ज्योतिषीय योग (पृष्ठ-19)

ज्योतिषीय योग


छोटे भाई/बहन - ज्योतिषीय विश्लेषण

भारतीय वैदिक ज्योतिष के अनुसार किसी जातक के जीवन में होने वाली प्रत्येक घटना के लिये किसी न किसी ग्रह की भागीदारी आवष्यक होती है। कोई भी घटना ग्रहों के आपसी संबंध या योगों के कारण व ग्रहों के गोचरीय प्रभाव के कारण घटती है। ज... और पढ़ें

ज्योतिषज्योतिषीय विश्लेषणज्योतिषीय योगकुंडली व्याख्याभविष्यवाणी तकनीक

जुलाई 2014

व्यूस: 31606

कुछ विशिष्ट धन योग

कुछ विशिष्ट धन योग

रश्मि चैधरी

धन जीवन की मौलिक आवश्यकता है। सुखमय, ऐश्वर्य संपन्न जीवन जीने के लिए धन अति आवश्यक है। आधुनिक भौतिकतावादी युग में धन की महत्ता इतनी अधिक बढ़ चुकी है कि धनाभाव में हम विलासितापूर्ण जीवन की कल्पना तक नहीं कर सकते, विलासित जीवन जीना त... और पढ़ें

ज्योतिषज्योतिषीय योगसंपत्ति

मई 2013

व्यूस: 18170

ज्योतिष के आईने में दाम्पत्य सुख

सुखी वैवाहिक जीवन धरती पर स्वर्ग के सुख के समान है। यह जीवन सामान्यतः मनुष्य जीवन का सबसे अतंरंग और जीवंत भाग है। जीवन की आकांक्षा की पूर्ति बिना जीवन साथी के संभव नहीं है। इसलिए जीवन की चतुराश्रम व्यवस्था में गृहस्थाश्रम सर्वाधिक... और पढ़ें

ज्योतिषज्योतिषीय योगविवाहभविष्यवाणी तकनीक

अप्रैल 2005

व्यूस: 18371

नेत्र एवं ज्योतिष

शब्द, स्पर्श, रूप, रस एवं गंध का ज्ञान हेतु ईश्वर ने पांच ज्ञानेंद्रियों का सृजन, जीवन में क्रिया, जिसमें नेत्र सर्वोपरि माना जाता है। कोई भी व्यक्ति जहां शतायु होने की कामना करता है वहीं अंतिम क्षण तक देखते रहने की इच्छा रखता है।... और पढ़ें

ज्योतिषस्वास्थ्यज्योतिषीय योगचिकित्सा ज्योतिषभविष्यवाणी तकनीक

अकतूबर 2008

व्यूस: 5314

रोगों का विचार कैसे करें

ज्योतिष में रोग विचार के लिए षष्ठ स्थान की विवेचना की जाती है। रोग विचार की दृष्टि से ग्रहों, राशियों, नक्षत्रों एवं भावों का विश्लेषण आवश्यक है। दृष्टि से भावों का अत्यधिक महत्व है, क्योंकि लग्न, षष्ठ, अष्टम एवं द्वादश भावों का र... और पढ़ें

ज्योतिषस्वास्थ्यउपायज्योतिषीय योगकुंडली व्याख्याघरचिकित्सा ज्योतिषग्रहभविष्यवाणी तकनीक

जनवरी 2007

व्यूस: 5835

ज्योतिष एवं स्वास्थ्य

ज्योतिष एवं स्वास्थ्य

राजेंद्र कुमार मिश्र

स्वास्थ्य शब्द मूलतः सु $ अवस्था से व्युत्पत्तित है: अर्थात् शरीर के अंग-अवयवों की सु (सुंदर, या शुभ) अवस्था। ज्योतिष के व्याख्याता ऋषियों एवं आकाशीय पिंड वेत्ताओं ने एकमत से ”यत् ब्रह्मांडे तत् पिंडे“ की अवधारणा को प्रमाणित किया ... और पढ़ें

ज्योतिषस्वास्थ्यज्योतिषीय योगकुंडली व्याख्याचिकित्सा ज्योतिषभविष्यवाणी तकनीक

अकतूबर 2004

व्यूस: 6172

ज्योतिष द्वारा संतान योग कैसे जानें

आजकल हर मनुष्य चाहता है हमारे पास सभ्य संतान हों जो माता पिता की सेवा करें एवं कुल का नाम रोशन करें, हर मानव का सपना होता है कि उसकी संतान तेजस्वी एवं गुणों से संपन्न होगी। इसके लिए वह हर संभव प्रयास करता है, पढ़ाता है अच्छी उच्च श... और पढ़ें

ज्योतिषज्योतिषीय योगबाल-बच्चेकुंडली व्याख्याघरग्रहभविष्यवाणी तकनीक

अप्रैल 2012

व्यूस: 31917

चंद्र-शनि युति अर्थात् विषयोग

इस धरती पर जन्म लेने वाले हर प्राणी के लिए उसका जन्म-क्षण बहुत महत्वपूर्ण होता है, ऐसी ज्योतिष ज्ञान की मान्यता है। इस क्षण को आधार मानकर ज्योतिष गणना द्वारा उसके सम्पूर्ण जीवन का लेखा-जोखा जन्मकुंडली से तैयार किया जा सकता है। इस ... और पढ़ें

ज्योतिषज्योतिषीय योगभविष्यवाणी तकनीक

जुलाई 2008

व्यूस: 37411

कुंडली में धन योग

कुंडली में धन योग

पुखराज बोरा

धन आज के जीवन की जरूरी आवश्यकता है। आज धनवान, समृद्धिवान एवं विलासितापूर्ण जीवन बिताने का सपना हर कोई देखता है। जातक की कुंडली में कौन से ग्रह एवं भाव जातक को सुविधा संपन्न बनाते हैं प्रस्तुत है एक विवेचना... और पढ़ें

ज्योतिषज्योतिषीय योगसंपत्ति

अकतूबर 2010

व्यूस: 32548

महिलाएं और उनको प्रभावित करने वाले नौ ग्रह

वैसे तो सौरमंडल के सभी ग्रह धरती पर सभी प्राणियों पर एक जैसा ही प्रभाव डालते हैं। लेकिन सभी प्राणियों का रहन सहन और प्रवृत्ति या प्रकृति एक दूसरे से भिन्न होती है इसलिए ग्रहों का प्रभाव कुछ कम -ज्यादा तो होता ही है। यहा... और पढ़ें

ज्योतिषज्योतिषीय योगग्रहभविष्यवाणी तकनीक

जुलाई 2014

व्यूस: 32959

आइ. ए. एस. तथा आई.पी.एस. बनने के ज्योतिषीय योग

शिक्षा प्राप्ति के बाद कार्य क्षेत्र में प्रवेश करने से पूर्व प्रशासन के क्षेत्र में उच्च पद प्राप्ति की महत्वाकांक्षाओं को पूर्ण करने में किन ज्योतिषीय योगों से मार्गदर्शन और सहायता प्राप्त की जा सकती है। आइए, जानें उन योगों के ब... और पढ़ें

ज्योतिषज्योतिषीय विश्लेषणज्योतिषीय योगकुंडली व्याख्याभविष्यवाणी तकनीक

फ़रवरी 2011

व्यूस: 39040

राजयोग तथा विपरीत राजयोग

फलदीपिका ग्रंथ के अनुसार:- दुःस्थानभष्टमरिपु व्ययभावभाहुः सुस्थानमन्य भवन शुभदं प्रदिष्टम्। (अ. 1.17) अर्थात् ‘‘जन्मकुण्डली के 6,8,12 भावों को दुष्टस्थान और अन्य भावों को सुस्थान कहते हैं।’’ अन्य भावों में केन्द्र (1,4,7,10) तथा त... और पढ़ें

ज्योतिषज्योतिषीय योगभविष्यवाणी तकनीक

जुलाई 2013

व्यूस: 38096

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