वर्षा का पूर्वानुमान: ज्योतिषीय दृष्टि से वर्षानुमान के लिए मेदिनीय ज्योतिष में अनेक पद्धतियां हैं। इनमें निम्न विषयों का विश्लेषण किया जाता है:
1.संवत्सर,
2.संवत्सर का राजा,
3.मेघेश,
4.सूर्य का आद्र्रा प्रवेश,
5.मेघ,
6.रोहिणी वास,
7.स्तंभ,
8.नाग,
9.त्रिनाड़ी चक्र,
10.सप्तनाड़ी चक्र,
11.कूर्म चक्र,
12.नक्षत्र सांख्य बोधक चक्र,
13.वर्षा बोधक चक्र और
14.ग्रह गोचर।
इसके अतिरिक्त आकाशीय लक्षण एवं मेघों के गर्भ विचार के अनुसार भी वर्षा का अनुमान लगाए जाने की पद्धतियां हंै। जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों एवं कीड़े-मकोड़ों की गतिविधियों से भी वर्षा का पूर्वानुमान लगाया जाता है। इस वर्ष संवत् 2063 विकारी नामक संवत्सर है जिसका स्वामी सूर्य है।
मेदिनीय ज्योतिष के अनुसार इसके कारण वर्षा में विलंब हो सकता है। इस वर्ष संवत्सर का राजा एवं मेघेश गुरु है जो अधिक एवं विस्तृत वर्षा देने में सक्षम है। सूर्य कर्क लग्न में आद्र्रा में प्रवेश करेगा जो अच्छी वर्षा का सूचक है। इस वर्ष पुष्कर नामक मेघ है जो कम वर्षा का संकेत देता है। पर्वत पर रोहिणी वास कम वर्षा का सूचक है।
जल स्तंभ ;87ःद्ध एवं नरेंद्र नामक नाग बहुत अच्छी वर्षा का सूचक है। कूर्म चक्र दक्षिण पश्चिम भारत में अधिक वर्षा का द्योतक है। कुल मिलाकर मेदिनीय ज्योतिष के अनुसार इस वर्ष अच्छी वर्षा का अनुमान है। मेदिनीय ज्योतिष की अधिकांश विधियां पूरे विश्व के लिए मान्य होती हैं, एक स्थान के लिए नहीं जबकि वर्षा किसी एक स्थान पर अधिक होती है तो किसी दूसरे स्थान पर कम।
यही कारण है कि वर्षा के अनुमान के लिए ज्योतिष का उपयोग बहुत ही न्यून रहा है एवं मेदिनीय ज्योतिष भी पूर्णरूप से उपयुक्त नहीं है। फ्यूचर पाॅइंट द्वारा नई पद्धति विकसित की गई है। इस पद्धति में किसी भी स्थान का पिछले वर्षों की वर्षा के आंकड़ों को ग्रहों की चाल पर आच्छादित कर यह ज्ञात किया जाता है कि कौन सा ग्रह किस स्थान पर कितनी वर्षा देने में सक्षम है एवं भविष्य की ग्रह स्थिति की गणना कर वर्षा का पूर्वानुमान लगाया जाता है।
इस गणना के अनुसार, जो कि दिल्ली के लिए 1953 से 2003 तक की वर्षा की गणना पर आधारित है, निम्न योग सामने आए हैं: सूर्य, बुध एवं शुक्र मिथुन, कर्क व सिंह राशियों में अत्यधिक वर्षा देते हैं एवं वृश्चिक में न्यूनतम। सूर्य पुष्य व अश्लेषा नक्षत्रों में अधिकतम व स्वाति में न्यूनतम, बुध अश्लेषा व मघा में अधिकतम और विशाखा, अनुराधा और ज्येष्ठा में न्यूनतम तथा शुक्र मघा में अधिकतम व मूल में न्यूनतम वर्षा देता है।
मंगल जैसे-जैसे उच्चता की ओर बढ़ता है, वर्षा कम और उसके नीच होने पर अधिकतम होती है। पुनर्वसु, पूर्वा फाल्गुनी व उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्रों में यह अधिकतम एवं उत्तराषाढ़ व श्रवण नक्षत्रों में न्यूनतम वर्षा देता है। गुरु मंगल के विपरीत उच्च होने पर सर्वोत्तम, लेकिन नीच के समीप कुंभ राशि में न्यूनतम वर्षा देता है, स्वाति और अनुराधा नक्षत्रों में अधिकतम व ज्येष्ठा में न्यूनतम वर्षा देता है।
शनि कर्क व सिंह राशि में एवं अश्लेषा नक्षत्र में न्यूनतम वर्षा देता है। राहु मीन राशि व उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में न्यूनतम वर्षा देता है। चंद्रमा सभी राशियों एवं नक्षत्रों में समान वर्षा देता है। गुरु व मंगल जितना सूर्य के समीप होते हैं उतनी अधिक वर्षा होती है। मंगल से गुरु तीसरे, सातवें व ग्यारहवें स्थानों में अधिकतम वर्षा देता है।
मंगल से शनि दूर होने पर अर्थात पांचवें, छठे और सातवें भावों में अधिकतम वर्षा देता है जबकि राहु मंगल से पहले, चैथे तथा दसवें में अधिकतम और बारहवें में न्यूनतम वर्षा देता है। बुध और शुक्र मंगल के समीप आने पर अधिक वर्षा देने में सक्षम हंै। राहु बुध से दूसरे, तीसरे, छठे, सातवें व दसवें भाव में अधिकतम वर्षा देता है जबकि चैथे, आठवें और बारहवें में न्यूनतम।
गुरु बुध के समीप आने पर अधिक और दूर जाने पर कम वर्षा देता है। उपर्युक्त सभी तथ्य केवल दिल्ली के लिए मान्य हैं जो कि पिछले 50 वर्षों की वर्षा पर आधारित हैं। इन सभी योगों के अध्ययन के अनुसार इस वर्ष दिल्ली में मानसून उत्तम होने की आशा है।
मानसून का प्रारंभ 23 जून ़ तीन दिन को हो सकता है। जून के अंत व जुलाई के प्रथमार्ध में वर्षा अच्छी रहेगी, अगस्त के मध्य में स्वतंत्रता दिवस व कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर वर्षा होने के आसार हैं। सितंबर में वर्षा क्षीण होती जाएगी।
दिल्ली में 2006 में पर्याप्त वर्षा होने की संभावना है। तदुपरांत 2007 में अपेक्षाकृत कुछ कम और 2008 में बहुत कम वर्षा होने की संभावना है। 2009 व 2010 में सुवृष्टि के ही संकेत हैं।
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