आजकल हर मनुष्य चाहता है हमारे पास सभ्य संतान हों जो माता पिता की सेवा करें एवं कुल का नाम रोशन करें, हर मानव का सपना होता है कि उसकी संतान तेजस्वी एवं गुणों से संपन्न होगी। इसके लिए वह हर संभव प्रयास करता है, पढ़ाता है अच्छी उच्च शिक्षा एवं अच्छे संस्कारों में डालता है परंतु जब संतान इसके विपरीत होता है तो हर माता पिता के सामने दुःखों का पहाड़ सा खड़ा हो जाता है संतान गलत रास्ते में जाना दुष्कर्म करना माता पिता को प्रताड़ित करना यह कोई पिता माता बर्दास्त नहीं कर सकता परंतु हम लोग भूल जाते हैं कि अच्छे संतान के लिए अच्छा योग अच्छा मुहूर्त एवं अच्छे समय की आवश्यकता होती है, जिसे हम ज्योतिष द्वारा सही समय में सही संतान योग का चुनाव कर सकते हैं जिससे संतान भाग्यशाली कर्मनिष्ट कुलदीपक यश दिलाने वाला होगा उसके लिए हमें ज्योतिष द्वारा योगों को देखना होगा तथा सोच विचार कर संतान योग का निर्णय किसी विद्वान ज्योतिषी तथा स्वयं निर्णय कर सके उसके लिए मैं यहां लिखने का प्रयास कर रहा हूं कि ज्योतिष द्वारा संतान योग कैसे जानें, ज्योतिष ऐसा महाग्रंथ हैं, जिसमें हर तरह के योग मुहूर्त, काल, उपलब्ध हैं आवश्यकता है उसे अपने जीवन में उपयोग में लाने की हर मानव संतान का सपना देखता है संतान सुख से बड़ा कोई सपना नहीं होता है उसके लिए सही दिशा मिले पुत्र हो। कुपुत्र नह हों ज्योतिष द्वारा विश्लेषण करना जरूरी हैं। संतान योग में आवश्यकताऐं संतान के लिए पति पत्नी दोनों की कुंडली का प्रबल होना कुंडली का संतान कारक ग्रह का उदय होना पंचम भाव का बलवान होना एवं पंचमेश की सही जानकारी करना क्योंकि पंचम भाव से ही पुत्र सत्पात्र होगा या कुपात्र की जानकारी प्राप्त किया जाता है।
हमारे कुंडली में 12 राशियां होती हैं जिनमें से कोई भी पंचमेश बनकर संतान का सुख दुःख प्रदान करती हैं। पंचम भाव में विषम राशि हो जैसे - मेष 3, 5, 7, 9, 11 पुरुष राशि कहलाती हैं। पंचम भाव में सम राशि वृष 4, 6, 8, 10, 12 कन्या राशि या स्त्री राशि होती है। जब कोई राशि पंचमेश बनती है जैसे मिथुन पंचम भाव में है तो पंचमेश बुध हुआ यदि सूर्य पंचम भाव में होता है तो एक पुत्र होता है। यदि चंद्र पंचम भाव में बैठा है तो कन्या होगी यदि मंगल पंचम भाव में बैठा हो तो तीन पुत्रों का योग होता है। पंचम भाव में बुध बैठा हो तो यह दो कन्या का योग बनाता है। पंचम भाव में गुरु बैठा हों तो पांच पुत्रों का योग बनाता है। पंचम भाव में शुक्र बैठा हो तो कन्याओं का योग बनाता है। पंचम भाव में शनि बैठा हो तो कन्याओं का प्रबल योग बनाता है। पंचम भाव में राहु बैठा हो तो पुत्र योग बनाता है। पंचम भाव का राहु प्रायः गर्भ नष्ट योग भी बनाते देखा गया है जिसका जिक्र हम आगे देखेंगे। पंचम भाव में केतु बैठा हो तो समय से पहले संतान योग बनाता है तथा संतान नष्ट योग भी बनाता है। ग्रहों के पंचम भाव में होने से पुत्र होगा या कन्या या कुपात्र या सत्पात्र यह ग्रहों पर निर्भय करता है आपका पंचम भाव जितना ही वलावल से युक्त होगा उतना ही सुंदर संतान योग की संरचना करेगा। पंचम भाव में राशियों का उतना ही महत्व है जितना ग्रहों का अथवा यह जान लेना आवश्यक होता है कि आपके पंचम भाव में शुभ या अशुभ, सम या विषम राशि हैं। इनका ज्ञान करना आवश्यक होता है।
पंचम भाव में -2 वृष, 5, 6, 8 राशियों हों तो कम संतान होती हैं। पंचम भाव में उपरोक्त राशियों का होना संतान में विलंबता के सूचक राशियां होती हैं। गर्भाधान योग हर माह स्त्री रजस्वला होती हें जिसका कारण ग्रह चंद्र एवं मंगल है। जब चंद्र जनम राशि से 1,2 रे 4थे, 5, 7, 8, 12वें राशियों में आता है तब स्त्रियों के लिए उत्तम ऋतु समय होता है। जब चंद्र इन राशियों में होता है उस पर मंगल अपनी पूर्ण दृष्टि से देख रहा हों तो ऋतुकाल का समय होता है। ऋतुकाल के उपरांत ही संतान या गर्भधारण योग जाना जा सकता है। ऋतुकाल एवं शुभ रात्रियां शुभ रात्रियों का ध्यान दिया जाए तो उत्तम संतान के योग स्वयं बन जाते हैं क्योंकि नीव सही होगी तो ग्रह का निर्माण सही दिशा में होगा अतः शुभ रात्रियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। ऋतुकाल के पश्चात सोलह रात्रियां होती हैं जो हमारे ऋषियों ने अपने-अपने विवेक के अनुसार सही गलत का निर्णय दिया है। ऋतुकाल के पश्चात तीन रात्रियों का सर्वथा त्याज्य करना चाहिए। इन रात्रियों के ाान से हम उत्तम संतान के योग की संरचना मानकर चलना चाहिए। क्योंकि रात्रियों में उत्तरोत्तर रात्रियां बलवान होती हैं। जैसे चैािी रात्रि से षष्ठी रात अधिक उत्तम होती हैं। षष्ठी से आठवीं रात्रि अत्यधिक बलवान होती हैं। आठवीं रात्रि से दसवीं रात्रि अति उत्तम रात्रि होती हैं। दसवीं से बारहवीं रात्रि वलावल से युक्त होती हैं। बारहवीं रात्रि से चैदहवीं रात्रि उत्तम मानी जाती हैं।
चैदहवी से सोलहवीं रात्रि अत्यधिक तेज एवं बलवान रात्रि होती है। निम्न रात्रियों को देखकर किया गया प्रसंग संतान को तेजस्वी एवं बुद्धिमान बनाता है। रात्रि एवं पुत्र योग चैथे रात्रि का प्रसंग उसे अवश्य पुत्र का योग प्रदान करता है जो पुत्र पूर्ण दीर्घायु एवं नीरोग होता है। छठी रात में प्रसंग करने से निश्चय ही पुत्र उत्पन्न होता हैं आठवीं रात में किया गया प्रसंग धैर्यवान पुत्र उत्पन्न होता है। दसवीं रात में किया गया प्रसंग धैर्यवान पुत्र उत्पन्न होता है। दसवीं रात में प्रसंग करने से धन ऐश्वर्य संयुक्त संतान उत्पन्न होता है। बारहवीं रात में प्रसंग करने से बलवान एवं साहसी पराक्रमी कुल दीपक ऐश्वर्य युक्त संतान उत्पन्न होती हैं। अगर आपको कन्या की चाहत हैं तो आप इन रात्रियों का उपयोग करके उत्तम कन्या प्राप्त कर सकते हैं। पांचवीं रात्रि को प्रसंग करने से निश्चय ही उत्तम कन्या जनम लेती हैं। सातवीं रात्रि को प्रसंग करने से बुद्धिमान तर्कशक्ति युक्त कन्या जन्म लेती हैं। नवीं रात्रि को किया गया प्रसंग तेजस्वी कन्या का जन्म होता है। ग्यारहवीं रात्रि में किया गया प्रसंग कन्या को जन्म देता है। उपरोक्त कन्या रात्रियों में उत्तरोत्तर बल से युक्त होती है क्योंकि पांचवीं से सातवीं बलवान होती हैं सातवीं से नौवीं से ग्यारहवीं रात्रि बलवान होती हैं। निम्न रात्रियां उत्तम कन्या जन्म के लिए उत्तरोत्तर रात्रियों को उपयोग करके उत्तम कन्या प्राप्त कर सकते हैं। उसी तरह से पुत्र को चाहहत रखने वालों को पुत्र रात्रियों को उपयोग लेकर उत्तम पुत्र प्राप्त कर सकते हैं जिससे आपके कुल का नाम रोशन तथा संतान सुपात्र होने के पूर्ण अवसर आपके हाथ में होते हैं। प्रभृति युग्म पुत्र रात्रियां चैथी, छठी, आठवीं प्रभृति युग्म रात्रियां पुत्र रात्रियां कहलाती हैं इन रात्रियों में किया गया प्रसंग उत्तम पुत्र प्रदान करती हैं। प्रभृति युग्म कन्या रात्रियां पांचवीं, सातवी,ं नवीं, प्रभृति युग्म कन्या रात्रि कहलाती हैं इन रात्रियों में किया गया प्रसंग उत्तम कन्या का जनम होता है उस कन्या के द्वारा व्यक्ति का भाग्योदय होता है वह कन्या पुरे कुल के लिए उन्नति के लिए प्रेरणास्रोत होती है हमने उन रात्रिओं को जानने के पूर्ण प्रयास किये जिससे हमारे पाठक लोग सुपात्र संतान को जन्म देकर अपना और अपने संतान का भाग्य बनाने में पत्थर रूपी नींव साबित कर सकते हैं।
आप थोड़ा सा ध्यान में इन रात्रियों को रख कर उत्तम संतान प्राप्त कर सकते हैं जिससे आपका लाभ तो होगा साथ में कुल एवं संतान के भाग्योदय में भी सहायक होगा। उत्तम संतान और आपके कुंडली में गोचर अवस्था में चल रहे ग्रहों का भी पूर्ण योग होता है। जन्म कुंडली में संतान योग जन्म कुंडली में संतान विचारने के लिए पंचम भाव का अहम रोल होता है। पंचम भाव से संतान का विचार करना चाहिए। दूसरे संतान का विचार करना हो तो सप्तम भाव से करना चाहिए। तीसरी संतान के बारे में जानना हो तो अपनी जन्म कुंडली के भाग्य स्थान से विचार करना चाहिए भाग्य स्थान यानि नवम भाव से करें।
इससे अधिक संतान के बारे में जानने के लिए तीनों भावों के वलावल को देखकर विचार करना चाहिए। यदि किसी कारणवश द्वितीय संतान नष्ट हो जायें तो समझे आपकी कुंडली में सप्तम भाव पाप ग्रहों से युक्त हो नहीं है। यदि किसी कारणवश तीसरी संतान नष्ट हो तो समझें आपका भाग्य स्थान पाप ग्रहों से प्रताड़ित तो नहीं है एवं पापग्रहों का योग एवं दृष्टि तो नहीं है, अगर ऐसा हो तो अवश्य संतान नष्ट हो जाती है। तीन से ज्यादा संतान नष्ट हो रही हो तो आप अपने जन्मकुंडली के सुख संतान कलत्र, भागय भावों का गहन अध्ययन करें कि आपके इन भावों में पाप ग्रहों का बलावल अधिक है क्या अगर अधिक है तो संतान सुख में कमी के योग होते हैं।
वशक्षय एवं वंशनाश के पूर्ण आसार होने पर आप अपनी कुंडली में देखें कि कहीं पंचम लग्न अष्टम द्वादश भावों में पाप ग्रहों का प्रभाव ज्यादा तो नहीं है अगर ज्यादा है तो समझें कि कुंडली वंशक्षय योग बन रहा है इस योग से कुल में संतान पुत्र का आभाव अवश्य होता है। यदि चतुर्थ भाव में पाप ग्रह पंचम भाव में गुरु सातवें भाव में बुध शुक्र बैठे हों तो उस मनुष्य के जीवन में संतान सुख का अभाव होता है तथा वंश को चलाने में कोई नहीं होता पंचम भाव अष्टम भाव और द्वादश भाव में पाप ग्रह बैठे हों तो संतान योग में बाधा समझे और अगर आपके लग्न में पाप ग्रह बैइे हों लग्नेश पंचम में बैठा हो पंचमेश बली हो किंतु तृतीय भाव में बैठा हो ऐसा होने से अवश्य ही संतान में बाधा उत्पन्न करता हैं चतुर्थ भाव में चंद्रमा बैठ जाय पंचम भाव में शुक्र सूर्य का योग हो तो अवश्य ही संतान के पक्ष में बाधा होती है एवं संतान के क्षेत्र विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है संतान क्षेत्र निर्बल हो जाता है और संतान अगर होगी भी तो बहुत परिश्रम करने के पश्चात परंतु मृत संतान होने की पूर्ण संीाावनाएं होती हैं, अगर पंचम भाव में शनि बैठा हो या देख रहा हो तो निश्चय ही मृत संतान के योग देखने में मिलते हैं अतः मंगल पंचम भाव में बठा हो तो समझ लेना चाहिए कि संतान अवरोधक उत्पन्न करना यानि कि गर्भ ही नहीं ठहरने देता मंगल गर्भ ग्रह है अतः मंगल अपना प्रभाव पंचम भाव रखने से दूर-दूर तक संतान के लिए बाधक बन जाता है संतान के क्षेत्र विफल करता रहता है अगर राहु-केतु के द्वारा योग बना रहा हो साथ बैठे हो तो संतान के प्रति सोच बदल जाती है , सोच बन भी जाय तो कई बार परेशानियां उत्पन्न करते हैं। परेशानियों के अलावा अलगाव देता है। अगर योग बन भी जाय संतान ऐसी होती हें जिसकी कल्पना आप सपने में ीाी नहीं कर रहे होंगे।
क्योंकि संतान कुपुत्र कपटी एवं दरीद्री योगों को लेकर उत्पन्न होता है। जिससे आपका जीवन दुःखमय बना देता है। अंततः आपको संतान को छोड़कर कहीं और रहने में मजबूर हो जाते हैं फिर भी वह आपको हर क्षण कांटों की तरह चुभता रहता है और आपका हंसता खेलता जीवन नरक जैसे बन जाता है और पंचम भाव में पाप ग्रह बैठे हो पंचमेश से पंचम गुरु बैठा हो तथा उससे पांचवें में बृहस्पति बैठा हो तो उसे संतान के लिए तीन स्त्रीयों का सहारा लेना पड़ता है फिर भी संतान सुख से वंचित रहना पड़ता है अगर संतान सुख मिलती भी है तो कनया होती है जो कुल का नाम बदनाम करके माता पिता का त्याग कर देती है और माता पिता जीवन भर दुःखों का सामना करते हैं गुरु का पाप ग्रहों के प्रभाव आना और ीाी घातक सिद्धऋ हो जाता है शनि निर्बल होकर गुरु को देख रहा हो और गरु पंचम भाव से संध रख रहा हो तो निश्चचय ही संतान का सुख नहीं प्राप्त होता है।
संतान की तरफ आपके सोच विचकार से युक्त करेगा और हर समय आप सोचों में परेशान रहेंगे और आप समय का सही उपयोग नहीं र सकेंगे जीवन में कई असर आपके हाथ से निकल जायेंगे जिससे आप रह रह कर आप दुखी रहेंगे और लोगों के द्वारा तानों सुनने पड़ेगे जिससे आपके दिलों दिमाग की दिक्कत आएगी और आप अपने जीवन में सही निर्णय लेने में असमर्थ होंगे जिससे आपको संतान गोद लेना पड़ सकता है या पैसा देकर संतान लेना पड़ सकता है यादि आपकी जन्म कुंडली में लग्नेश अथवा प्रथम भाव का स्वामी मंगल के घर में मेष-वृश्चिक में बैठा हो तो समझें कि संतान बाधक योग हैं एवं पंचम भाव का स्वामी छठे स्थान में बैठा हो तो नश्चित ही संतान बाधक होता ळै। संतान होगी परंतु होकर मृत्यु को प्राप्त कर लेगी। उसके पश्चात फिर दूसरी संतान नहीं होती और निःसंतान जीवन व्यतीत करना पड़ता है, पाप ग्रहों से युक्त कुंडली और पंचम भाव को स्वामी त्रिक 6, 8, 12 भावों में बैठ जाय, वह मनुष्य के जीवन में संतान क्षेत्र में बार-बार असफल होता है। जहां तक शास्त्रों में देखा गया है कि वह बुध $ केतु का संयोग पंचम भाव में होना पंचमेश का नीच राशि में होना भी संतान विहीन योग बनाता है। यह योग से जातक एक ही संतान होती हैं परंतु वह भी अल्पायु थोड़े समय पश्चात उसकी मृत्यु होते देखा गया है। आपके जीवन में दूसरे संतान का न होना उपरोक्त योगों से होता है।
इसे शास्त्रों में काक वंध्या योग भी कहते हैं जिसकी कुंडली में एक संतान योग दूसरी संतान न हो तो समझें काक बंध्या योग है, अर्थात आपकी स्त्री की कुंडली में एक ही गर्भ ठहर सकता है और आप ऐसे औरत के पति हैं, आपकी कुंडली में पांचवें घर का स्वामी नीच का हो वक्री अथवा अस्त हो या निर्बल ग्रह की दृष्टि पड़ रही हो शनि निर्बल होकर बुध के साथ बैठा हो तो समझ लें कि आपकी स्त्री काक बंध्या योग से लिप्त है और काक बंध्या पत्नी के आप जीवन साथी हैं जिससे आपको जीवन में संतान सुख से वंचित रहना पड़ता है, संतान पक्ष कमजोर निर्बल होता है, आप अगर ध्यान से देखें कि पत्नी या आपकी जन्मकुंडली में संतान प्रबंधक योग तो विद्यमान तो नहीं, यह योग संतान के पक्ष में बहुत ही परेशान करता है। संतान प्रतिबंधक योग अगर कुंडली में बुध शुक्र सप्तम भाव में बैठे हो, गुरु पंचम भाव में बैठा हो, और पाप ग्रह चतुर्थ भाव में बैठे हों तथा चंद्रमा से अष्टम पाप ग्रह हो तो संतान प्रतिबंधक योग होता है।
निम्न कुंडली को हमने देखा कि संतान प्रतिबंधक योग व्याप्त हैं। उपरोक्त कुंडली में बुध शुक्र योग तो नहीं पाया गया परंतु संतान प्रतिबंधक जीवन में पाया गया है। इसका कारण यह है पंचमेश चंद्र पाप ग्रहों के मध्य होना राहु द्वारा चंद्र को ग्रसित करना सप्तमेश बुध का स्वराशि में चतुर्थ में सूर्य के साथ बैठना संतान ग्रह गुरु का शनि द्वारा कमजोर पड़ना तथा सप्तम दृष्टि द्वारा शनि का संतान स्थान का देखना केतु का द्वादश में बैठ कर पंचमेश में पूर्ण दृष्टि से देखना संतान प्रतिबंधक कारण है अतः हमें अपनी कुंडली में संतान प्रतिबंधक योग के बारे में अवश्य जानकारी रखनी चाहिए कि हमारी कुंडली में ऐसे योग के कारण संतान में बाधा तो नहीं आ रही है ताकि उन बाधाओं से मुक्ति पा सके और संतान योग बना सके।