कब और कैसे करें ज्योतिषीय उपाय पं. अविनाश चंद्र व्यास ग्रह शांति के लिए प्रायः कई ज्योतिषी सीधे-सीधे रत्न धारण करने की सलाह दे डालते हैं जबकि जो ग्रह शुभ एवं उच्च का हो उससे संबंधित रत्न धारण और जो ग्रह अशुभ एवं नीच का हो उससे संबंधित दान और जपादि करना चाहिए। इन सब उपायों को यदि विशेष अवधि के दौरान किया जाए तो वे प्रभावी हो जाते हैं। इस आलेख में ज्योतिषीय उपायों से संबंधित महत्वपूर्ण मार्गदर्शन किया गया है...
हों की शांति के लिए मुख्य रूप से दो प्रकार के उपाय किए जाते हैं- रत्न धारण एवं दान। जिस ग्रह से संबंधित रत्न धारण किया जाता है वह ग्रह उस जातक के जीवन में अधिक प्रभावषाली हो जाता है तथा जिस ग्रह से संबंधित दान किया जाता है उस ग्रह विषेष से होने वाली हानि का शमन होता है। प्रत्येक व्यक्ति को उस ग्रह से संबंधित दान करना चाहिए जो उसके लिए हानिकारक है तथा उस ग्रह का रत्न धारण करना चाहिए जो उसके लिए लाभदायक है।
लग्न भाव, तृतीय भाव एवं अष्टम भाव आयुर्भाव हैं और यही कारण है कि इन आयुर्भावों का व्यय करने वाले इनसे द्वादष भाव क्रमषः द्वादष, द्वि तीय एवं सप्तम भाव मारक हैं । इसके अतिरिक्त चर लग्नों यथा मेष, तुला, कर्क और मकर में एकादष भाव बाध् ाक है, स्थिर लग्नों यथा वृष, वृष्चिक, सिंह और कुभ में नवम भाव तथा द्वि स्वभाव लग्नों यथा मिथुन, कन्या, ध् ानु एवं मीन में सप्तम भाव बाधक है।
प्रत्येक जातक को अपनी जन्मपत्रिका के अनुसार बाधक एवं मारक ग्रहों से संबंधित दान करना आवष्यक है। यह दान उस समय और भी ज्यादा आवष्यक हो जाता है जब इन ग्रहों का प्रभाव विषोंत्तरी दषा के कारण व्यक्ति पर चल रहा हो। ग्रहों का विषिष्टीकरण किया जाना चाहिए तथा तदनुसार ही दान अथवा रत्न धारण किया जाना चाहिए। विषिष्टीकरण से आषय ग्रह विषेष की पूर्ण जांच से है। यथा कन्या लग्न की कुंडली में सप्तम भाव बाधक भी है और मारक भी।
ऐसी स्थिति में सप्तमेष तथा सप्तम में बैठे ग्रह एवं वह ग्रह जिसके नक्षत्र में सप्तम भाव में ग्रह बैठा है, इन तीनों का दान आवष्यक है। अब यदि सप्तम भाव में शुक्र मीन राषिस्थ एवं रेवती नक्षत्र में और बुध मीन राषिस्थ एवं उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में विराजमान है तो ऐसी अवस्था में विषिष्टीकरण इस प्रकार किया जाना चाहिए कि ग्रह विषेष का संपूर्ण अध्ययन कर उसकी प्रकृति तथा क्षमता का पूरा जायजा लिया जा सके।
उक्त उदाहरण में शुक्र एवं बुध का अवलोकन करें तो पाएंगे कि सप्तम में बैठा शुक्र उच्¬चस्थ होकर बुध के नक्षत्र में और बुध नीचस्थ होकर शनि के नक्षत्र में तथा दोनों बृहस्पति की राषि में हैं। यहां पर दान बृहस्पति प्रधान तत्व का किया जाना है। साथ ही बुध के प्रभाव युक्त उच्चस्थ शुक्र एवं शनि के प्रभाव युक्त नीचस्थ बुध का भी समावेष किया जाना है। शनि के नक्षत्र में उपस्थित बुध, किसी प्राचीन मंदिर में स्थित भगवान गणेष की प्रतिमा भाव बाधक भी है और मारक भी।
ऐसी स्थिति में सप्तमेष तथा सप्तम में बैठे ग्रह एवं वह ग्रह जिसके नक्षत्र में सप्तम भाव में ग्रह बैठा है, इन तीनों का दान आवष्यक है। अब यदि सप्तम भाव में शुक्र मीन राषिस्थ एवं रेवती नक्षत्र में और बुध मीन राषिस्थ एवं उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में विराजमान है तो ऐसी अवस्था में विषिष्टीकरण इस प्रकार किया जाना चाहिए कि ग्रह विषेष का संपूर्ण अध्ययन कर उसकी प्रकृति तथा क्षमता का पूरा जायजा लिया जा सके।
उक्त उदाहरण में शुक्र एवं बुध का अवलोकन करें तो पाएंगे कि सप्तम में बैठा शुक्र उच्¬चस्थ होकर बुध के नक्षत्र में और बुध नीचस्थ होकर शनि के नक्षत्र में तथा दोनों बृहस्पति की राषि में हैं। यहां पर दान बृहस्पति प्रधान तत्व का किया जाना है। साथ ही बुध के प्रभाव युक्त उच्चस्थ शुक्र एवं शनि के प्रभाव युक्त नीचस्थ बुध का भी समावेष किया जाना है।
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