जातक की जन्मपत्री में गुरु का बलवान होना ही उस व्यक्ति की सफलता का बहुत बड़ा कारण होता है। गुरु की कृपा से व्यक्ति को बुद्धि, विवेक, आरोग्यता, धन, संतान और विद्या मिलते हंै। बृहस्पति के बलवान होने पर व्यक्ति धर्म प्रचारक, पुजारी, शिक्षक और सबका भला करने वाला होता है। गुरु लग्न में बैठा हो, तो बली होता है। वह चंद्रमा के साथ बैठा हो, तो चेष्टाबली होता है। चंद्रमा से केंद्र में गुरु स्थित हो, तो गज केसरी योग बनता है, जिससे व्यक्ति बलवान, धनी, दीर्घजीवी, प्रतिष्ठित, बुद्धिमान बनने तथा लक्ष्य प्राप्त करने में सफल होता है। लग्न से केंद्र, या त्रिकोण में होने से व्यक्ति की रुचि ज्योतिष शास्त्र की ओर होती है। बिना बुध के बुद्धि नहीं मिलती है और बिना बुद्धि के ज्योतिषी नहीं बन सकते। यदि बुध बलवान हो, तो जातक लेखक, लेखाकार, गणितज्ञ और ज्योतिषी बन सकता है।
केंद्र, या त्रिकोण में बुध हो, तो अच्छे फल मिलते हैं। जैसे ग्रहों के साथ बुध बैठता है, वैसे ही फल देता है। सूर्य के साथ बैठने से बुधादित्य योग बनाता है, जिससे जातक को बुद्धिमान, सब कार्यों में निपुण और सुखी बनाता है। बुध व्यक्ति को मानसिक शक्ति, तर्क शक्ति, कल्पना शक्ति और निर्णय तक पहुंचने की योग्यता देता है। बुध यदि पाप ग्रहों के साथ बैठा हो, तो अशुभ फल देता है। बुध यदि चतुर्थ स्थान पर बैठा हो तो निष्फल होता है। गुरु और बुध के साथ-साथ यदि शनि की भी कृपा दृष्टि हो जाए, तो जातक अवश्य ही ज्योतिषी बनता है। शनि 7 ग्रहों में से सबसे दूर है। यह बहुत लंबा चक्कर काटता है। शनि में व्यापकता है। एक सफल ज्योतिषी में व्यापक दृष्टिकोण होना ही चाहिए।
उसे सभी संभावनाओं पर विचार कर के ही बोलना चाहिए। शनि के बलवान होने पर व्यक्ति का यश दूर-दूर तक फैलता है। शनि अष्टम् भाव का कारक है, जिसे रंध्र स्थान भी कहा जाता है; रंध्र अर्थात् खड्डा। एक ज्योतिषी ही भविष्यरूपी अंधकार को देख सकता है। पराज्ञान को देने वाला शनि ही है। वैज्ञानिक कार्य और शोध कार्य करने के लिए शनि और अष्टम् भाव का बलवान होना आवश्यक है। यदि कोई जातक शोध कार्य करना चाहता है, तो उसकी अष्टमेश, या अष्टम भावस्थ ग्रह की दशा-अंतर्दशा होनी चाहिए। गुरु, बुध और शनि बलवान होने चाहिएं। जब शनि लग्न से केंद्र में स्वराशि, या उच्च राशि में हो, तो शश योग बनाता है, जिसमें जातक नेता, मंत्री, या प्रधानमंत्री भी बन सकता है।
उसकी ख्याति चारों दिशाओं में फैलती है। ज्योतिष का कार्य बुद्धि प्रधान कार्य है। लग्न में शीर्षोदय राशियां होने पर जातक की रुचि बुद्धि प्रधान कार्य की ओर होती है। लग्न से ही जातक के स्वरूप, विवेक, मस्तिष्क, देह और आत्मा का विचार किया जाता है। लग्नेश की स्थिति और बलाबल के अनुसार इस भाव से जातक की जातीय उन्नति और कार्यकुशलता का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। ज्योतिषियों की कुंडलियों का अध्ययन करने पर यह तथ्य सामने आया कि लग्नेश चंद्र, मंगल, या बुध होने पर ज्योतिषी बनने की संभावना बढ़ जाती है।