पवित्र पर्व: कार्तिक पूर्णिमा (5 नवंबर 2006) महेश कुमार शुक्ल प्रणम्य पार्वती पुत्रं भारती भास्करं भवम्। बैकुण्ठवासिनं विष्णु सानन्दं सकलान् सुरान्।। स जपति सिन्धुरवदनो देवो यत्पादपंकजस्मरणम्। वासर मणि रवि तमसां शाशीन्नाशयति विघ्नानाम्।।’’ सृजनात्मक समभाव, कृतज्ञात ज्ञापन व सक्रियता का उद्दीपन भाव हमारी पर्व संस्कृति के मुख्य उत्प्रेरक रहें। शास्त्रीय विधानों से उन्हें संकल्प शक्ति की सामूहिक परंपरा प्राप्त होती आई है।
शास्त्रों में भगवान विष्णु के निमिŸा सूर्योदय पूर्व स्नान, व्रत व तुलसी पत्र से उनकी पूजा, जागरण व गायन के साथ उनके प्रिय मास कार्तिक में दीपदान करने के विधान का उल्लेख है क्योंकि इस मास के समान कोई अन्य मास पुण्यदायी नहीं है। सरोवरों, नदियों में कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान का विशेष महत्व है। पवित्रता की पर्याय मां गंगे तो तीन कायिक, तीन मानसिक व चार वाचिक अर्थात दस पापों को हरने वाली मानी जाती है। और कार्तिक मास को पूर्व अर्जित पाप के फल को नष्ट करने वाला मास कहा गया है।
शास्त्रों में वर्णित कार्तिक माहात्म्य न कार्तिक समो मासो न कृतेन समं युगम। न वेदे सदृशं शास्त्रं न तीर्थ यद् गया समम्।। स्कंद पुराण के अनुसार कार्तिक स्नान व भगवद् भक्ति का अपना विशेष महत्व कार्तिक पूर्णिमा का स्नान महास्नान है। यों तो संपूर्ण कार्तिक मास में ही स्नान करने का विधान है, परंतु कार्तिक पूर्णिमा स्नान की अपनी विशिष्ट महिमा है। पूर्णिमा के दिन नदियों या सरिताओं में कमर तक खड़े होकर निम्नलिखित मंत्र से भगवान की प्रार्थना की जाती है। कार्तिक्यां तु प्रातः करिष्यामि स्नानं जनार्दनः। प्रीत्यर्थ तव देवेश दामोदर मया सह।।
अनन्ताय गोविन्दाय अच्चुताय आदि कहकर भी विष्णु की उपासना की जाती है। गीता पाठ, श्रीमद्भागवत कथा के श्रवण, मां गंगे की स्तुति व तुलसी पत्र से विष्णु पूजा आदि के साथ नव अन्न, ईख तथा सिंघाड़े नैवेद्य ग्रहण किया जाता है। इसी दिन श्री हरि विष्णु का पहला विभव अर्थात मत्स्यावतार हुआ था। कार्तिक मास श्री हरि विष्णुलक्ष्मी की उपासना के लिए सर्वश्रेष्ठ है। यह मास विशेषकर स्त्रियों का सौभाग्यवर्धन करना है।
तीर्थों में प्रयागराज श्री विष्णु सर्वाधिक प्रिय है। कार्तिक मास भर प्रयागराज में रहकर स्नान एवं विष्णु पूजन करने से मोक्ष प्राप्त होता है। कार्तिक मास में पूर्णिमा के दिन बहुत बड़ी संख्या में लोग स्नान करते हैं। इस दिन मां गंगे की भावस्तुति भी अवश्य करें। जो इस प्रकार है गंगा गंगेति यो बूर्यात् योजनानां शतेरपि। मुच्चते सर्व पापेभ्यो विष्णु लोकं स गच्छति।।
गंगा जल व तुलसी पत्र कभी बासी नहीं होते इन्हें कभी भी विष्णु को अर्पित किया जा सकता है। वज्र्य पर्युषितं पुष्पं वज्र्य पर्युषितं जलम् न वज्र्य तुलसी पत्रं न वज्र्य जाह्नवी जलम्।। (स्कंद पुराण) कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुर पूर्णिमा भी कहा जाता है।
इस दिन महादेव ने त्रिलोक को सताने वाले त्रिपुरासुर का संहार किया था। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यादि कृŸिाका नक्षत्र हो, तो विशिष्ट फलदायी होती है। इसे प्रदोष व्यापिनी माना जाता है। इस दिन दीप जलाकर शिवालयों व नदियों में त्रिपुर उत्सव मनाया जाता है। दक्षिण भारत में इसे त्रिपुर पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है जबकि उŸार भारत में सामूहिक स्नान और मेलों तथा उत्सवों के रूप में।
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