निर्जला एकादशी व्रत पं. ब्रजकिशोर शर्मा ‘ब्रजवासी’ ास जी के वचनानुसार यह यथार्थ सत्य है कि अर्धमास (मलमास) सहित एक वर्ष की 26 एकादशियों में से मात्र एक निर्जला एकादशी का व्रत करने से ही सभी एकादशियों का फल प्राप्त हो जाता है। निर्जला व्रत करने वाला, अपवित्र अवस्था के आचमन के सिवाय, बिंदु मात्र जल भी ग्रहण न करे।
यदि जल उपयोग में ले लिया जाए तो उससे व्रत भंग हो जाता है। संपूर्ण इंद्रियों को दृढ़तापूर्वक भोगों से विरक्त कर, सर्वांतर्यामी श्री हरि के चरणों का स्मरण करते हुए, नियमपूर्वक निर्जल उपवास कर के द्व ादशी को स्नान करें और सामथ्र्य के अनुसार स्वर्ण और जलयुक्त कलश दे कर भोजन करें, तो संपूर्ण तीर्थों में जा कर स्नान-दानादि करने के समान फल मिलता है।
एक समय बहुभोजी भीमसेन ने पितामह व्यास जी से पूछा: ‘हे पितामह! भ्राता युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि एकादशी के दिन व्रत करते हैं और उस दिन अन्न खाने को मना करते हैं। मैं उनसे कहता हूं कि मैं भ¬िक्तपूर्वक भगवान की पूजा कर सकता हूं, परंतु एकादशी के दिन भूखा नहीं रह सकता।’
इस पर व्यास जी बोले: ‘हे भीमसेन! यदि तुम नर्क को बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो, तो प्रत्येक माह की दोनों एकादशियों को अन्न न खाया करो।’
इस पर भीमसेन बोले: ‘हे पितामह! मैं आपसे पहले ही कह चुका हूं कि मैं एक समय भी भोजन किए बिना नहीं रह सकता। मेरे लिए पूरे दिन का उपवास करना कठिन है। यदि मैं प्रयत्न करूं, तो एक व्रत अवश्य कर सकता हूं। अतः आप मुझे कोई एक व्रत बतलाइए, जिससे मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो।’
इस पर श्री व्यास जी बोले: ‘हे भीमसेन! वृष और मिथुन संक्रांति के मध्य ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी होती है। उसका निर्जला व्रत करना चाहिए।
इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन में जल वर्जित नहीं है, लेकिन आचमन में 3 माशे से अधिक जल नहीं लेना चाहिए। इस आचमन से शरीर की शुद्धि हो जाती है। आचमन में 7 माशे से अधिक जल मद्यपान के समान है। इस दिन भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है।
यदि सूर्योदय से सूर्यास्त तक मनुष्य जलपान न करे, तो उसे बारह एकादशियों के फल की प्राप्ति होती है। द्वादशी के दिन सूर्योदय से पहले ही उठना चाहिए और स्नान कर के, ब्राह्मण को यथायोग्य दान देना चाहिए। इसके बाद भूखे ब्राह्मण को भोजन कराकर स्वयं भोजन करना चाहिए। इसका फल सभी एकादशियों के फल के बराबर है।
हे भीमसेन! स्वयं भगवान ने मुझसे कहा था कि इस एकादशी का पुण्य समस्त तीर्थों और दानों के पुण्य के बराबर है। एक दिन निर्जल रहने से मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करता है, उसे मृत्यु के समय भयानक यम दूत नहीं दिखाई देते। उस समय भगवान विष्णु के दूत स्वर्ग से आते हैं और उसे पुष्पक विमान पर बिठा कर स्वर्ग ले जाते हैं। अतः संसार में निर्जला एकादशी का व्रत सर्वश्रेष्ठ है। अतः यत्नपूर्वक इस एकादशी का निर्जल व्रत करना चाहिए।
उस दिन ”¬ नमो भगवते वासुदेवाय“ मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। व्यास देव जी के ऐसे वचन सुन कर भीम ने निर्जल व्रत किया। इसलिए इस एकादशी को भीमसेनी या पांडव एकादशी भी कहते हैं। निर्जल व्रत करने से पहले भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
इस दिन एक बड ़ ेवस्त्र से ढक कर स्वर्ण दान करना चाहिए। जो लोग इस व्रत को दो प्रहर में, स्नान-तप आदि कर क े करत े है ं,उन्हे ंमनोवांछित फल मिलता है। जो मनुष्य इस दिन यज्ञ होमादि करता है उसे असीम फल की प्राप्ति होती है। इस निर्जला एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णु लोक को जाता है। जो लोग इस दिन अन्न खाते हैं, उन्हें चांडाल समझना चाहिए। वे अंत में नर्क में जाते हैं।
ब्रह्म हत्यारे, मद्यपान करने वाले, चोरी करने वाले, गुरु से द्वेष करने वाले, असत्य बोलने वाले इस व्रत को करने से स्वर्ग को जाते हैं। हे कुंती पुत्र! जो पुरुष या स्त्री इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करते हैं, उन्हें सर्वप्रथम विष्णु भगवान की पूजा करनी चाहिए। तत्पश्चात गौ दान करना चाहिए। उस दिन ब्राह्मणों को दक्षिणा, मिष्टान्न आदि देने चाहिए।
जीवन में जरूरत है ज्योतिषीय मार्गदर्शन की? अभी बात करें फ्यूचर पॉइंट ज्योतिषियों से!