, भृंगराज, जटामांसी आदि और रंगों में प्राकृतिक तरीके से निर्मित हरे, नीले या भूरे रंगों का प्रयोग करें। गुरु -आराध्य-विष्णु मंत्र : ऊँ बृहस्पतये नमः हरी ऊँ का उच्चारण, जीवन शैली : आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करें, व्यसनों से दूर रहें, गुरु का आदर सम्मान करें, भक्ति, कर्म, ज्ञान व अध्यात्म जिसे राज योग कहते हैं- इस पथ पर चलें, विनम्र बनें। अश्वगंध, जिनसेंग, बादाम आदि का उपयोग करें। शुक्र -आराध्य-लक्ष्मी मंत्र : ऊँ शुक्राय नमः जीवन शैली : स्त्रियां अपने भीतरी सौंदर्य को पहचानें, पुरुष स्त्रियों का आदर करें, जीवन में विभिन्न रंगों का प्रयोग करें, अपनी कला निखारें, गुलाब, कमल आदि फूलों और शतावरी, घृतकुमारी जैसी जड़ी बूटियों का प्रयोग करें। वातावरण साफ सुथरा रखें। शुक्र का मुखय गुण भक्ति और आत्मसमर्पण है।
शनि -आराध्य -शिव, महादेव, काली मंत्र : ऊँ शनये नमः, ऊँ नमः शिवाय जीवन शैली : अपने से बड़ों का आदर और छोटों का सम्मान, दीन के प्रति विनम्रता का स्वभाव, व्यसन से दूर रहना, बुरे काम जैसे चोरी, बेईमानी आदि न करना, आत्म अनुशासन, स्वच्छता, शांति वाला जीवन, तीर्थ यात्रा, दान, तप, सांसारिक मोह माया से दूरी आदि। राह/केतु -आराध्य -शिव, रुद्र, दुर्गा मंत्र : ऊँ राहवे नमः, ऊँ केतवे नमः जीवन शैली : भक्ति योग सबसे उत्तम उपाय है। व्यसनों और संवेदनशील स्थलों, घटनाओं से दूर रहें, कृत्रिम और बनावटी वस्तुओं से भी दूर रहें जैसे अप्राकृतिक रहन सहन और खान पान। राहू और केतु संचित कर्म दर्शाते हैं। इसलिए अच्छे कर्म और दान करना आवश्यक है।
सत्संग करें, संकीर्ण दृष्टिकोण न रखें। राहु और केतु जब पीड़ित होते हैं तो व्यक्ति गलत निर्णय ले सकता है। व्यक्ति को चाहिए की वह महत्वपूर्ण कार्यों को बड़ों व विशेषज्ञों की सलाह से ही करें। अपने आप पर भरोसा रखें। भौतिक संसाधनों के पीछे न भागें क्योंकि उससे कभी संतुष्टि नहीं मिलेगी। यदि राहु-केतु से मिलने वाले दुखों का व्यक्ति हिम्मत और दृढ़ता से सामना करता है तो वह छाया ग्रह आध्यात्मिक पक्ष की उन्नति भी करते हैं। यदि आपके जीवन में किसी ग्रह से संबंधित समस्या आ रही है तो उस ग्रह से जुड़ी जीवन शैली अपनाएं, मंत्र जप और संबंधित जड़ी बूटियों से स्नान लाभकारी होता है।