शनि शांति हेतु हनुमत् उपासना का महत्व
शनि शांति हेतु हनुमत् उपासना का महत्व

शनि शांति हेतु हनुमत् उपासना का महत्व  

डॉ. अरुण बंसल
व्यूस : 4367 | जून 2016

हनुमान जी और शनि के बारे में चर्चा करें तो हनुमान जी सूर्य के शिष्य हैं और शनि पुत्र। एक संकटमोचक हैं और दूसरे पाप कर्मों के लिए दंडित करने वाले। एक अग्नि व दूसरे वायु से उत्पन्न हुए। दोनों एक दूसरे के घोर विरोधी होते हुए भी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।

एक बार की बात है कि जब रावण का सबसे बड़ा पुत्र इंद्रजीत पैदा होने वाला था तो उसने सभी ग्रहों को अपने पैर के नीचे दबा लिया जिससे उसका पुत्र ग्रहों की सर्वाधिक श्रेष्ठ स्थिति में उत्पन्न हो। देवताओं को चिंता हुई कि यदि ऐसा हुआ तो रावण का पुत्र अजेय हो जाएगा। ऐसी स्थिति में शनि ने कहा - मैं इस संकट से छुटकारा दिला सकता हूं परंतु इसके लिए मुझे रावण के चेहरे पर दृष्टि डालनी होगी। देवताओं ने इस कार्य को अंजाम देने के लिए नारद जी की सहायता ली।

नारद जी ने रावण के महल में प्रवेश करके उसकी इस बात के लिए प्रशंसा की कि उसने सभी ग्रहों को पैरों के नीचे दबा लिया है परंतु नारद जी ने यह भी कहा कि यदि वह इन ग्रहांे की पीठ की बजाय इनकी छाती पर पांव रखे तभी उसकी जीत को जीत माना जाएगा। रावण ने नारद जी की बात मानकर जैसे ही ग्रहों को पलटकर उनकी छाती पर अपना पैर रखा तो शनि ने अपनी क्रूर दृष्टि रावण के मुख पर डाल दी। शनि की दृष्टि पड़ते ही रावण का बुरा समय आरंभ हो गया। रावण ने शनि को दंडित करने के लिए उसे काल कोठरी में डाल दिया।

हनुमान जी जब माता सीता की खबर लेने आए तो उन्होंने काल कोठरी से शनि की चीख पुकार सुनी। तब हनुमान जी ने शनि को इस काल कोठरी से मुक्त कर दिया। तब शनि ने हनुमान जी को वरदान देते हुए कहा कि मैं आपके भक्तों को कभी कष्ट नहीं पहुंचाऊंगा। तभी से शनि प्रदत्त कष्टों के निवारण हेतु हनुमान जी की आराधना की जाती है।

इसी संदर्भ में एक अन्य कथा भी लोकप्रसिद्ध है जिसके अनुसार शनि एक बार हनुमान जी को नीचा दिखाने के मकसद से उनके कंधे पर चढ़ गए। तभी हनुमान जी ने अपने शरीर को इतना बड़ा कर दिया कि शनि हनुमान जी के कंधों और छत के बीच में फंसकर दर्द से कराहने लगा। शनि ने फिर हनुमान जी से अपनी मुक्ति के लिए प्रार्थना की और इसके बदले में वचन दिया कि वे उनके भक्तों को कदापि कष्ट नहीं देंगे।

तब शनि ने अपने घावों से होने वाली पीड़ा से मुक्ति प्राप्ति हेतु हनुमान जी से काले तिल और तेल का आग्रह किया ताकि वे उसका लेप बनाकर अपने घावों पर लगा सके। तब से शनिवार के दिन शनि के लिए काले तिल व तेल चढ़ाने व साथ ही हनुमत उपासना की परंपरा प्रचलित है।


Book Shani Shanti Hanuman Puja


हनुमान और शनि का संबंध

हनुमानजी और शनि देवता की कहानी का एक आध्यात्मिक महत्व है। हर बार गर्व और अहंकार से भरे शनि विनम्र हनुमान को मिलते हैं तथा शनि की स्वार्थी व आत्मकेंद्रित क्रियाओं की हनुमान जी निःस्वार्थ भाव से प्रतिक्रिया देते हैं। इसी प्रकार यदि आप भी अपने अहं भाव, गर्व और स्वार्थ को छोड़कर हनुमान जी की तरह ही अच्छे, विनम्र, परमार्थी व सेवा भाव से परिपूर्ण हो जाएं तो आप शनि की साढ़ेसाती में भी शनि के जाल से बच जाएंगे। याद रखें शनि ने हनुमान को एक बार नहीं बल्कि अनेकों बार कष्ट पहुंचाए जबकि संकट मोचक हनुमान अपनी विनम्रता, सादगी और अन्य श्रेष्ठ गुणों के कारण सदा विजयी रहे।

शनि शांति में हनुमत उपासना

शनि कालपुरुष का दुख है। यदि जन्मकुंडली में शनि की स्थिति अनुकूल न हो तो शनि की साढ़ेसाती व दशा आदि में विशेष कष्ट की अनुभूति होती है। साढ़ेसाती का संबंध चंद्रमा अर्थात् हमारे मन से है इसलिए इस अवधि में जातक का विभिन्न कष्टों से गुजरने के कारण मनोबल गिरने लगता है तथा आत्मविश्वास व साहस में विशेष कमी आने लगती है। ऐसा प्रभाव विशेष रूप से तब होता है जब कुंडली में शनि की स्थिति अधिक अशुभ हो।

ऐसे में यदि मंगल भी कमजोर हो तो जातक विपरीत परिस्थितियों का प्रतिकार करने में अपने को अक्षम महसूस करने लगता है क्योंकि मंगल कालपुरूष का बल है इसलिए यदि कुंडली में मंगल बलवान हो तो जातक अपने बल, पराक्रम, प्रभाव, आत्मविश्वास, आत्मबल तथा सहनशक्ति व तेजस्विता से शनि के प्रकोप को सहन करने में सक्षम हो जाता है। यदि कुंडली में मंगल की स्थिति अशुभ हो, वह नीचराशिस्थ हो, अकारक हो, पीड़ित अथवा अस्त हो तो हनुमान जी की उपासना करके न केवल उसे अनुकूल किया जा सकता है अपितु इससे शनि ग्रह की भी शांति हो जाती है।

शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या के शुरू होने पर जातक को अनेक प्रकार के कष्ट प्राप्त होते हैं। समय रहते निम्नांकित उपाय करने से शनि प्रदत्त कष्टों से बचा जा सकता है:

    1. यदि मानसिक तनाव अधिक हो तो सातमुखी रुद्राक्ष माला धारण करनी चाहिए तथा उस पर शनि के तन्त्रोक्त मंत्र ‘‘ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः’’ का जप करके शनिवार के दिन छाया दान करना चाहिए। अन्य मंत्रों का उत्कीलन करना पड़ता है परंतु उपरोक्त तंत्रोक्त मंत्र बिना उत्कीलन के भी फलीभूत हो जाता है।
    2. साढ़े साती में 1-14 मुखी रुद्राक्ष माला धारण करने से सभी प्रकार के शनि जनित कष्टों से छुटकारा मिलता है।
    3. यदि कुछ अनिष्ट होने का भय होता हो या डरावने स्वप्न आते हों तो हनुमान चालीसा, बजरंग बाण व पांचमुखी हनुमान कवच का पाठ करना करना चाहिए।
    4. यदि सरकारी परेशानी है अथवा नौकरी में बाधाएं आ रही हैं जैसे अधिकारी से मतभेद/तनाव है तो प्रतिदिन सुंदरकांड का पाठ करें। इसे शनिवार को आरंभ करके शुक्रवार को संपन्न करें।
    5. यदि आर्थिक हानि हो गई है तो मंगल व शनिवार के दिन मांस मदिरा का सेवन न करें, मंगलवार का व्रत करें व हनुमान जी को चोला चढ़ाएं तथा 800 ग्राम गुड़ जल में प्रवाहित करें। हनुमान सहस्रनाम का पाठ प्रतिदिन करें व 43 वें दिन गुड़ व चना का प्रसाद बांटें। इसके अतिरिक्त शनिवार के दिन काली दाल, काला वस्त्र आदि शनि की वस्तुओं का दान करें।
    6. यदि घर में कलह हो तो सायंकाल घर में सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
shani-shanti-ke-liye-hanumat-aaradhana
  1. शत्रुबाधा, ग्रह बाधा व भूत बाधा आदि होने पर बजरंग बाण व बजरंग गुर्ज का पाठ करें।
  2. नजरदोष होने पर हनुमान पूजा करके लाल टीका लगाएं।
  3. विवाह बाधा होने पर लक्ष्मी, भैरव, हनुमान व गणपति इन सभी की संयुक्त उपासना करें। ऐसा करने से मंगलीक दोष की शांति होगी व शनि व मंगल जनित विवाह बाधा दोष शांत होगा।
  4. यदि घर में बच्चे जिद्दी हो रहे हैं, कहना नहीं मानते तो हनुमान जी की पूर्ण सेवा भाव व ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए पूजा करें व मंगलवार का व्रत करें तथा स्वयं भोजन पकाकर खाएं, आपकी परेशानी अवश्य दूर होगी।
  5. शनि शांति के लिए तेल व तिल के दान के अतिरिक्त हनुमान चालीसा, संकटमोचक हनुमत् स्तोत्र, हनुमानाष्टक, हनुमान मंत्र, सुंदरकांड, पंचमुखी हनुमान कवच, हनुमानसहस्रनाम, बजरंग बाण आदि के पाठ के अतिरिक्त हनुमान के मंदिर में सिंदूर चढ़ाया जाता है।

साढ़ेसाती जनित अति कष्ट व शारीरिक कष्ट से निवारण हेतु शुक्रवार को सवा किलो या सवा पांच किलो काले चने पानी में भिगो दें। शनिवार को पानी से निकालकर चने को काले कपड़े में बांध लें। साथ में एक कच्चा कोयला, एक रुपये का सिक्का व चुटकी भर काले तिल बांध लें। सिर के ऊपर से फिराकर इन सामग्रियों को यमुना जी में विसर्जित करें। यह क्रिया 5 से 8 बार करने से सभी प्रकार के शनि कष्ट दूर हो जाते हैं।

साढ़ेसाती में शनि जातक के अहंकार को नष्ट करना चाहता है अतः इस समय जातक को किसी से वैर मोल नहीं लेना चाहिए क्योंकि यह विरोध और अधिक परेशानी लेकर आता है अपितु हनुमान जी की तरह से विनम्रता व सादगी से व्यवहार करना चाहिए व अपने कनिष्ठ की अवज्ञा नहीं करनी चाहिए व साथ में अपने जूनियर लोगों से स्नेह पूर्ण संबंध रखना चाहिए। इस प्रकार से साढ़ेसाती शांतिपूर्वक व्यतीत हो जाती है।


To Get Your Personalized Solutions, Talk To An Astrologer Now!




Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.