शनि की वक्र गति और साढ़ेसाती एक नवंबर 2006 को शनि कर्क राशि को छोड़कर सिंह राशि में प्रवेश कर रहा है। मिथुन राशि वालों के लिए बहुत अच्छा है कि 7) वर्ष से चल रही साढ़ेसाती अब समाप्त हो जाएगी, लेकिन कन्या राशि के लिए साढ़ेसाती शुरू होकर भविष्य के अगले कुछ वर्षों के लिए कठिन समय का संदेश लेकर आ रही है। अभी कुछ ही दिनों बाद 6 दिसंबर 2006 को शनि वक्री भी हो जाएगा और 10 जनवरी 2007 को जब दोबारा कर्क में आएगा, तो क्या पुनः मिथुन के लिए साढ़ेसाती शुरू हो जाएगी, और कन्या राशि की साढ़ेसाती आगे के लिए टल जाएगी? एक विचार और आता है कि अचानक ही एक दिन में करोड़ो मनुष्यों का भविष्य कैसे बदल जाता है, किसी का अच्छा और किसी का खराब एक ही दिन में कैसे हो जाता है? अंतरिक्ष में तो ऐसी कोई रेखा नहीं है कि शनि उसे पार कर जाएगा और रातोंरात सारे फल बदल जाएंगे। शनि वक्री कैसे हो जाता है? यह कब वक्री होता है और कितने समय तक वक्री रहता है? दोबारा राशि में प्रवेश करने से क्या साढ़ेसाती दोबारा शुरू हो जाती है? आइए, इन विषयों पर चर्चा करें।
शनि को सूर्य की परिक्रमा करने में 30 वर्ष लगते हैं और पृथ्वी को केवल एक वर्ष। अतः शनि को यदि स्थिर मान लें, तो पृथ्वी के बिंदु 1 से बिंदु 2 पर चलते समय शनि पृथ्वी से वक्र चलता प्रतीत होता है जबकि बिंदु 2 से चलकर 8 तक वह मार्गी प्रतीत होता है और फिर 8 से 1 तक वक्री। अतः जब भी पृथ्वी शनि के पास होती है, तो शनि वक्री प्रतीत होता है। शनि लगभग 1 वर्ष 12 दिन में एक बार वक्री होता है। यह 134 दिनों के लिए वक्री एवं 243 दिनों के लिए मार्गी रहता है। यह, वक्री होने पर लगभग 70 तक पीछे चला जाता है।
शनि की औसत गति केवल 2श् प्रतिदिन है लेकिन क्योंकि यह 134 दिन तक वक्री रहता है, इसलिए मार्गी होने पर यह 4श् से 8श् प्रतिदिन तक की गति से चलकर ही अपने अंशों को पूरा कर पाता है। स्थूल रूप से शनि के चंद्र राशि से एक राशि पहले प्रवेश करने से साढ़ेसाती प्रारंभ हो जाती है और एक राशि बाद तक चलती है। लेकिन शनि की चाल धीमी होने के कारण सूक्ष्म रूप से यह जन्म राशि से 450 पहले से शुरू होकर 450 आगे तक चलती है।
अतः जिस जातक का चंद्र मिथुन राशि के प्रारंभिक अंशों पर हो, उसके लिए तो शनि की साढ़ेसाती इसके सिंह में प्रवेश करने के पहले ही समाप्त हुई माननी चाहिए। किंतु जिसका चंद्र आखिरी अंशों पर हो, उसके लिए शनि के सिंह राशि में प्रवेश करने के उपरांत भी साढे़साती समाप्त नहीं होती है।
अतः जब शनि वक्री होने के पश्चात पुनः सिंह राशि में प्रवेश कर कुछ अंशों को प्राप्त करेगा, तभी साढ़ेसाती समाप्त होगी अर्थात जुलाई 2007 के बाद। इसी प्रकार से कन्या राशि वालों के लिए, जिनका चंद्र कम अंशों का है, साढ़ेसाती अभी प्रारंभ हुई माननी चाहिए। किंतु जिनका चंद्र अधिक अंशों का है, उनकी साढ़ेसाती जुलाई 2007 के पश्चात ही आरंभ होगी।
शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव जातक के लिए शुभ होगा या अशुभ, यह शनि के कारकत्व से ज्ञात होता है। यदि शनि योग कारक है एवं गोचर में उसकी स्थिति सुदृढ़ है अर्थात वह मित्र या स्वराशि में है, तो शुभ फल प्राप्त होते हैं। लग्न से भी गोचर यदि शुभ स्थान में हो, तो शुभ फल प्राप्त होते हैं। साढ़ेसाती में क्या फल प्राप्त होंगे यह लग्न कुंडली से गोचरगत शनि की स्थि िविभिन्न राशियों के लिए आने वाले शनि की स्थिति इस प्रकार रहेगी -
जन्म राशि शनि का सिंह में प्रवेश फल मेष - चतुर्थ ढैया समाप्त - शुभ वृष - चतुर्थ ढैया प्रारंभ - मध्यम मिथुन - साढ़ेसाती समाप्त - शुभ कर्क - साढ़ेसाती का तीसरा चरण प्रारंभ - शुभ सिंह - साढ़ेसाती का दूसरा चरण प्रारंभ - मध्यम कन्या - साढ़ेसाती प्रारंभ - अशुभ तुला - दशम से एकादश - शुभ वृश्चिक - नवम से दशम - मध्यम धनु - अष्टम ढैया समाप्त - शुभ मकर - अष्टम ढैया प्रारंभ - अशुभ कुंभ - षष्ठ से सप्तम - मध्यम मीन - पंचम से षष्ठ - मध्यम उपर्युक्त तालिका में शुभ-अशुभ से तात्पर्य शनि द्वारा फल की शुभता या अशुभता में परिवर्तन से है।
शुभ का अर्थ है शुभ फलों में बढ़ोतरी होगी, अशुभ का अर्थ है फल कष्टदायक हो सकते हैं एवं मध्यम फल का तात्पर्य है कि फल में अधिक अंतर नहीं आएगा। भारत की राशि भी कर्क है एवं चंद्रमा निम्न अंशों पर है,ृ अतः भारत के लिए शनि का यह सिंह राशि में प्रवेश समृद्धि लेकर आएगा एवं भारत का भविष्य प्रगति की ओर अग्रसर होगा। लेकिन शनि के चैथे भाव में से गोचर करने के कारण जनता में शांति की कमी रहेगी। भविष्य में शनि का सिंह से कन्या व तुला में गोचर भारत के लिए स्वर्णिम फलदायी होगा।
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