प्रत्येक व्यक्ति की अभिलाषा होती है कि वह जो भी कार्य करे वह उसकी रूचि के अनुरूप हो तथा उसमें उसे सफलता मिले। यह बहुत ही कठिन है यह जानना कि कौन सा कार्य हमारे अनूकुल होगा। जिसमे हमें सफलता मिले। प्रत्येक व्यक्ति में अलग-अलग कार्य करने की क्षमता होती है।
लेकिन कोई भी व्यक्ति यह तय नहीं कर सकता कि उसमें कौन सा कार्य करने की क्षमता है। इसलिए कभी-कभी वह गलत निर्णय ले लेता है तथा उसे असफलता का सामना करना पड़ता है। लेकिन ज्योतिष एक ऐसा विषय है जो हमारा सही दिशा चुनने में मार्ग दर्शन कर सकता है।
जन्म पत्रिका का लग्न, लग्नेश, दशम भाव तथा दशमेश उन पर विभिन्न ग्रहों का प्रभाव हमें उचित व्यवसाय चुनने में सहायता करते हैं। व्यवसाय को चयन करने के लिए आप पहले यह देखे कि सब से ज्यादा ग्रह कौन सी राशि में है। चर, स्थिर या द्विस्वभाव। ग्रहों का चर, स्थिर, द्विस्वभाव राशियों के अनुसार व्यवसाय का चयन: चर राशियां 1, 4, 7, 10 स्थिर राशियां 2, 5, 8, 11 द्विस्वभाव राशियां 3, 6, 9, 12 चर राशिगत ग्रह: अधिक ग्रह यदि चर राशि में हों तो जातक ऐसे व्यवसाय को अपनाता है जिसमें चतुराई, युक्ति निपुणता व लोगों से मेल मुलाकात का प्रयोग होता है वह भ्रमणशील होकर उन्नति करता है उसके व्यवसाय में स्थिरता नहीं होती। परिवर्तन में विश्वास रखता है। स्थिर राशिगत ग्रह: अगर स्थिर राशि में ज्यादा ग्रह हैं
तो जातक ऐसा व्यवसाय चुनता है जिसमें धैर्य एकाग्रता सहनशीलता, दृढ़ निश्चय तथा चिंतन मनन की आवश्यकता होती है। वह एक स्थान पर कार्य करना पसंद करता है। सरकारी नौकरी, डाॅक्टर या अस्पताल की नौकरी में सफलता मिलती है। इस कुंडली में स्थिर राशिगत ग्रह अधिक है यह जातक एक सरकारी डाॅक्टर है जिसमें धैर्य, एकाग्रता की आवश्यकता होती है। द्विस्वभाव राशिगत ग्रह: यदि अधिक ग्रह द्विस्वभाव राशि में हों तो जातक अध्यापक, प्रोफेसर, आढ़तिया एवं किराना गिरी के काम करता है
वे सभी काम जिसमें एक स्थान पर रह कर काम किया जाए किंतु काम के सिलसिले में बाहर आना जाना भी आवश्यक है। जैमिनी में द्विस्वभाव राशि को सर्वोत्तम माना गया है। ऐसा जातक बुद्धिमान होता है। उदाहरण: सतीश कुमार, 04.02.1963, 23.15, सुनाम इसमें चर व द्विस्वभाव राशियों में सबसे अधिक ग्रह है तथा बराबर संख्या में है। इसलिए जातक दोनों राशियों के अनुसार काम कर रहा है। इस जातक ने पहले करियाने का काम किया फिर ड्राय फ्रुटस का। अब चावल का ट्रेडिंग का काम है इनको काम के सिलसिले में बाहर आना जाना पड़ता है।
व्यवसाय चयन में राशि का स्वरूप जानने के बाद राशि तत्व का विचार करें। आजीविका चयन में राशि तत्व विचार सबसे पहले सबसे प्रबल ग्रह (षडवर्ग बली या आत्मकारक ग्रह) को जाने, वह किस राशि में है तथा वो राशि कौन से तत्व से संबंधित है। बली ग्रह किस तत्व में है। लग्न में कौन से तत्व की राशि है। दशम भाव में किस तत्व की राशि है। दशम भाव में कौन से तत्व का ग्रह है। अर्थात बली ग्रह, बली ग्रह की राशि, लग्न व दशम भाव की राशि में किस तत्व की अधिकता है। उसके अनुसार आजीविकका का विचार करें।
अग्नि तत्व: सूर्य, मंगल तथा 1, 5, 9 राशियां अग्नि तत्व की राशियां है ऐसा जातक मानसिक शक्तियों पर आधारित कार्य करते हैं। अग्नि तत्व जातक महत्वाकांक्षी तथा प्रगतिशील विचारों के होते हैं। किसी अन्य की अधीनता स्वीकार नहीं करते तथा स्वावलंबी होते हैं।
भूमि तत्व: बुध, ग्रह तथा 2, 6, 10 राशियां भूमि तत्व हैं। ऐसे व्यक्ति धैर्यवान तथा शारीरिक परिश्रम द्वारा साध्य कार्य से धन पाते हैं।
वायु तत्व: शनि ग्रह तथा 3, 7, 11 राशियां वायु तत्व हैं। ऐसे व्यक्ति बुद्धिमान, लेखक, विचारक अथवा वैज्ञानिक शोधकर्ता होते हैं। वायु तत्व राशि अंतरिक्ष संबंधी कार्यों में सफलता देती है।
जल तत्व: चंद्र तथा शुक्र ग्रह तथा 4,8,12 राशियां जल तत्व प्रधान हैं जल तत्व प्रधान राशि वाला व्यक्ति अस्थिर व्यवसाय या मौसम पर आधारित अस्थिर व्यवसाय अथवा जल संबंधी कार्यों से आजीविका पाते हैं।
आकाश तत्व: (गुरु ग्रह, राशि कोई भी नहीं) श्रवण शक्ति, यज्ञ तथा धार्मिक अनुष्ठान व परलोक संबंधित कार्यों में सफलता देता है। गुरु व गुरु की राशि परामर्श सेवा विद्या धन न्यापालिका के कार्य तथा प्रबंध व्यवसाय के कार्यों से धन देता है।
नौकरी या व्यवसाय: राशि तथा तत्व विचार के बाद यह देखना चाहिए कि व्यक्ति नौकरी करेगा या व्यवसाय। नौकरी का योग यदि षष्ठ भाव सप्तम से बली हो तो नौकरी की संभावना होती है। लग्न, लग्नेश, नवम भाव नवमेश, दशम भाव, दशमेश, एकादश भाव या एकादशेश किसी भी पापी ग्रह से अधिक-अधिक प्रभावित हो तो नौकरी की संभावना होती है। केंद्र या त्रिकोण में कोई भी शुभ ग्रह न हो। यदि जातक की 20 से 40 वर्ष की आयु के दौरान निर्बल योगकारक ग्रह तृतीयेश, षष्ठेश या एकादशेश से प्रभावित हो तो नौकरी की संभावना होती है।
जन्म कुंडली में अधिक संख्या ग्रह पृथ्वी तत्व व जल तत्व राशियों में हो तो नौकरी की संभावना है। आत्मकारक ग्रह के नवांश पर (नवांश कुंडली में) अगर सूर्य व शुक्र की दृष्टि हो तो जातक को सरकारी नौकरी से लाभ मिलता है। कारकांश (आत्मकारक ग्रह के नवांश) से जन्म कुंडली के दशम भाव पर सूर्य और मंगल की दृष्टि सरकारी नौकरी प्रदान करती है। दशम भाव में सूर्य मंगल अथवा शनि में से कोई दो ग्रह स्थित हों व दशम भाव पर शुभ ग्रह की दृष्टि युति का अभाव हो तो जातक नौकरी करता है
पाप ग्रह की दृष्टि युति राज कर्मचारी बनाती है। नवांश कुंडली में शुक्र मीनस्थ होकर शनि से युक्त या दृष्ट हो तथा द्वादश भाव में सूर्य या चंद्र स्थित हो तो जातक वेतन भोगी कर्मचारी होता है। दशम भाव में पाप ग्रह की युति या दृष्टि तथा शुभ ग्रहों की दृष्टि-युति का अभाव निश्चय ही अधीनस्थ कर्मचारी बनाता है। लग्न या चतुर्थ भाव में स्थित गुरु राजसेवा से जीविका दिया करता है। दशमेश व लग्नेश की युति (किसी भी भाव में) हो तो जीविका क्षेत्र में जातक परिश्रम व निज के प्रयासों से उन्नति करता है।
व्यवसाय के योग कुंडली में एक या दो राजयोग हो और जातक की 20 से 40 वर्ष की आयु के बीच उस योग से संबंधित किसी ग्रह की दशा प्रभावी हो तो वह उच्च स्तरीय व्यापार करता है। जन्म कुंडली में अधिक संख्या ग्रह अग्नि तत्व व वायु तत्व राशियों में विद्यमान हो तो व्यापार की प्रबल संभावना होती है।
नवम और दशम तथा द्वितीय और एकादश भावों के बीच संबंध हो तो जातक व्यापार में सफल होता है। द्वितीय, पंचम, सप्तम, दशम या एकादश भाव को उसका स्वामी ग्रह देखे या दो केंद्रेशों और दो त्रिकोणेशों का संबंध केंद्र या त्रिकोण में हो या ग्रह कहीं भी उच्च या स्वराशि के हों अथवा सूर्य या गुरु केंद्र या त्रिकोण में हो तो जातक व्यापार में सफल होता है।
जातक का जन्म दिन में हो तथा चंद्र लग्न या दशम भाव पर पाराशरीय योगकारी ग्रह या उच्चस्थ या स्वराशिस्थ ग्रह की दृष्टि या उससे संबंध हो तो जातक व्यापारी होता है। यदि चंद्र कुंडली में गुरु तृतीय भाव में तथा शुक्र लाभ स्थान में है तो जातक स्वतंत्र व्यवसायी होता है। यदि सप्तमेश धन भाव में तथा बुध वाणिज्य का कारक सप्तम भाव में हो तो जातक व्यापारी होता है। वाणिज्य कारक बुध की युति सप्तम भाव में धनेश के साथ हो तो जातक व्यापारी होता है। उपरलिखित योग से स्पष्ट ज्ञात है कि वाणिज्य के लिए सप्तम भाव तथा द्वितीय भाव का संबंध बुध से जोड़ा गया है। बुध $ शुक्र, द्वितीय या सप्तम भाव में शुभ ग्रहों के साथ हों या शुभ ग्रहों से दृष्ट हों तो जातक व्यापारी होता है।
उच्चस्थ बुध पर धनेश की दृष्टि व्यापार में सफलता देती है। गुरु की द्वितीयेश पर दृष्टि होने से जातक व्यापारी होता है। दशमस्थ बुध जातक को व्यापारी बनाता है। दशम भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि व्यापार से धन लाभ कराती है। आत्मकारक ग्रह से आजीविका विचार एवं युति फल आत्मकारक ग्रह का आजीविका निर्णय में विशेष महत्व है। जैमिनी मत में जन्म लग्न से भी अधिक महत्व आत्मकारक ग्रह को प्राप्त है। कुंडली में सबसे अधिक अंश व कला वाला ग्रह आत्मकारक ग्रह कहलाता है। आत्मकारक ग्रह यकद शुभ राशि के नवांश में हो तो मनुष्य सुखी, धनी एवं उच्च पदाधिकारी होता है। यदि पाप ग्रहों के नवांश में हो तो मनुष्य छोटे एवं नीच कर्म करने वाला होता है। आत्मकारक ग्रह किस ग्रह के नवांश में है तथा कारकांश कुंडली में किन ग्रहों का प्रभाव है। इन सबसे व्यक्ति की आजीविका या वृति का पता चलता है। आत्मकारक ग्रह जानने के बाद देखें कि यह ग्रह कौन से नवांश में है।
आत्मकारक ग्रह के विभिन्न नवांश में स्थित होने से निम्न फल मिलते हैं।
1. मेष नवांश फल: यदि आत्मकारक ग्रह मंगल के या मेष या वृश्चिक नवांश में हो तो जातक डाॅक्टर, न्यायिक, वृत्ति, सेना, पुलिस या ऐसा कार्य जिसमें साहस की आवश्यकता पड़ती है। यदि आत्म कारक ग्रह मंगल हो तो भी यही फल मिलता है। हमने कई डाक्टरों की कुंडली में मंगल को ही आत्मकारक ग्रह पाया है। यदि मंगल का संबंध चंद्र या सूर्य से है तो जातक सरकारी अस्पताल में डाॅक्टर होता है या निज का नर्सिंग होम या वहां पर नौकरी करता है।
2. वृष नवांश फल: प्रायः ऐसा व्यक्ति व्यापार द्वारा धन कमाता है। यही फल तुला नवांश का भी है। वृष नवांश में आत्मकारक ग्रह होने पर जातक बस, कार, ट्रांसपोर्ट, पशुओं आदि का व्यापार करता है। यहीं फल शुरू के आत्मकारक ग्रह होने पर पाया जाता है। कई व्यापारियों की कुंडली में बुध या शुक्र ही आत्मकारक ग्रह होता है।
3. मिथुन नवांश फल: यदि आत्मकारक ग्रह मिथुन नवांश में हो तो व्यक्ति ऐसे कार्य करता है जिसमें बुद्धि का प्रयोग किया जाए। इस वर्ग में व्यापारी भी आते हैं। कई चार्टेड अकाउंटेंट, इंजीनियर तथा बड़े व्यापारियों की कुंडलियों में बुध आत्मकारक ग्रह होता है। आत्मकारक ग्रह मिथुन नवांश में होने से व्यक्ति विद्वान होते हैं।
4. कर्क नवांश फल: आत्मकारक ग्रह कर्क राशि में हो तो जातक का सरकारी नौकरी या सरकार से कोई न कोई संबंध अवश्य होता है। कई व्यापारियों की कुंडलियों में भी आत्मकारक ग्रह कर्क नवांश में पाया गया है। ऐसे व्यक्ति को जल से भय होता है।
5. सिंह नवांश फल: यदि आत्मकारक ग्रह सिंह नवांश में हो या आत्मकारक ग्रह के साथ सूर्य हो तो जातक सरकारी सेवा में या सरकार में होते हैं। प्रायः ऐसे व्यक्ति उच्च पद प्राप्त करते हैं। बैंक, पब्लिक सेक्टर आदि में कार्य करते हैं। यदि निज कंपनियों में कार्य करते हैं तो बहुत बड़ी-बड़ी कंपनियों में कार्यरत होते हैं।
6. कन्या नवांश फल: यदि आत्मकारक ग्रह कन्या नवांश में हो तो मिथुन नवांश के समान ही फल मिलते हैं। यह नवांश विद्वानों की कुंडली में पाया जाता है। ऐसे व्यक्तियों को खुजली, शरीर का मोटापा एवं अग्नि कण से भय आदि फल मिलते हैं।
7. तुला नवांश फल: आत्मकारक ग्रह तुला के नवांश में होने पर व्यक्ति व्यापार करने वाला होता है।
8. वृश्चिक नवांश फल: आत्मकारक ग्रह वृश्चिक नवांश में होने पर मेष नवांश के समान ही फल मिलते हैं। ऐसे व्यक्तियों को पानी व सांप आदि से भय होता है।
9. धनु नवांश फल: आत्मकारक ग्रह धनु नवांश में होने पर व्यक्ति उच्च पद प्राप्त करते हैं। ऐसे व्यक्ति विद्वान, धनी होते हैं। ऐसे व्यक्ति समाज में सम्मानित तथा धनी होते हैं।
10. मकर नवांश फल: आत्मकारक ग्रह के मकर नवांश में होने से व्यक्ति या तो छोटी मोटी नौकरी करते हैं या फिर व्यापारी होते हैं। पानी से प्राप्त वस्तुओं का व्यापार या एक्सपोर्ट का व्यापार, नया व्यापार या ठेकेदारी, पत्थर, सीमेंट, लोहे खनिज, आदि से जुड़े व्यवसाय फैक्ट्री में कार्यरत या उद्योग से जुड़े व्यापार में कार्यरत होते हैं। कई सिविल इंजीनियर, आर्टिटेक्ट भी इस नवांश में पाये गये हैं। यही फल शनि के आत्मकारक ग्रह होने पर देखा गया है।
11. कुंभ नवांश फल: यदि आत्मकारक ग्रह कुंभ के नवांश में हो तो मनुष्य धार्मिक स्वभाव वाला तथा जनसुविधाओं की वस्तुओं का निर्माण करने वाला होता है। इसमें भी प्रायः मकर नवांश के समान ही फल मिलते हैं।
12. मीन नवांश फल: मीन के नवांश में होने से मनुष्य नितांत आस्तिक, धार्मिक व मोक्ष पाने वाला होता है। इसमें धुन नवांश के समान ही फल मिलते हैं। आत्मकारक ग्रह से युति फल सूर्य युति फल: ऐसा व्यक्ति सरकार से संबंध रखता है। कई मंत्रियों की कुंडली में यह देखा जा सकता है। ऐसे व्यक्ति की वृत्ति का संबंध जनता से अवश्य होता है। चंद्र युति फल: ऐसे व्यक्ति धनी व सुखी देखे गए हैं।
उनको सरकार से लाभ मिलता है। शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति भी इसी श्रेणी में पाए गए हैं। मंगल युति फल: प्रायः ऐसे व्यक्ति वह कार्य करते हैं, यहां पर साहस की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे व्यवसाय जहां पर आग, चीरफाड़, शस्त्र आदि का संबंध है। डाॅक्टर, ट्रेन, इंजन के ड्राईवर या होटलों के रसोइये भी इसी श्रेणी में आते हैं। बुध युति फल: ऐसे व्यक्ति व्यापार द्वारा या फिर कला के द्वारा शिक्षा के क्षेत्र से या फिर अपनी बुद्धि द्वारा धन कमाते हैं। बुध यदि आत्मकारक ग्रह हो तो वह उच्च पद पाता है। कई आई.ए.एस., इंजीनियर, डाॅक्टर या व्यापारी, इनकी कुंडलियों में प्रायः बुध ही आत्मकारक ग्रह होता है।
गुरु युति फल: ऐसे व्यक्ति धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं। इन्हें वेद शास्त्रों का ज्ञान होता है। कई वकील, जज, प्रोफेसर आदि की कुंडली में यह देखा गया है। यदि गुरु के साथ युति होती है तो व्यक्ति उच्च पद पाता है। विद्या द्वारा या फाइनेंस द्वारा धन कमाते हैं। कई बैंक एवं चार्टेड अकाउटेंट की कुंडली में यह देखा गया है। शुक्र युति फल: ऐसे व्यक्ति बड़े अफसर, कलाकार या राजनीतिज्ञ होते हैं। इन व्यक्तियों का महिलाओं से संबंध होता है। शनि युति फल: ऐसे व्यक्ति अपने क्षेत्र में उच्च स्थान अवश्य पाते हैं। ऐसे व्यक्ति यदि व्यापारी होते हैं तो बहुत बड़े उद्योगपति होते हैं, यदि लेखक होते हैं तो बहुत प्रसिद्ध लेखक होते हैं।
कई वैज्ञानिक भी इसी श्रेणी में देखे गए हैं। राहु केतु युति फल: यह व्यक्ति प्रायः व्यापार करते पाए गए हैं, ऐसे व्यक्ति बुरे कामों द्वारा धन कमाते हैं। झूठ बोलकर या चोरी द्वारा भी धन कमाते देखा गया है। प्रायः रसायन, जहरीले पदार्थों, एंटीबायटिक्स या धातुओं से इनका संबंध होता है। कारकांश कुंडली का दशम भाव व व्यवसाय कारकांश लग्न में दशम भाव में बुध स्थित हो या बुध की दृष्टि हो तो व्यक्ति अपने व्यवसाय में बहुत प्रसिद्धि पाता है।
कारकांश लग्न से दसवें भाव को यदि बुध के अतिरिक्त शुभ ग्रह देखते हों तो मनुष्य स्थिर बुद्धि वाला, दृढ़ निश्चियी व जमकर व्यवसाय करने वाला होता है। यदि कारकांश लग्न से दसवें भाव को अशुभ ग्रह देखते हों तो मनुष्य अस्थिर मति वाला होता है।
कारकांश लग्न से दशम भाव में यदि सूर्य स्थित हो तथा उसे अकेला बृहस्पति देखता हो तो मनुष्य गाय, भैंस आदि दुधारू जानवरों का व्यवसाय करने वाला होता है। कारकांश कुंडली में लग्न पर अर्थात् आत्मकारक पर सूर्य व शुक्र की दृष्टि हो तो मनुष्य सरकारी सेवा में होता है। यदि कारकांश लग्न में अथवा उससे पंचम स्थान में चंद्र व बृहस्पति स्थित हो तो मनुष्य ग्रंथों की रचना करता है।