सुख-शांति एवं समृद्धि के लिए अपनी और परिवार की जन्मपत्रियां तो शुभ होनी ही चाहिए, लेकिन वास्तु भी अच्छा होना चाहिए। किस वास्तु दोष से क्या परेशानी होती है, आइए जानें:
पूर्व दिशा: पूर्व दिशा ऊंची हो, तो गृहस्वामी दरिद्र हो जाता है। संतान अस्वस्थ एवं मंदबुद्धि हो जाती है। पूर्व में चबूतरे ऊंचे हों, तो गृहस्वामी कर्जदार होता है। इस दिशा में कूड़ा-कचरा हो, तो धन और संतान की हानि होती है। यदि पूर्व से पश्चिम की ओर ढलान हो, तो आंखों की बीमारी होती है। पूर्व दिशा में चारदीवारी पश्चिम दिशा से ऊंची हो, तो संतान को हानि होती है।
उपाय: पूर्व दिशा में सूर्य यंत्र की स्थापना करें। आदित्य स्तोत्र का पाठ करें एवं तोरण लगावें।
पश्चिम दिशा: पश्चिम में कुआं हो, तो आर्थिक संकट रहेगा। यदि वर्षा का जल पश्चिम दिशा से निकलता हो, तो लंबी बीमारियां होती हैं। यदि पश्चिम भाग नीचा हो, तो अपयश और अर्थ हानि होती है। पश्चिम पूर्व की अपेक्षा अधिक भरा हो, तो पुरुष संतान की हानि होती है। यदि पश्चिम में पूजा स्थल हो, तो गृहस्वामी ज्योतिष, अध्यात्म आदि का जानकार होगा।
उपाय: पश्चिम दिशा के स्वामी वरुण की आराधना करें एवं वरुण यंत्र इस दिशा में स्थापित करें। शनिवार को व्रत रखें।
उत्तर दिशा: यदि उत्तर दिशा में रसोई है, तो घर में कलह रहेगा; स्नान घर हो, तो स्त्रियां झगडे़ंगी; नलकूप हो, तो धन हानि होगी; पुरानी वस्तुएं हांे, तो अभाग्यशाली रहेंगे। यदि उत्तर दिशा ऊंची हो, तो ऋण एवं बीमारी रहेगी। उत्तर दिशा की दीवार में दरार हो, तो किसी स्त्री के कारण परेशानी रहती है।
उपाय: वाएं। प्रवेश स्थल पर संगीतमय घंटियां लगवाएं।
दक्षिण दिशा: यदि दक्षिण में कुआं या कचरा है, तो गृहस्वामी बीमार रहेगा। दक्षिण भाग नीचा हो, तो घर की महिलाएं अस्वस्थ रहेंगी। दक्षिण में अध्ययन कक्ष पढ़ाई में व्यवधान पैदा करता है एवं पूजा कक्ष भक्तिरहित रहता है। दक्षिण में खाली जगह भी आर्थिक हानि देती है।
उपाय: दक्षिण दिशा के स्वामी मंगल के यंत्र की स्थापना करें। हनुमानजी की उपासना करें।
ईशान दिशा:ईशान में गंदगी या शौचालय हो, तो संतान कपूत होगी एवं कलह रहेगा। यदि गृह की ईशान दिशा लुप्त हो, तो स्वामी को स्वयं अपनी संतान का श्राद्ध करना पडे़गा। ईशान ऊंचा हो, तो धन हानि होती है। ईशान में रसोई कलहकारक होती है।
उपाय: ईशान सर्वदा साफ रखें। वहां पूजा स्थल बनाएं, या रोशनी रखें। शिव लिंग स्थापित करें।
अग्नि कोण: यदि रसोई टूटी-फूटी हो, तो पत्नी बीमार रहेगी। आग्नेय में कुआं हो, तो स्त्री की मृत्यु हो जाती है। दक्षिण आग्नेय, वायव्य एवं उत्तर से नीचा हो, तो रोग एवं ऋण बढ़ता है। आग्नेय यदि नैर्ऋत्य से ऊंचा हो, तो वंश क्षय एवं बदनामी होती है।
उपाय: गणेश जी की आराधना करें और घर के द्वार पर आगे-पीछे हरे रंग का गणपति स्थापित करें।
वायव्य दिशा: यदि वायव्य कोण खाली है, तो जातक घर का आनंद नहीं ले सकता। वायव्य कोण में शयन कक्ष है, तो सर्दी-जुखाम और आर्थिक तंगी रहती है। यदि वायव्य में अध्ययन कक्ष है, तो पढ़ाई में मन अस्थिर रहेगा; यदि रसोई है, तो स्त्रियों का मन अस्थिर होगा; यदि शौचालय है, तो सुख-शांति कम रहेगी। यदि वायव्य ईशान से नीचा हो, तो अदालत एवं बीमारी से जूझना पडे़गा।
उपाय: वायव्य कोण में चंद्र यंत्र स्थापित करें। दीवारों पर क्रीम रंग करें। द्वार पर श्वेत गणपति लगाएं।
नैर्ऋत्य कोण: यदि नैर्ऋत्य खाली है, निम्न है, या वहां कांटेदार वृक्ष हैं, तो गृहस्वामी बीमार रहेगा एवं शत्रुओं से पीड़ा होगी। खजाना खाली रहेगा। नैर्ऋत्य में कुआं हो, तो मानसिक तनाव एवं भय रहता है। यदि नैर्ऋत्य में दीवार टूटी हो, तो पे्रत बाधा आदि रहती है। इस कोण में रसोई हो, तो कलह रहता है एवं स्त्री को वायु पीड़ा रहती है; शयन कक्ष हो, तो निवासी आरामतलब हो जाते हैं; स्नान घर हो, तो अनेक दुखों का सामना करना पड़ता है। ईशान की अपेक्षा नैर्ऋत्य नीचा हो, तो अपयश मिलता है एवं कारागार तक जाना पड़ सकता है। नैर्ऋत्य ईशान से अधिक खाली हो, तो आर्थिक नुकसान एवं पुत्र हानि हो सकती है। यदि नैर्ऋत्य अग्रेत हो, तो शत्रु एवं ऋण बढेंगे।
उपाय: राहु यंत्र नैर्ऋत्य में स्थापित करें। मुख्य द्वार पर भूरे या मिश्रित रंग वाले गणपति लगाएं।
अन्य दोष: दिशा दोष के अलावा कुछ अन्य विचार भी हैं, जिन्हें कोशिश कर के ठीक कर लेना चाहिए। इनके उपाय करने की अपेक्षा दोष को ही ठीक करना उत्तम है।
द्वार वेघ: यदि घर के मुख्य द्वार का वेघ किसी वृक्ष, खंभा या अन्य दीवार से होता है, तो गृहस्वामी और बच्चों पर असर पड़ता है।
जल स्रोत: यदि जल स्रोत ईशान, उत्तर, पूर्व या पश्चिम में हो, तो शुभ है, लेकिन आग्नेय में पुत्र नाश एवं शत्रु भय, नैर्ऋत्य में पुत्र हानि, दक्षिण में पत्नी नाश, वायव्य में शत्रु द्वारा पीड़ा और मध्य में सगं्रहीत धन का नाश कराता है।
दूषित ब्रह्म स्थान: यदि ब्रह्म स्थान में शौचालय या गंदे पाइप की निकासी है, तो गृहस्वामी लाइलाज बीमारी से ग्रसित हो जाता है। इस आकृति वाले मकान में रहने से बुरी आत्माएं गृहस्वामी को प्रभावित करती हैं।
बीम के नीचे बैठना: बीम के नीचे बैठने से मानसिक तनाव बढ़ता है। उपर्युत्त विचारों के अलावा गृहारंभ मुहूर्त का ध्यान रखना भी आवश्यक है। गृहारंभ के दिन सूर्य निर्बल, अस्त या नीचस्थ हो, तो गृहस्वामी का मरण होता है। उस दिन यदि चंद्रमा निर्बल हो, तो स्त्री का एवं यदि गुरु निर्बल हो तो धन का नाश होता है। इसी प्रकार घर में सुख-शांति एवं समृद्धि के लिए गृह प्रवेश भी शुभ मुहूर्त में करना आवश्यक है।