मोटापे से निजात के लिए लाभकारी योगासन स्वामी सत्यार्थ सूत्रा कहा जाता है-‘पहला सुख निरोगी काया और दूसरा सुख जेब में माया।’ यानी कि सब काम बाद में, पहले शरीर को स्वस्थ बनाए रखने पर ध्यान दें। दिनचर्या में जो भी करें, वह स्वास्थ्य को बढ़ाने वाला हो। स्वास्थ्य को नजरअंदाज करके कोई काम न करें।
इसलिए मन में पहला भाव निरोगी बने रहने का होना चाहिए और उसके लिए प्रयास भी किए जाने चाहिए। इसके बाद जो भाव मन में आना चाहिए वह है धन दौलत कमाने का। लेकिन देखा ये जाता है कि स्वास्थ्य की परवाह किए बिना केवल पैसा कमाकर भोग विलास को बढ़ाने में तो लग जाते हैं, पैसा आ भी जाता है, लेकिन स्वास्थ्य रह जाता है। फिर उसी पैसे को स्वास्थ्य बनाने के लिए लगाया जाता है, लेकिन स्वास्थ्य पैसे से नहीं बनता।
अगर हर दिन सुबह स्वास्थ्य बनाने के लिए थोड़ा समय दिया जाए, तो व्यक्ति स्वस्थ शरीर के साथ ज्यादा काम कर अधिक कमा सकता है, जबकि रोगी शरीर के साथ व्यक्ति जिंदगी की दौड़ में पीछे रह जाता है। मोटापे को दूर करने के लिए योगाभ्यास के साथ-साथ खानपान पर भी विशेष ध्यान दें। ऐसा कुछ न खाएं, जो मोटापा बढ़ाने में मदद करे। सुबह खाली पेट एक से दो गिलास गर्म पानी में आधे नींबू का रस और दो चम्मच शहद डालकर पीएं। रात में सोने से पहले एक चम्मच त्रिफला को पानी में उबालकर पीएं।
ज्यादा कड़वा लगे तो उसमें दो चम्मच शहद डाल सकते हैं। हफ्ते में एक दिन उपवास रखकर केवल तरल पदार्थ लें। योगाभ्यास सुबह खाली पेट शौचादि के बाद खुले वातावरण में करने चाहिए। शवासन कमर के बल सीधे लेटकर दोनों पैरों में एक से डेढ़ फुट का अंतर रखकर पैरों को एकदम ढीला छोड़ दें।
इसी प्रकार दोनों हाथ जंघाओं से कुछ दूरी पर जमीन पर रखकर हथेलियों का रुख ऊपर रखते हुए हाथों को एकदम ढीला छोड़कर अपने ध्यान को सांस की गति पर ले आएं। सांस धीरे-धीरे आनी और जानी चाहिए। शरीर के किसी भी भाग में कोई स्थूल गति, हलचल और तनाव नहीं होना चाहिए। कुछ देर के लिए इसी आसन में लेटे रहें। लाभ शरीर की थकान मिटाने में यह लाभकारी है।
मानसिक तनाव, चिंता, डिप्रेशन, हाईब्लडप्रेशर, हृदय रोग और नींद न आने की बीमारी में यह व्यायाम फायदेमंद होता है। उत्साह, उमंग, उल्लास, आनंद और प्रसन्नता का संचार मन में होने लगता है। यह व्यायाम शरीर को रिलैक्स कर देता है। बाह्यवृत्ति प्राणायाम किसी भी आसन में आराम से बैठकर धीरे-धीरे सांस भरें और फिर धीरे-धीरे निकाल दें।
अधिक से अधिक सांस निकालने के बाद मूल बंद लगा लें। इसके बाद पेट को अंदर की ओर खींचकर कमर के साथ चिपकाते हुए उड्डियान बंध लगा लें और फिर जालंधर लगा लें। इसमें पूरी तरह तीनों बंध लग जाऐंगे। थोड़ी देर सांस बाहर रोकने के बाद बंधों को खोलते हुए सांस भर लें। 3-4 बार इसका अभ्यास कर लीजिए।
लाभ इसके नियमित अभ्यास से कब्ज, अपच, गैस बनना, डकारें, भूख न लगना और एसिडिटी आदि उदर रोग दूर हो जाते हैं। यह डायबीटीज में भी लाभकारी है। लीवर, प्लीहा, आतं ,ंे मलाशय और मत्रू ाशय का े बल देता है। शरीर का शोधन करता है। स्वप्नदोष, शीघ्रपतन, धातु रोग और वीर्य संबंधी रोग दूर करने वाला है। सावधानी हाई ब्लडपे्रशर, दिल की बीमारी और पेट के आॅपरेशन में इसका अभ्यास न करें।
उज्जायी प्राणायाम किसी भी आसन में आराम से बैठकर धीरे-धीरे नाक से सारी सांस बाहर निकालें। उसके बाद सांस को धीरे-धीरे भरना शुरू करें और गले की सभी मांसपेशियों को टाइट करके गले से आवाज करते हुए सांस भरें। गले से आवाज आनी चाहिए, जैसे सांस टकराहट के साथ अंदर जा रही हो। सांस भरते रहें।
लगातार ऐसा करते रहने से एक कंपन सी हृदय से लेकर मस्तिष्क तक होने लगेगी। जब सांस पूरा भर लें, तब जालंधर बंध हटाकर हाथ की प्राण् ाायाम मुद्रा बनाकर नासिका पर ले आएं। अब दाईं नासिका को बंद कर बाईं नासिका से धीरे-धीरे सांस को बाहर निकाल दें। इसको 8-10 बार कर लीजिए। लाभ हृदय में कंपन के द्वारा उसकी शक्ति को बढ़ाता है और हृदय में रक्त की रूकावटों को दूर करता है।
सभी पक्र ार स े हृदय रागे ा ंे का े दरू कर देता है। गले में कफ के जमाव को दूर कर खर्राटों को कम कर देता है। थाइराइट व पैराथाइराइट ग्रंथि को स्वस्थ बनाता है। हाइपो थाइरायड के कारण अगर वजन बढ़ा हो, तो इससे कम हो जाता है। आवाज को मधुर बनाता है और धातु संबंधी दोषों को दूर करता है।
मंदाग्नि, क्षय, कास, ज्वर आदि रोगों में लाभकारी है। रक्त की मात्रा बढ़ाकर मस्तिष्क का बल देता है। भस्त्रिका प्राणायाम किसी भी आसन में बैठकर तेजी से सांस को दोनों नासिका रंध्रों से अधिक से अधिक बाहर फेंके। बिना सांस रोके अधिक से अधिक सांस भरें फिर बाहर फेंके और भरें। इस प्रकार बार-बार धीमी गति से सांस फेंकते रहें और भरते रहें।
30-40 बार सांस निकालने व भरने के बार सारी सांस बाहर निकाल दें। अब हाथ की प्राणायाम मुद्रा बनाकर नाक पर ले जाएं। बाईं नाक को बंद कर दाईं नाक से धीरे-धीरे सांस भरें। अधिक से अधिक सांस भरने के बाद जालंधर बंध लगाकर मूलबंध लगा लें। सांस को बहुत थोड़ी देर अंदर रोकें, फिर धीरे से बंध हटाकर बाईं नासिका से सांस बाहर निकाल दें। यह चक्र भस्त्रिका प्राणायाम कहलाता है।
2-3 चक्र इसका अभ्यास कर लें। लाभ यह व्यायाम वात, पित्त और कफ से उत्पन्न रोगों को खत्म कर देता है। जठराग्नि को बढ़ाता है। निम्न ब्लडप्रेशर, डिपे्रशन, अनिद्रा, जाडे ा़ ,ंे घटु न े का ददर्, नजला-जकु ाम, सिरदर्द और भूलने की बीमारी मे लाभकारी है। यह मधुमेह, मोटापे, भूख न लगना और अस्थमा में लाभ देता है।
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