शब्द, स्पर्श, रूप, रस एवं गंध का ज्ञान हेतु ईश्वर ने पांच ज्ञानेंद्रियों का सृजन, जीवन में क्रिया, जिसमें नेत्र सर्वोपरि माना जाता है। कोई भी व्यक्ति जहां शतायु होने की कामना करता है वहीं अंतिम क्षण तक देखते रहने की इच्छा रखता है। ”जीवेम शरदः शतः, पश्येम् शरदः शतम्।“ विज्ञान के साथ ज्योतिष का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है।
ग्रहों, नक्षत्रों, भावों तथा भावाधिपतियों का प्रभाव नेत्र के स्वास्थ्य एवं व्याधियों पर देखा गया है। मैं इस लेख में नेत्र तथा नाक, कान, गला मुख एवं मस्तिष्क के विषय में विवेचना करूंगा। अंग, भाव एवं ग्रहों का संबंध अधोलिखित चार्ट से ज्ञात होता है: अंग भाव ग्रह नेत्र दाहिनी द्वितीय मुख सूर्य तृतीय- साधारण नेत्र बांयी द्वादश शुक्र नाक
- शुक्र, मंगल कान दांया तृतीय मंगल कान बांया एकादश मंगल गला प्रथम बुध मुख प्रथम बुध कंठ प्रथम बुध आवाज तृतीय, द्वितीय बुध जिह्वा प्रथम बुध दांत प्रथम, द्वादश शनि ऊपरी जबड़ा प्रथम बुध श्वांस नली तृतीय बुध गर्दन तृतीय, एकादश बुध लग्न के बारह भावों में द्वितीय तथा तृतीय भाव दाहिने नेत्र तथा द्वादश भाव बांये नेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं।
ग्रहों में सूर्य और शुक्र नेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। बृहस्पति इसका कारक माना जाता है। सूर्य और शुक्र की विपरीत स्थिति शत्रु गृह में स्थित, शत्रु से दृष्ट, शत्रु ग्रहों का योग जातक को नेत्र व्याधि देते हैं। शास्त्रोक्त कुछ उदाहरण उद्धृत हैं: द्वितीयेश एवं शुक्र यदि त्रिषडाय मंे जाएं तो जातक अंधा होता है। इसी प्रकार यदि शुक्र तथा पापग्रह युक्त चंद्रमा द्वितीय भाव में हो तो जातक नेत्रहीन होता है। इसी प्रकार अनेक उदाहरण मिलते हैं। विगत 40 वर्षों से अधिक चिकित्सा क्षेत्र में रहने के उपरांत मुझे मेरे ज्योतिष के अल्पज्ञान का लाभ हुआ जो श्लाघनीय है। ज्योतिर्विद ग्रहों से व्याधियों तथा भविष्य की भविष्यवाणी करते हैं परंतु मैंने उसके विपरीत व्याधियों से ग्रहों तक पहुंचने का प्रयास किया। उसके अनुसार उनका उपाय चिकित्सा पद्धति के साथ किया और देखा कि इससे अभूतपूर्व लाभ हुआ।
उदाहरणार्थ एक नेत्र रोगी जिसकी दाहिनी आंख की रोशनी एकदम चली गई थी। करीब 10 महीने तक कई स्थानों पर चिकित्सा करा चुका था। मेरे पास रविवार के दिन आया। जांच करने पर कोई विशेष लक्षण नहीं दिखा। मैंने उसकी चिकित्सा प्रारंभ की। साथ ही सूर्य और शुक्र की शांति बताई। ... मुझे आश्चर्य हुआ। जब वो 10 दिन बाद मेरे पास आया तो उसकी रोशनी टत् 6/12 यानी करीब 75 प्रतिशत लौट आई थी। मैंने उसकी कुंडली मांगी। कर्क लग्न की कुंडली थी। द्वितीय भाव में सूर्य और बुध थे, अष्टम भाव में शनि। महादशा सूर्य की थी।
शनि की अंतर्दशा थी। इसी प्रकार अनेकानेक उदाहरण मुझे मिले हैं। जिन्हें गिनाया जाना संभव नहीं। एक गले के मरीज गिरीडीह से मेरे पास आया। 3-4 वर्षों से परेशान थे। देखने पर कोई विशेष लक्षण नहीं मिला। मैंने उनके संतोष के लिए थोड़ी दवा लिखी और उन्हें बुध की शांति पाठ, लक्षण तथा पन्ना धारण कराया। उपाय करने पर वो भी ठीक हो गए। कई वर्ष पहले मेरे एक मित्र मुझे अपनी कुंडली दिखाने आए।
कन्या लग्न अष्टम भाव में केतु द्वादश में राहु अष्टम भाव में मंगल, शनि द्वितीय भाव में सूर्य। मैंने उनसे कहा चलो तुम्हारी आंख देख लें। उनके मना करने पर भी मैंने देखा। दोनों आंखें एकदम ठीक थीं। मैंने कहा तुम्हारी कुंडली के हिसाब से तुम्हें नेत्र दोष होना चाहिए। कुछ दिन बाद उनके दोनों आंख का आप्रेशन करना पड़ा। इसी प्रकार एक नाक का मरीज जिसकी सूंघने की शक्ति समाप्त हो गई थी। मैंने दवा के साथ शुक्र की पूजा, हवन, पाठ एवं स्फटिक धारण करवाया। वो भी ठीक हो गया। इसके विपरीत कभी कभी ऐसे व्यक्तियों का पता सब प्रकार से जांच के बाद भी नहीं चलता परंतु ग्रहों की स्थिति से उनका ज्ञान हो जाता है।
काफी समय पहले की बात है मैं उन दिनों एम. बी. बी. एस. में पढ रहा था। मेरा चचेरे भाई के पेट में दाहिनी ओर नीचे (राइट इलियेन फोसा) में दर्द था। उसे अस्पताल में भर्ती करया उसका निदान एपेन्डिसाइटिस करके हुआ। उन दिनों मुझे ज्योतिष का कोई ज्ञान नहीं था। वाराणसी (काशी) में मेरे पड़ोस में एक ज्योतिषी रहते थे। उनके पास मैं भाई की कुंडली लेकर गया। उन्होंने देखते ही कहा तुम्हारे भाई को लीवर कैंसर है।
आप्रेशन मत कराओ। बंबई ले जाओ। मुझे उनकी बात पर विश्वास नहीं हुआ। जब आप्रेशन हुआ तो लिवर कैसर निकला और वो मर गए। मेरा लेख हो सकता है आप विद्वजनों के लिए उपहासात्मक हो परंतु अभिप्राय केवल इतना है कि यदि अर्किटेक्ट को वास्तु का ज्ञान हो जाय और चिकित्साकों को यदि ज्योतिष का ज्ञान हो जाय तो विश्वास कीजिए इससे अवश्य कल्याण होगा। पाठकों से अनुरोध मुझे अल्प ज्ञानी समझकर यदि लिखने में मुझसे कोई त्रुटि हो गयी हो तो क्षमा करेंगे।