क्यों निष्फल होते हैं राजयोग
क्यों निष्फल होते हैं राजयोग

क्यों निष्फल होते हैं राजयोग  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 6829 | जून 2006

क्यों निष्फल होते हैं राजयोग संजय ठाकुर ित ष श् ा ा स्त्र म े ं राजयोग का बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण स्थान है। यद्यपि राजयोग के अभाव में भी जन्म लग्न की विशेष अवस्थाओं में जन्मकुंडली प्रबलता लिए हो सकती है किंतु राजयोग के होने से निश्चित ही जन्मकुंडली को विशेष बल प्राप्त हो जाता है। राजयोग का संबंध मात्र शासन या राज से नहीं है।

वास्तव में राजयोग संपूर्ण शासन का द्योतक है। जन्मलग्न में राजयोग जिन ग्रहों के योग से निर्मित होता है उन ग्रहों से संबंधित संपूर्ण फल ही राजयोग का प्रतिफल है। उदाहरणस्वरूप एक बहुत ही अधिक प्रचलित योग है गजकेसरी जो राजयोग की श्रेणी का योग है। यह योग सूर्य या चंद्र से गुरु ग्रह की युति या केन्द्रस्थ स्थिति से बनता है। यहां यदि यह योग चंद्र ग्रह से गुरु ग्रह की युति या केन्द्रस्थ स्थिति से बना है तो इस प्रकार बने गजकेसरी योग से चंद्र और गुरु से संबंधित फल घटित होंगे।

जैसे चंद्र देव प्रकृति का जन्म लग्न की विभिन्न अवस्थाओं के अनुरूप सौम्य और क्रूर ग्रह है और गुरु देव प्रकृति का सौम्य ग्रह है। इस प्रकार बने राजयोग में जहां चंद्र और गुरु की प्रकृति महत्वपूर्ण है वहीं जन्म लग्न में इन ग्रहों की राशिस्थ और भावस्थ स्थितियों को देखना भी आवश्यक है। उदाहरण स्वरूप यदि इन ग्रहों में से कोई एक या दोनों नीच या उच्च के हों तो फल भी उसी प्रकार प्राप्त होंगे।

इसी प्रकार सूर्य और गुरु के संबंधों से बने राजयोग का फल सूर्य और गुरु की प्रकृति तथा राशिस्थ और भावस्थ स्थितियों के अनुसार प्राप्त होगा। इस प्रकार कहा जा सकता है कि राजयोग ग्रहों की प्रकृति और उनकी विभिन्न अवस्थाओं पर निर्भर करता है। साधारणतया जन्मकुंडली में बने राजयोग का स्थूल रूप से विवेचन कर ही फलित किया जाता है जो सर्वथा अनुचित है। कोई भी योग एक दृष्टि में देखने पर योग प्रतीत हो सकता है किंतु सूक्ष्मता से अध्ययन करने पर वह योग की कसौटी पर असत्य भी सिद्ध हो सकता है।

जन्म लग्न में बने ऐसे योग फल देने या पूर्ण रूप से फल देने में सक्षम नहीं होते। बहुत से व्यक्तियों के जन्म लग्न में राजयोग बने होते हैं। किंतु उनका जीवन सामान्य या निम्न स्तर का होता है। ऐसे में ज्योतिष को संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगता है। जन्म लग्न में बने ऐसे राजयोग का यह स्थूल रूप से किया गया फलित है। पहले बताई गई ग्रहों की प्रकृति तथा राशिस्थ और भावस्थ स्थितियों के अतिरिक्त और भी बहुत सी बातों का अध्ययन कर ही राजयोग का फलित किया जाना चाहिए।

सबसे पहले यह देखा जाना बहुत ही आवश्यक है कि जन्म लग्न में कोई दोष तो नहीं है। इन दोषों में लग्नेश की अशुभ स्थिति, भाग्य भाव या भाग्येश के पीड़ित होने, ग्रहण दोष और कुंडली के शापित होने जैसी स्थितियां प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त योग बनाने वाले ग्रहों की स्थिति को जानना भी आवश्यक है। अस्त ग्रहों से बने योग प्रायः निष्फल ही होते हैं।

इसी प्रकार ग्रहों की अंशात्मक स्थितियां भी योग को प्रभावित करती हैं। जिस भाव में योग बना हो उस भाव या भावेश का किसी भी रूप में पीड़ित होना भी योग के पूर्ण रूप से घटित होने में बाधक होता है। सामान्यतया ग्रहों की विभिन्न दृष्टियों के आधार पर ही फलित किया जाता है। जैसे प्रत्येक ग्रह सातवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है। इसके अतिरिक्त कुछ ग्रह विशेष दृष्टि से भी देखते हैं। किसी भी ग्रह की दृष्टि का सूक्ष्म अध्ययन किया जाना आवश्यक है।

ग्रहों की अंशात्मक दृष्टि के आधार पर यह जानना आवश्यक है कि वास्तव में ग्रह देख भी रहा है या नहीं। साधारणतया जन्म लग्न में बने ग्रहण दोष को अधिक महत्व नहीं दिया जाता। इसी प्रकार कुंडली में बने शापित दोष पर भी ध्यान नहीं दिया जाता। ग्रहण दोष और शापित दोष व्यक्ति विशेष की प्रगति के मार्ग में बहुत बड़े बाधक होते हैं।

ग्रहण दोष के प्रभाव से व्यक्ति जीवन में कभी भी अपने परिश्रम का यथेष्ट फल नहीं पाता, उसे यश के स्थान पर अपयश मिलने की संभावनाएं भी अधिक रहती हैं। ऐसा व्यक्ति उपकार का फल भी अपकार ही पाता है। ऐसी अवस्था में जन्म लग्न में बना राजयोग अपने नाम के अनुरूप पूर्ण फल नहीं देता।

इस अवस्था में बना राजयोग अधिकतर निष्फल ही रहता है। जन्म लग्न में यदि राजयोग बहुत प्रबल है तभी कुछ शुभ फल घटित होने की संभावनाएं बनती हैं, अन्यथा नहीं। ऐसी अवस्था में बना क्षीण राजयोग तो प्रायः निष्फल ही रहता है। जन्मकुंडली का शापित होना भी कुंडली के शुभ फलों में न्यूनता लाता है। ऐसे में राजयोग भी निष्फल हो जाते हैं। शापित होने पर कुंडली अशुभ प्रभावों में आ जाती है।

इस स्थिति में कुंडली में निर्मित राजयोग भी निष्फल हो जाते हैं। जन्मकुंडली विभिन्न प्रकार से शापित होती है। बृहत्पराशर में ऐसे चैदह शापों का उल्लेख किया गया है। इनमें पितृ शाप, प्रेत शाप, ब्राह्मण शाप, मातुल शाप, पत्नी शाप, सहोदर शाप, सर्प शाप और वृक्ष शाप जैसे शाप आते हैं। जन्मकुंडली के किसी भी शाप के प्रभाव में आने से व्यक्ति विशेष की उन्नति का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है।

उसे उसके परिश्रम का फल नहीं मिल पाता है। जन्मकुंडली के शापित होने में राहु और केतु की विशेष भूमिका है। इनमें भी राहु विभिन्न ग्रहों को कई प्रकार से पीड़ित करता है। यह ग्रह गुरु से युति कर चांडाल योग, बुध से युति कर जड़त्व योग, शुक्र से युति कर अमोत्वक योग, मंगल से युति कर अंगारक योग और शनि से युति कर नंदी योग का निर्माण करता है। इन योगों के अतिरिक्त राहु और केतु सूर्य और चंद्र को भी पीड़ित कर ग्रहण योग का निर्माण करते हैं।

विषयवस्तु के इस संदर्भ में वर्तमान समय में बहुचर्चित कालसर्प योग का विवेचन किया जाना भी आवश्यक है। अध्ययन में यह पाया गया है कि कालसर्प योग एक ऐसा योग है जो व्यक्ति विशेष को सामान्य अवस्था में नहीं रहने देता। इस योग की प्रबलता में व्यक्ति विशेष विलक्षण प्रतिभा का स्वामी होता है। यदि जन्मकुंडली में अन्य अशुभ स्थितियां नहीं हैं तो कालसर्प योग व्यक्ति विशेष को जीवन में ऊंचाइयां देता है।

यहां इस बात पर विचार करना भी आवश्यक है कि जन्मकुंडली में कालसर्प शुभ स्थितियों का निर्माण कर रहा है या अशुभ। साथ ही राहु और केतु की राशिस्थ और भावस्थ स्थितियों का अध्ययन किया जाना भी आवश्यक है। यहां कालसर्प योग की व्याख्या इसलिए आवश्यक है कि राहु और केतु ग्रहों की विशेष अवस्थाओं से बने इस योग की भांति ही अधिकतर शापित दोष भी इन्हीं ग्रहों द्वारा निर्दिष्ट होते हैं।

ग्रहों के विभिन्न संबंधों से बने योग पूर्ण रूप से तभी घटित होते हैं जब कुंडली पूर्ण रूप से दोष रहित और बलवान हो। यद्यपि योगों के फल की पूर्ण रूप से प्राप्ति के लिए जन्मकुंडली का दोष रहित और बलवान होना आवश्यक है तथापि जन्मकुंडली में किसी योग का होना ही एक महत्वपूर्ण स्थिति हो जाती है। जन्मकुंडली पर पड़ने वाले विभिन्न प्रभावों से योगों की फल प्राप्ति में न्यूनता या अधिकता हो सकती है। योगों के फलों की न्यूनता या अधिकता समयावधि पर भी निर्भर करती है।

सामान्यतया समयावधि को विभिन्न ग्रहों की महादशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतर्दशा प्रभावित करती हैं। यह बात स्पष्ट रूप से कही जा सकती है कि एक क्षीण योग शुभ ग्रहों की महादशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतर्दशा में भी विलंब से ही फल देगा और एक प्रबल योग अपेक्षाकृत शीघ्र फल प्रदान करेगा।

इसी प्रकार एक क्षीण योग अशु भ ग्रहा े ंकी महादशा, अं तर्द शा औ रप्रत्यंतर्दशा में प्रभावहीन ही रहेगा और एक प्रबल योग विलंब से या कम ही सही किंतु फल अवश्य देगा। जन्मकुंडली से विभिन्न दोषों को दूर कर उसे शुभता से भर कर जन्म लग्न को प्रबलता प्रदान की जा सकती है। जन्मकुंडली में योग होने मात्र से ही कोई व्यक्ति राजा या रंक नहीं हो जाता। कोई भी योग तभी पूर्ण फल प्रदान करता है जब वह किसी अन्य ग्रह से पीड़ित, शापित एवं अशुभ स्थितियों से प्रभावित न हो।

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