सपनों का सच
सपनों का सच

सपनों का सच  

मितु सहगल
व्यूस : 5882 | जून 2010

यह उस समय की बात है जब मैं बीएससी में पढ़ रहा था, परीक्षा की तैयारियां चल रही थीं। रात को स्वप्न आया कि मैं परीक्षा दे रहा हूं। परीक्षा में प्रश्न पत्र पढ़ रहा हूं और प्रश्न पत्र आसान लग रहा है, जल्दी से प्रश्नों के उत्तर लिखकर समय से पूर्व ही उत्तर पुस्तिका परीक्षा निरीक्षक को देकर बाहर आ जाता हूं। प्रश्न पत्र में क्या प्रश्न थे और क्या उत्तर लिखा इनका विवरण प्रातः उठने के पश्चात् अधिकांशतः स्मरण था। यह सोचकर कि शायद कोई प्रश्न वास्तव में ही परीक्षा में न आ जाए, उन सभी प्रश्नों का पुनरावलोकन कर लिया।

परीक्षा में उन्हीं प्रश्नों को उसी क्रम में देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि जो चीज पहले नहीं देखी वह स्वप्न में शतप्रतिशत कैसे दिखाई दे गई। तदुपरांत जब परीक्षा परिणाम घोषित होने वाला था तो एक दिन पहले फिर स्वप्न आया कि मैं परीक्षा में प्रथम आया हूं और मेरे इतने अंक आए हैं और दूसरे विद्यार्थी के मुझसे काफी कम अंक और इतने अंक हैं। यह बात मैंने अपने मित्र को भी बताई और जब परिणाम आया तो आश्चर्य की बात थी कि मेरे और मेरे मित्र के उतने ही अंक थे जितने स्वप्न में देखे थे। इसी प्रकार एक बार मुझे स्वप्न आया कि मेरी मां का विवाह हो रहा है और वह आभूषणों से सजी हुई हैं। तीसरे, चैथे दिन ही उनका स्वर्गवास हो गया।

एक बार मेरे पिता जी स्वप्न देखते हुए जोर-जोर से बोल रहे थे। मैं पास ही बैठा पढ़ रहा था। उनका यह स्वप्न काफी लंबा चला। वह स्वप्न में गीता का पाठ किसी बच्चे को पढ़ा रहे थे। स्वप्न में उनका हाथ हवा में लहरा रहा था और वह अपनी उंगली इधर-उधर ऐसे घुमा रहे थे जैसे किसी पुस्तक में लिखी गई पंक्ति को पढ़ते हुए घुमाते हैं। 30 वर्ष पूर्व जब मैं ज्योतिष सीख रहा था तो प्रत्येक ग्रह, भाव, राशि आदि के बारे में जिज्ञानुसार ज्योतिर्विदों से उनके फलों के बारे में पूछता रहता था लेकिन एक बात समझ नहीं आती थी कि पत्री को देखकर कैसे जानें कि ग्रह अच्छा फल देंगे या बुरा। यह उलझन बढ़ती ही जा रही थी। तभी एक दिन स्वप्न आया कि ग्रह सिर के चारों ओर घूम रहे हैं और कुछ किरणें फैंक रहे हैं।

सिर बहुत भारी हो गया और सुबह उठने पर जन्मपत्री के सारे प्रश्न स्वतः सुलझ गए और उसके बाद से आज तक दोबारा ग्रहों के बारे में जानने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई। इसी प्रकार एक बार कहीं जाने को निकला तो दो काली बिल्लियांे ने रास्ता काट लिया। प्रभु का नाम लेकर आगे चला गया और सोचा कि जो भी होगा देख लेंगे। प्रथम तो मार्ग में ही कई प्रकार की रुकावटें आईं व पूरा दिन निरर्थक कार्यों में खराब हो गया। दिन में कुछ लोग आए जो कुछ धनराशि लेकर चले गए। कुछ दिनों के बाद फिर इसी प्रकार दो बिल्लियों ने रास्ता काटा और पुनः पूरा दिन कष्ट और निरर्थक कार्यों में गुजरा।

अतः अब जब भी दो बिल्लियां रास्ता काट जाती हैं तो मैं अपना रास्ता बदल लेता हूं। रामचरितमानस में भी शकुन के बारे में विशेष वर्णन समय-समय पर किए गए हैं। श्री रामचंद्र जी की बारात के प्रस्थान के समय सभी शकुन मानो सच्चे होने के लिए एक ही साथ हो गए।


अपनी कुंडली में राजयोगों की जानकारी पाएं बृहत कुंडली रिपोर्ट में


चारा चाषु बाम दिसि लेई। मनहुं सकल मंगल कहि देई।।

नीलकंठ पक्षी बायीं ओर चारा ले रहा है, मानो संपूर्ण मंगलों की सूचना दे रहा हो।

दाहिन काग सुखेत सुहावा। नकुल दरसु सब काहूं पावा। सानुकूल बह त्रिबिध बयारी। सघट सबाल आव बर नारी।।

दाहिनी ओर कौआ सुंदर खेत में शोभा पा रहा है। नेवले का दर्शन भी बस किसी ने पाया। तीनों प्रकार की (शीतल, मंद, सुगंधित) हवा अनुकूल दिशा में चल रही है। श्रेष्ठ (सुहागिनी) स्त्रियां भरे हुए घड़े और गोद में बालक लिए आ रही हैं।

लोवा फिरि फिरि दरसु देखावा।सुरभी सनमुख सिसुहि पिआवा। मृगमाला फिरि दाहिनि आई।मंगल गन जनु दीन्हि देखाई।।

लोमड़ी फिर-फिर कर (बार-बार) दिखायी दे जाती है। गायें सामने खड़ी बछड़ों को दूध पिलाती हैं। हरिनों की टोली घूमकर दाहिनी ओर को आयी, मानो सभी मंगलों का समूह दिखायी दिया।

छेमकरी कह छेम बिसेषी। स्यामा बाम सुतरु पर देखी। सनमुख आयउ दधि अरु मीना। कर पुस्तक दुइ बिप्र प्रबीना।।

क्षेमकरी (सफेद सिरवाली चील) विशेष रूप से क्षेम (कल्याण) कह रही है। श्यामा बायीं ओर सुंदर पेड़ पर दिखायी पड़ी। दही, मछली और दो विद्वान् ब्राह्मण हाथ में पुस्तक लिए हुए सामने आये।

रावण के युद्ध में जाने के समय सभी अपशकुन इस प्रकार से हुए जैसे उसको मृत्यु का संदेश सुना रहे हों।

अति गर्ब गनइ न सगुन असगुन स्रवहिं आयुध हाथ ते। भट गिरत रथ ते बाजि गज चिक्करत भाजहिं साथ ते।।
गोमाय गीध कराल खर रव स्वान बोलहिं अति घने। जनु कालदूत उलूक बोलहिं बचन परम भयावने।।

अत्यंत गर्व के कारण रावण शकुन-अशकुन का विचार नहीं करता। हथियार हाथों से गिर रहे हैं। योद्धा रथ से गिर पड़ते हैं। घोड़े, हाथी साथ छोड़कर चिग्घाड़ते हुए भाग जाते हैं। स्यार, गीध, कौए और गदहे शब्द कर रहे हैं। बहुत अधिक कुत्ते बोल रहे हैं। उल्लू ऐसे अत्यंत भयानक शब्द कर रहे हैं, मानो काल के दूत हों। स्वप्न और शकुन क्या वास्तव में ही किसी तथ्य को उजागर करते हैं या यह हमारे मन का भ्रम मात्र हैं?

स्वप्न और शकुन को पूर्णतया भ्रम मानना तो मुझे पूर्णतया अनुचित ही लगता है क्योंकि ऐसा सच जो हमने नहीं देखा वह दिखाई दे जाए और ऐसा एक से अधिक बार होना कल्पना नहीं हो सकती। कई बार मरीजों से भी सुनने में आता है कि स्वप्न में उन्होंने कुछ देखा, कुछ झटका सा लगा और वह स्वस्थ हो गए। हो सकता है कि उनके स्नायुमंडल से उनके मस्तिष्क को किसी प्रकार का सिग्नल मिलता है और वह ठीक हो जाते हैं लेकिन स्वप्नावस्था में कुछ ऐसे कार्य कर लेना जो जाग्रत अवस्था में संभव नहीं है वह स्वप्न के किसी महत्वपूर्ण तथ्य की ओर इंगित करता है।

अवश्य ही स्वप्न व शकुन दोनों ही हमारे भविष्य का आभास कराते हैं। कार्य कारण की मीमांसा के अनुसार हर कार्य का कुछ कारण होता है और वह कारण अगले कार्य का आधार होता है। कर्म और फल पूर्णतया एक-दूसरे से बंधे हुए हैं। इस संसार मे कुछ भी अचानक नहीं होता। प्रभु ने हर होने वाले कर्म व फल को बताने के लिए भी स्वप्न व शकुन के रूप में एक व्यवस्था कर रखी है। इनकी जानकारी से हम आने वाले अच्छे और बुरे समय का संकेत प्राप्त कर सकते हैं एवं उसे अपने अनुकूल करने का प्रयास कर सकते हैं।


To Get Your Personalized Solutions, Talk To An Astrologer Now!




Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.