कैलाश-मानसरोवर: विराट आनंद से साक्षात चित्रा फुलोरिया कदेवाधिदेव महादेव! जहां मन आया वहीं रम गए। फिर वह स्थान दुर्गम, कंटीला ही क्यों न हो। ऐसा ही स्थान है उनका मूल निवास कैलाश। श्वेत धवल बर्फ की चादरों से घिरे इस पर्वत पर जाना अत्यंत दुष्कर है- कंटीले रास्ते, दुर्गम घाटियां- किंतु भक्त हैं कि चले ही आते हैं प्रभु के दर्शन को क्योंकि जहां चाह वहां राह। प्रस्तुत है उसी कैलाश और मानसरोवर का चित्र उकेरता आलेख...
देवाधिदेव महादेव! जहां मन आया वहीं रम गए। फिर वह स्थान दुर्गम, कंटीला ही क्यों न हो। ऐसा ही स्थान है उनका मूल निवास कैलाश। श्वेत धवल बर्फ की चादरों से घिरे इस पर्वत पर जाना अत्यंत दुष्कर है- कंटीले रास्ते, दुर्गम घाटियां- किंतु भक्त हैं कि चले ही आते हैं प्रभु के दर्शन को क्योंकि जहां चाह वहां राह। प्रस्तुत है उसी कैलाश और मानसरोवर का चित्र उकेरता आलेख...
इसमें हंसों की बहुतायत है। ये हंस आकार में बतखों से बहुत मिलते हैं। मानसरोवर के आसपास या कैलाश पर कहीं कोई वृक्ष, फूल आदि भी नहीं हैं। एक फुट की घास और सवा फुट की कंटीली झाड़ियां अवश्य दिखाई देती हैं। इसलिए यहां कई लोगों को सांस लेने में परेशानी हो सकती है। इसके लिए आक्सीजन साथ ले जाना आवश्यक है।
कैलाश: मानसरोवर से कैलाश लगभग 20 मील दूर है। कैलाश के दर्शन मानसरोवर पहुंचने से पूर्व ही होने लगते हैं। यदि आसमान में बादल न हों तो कुंगरीविंगरी चो¬टी पर पहुंचते ही भगवान शंकर के दिव्य धाम कैलाश के दर्शन हो जाते हैं। पूरे कैलाश की आकृति एक वि¬राट शिवलिंग जैसी है, जो पर्वतों से बने एक षोडशदल कमल के मध्य रखा हुआ प्रतीत होता है। कैलाश आ¬सपास के शिखरों से ऊंचा है। यह पर्वत काले पत्थरों का है और ऊपर से नीचे तक बर्फ से ढका रहता है। लेकिन इसके आसपास की कमलाकार पहाड़ियां कच्चे लाल मटमैले रंग की हैं। कैलाश की परिक्रमा 32 मील की है, जिसे यात्राी प्रायः तीन दिनों में पूरा करते हैं। यह परिक्रमा कैलाश के चारों ओर घिरे कमलाकार शिखरों के साथ हेाती है।
य ा त्र ा क े िल ए अ ा व े द न: कैलाश-मानसरोवर जाने के लिए 4-5 महीने पूर्व आवेदन करना पड़ता है। इस यात्रा का आयोजन भारत सरकार और चीन सरकार दोनों मिलकर करते हैं। यात्रियों के लिए आवश्यक है कि उनके पास कम से कम 9 महीने की वैधता अवधि वाला पासपोर्ट होना चाहिए। यात्रा का मौसम जून से प्रारंभ होता है और अगस्त-सितंबर तक चलता है। जिनके आवेदन स्वीकार किए जाते हैं उन्हें अग्रिम सूचना दे दी जाती है। जिन्हें एक बार यात्रा की अनुमति नहीं मिल पाती उन्हें निराश नहीं हा¬ेना चाहिए। अगले वर्ष फिर आवेदन करना चाहिए।
क ै स े ज ा ए ं क ह ा ं ठ ह र ¬ें: कैलाश-मानसरोवर की यात्रा सामान्यतया तीन मार्गों से की जाती है। पहला मार्ग पूर्वोत्तर रेलवे के टनकपुर स्टेशन से बस द्वारा पिथौरागढ़ जाकर वहां से पैदल यात्रा करते हुए ‘लिपू’ नामक दर्रा पार करके जाता है। दूसरा मार्ग पूर्वोत्तर रेलवे के काठगा¬ेदाम स्टेशन से बस द्वारा कपकोट (अल्मोड़ा) जाकर फिर पैदल यात्रा करते हुए ‘ऊटा’, ‘जयंती’ तथा ‘कुं¬गरीविंगरी’ घाटियों को पार करके जाने वाला मार्ग है।
तीसरा मार्ग उत्तर रेलवे के ऋषिकेश स्टेशन से बस द्वारा जोशीमठ जाकर वहां से पैदल यात्रा करते हुए ‘नीती’ घाटी को पार कर पैदल जाने वाला मार्ग है। इन तीनों ही मार्गों में यात्रियों को भ¬ारतीय सीमा का अंतिम बाजार मिलता है। वहां तक उन्हें ठहरने का स्थान, भोजन का सामान, भोजन बनाने के बर्तन आदि सुविधापूर्वक मिल जाते हैं। जोशीमठ वाले मार्ग से जाने वाले यात्री हरिद्वार, ऋषिकेश, देवप्रयाग तथा बदरीनाथ के मार्ग के अन्य तीर्थों की यात्रा का लाभ भी उठा सकते हैं।
इस मार्ग को छोड़कर शेष दो मार्गों में कुली आदि पूरी यात्रा के लिए नहीं मिलते, रास्ते में बदलने पड़ते हैं। भारतीय सीमा के अंतिम बाजार के बाद वहां से तिब्बती भाषा का जानकार एक गाइड साथ में अवश्य लेना चाहिए क्योंकि तिब्बत में हिंदी या अंग्रेजी जानने वाले नहीं मिलते। तिब्बत में रहने के लिए भोजन, मसाले आदि सभी भारतीय अंतिम बाजार से लेने पड़ते हंै।
सावधानियां: चारों तरफ बर्फ होने के कारण यहां चलते समय पूरा शरीर गर्म कपड़ों से तो ढका होना ही चाहिए। साथ ही सुबह और शाम चेहरे एवं हाथों पर वैसलीन अच्छी तरह लगाते रहनी चाहिए अन्यथा हाथ फटने लगेंगे और नाक में घाव भी हो सकते हैं।
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