दक्षिण की ओर सावधानी से बढें (बड़ी दुकान हमेशा अच्छी नहीं होती)
दक्षिण की ओर सावधानी से बढें (बड़ी दुकान हमेशा अच्छी नहीं होती)

दक्षिण की ओर सावधानी से बढें (बड़ी दुकान हमेशा अच्छी नहीं होती)  

गोपाल शर्मा
व्यूस : 9246 | सितम्बर 2010

तीन-चार महिने पहले पंडित जी चांदनी चैक के एक प्रसिद्ध साड़ियों के व्यापारी के शो-रुम का निरीक्षण करने गए। उन्होंने पं. जी को बताया कि जब से उन्होंने अपनी दुकान के साथ वाली कुछ दुकानें खरीदकर पुरानी (1) दुकान के साथ मिलाई हंै, उन्हें काम में मुनाफा कम होता जा रहा है और पुराना प्रवेश द्वार (2) बदलने के बाद से तो व्यापार में काफी गिरावट आई है।

दुकान उनके पिताजी के नाम से है और वह भी तब से ही काफी बीमार चल रहे हैं तथा पिछले 3-4 साल से दुकान में भी नहीं आ पा रहे हैं। अपनी पुरानी दुकान (जिसका उतर पूर्व बढ़ा हुआ था) से उन्होंने काफी तरक्की की थी और एक दुकान से पाॅच दुकाने (4, 5, 6, 7, 8) और खरीद ली थी। आजकल सारे काम का बोझ उनके एक मात्र पुत्र पर आ गया है।

वास्तु निरीक्षण करने पर पाए गए दोष: 

1. दक्षिण पश्चिम की तरफ की दुकान (4) खरीदने से उनकी दुकान टी पाईन्ट के सामने आ गई थी और मुख्य द्वार का कुछ हिस्सा भी दक्षिण-पश्चिम में आ रहा था, जो मालिक की आर्थिक एवं स्वास्थ्य संबंधी परेशानी का कारण होता है।

2. दक्षिण पश्चिम के मुख्य द्वार (3) के ठीक आगे सैप्टिक टैंक (10) था जिस पर पाॅंव रखकर ही दुकान में प्रवेश किया जा सकता था। इस दिशा में गड्ढा होना तो हानिकारक है ही परन्तु यह द्वार वेध भी बना रहा था, जिससे भारी नुकसान व मालिक को बीमारी होने की संभावना बनी रहती है।

3. पीछे की ओर का मकान (8) खरीदने से उŸार बढ़ रहा था परन्तु दक्षिण-पश्चिम हिस्सा कट गया था जो कि सभी ओर से विकास में बाधक होता है। उŸार की ओर द्वार (9) था जो कि बंद करके अब अलमारी बना दी गई थी जिससे वह पूरी तरह से बंद हो गया था, इससे लेनदारियां बढ़ रही थी और आर्थिक समस्या उत्पन्न हो गई थीं।

4. नये बड़े शोरुम में दक्षिण-पश्चिम की दीवार में मंदिर (11) बनाया हुआ था जो कि दुविधाओं को जन्म देता है।

5. दक्षिण-पूर्व में बड़ा सा शीशा (12) लगा हुआ था जिसमें मैजनीन में जाती हुई सीढियां दिखाई दे रही थी यह भी विकास में बाधक होता है। बिक्री घट जाती है।

6. मैजनीन फ्लोर की सीढियों के नीचे अकाउन्टैन्ट को बिठाया हुआ था जिससे काम में गलती होने की संभावना बनी रहती है तथा काम में मन नहीं लगता है।

7. दक्षिण में बनी सीढियों (13) के नीचे इन्वर्टर रखा होना भी मानसिक अशांति एवं रोकड़ में कमी उत्पन्न करता है। इससे आपसी मनमुटाव बढ़ जाते हैं।

सुझाव-

1. दक्षिण पश्चिम के मुख्य द्वार को बंद करके उसे टी पाॅंइंट को बचाकर दक्षिण की ओर बनाने को कहा गया एवं बाहर की ओर पाकुआ शीशा (16) लगाने की सलाह दी गई।

2. दुकान के आगे बने सैप्टिक टैंक के ढक्कन को नीचे की ओर से लाल रंग एवं ऊपर की ओर पीला रंग करने को कहा। मुख्य द्वार को दक्षिण की ओर करने से भी द्वार वेध का प्रभाव कम होगा।

3. दक्षिण पश्चिम (15) की ओर की दुकान खरीदने की सलाह दी गई और कहा गया कि यह दुकानें कुछ ज्यादा रेट पर भी मिल रही हों तो खरीद लेनी चाहिए। पूर्व की ओर उनकी दो दुकानें थीं जिसकी ऐन्ट्री बाहर की ओर से थी। उनको सलाह दी गई कि उनकी एक एन्ट्री अन्दर से करे फिर चाहे उस पर ताला लगा दें ऐसा करने से पूर्व के कटने का दोष खत्म हो जाएगा तथा बिना किसी लागत के तुरंत लाभ/ बिक्री बढ़ जायेगी।

4. उत्तर की ओर बने द्वार को तुरन्त ही खोलने को कहा गया जिससे पैसों का आवागमन शुरु हो जाएगा और काफी हद तक आर्थिक समस्याएं कम हो जाएंगी।

5. दक्षिण-पश्चिम में बना मंदिर, पूर्व की दीवार की ओर स्थानांतरित कराया गया।

6. दक्षिण पूर्व में लगे शीशे को उतरवाकर उत्तर, उत्तर-पूर्व या पूर्व में लगाने को कहा गया।

7. अकाउन्टैंन्ट को सीढ़ियों के नीचे से हटवाया गया।

8. इन्वर्टर को सीढियों के नीचे से हटवाकर, उतर पश्चिम में जगह थी, वहां लगवाया गया।

पं. जी ने उन्हें आश्वासन दिया था कि सभी सुझावों को कार्यांवित करने के बाद उन्हें अवश्य लाभ होगा। अभी कुछ दिन पहले शोरुम के मालिक ने बताया कि उनके काम में काफी सुधार है तथा उत्तर पूर्व (14) की दुकान वाला उनसे काफी सस्ते में खरीदने का अनुरोध लेकर आया था। पं. जी ने सुझाव दिया कि इस नई दुकान को खरीदने का मौका नहीं चूकना चािहए। इससे अप्रत्याशित लाभ होगा एवं उनकी हर समस्या का निवारण होगा। पिता के स्वास्थ्य के लिये यह बहुत आवश्यक है। आर्थिक सुधार पर दक्षिण पश्चिम की ओर की दुकाने भी आसानी से खरीद पायेंगें।

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