प्रथम भाव में राहु व्यक्ति को दूसरों के भीतर झांककर उनकी सही पहचान पाने की दृष्टि देता है। वह कष्टदायक, आलसी, बुद्धिहीन, स्वार्थी, अधार्मिक, बातूनी, साहसी तथा विपरीत लिंग वालों से लाभ प्राप्त करने वाला होता है। वैवाहिक सुख से वंचित, पारिवारिक तनाव, चिन्ताग्रस्त, संतप्त व कामुक हो सकता है। उच्च का राहु बुद्धि और उन्नति प्रदान करता है। आयु का पांचवां वर्ष स्वास्थ्य के लिए विशेष कष्टकर होता है। द्वितीय भाव द्वितीय भाव में राहु जातक को कष्टकारक, धन की हानि तथा पराई संपदा पर कुदृष्टि रखने वाला बनाता है। वह कंजूस, सदा दुखी तथा परिवार के विरोध का भागी होता है। बेईमान, जीविका के लिए भ्रमण करने वाला तथा रूढ़िवादी होता है। उच्च का राहु धनी, प्रसन्न तथा सुखी पारिवारिक जीवन देता है। तृतीय भाव तृतीय भाव में राहु व्यक्ति को शौर्यवान, अनेक शत्रुओं वाला, अपने निकट संबंधियों से सुख में कमी किन्तु आरामदेह और ऐश्वर्यपूर्ण जीवन देता है। शासन से सम्मानित, बलवान, भव्य तथा जीवन में उच्च पद का भागी होता है। नीच का राहु, दरिद्रता, कान के रोग तथा जीवन में पराजय का कारक होता है।