मुहूर्त विचार
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मुहूर्त विचार  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 12409 | जुलाई 2006

मुहूर्त विचार आचार्य अविनाश सिंह जन्मपत्री पूर्वजन्म के पुण्य आदि कर्म का लेखा-जोखा है जिसे भाग्य कहते हैं। भाग्य बदलना सरल नहीं है परंतु आवश्यक कार्य मुहूर्त की सहायता से करने पर उत्तम फल प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न: मुहूर्त किसे कहते हैं?

उत्तर: किसी भी कार्य सिद्धि के लिए विशेष निर्धारित शुभ काल मुहूर्त कहलाता है।

प्रश्न: मुहूर्त का आधार क्या है?

उत्तर: मुहूर्त का आधार पंचांग है। पंचांग अर्थात वार, तिथि, नक्षत्र, योग एवं करण। मुहूर्त किसी विशेष वार, तिथि, नक्षत्र, योग एवं करण के आधार पर ही निर्धारित किया जाता है। यदि इन पांचों में से कोई भी अंग अशुभ है तो मुहूर्त नहीं बन पाता। इन पांचों अंगों का एक साथ शुभ होना किसी भी कार्यसिद्धि के लिए शुभ काल माना जाता है जो शुभ मुहूर्त कहलाता है।

प्रश्न: मुहूर्त क्यों आवश्यक है?

उत्तर: मुहूर्त इसलिए आवश्यक हो जाता है ताकि जो कार्य जिस उद्देश्य से किया जा रहा है उसमें सफलता प्राप्त हो। जिस प्रकार जन्मकुंडली जातक के भविष्य को दर्शाती है उसी प्रकार शुभ मुहूर्त की कुंडली किए गए कार्य के भविष्य को बतलाती है।

प्रश्न: क्या इन पांचों के श्ुाद्ध होने से मुहूर्त शुभ होता है या इनके अति¬रिक्त किन्हीं कारणों से भी मुहूर्त में अशुभता आती है?

उत्तर: इन पांचों के अतिरिक्त कई अन्य कारण भी होते हैं जिन के कारण मुहूर्त में अशुद्धि आ जाती है, भले ही इन पांच अंगों से मुहूर्त बन रहा हो जैसे लग्न शुद्धि, ग्रह स्थिति आदि।

प्रश्न: ऐसे कौन से कारण हैं जो सभी मुहूर्तों में अशुभ माने जाते हैं और त्याज्य हैं? कुछ विस्तार से बताएं।

उत्तर: निम्न कारण लगभग सभी मुहूर्तों में अशुभ माने जाते हैं। 

1. अधिक मास, क्षय मास, ज्येष्ठ मास: जो जातक माता-पिता की ज्येष्ठ संतान हो उसका कोई भी मंगल कार्य ज्येष्ठ मास में नहीं करना चाहिए। 

2. गुरु, शुक्र का अस्त होना, श्राद्ध पक्ष, सिंह राशि स्थित गुरु: आम तौर से सिंह राशि स्थित गुरु के पूर्णकाल को मंगल कार्यों में वर्जित माना गया है। 

3. मकर राशि स्थित गुरु: मकर राशि में गुरु नीच राशि स्थित होता है। इसके पूर्ण काल को भी शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना गया है। खास तौर पर जब गुरु अपने नीचांश में स्थित हो। 

4. वक्र गुरु: जितने समय गुरु वक्री गोचर करता है, शास्त्रों द्वारा मंगल कार्यों में वर्जित कहा गया है। 

5. होलाष्टक: विवाहादि मंगल कार्यों के लिए कुछ प्रदेशों में त्याज्य माना गया है। 

6. भद्रा (विष्टी करण): भद्रा काल में सभी मंगल कार्य वर्जित हैं।

दग्धा तिथि: मेषादि राशियों में सूर्य के साथ दोनों पक्षों की तिथियां क्रमशः 6, 4, 8, 6, 10, 8, 12, 10, 2, 12, 4 औ र2 दग्धा कहलाती है ं।इन तिथियो ंमें मंगल कार्य वर्जित हैं। 

1. रिक्ता तिथियां: दोनों पक्षों की 4, 9, 14 तिथियां रिक्ता मानी जाती हैं। इनमें भी मंगल कार्य वर्जित हंै। 

2. अमावस्या: अमावस्या में चंद्र के अदर्शन के कारण सभी मंगलकृत्य वर्जित हैं। 

3. गंडांत: गंडांत तीन प्रकार का होता है।

1. तिथि गंडांत

2. नक्षत्र गंडांत

3. लग्न गंडांत - इन में भी विवाहादि शुभ कार्य वर्जित हैं। 

4 कुलिक, कालबेला, यमघंट, कंटकः ये चारों कुयोग, जिन्हें मुह¬ूर्तकारों ने मुहूर्त भी कहा है दिनमान क े षोडशां शा े ंसे बनत े हैं । भिन्न-भिन्न वारों में इनका काल भिन्न होता है। इन चारों कुयोगों को मंगल कार्यों में वर्जित माना गया है। 

5. राहु काल: प्रत्येक दिन सूर्य उदय से सूर्यास्त तक लगभग 1 घंटा 30 मिनट की अवधि को राहु काल माना गया है। यह रविवार से शनिवार तक क्रमशः इस प्रकार है: 17.00 से 18.30, 8.00 से 9.30 , 15.30 से 17.00, 12.30 से 14.00, 14.00 से 15.30, 11.00 से 12.30 और 9.30 से 11.00 तक। इस में भी सभी प्रकार के मंगल कार्य वर्जित हैं।

प्रश्न: यदि मुहूर्त का विचार किए बिना किसी मंगल कार्य को किया जाए तो क्या हानि हो सकती है?

उत्तर: जिस कार्यसिद्धि के लिए मंगलकार्य किया गया वह कार्य नहीं बन पाता। यदि बन भी जाए तो भविष्य में उसके परिणाम विपरीत मिलते हैं। जैसे आप किसी कार्य के लिए यात्रा पर जाना चाहते हैं और यात्रा मुहूर्त का विचार किए बिना चल दिए तो आपका कार्य नहीं होगा। हो सकता है कि जिस वाहन से आप यात्रा कर रहे हों वह वाहन रास्ते में खराब हो जाए और आप समय पर न पहुंच पाएं और यदि समय पर पहुंच भी गए तो आप को निराशा ही हाथ लगेगी। किसी भी प्रकार से आप को असफलता ही प्राप्त होती है।

प्रश्न: क्या मुहूर्त द्वारा आने वाले संकट को टाला जा सकता है?

उत्तर: यदि किसी ज्योतिषाचार्य ने किसी आने वाले संकट के बारे में चेतावनी दी है तो किसी शुभ मुहूर्त में उस संकट का उपाय करने पर आने वाला संकट टल जाता है।

प्रश्न: मुहूर्त कितने प्रकार के होते हैं?

उत्तर: हर शुभ कार्य के लिए मुहूर्त निकाला जाता है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में आवश्यक कुछ मुहूर्त इस प्रकार हैं ंः गर्भाधान मुहूर्त, जातक कर्म मुहूर्त, नामकरण, मुंडन, विद्यारंभ, उपनयन, विवाह, यात्रा, गृह प्रवेश, गृहारम्भ, देवप्रतिष्ठा, विपणन मुहूर्त आदि।

प्रश्न: विवाह मुहूर्त निकालते समय किन बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए?

उत्तर: विवाह मुहूर्त निकालने से पहले कुंडली का मिलान आवश्यक है। वर-वधू की राशि-नक्षत्र अनुसार जो दिन दोनों के लिए शुभ हो अर्थात वार, तिथि, नक्षत्र, योग, करण शुभ होने पर मुहूर्त शुभ होता है। उसके उपरांत लग्न शुद्धि कर लग्न का समय निश्चित करना चाहिए। किसी प्रकार का अन्य दोष नहीं रहना चाहिए।

प्रश्न: लग्न शुद्धि कैसे करनी चाहिए?

उत्तर: विवाह के समय लग्न की शुद्धि निकालने के लिए लग्नकालिक ग्रहों की भिन्न-भिन्न भावों मे स्थिति की निर्दोषता का विचार इस प्रकार करें: 

1. विवाह लग्न में चंद्र और पाप ग्रह वर्जित हैं। 

2. द्वितीय भाव में कोई भी ग्रह वर्जित नहीं है। 

3. तृतीय भाव में ग्रह की स्थिति आम तौर पर दोषकारक मानी जाती है। 

4. चैथे भाव में राहु की स्थिति दोषकारक है। 

5. पंचम भाव में कोई भी ग्रह वर्जित नहीं है। 

6. षष्ठ भाव में चंद्रमा, शुक्र और लग्नेश वर्जित हैं।

चंद्रमा यदि नीच राशि या नीचांश में हो तो इसका यहां दोष नहीं माना जाता। इसी प्रकार नीचस्थ और शत्रु राशिस्थ शुक्र का भी यहां दोष समाप्त हो जाता है। सप्तम भाव में गुरु और चंद्र को छोड़कर शेष सभी ग्रह वर्जित हैं। अष्टम भाव में चंद्र, मंगल, लग्नेश और सभी शुभ ग्रह वर्जित हैं। नीचस्थ या नीच-अंशस्थ चंद्रमा, शुक्र, मंगल की इस भाव में स्थिति से दोष समाप्त हो जाता है। नवम भाव में कोई भी ग्रह वर्जित नहीं है। दशम भाव में मंगल का दोष सामान्य माना जाता है। ग्यारहवें भाव में कोई भी ग्रह वर्जित नहीं है। बारहवें भाव में शनि का दोष सामान्य है।

गोधूलि लग्न: सूर्यास्त से लगभग आधा घड़ी पहले और आधा घड़ी बाद का समय गोधूलि काल कहलाता है। गोधूलि लग्न का शोधन करते समय केवल इतना ध्यान रहे कि गोधूलि लग्न से छठे और अष्टम भाव में चंद्रमा न हो। इस प्रकार विवाह के समय लग्न शुद्धि देखकर शुद्ध लग्न में विवाह किया जाता है।

प्रश्न: यात्रा काल दोषमुक्त हो इसके लिए यात्रा मुहूर्त में किन बातों पर विशेष ध्यान/बल देना चाहिए?

उत्तर: मुहूर्तकारों ने यात्रा काल को दोषमुक्त रखने के लिए यात्रा मुहूर्त निकालते समय निम्न बातों पर विशेष बल दिया है: अयन: सूर्य-चंद्र के अयनों के आधार पर भी यात्रा की शुभाशुभता का निर्णय किया जाता है। सूर्य और चंद्र दोनांे कंटकः ये चारों कुयोग, जिन्हें मुह¬ूर्तकारों ने मुहूर्त भी कहा है दिनमान क े षोडशां शा े ंसे बनत े हैं ।भिन्न-भिन्न वारों में इनका काल भिन्न होता है। इन चारों कुयोगों को मंगल कार्यों में वर्जित माना गया है। Û. राहु काल: प्रत्येक दिन सूर्य उदय से सूर्यास्त तक लगभग 1 घंटा 30 मिनट की अवधि को राहु काल माना गया है। यह रविवार से शनिवार तक क्रमशः इस प्रकार है: 17.00 से 18.30, 8.00 से 9.30 , 15.30 से 17.00, 12.30 से 14.00, 14.00 से 15.30, 11.00 से 12.30 और 9.30 से 11.00 तक। इस में भी सभी प्रकार के मंगल कार्य वर्जित हैं।

प्रश्न: यदि मुहूर्त का विचार किए बिना किसी मंगल कार्य को किया जाए तो क्या हानि हो सकती है?

उत्तर: जिस कार्यसिद्धि के लिए मंगलकार्य किया गया वह कार्य नहीं बन पाता। यदि बन भी जाए तो भविष्य में उसके परिणाम विपरीत मिलते हैं। जैसे आप किसी कार्य के लिए यात्रा पर जाना चाहते हैं और यात्रा मुहूर्त का विचार किए बिना चल दिए तो आपका कार्य नहीं होगा। हो सकता है कि जिस वाहन से आप यात्रा कर रहे हों वह वाहन रास्ते में खराब हो जाए और आप समय पर न पहुंच पाएं और यदि समय पर पहुंच भी गए तो आप को निराशा ही हाथ लगेगी। किसी भी प्रकार से आप को असफलता ही प्राप्त होती है।

प्रश्न: क्या मुहूर्त द्वारा आने वाले संकट को टाला जा सकता है?

उत्तर: यदि किसी ज्योतिषाचार्य ने किसी आने वाले संकट के बारे में चेतावनी दी है तो किसी शुभ मुहूर्त में उस संकट का उपाय करने पर आने वाला संकट टल जाता है।

प्रश्न: मुहूर्त कितने प्रकार के होते हैं?

उत्तर: हर शुभ कार्य के लिए मुहूर्त निकाला जाता है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में आवश्यक कुछ मुहूर्त इस प्रकार हैं ंः गर्भाधान मुहूर्त, जातक कर्म मुहूर्त, नामकरण, मुंडन, विद्यारंभ, उपनयन, विवाह, यात्रा, गृह प्रवेश, गृहारम्भ, देवप्रतिष्ठा, विपणन मुहूर्त आदि।

प्रश्न: विवाह मुहूर्त निकालते समय किन बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए?

उत्तर: विवाह मुहूर्त निकालने से पहले कुंडली का मिलान आवश्यक है। वर-वधू की राशि-नक्षत्र अनुसार जो दिन दोनों के लिए शुभ हो अर्थात वार, तिथि, नक्षत्र, योग, करण शुभ होने पर मुहूर्त शुभ होता है। उसके उपरांत लग्न शुद्धि कर लग्न का समय निश्चित करना चाहिए। किसी प्रकार का अन्य दोष नहीं रहना चाहिए।

प्रश्न: लग्न शुद्धि कैसे करनी चाहिए?

उत्तर: विवाह के समय लग्न की शुद्धि निकालने के लिए लग्नकालिक ग्रहों की भिन्न-भिन्न भावों मे स्थिति की निर्दोषता का विचार इस प्रकार करें: 

1. विवाह लग्न में चंद्र और पाप ग्रह वर्जित हैं। 

2. द्वितीय भाव में कोई भी ग्रह वर्जित नहीं है। 

3. तृतीय भाव में ग्रह की स्थिति आम तौर पर दोषकारक मानी जाती है। 

4. चैथे भाव में राहु की स्थिति दोषकारक है। 

5. पंचम भाव में कोई भी ग्रह वर्जित नहीं है। 

6. षष्ठ भाव में चंद्रमा, शुक्र और लग्नेश वर्जित हैं। चंद्रमा यदि नीच राशि या नीचांश में हो तो इसका यहां दोष नहीं माना जाता। इसी प्रकार नीचस्थ और शत्रु राशिस्थ शुक्र का भी यहां दोष समाप्त हो जाता है। 

7. सप्तम भाव में गुरु और चंद्र को छोड़कर शेष सभी ग्रह वर्जित हैं। 

8. अष्टम भाव में चंद्र, मंगल, लग्नेश और सभी शुभ ग्रह वर्जित हैं। नीचस्थ या नीच-अंशस्थ चंद्रमा, शुक्र, मंगल की इस भाव में स्थिति से दोष समाप्त हो जाता है। 

9. नवम भाव में कोई भी ग्रह वर्जित नहीं है। 

10. दशम भाव में मंगल का दोष सामान्य माना जाता है। 

11. ग्यारहवें भाव में कोई भी ग्रह वर्जित नहीं है। 

12. बारहवें भाव में शनि का दोष सामान्य है।

गोधूलि लग्न: सूर्यास्त से लगभग आधा घड़ी पहले और आधा घड़ी बाद का समय गोधूलि काल कहलाता है। गोधूलि लग्न का शोधन करते समय केवल इतना ध्यान रहे कि गोधूलि लग्न से छठे और अष्टम भाव में चंद्रमा न हो। इस प्रकार विवाह के समय लग्न शुद्धि देखकर शुद्ध लग्न में विवाह किया जाता है।

प्रश्न: यात्रा काल दोषमुक्त हो इसके लिए यात्रा मुहूर्त में किन बातों पर विशेष ध्यान/बल देना चाहिए?

उत्तर: मुहूर्तकारों ने यात्रा काल को दोषमुक्त रखने के लिए यात्रा मुहूर्त निकालते समय निम्न बातों पर विशेष बल दिया है:

अयन: सूर्य-चंद्र के अयनों के आधार पर भी यात्रा की शुभाशुभता का निर्णय किया जाता है। सूर्य और चंद्र दोनांे उत्तरा भाद्रपद. और रेवती। पूर्व द्व ार गृह के लिए रोहिणी, मृगशिरा, दक्षिण द्वार के लिए उत्तरा फाल्गुनी, चित्रा; पश्चिम द्वार के लिए अनुराधा, उत्तराषाढ और उत्तर द्वार के लिए उत्तरा भाद्रपद और रेवती नक्षत्र शुभ हैं।

कलश चक्र शुद्धि: कलश के अनुसार शुद्ध नक्षत्रों में भी गृह प्रवेश करना चाहिए। सूर्य नक्षत्र से पांच अशुभ, तदनन्तर आठ नक्षत्र शुभ, तदनन्तर आठ नक्षत्र अशुभ और तदनंतर छः नक्षत्र कलश चक्र में शुभ माने गए हैं। कलश चक्र के अनुसार अशुभ नक्षत्रों में चंद्र की स्थिति गृह प्रवेश के समय वर्जित है।

लग्न शुद्धि: जन्म राशि या जन्म लग्न से 3, 6, 10, 11 वें स्थिर लग्न में गृह प्रवेश करना चाहिए। प्रवेश के समय 1, 2, 3, 4, 5, 7, 9, 10, 11 वंे भाव में शुभ ग्रह, 3, 6, 11 वें भाव में पाप ग्रह हों और चतुर्थ तथा अष्टम भाव शुद्ध होने चाहिए।

गृह प्रवेश के समय वाम सूर्य: प्रवेश कालीन लग्न से सूर्य यदि 8, 9, 10, 11, 12 स्थानों में हो तो पूर्वद्वार वाले घर में, 5, 6, 7, 8, 9 स्थानों में हो तो दक्षिण द्वार वाले घर में, 2, 3, 4, 5, 6 स्थानों में हो तो पश्चिम द्व ार वाले घर में और 11, 12, 1, 2, 3 स्थानों में हो तो उत्तर द्वार वाले घर में प्रवेश के समय सूर्य वामस्थ होता है। वामस्थ सूर्य के समय गृह प्रवेश शुभ माना जाता है।

प्रश्न: यदि कोई मुहूर्त न बन रहा हो और कार्य करना जरूरी हो तो किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

उत्तर: यदि ऐसी परिस्थिति आ जाए तो कार्य करने के लिए शुभ वार व नक्षत्र का चयन कर लग्न शुद्धि कर लें। इस प्रकार शुभ मुहूर्त का अधिकांश फल प्राप्त हो जाता है।

प्रश्न: यदि लग्न भी शुद्ध न मिले और मुहूर्त भी न बने तो क्या करना चाहिए?

उत्तर: ऐसे में विवाहादि शुभ कार्य को अभिजित मुहूर्त जो लगभग दोपहर के 12.00 बजे से 40 मिनट पहले रहता है या गोधूलि लग्न अर्थात सूर्य अस्त से आधा घंटा पहले और आधा घंटा बाद तक रहता है, उसमें कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है।

प्रश्न: मुहूर्त में चैघड़िया शब्द बहुत सुनने में आता है। वह क्या है?

उत्तर: दिनमान का 8वां भाग दिन में एक चैघड़िया माना गया है। ठीक इसी प्रकार रात्रि मान का 8 वां भाग रात्रि में एक चैघड़िया होता है। आठ चैघड़िया दिन में और 8 रात में होती हैं। ये आठ चैघड़ियां इस प्रकार हंैं: उद्वेग, चर, लाभ, अमृत, काल, शुभ, रोग, उद्वेग। इन आठ चैघड़ियांे का क्रम दिन और रात्रि में अलग-अलग होता है। प्रतिदिन प्रथम चैघड़िया बदल जाती है और प्रथम एवं अंतिम चैघड़िया एक ही होती है। लाभ, अमृत, शुभ चैघड़िया शुभ मानी जाती हैं। मुहूर्त निकालते समय चैघड़िया का भी ध्यान रख कर लग्न शुद्धि की जाती है।

प्रश्न: मुहूर्त में सर्वार्थ सिद्धि योग आदि योगों को कितना महत्व देना चाहिए?

उत्तर: सर्वार्थ सिद्धि योगादि वार, तिथि और नक्षत्र से बनते हैं। किसी भी मुहूर्त में इनका बहुत महत्व है। यात्रा, गृह प्रवेश अन्य शुभ कार्यों के लिए शीघ्रता या अन्य किसी अपरिहार्य कारण वश यदि व्यतिपात, वैधृति, गुरु-शुक्रास्त, अधिमना एवं वेध आदि का विचार संभव न हो तो सर्वार्थ सिद्धि योगों का आश्रय ले कर मंगल कार्य किया जा सकता है। सर्वार्थ सिद्धि, अमृत सिद्धि, रवि योग, सिद्धि योग इन सभी योगों में शुभ कार्य किए जा सकते हैं।

प्रश्न: आधुनिक युग में विविध नये व्यवसाय या गए हैं। उनका मुहूर्त कैसे जानें?

उत्तर: नई सभ्यता-संस्कृति और वैज्ञानिक युग ने हमें अनेक नवीन व्यवसाय दिए हैं। इनको प्रारंभ करने के शुभ मुहूर्त जानने के लिए लग्न कुंडली के तत्संबद्ध भाव एवं भाव स्वामी के बलाबल को दृष्टि में रखते हुए व्यवसाय के मुहूर्त काल का निर्णय करना चाहिए जैसे - होटल का व्यवसाय आवास से संबद्ध होने से चतुर्थ भाव से और प्रकाशन का व्यवसाय ज्ञान-विद्या से संबद्ध होने से पंचम भाव और पंचमेश से संबद्ध है। इन दोनों व्यवसायों के शुभारंभ के मुहूर्त जानने के लिए लग्न से क्रमशः चतुर्थ, पंचम भाव और चतुर्थेश, पंचमेश के बल को ध्यान में रखना चाहिए।

प्रश्न: अशुभ एवं शुभ मुहूर्त में क्या अंतर है?

उत्तर: शुभ कार्य के लिए शुभ मुहूर्त और अशुभ कार्य के लिए अशुभ मुहूर्त देखा जाता है। अशुभ कार्य अर्थात वह कार्य जिस से किसी को हानि पहुंचती हो अशुभ कहलाता है। ऐसे कार्य के लिए अशुभ मुहूर्त देखा जाता है। ऐसे में क्रूर ग्रहों के नक्षत्र में या लग्न में कार्य करना चाहिए।

प्रश्न: मुहूर्त विचार के लिए कौन सी पुस्तक सर्वश्रेष्ठ है।

उत्तर: मुहूर्त चिंतामणि मुहूर्त विचार के लिए सर्वश्रेष्ठ पुस्तक है।

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