प्रश्न: यंत्र की परिभाषा क्या है? यंत्र का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर: यं $ त्र = जो नियंत्रण करता है, उसे यंत्र कहते हैं। एक रहस्यमय रेखा चित्र को भी (संस्कृत शब्दकोश के अनुसार) यंत्र कहा जाता है। वैदिक ग्रंथों में यह बताया गया है कि मंत्र देवता, अथवा देवी का मन है तथा यंत्र उनका बाह्य स्वरूप, अर्थात् शरीर है।
यंत्र मंत्रमयं प्रोक्तं मन्त्रात्मा दैवतैवहि। देहात्मनोर्यथा भेदो यन्त्र देवतयोस्तथा।।
मंत्र देवताओं के मन का कारक है, यंत्र देवताओं का विग्रह है। जिस प्रकार शरीर एवं आत्मा में संबंध होता है, उसी प्रकार मंत्र एवं यंत्र में आपसी भेद नहीं होता (यंत्र की पूजा किये बिना देवता प्रसन्न भी नहीं होते) अतः देवता को प्रसन्न करने के लिए उसके यंत्र की पूजा करनी चाहिए।
प्रश्न: यंत्र कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर: यंत्र, आकार के अनुसार, 4 प्रकार के होते हैं:
- भूपृष्ठ यंत्रः यह समतल यंत्र होता है।
- मेरु पृष्ठ यंत्रः यह पर्वताकार, ऊपर की ओर उठा हुआ होता है।
- कूर्म पृष्ठ यंत्रः यह कछुए की पीठ के आकार का होता है।
- पद्म पृष्ठ यंत्रः इस प्रकार के यंत्र पर रेखाएं एवं त्रिकोण आदि उभरे हुए होते हैं। यंत्र अन्य सामान्य आकृतियों में भी निर्मित किये जाते हैं, जैसे स्वस्तिक, पेंडुलम, त्रिकोण आकार, शंखाकार, पान के आकार का आदि।
प्रश्न: यंत्र, अथवा मूर्ति पूजा में भेद क्या है तथा यंत्र कैसे लाभ प्रदान करते हैं?
उत्तर: यंत्रों पर अंकित रेखा, वृत्त तथा संख्या आदि एक प्रकार से शुद्ध एवं सात्विक पर्यावरण का निर्माण करते हैं, जिसके प्रभाव से यंत्र के इर्द-गिर्द रहने वाले जातकों को यंत्र, अपनी शक्तिमय पर्यावरण परिधि की सहायता से, निरंतर लाभ प्रदान करता रहता है। प्रत्येक देवता का क्षेत्र निश्चित होता है। इन्हीं क्षेत्रों में उनकी शक्तियां विद्यमान होती हैं; अर्थात् यंत्र संबंधी देवता की प्रमुख शक्ति उस यंत्र में विद्यमान होती है। यही जातक को लाभ प्रदान करती है। अतः यंत्र पूजा मूर्ति पूजा से कहीं अधिक लाभकारी मानी गयी है।
प्रश्न: यंत्र कब स्थापित करना चाहिए?
उत्तर: जिन जातकों को उनके अच्छे कर्मों का बुरा फल मिलता हो, अथवा बुरे समय बार-बार आते हों, तो उन्हें, मूर्ति पूजा की अपेक्षा, यंत्र पूजा, उपासना, दर्शन आदि अधिक लाभ देते हैं। कुछ जातक चाह कर भी मंत्र जप, पाठ, पूजा आदि नहीं कर पाते हैं। ऐसे जातकों को यंत्र स्थापना से अधिक लाभ मिल सकता है। किसी विशेष कार्य के लिए भी यंत्र स्थापना की जा सकती है, जैसे रोग, या ऋण से मुक्ति, शत्रु नाश या लक्ष्मी प्राप्ति। जो यंत्र विशेष कार्य के लिए स्थापित किए जाएं, उन्हें, कार्यसिद्धि के बाद, विसर्जित कर देना चाहिए। धन, ऐश्वर्य एवं शांति प्राप्ति के लिए स्थापित यंत्रो को सवर्दा रखा जा सकता है।
प्रश्न: किस जातक को कौनसा यंत्र लाभकारी होगा, जातक इसका निर्णय कैसे करें?
उत्तर: वैसे तो सभी यंत्र सभी जातक उपयोग कर सकते हैं, परंतु यंत्र को अपनी अनुकूलता के लिए उपयोग करने से पूर्व इन बातों का ध्यान रखेंः कमजोर ग्रहों के यंत्र उनके प्रभाव को बढ़ावा देते हैं; नीच, चंडाल, अशुभ, शत्रु क्षेत्रीय ग्रहों के दुष्प्रभाव को रोकते हैं। धर्म, अध्यात्म में सफलता के लिए गीता, गायत्री, राम रक्षा, मत्स्य, विष्णु यंत्र लाभकारी हैं। चिंता, पीड़ा, भय आदि के लिए हनुमान, भैरव, गणेश, दुर्गा आदि यंत्र शुभ हैं। लंबी बीमारी, खतरा, शत्रुता से रक्षा के लिए बीसा, बगलामुखी, महामृत्युंजय, महाकाली आदि यंत्रों का उपयोग करना चाहिए। वैवाहिक सुख, शांति, संतान प्राप्ति के लिए कृष्ण, बाल कृष्ण, संतान गोपाल, कनक धारा, श्री यंत्र आदि का उपयोग करना चाहिए। विद्या, ज्ञान, शिक्षा, सम्मान के लिए गुरु यंत्र, सूर्य यंत्र, गणपति यंत्र, सरस्वती यंत्र आदि का उपयोग करना चाहिए।
प्रश्न: क्या यंत्र सर्वोत्तम ज्योतिषीय उपाय है?
उत्तर: प्रत्येक जातक के जन्म संबंधी नक्षत्र, राशि, योग, करण आदि से जुड़े हुए अनेक दोष पाये जाते हैं। कुछ जातकों को दोष के बारे में पता भी नहीं होता है। ऐसी स्थिति में सर्वोत्तम उपाय यंत्रों द्वारा किया जा सकता है। किसी भी संदिग्ध प्रभाव को उत्तम एवं लाभकारी बनाने के लिए यंत्रों का उपयोग करना अधिक उचित है।
प्रश्न: यंत्र संबंधी वैज्ञानिक पक्ष क्या है?
उत्तर: यदि शारीरिक स्तर पर देखा जाए, तो प्रत्येक जातक गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में होता है। इसी प्रकार यंत्रों में भी गुरुत्वाकर्षण एवं आकाशीय ऊर्जा पाये जाते हैं। इस आकाशीय ऊर्जा के द्वारा जातक के आसपास के वातावरण में उत्पन्न होने वाले खतरनाक विषाणुओं से यह रक्षा करता है तथा यंत्र की दिशाओं एवं विदिशाओं में स्थापित अनेक दैवीय शक्तियां जातक को समृद्ध एवं शक्तिशाली बनाती हैं।
प्रश्न: यंत्र स्थापित करने की सामान्य विधि क्या है?
उत्तर: किसी भी सोम, बुध, शुक्र, गुरु आदि वारों में, दिन के मध्य भाग, अथवा सूर्योदय के समय, पूर्व मुख बैठ कर, शुद्धता एवं विश्वासपूर्वक, पंचामृत से यंत्र को धो कर, हल्दी, चंदन, अक्षत पुष्प आदि से पूजन कर के, अथवा कर्मकांडी की सहायता से पूजन एवं प्राण प्रतिष्ठा कर के, इसकी स्थापना करनी चाहिए। दशहरा नव रात्रि, शिव रात्रि आदि प्रमुख पर्वों में इसकी विशेष पूजा करनी चाहिए।
प्रश्न: यंत्र को स्थापित करने के पश्चात क्या करना चाहिए?
उत्तर: यंत्र का असर दर्शन मात्र से प्राप्त होता है। अतः यंत्र को ऐसे स्थान पर रखना चाहिए, जहां उसके नित्य दर्शन हो सकंे एवं वह शुद्ध भी रहे। हो सके तो प्रतिदिन यंत्र के देवता का 108 की संख्या में जप भी करना चाहिए। जप करने से यंत्र के फल में कई गुणा वृद्धि होती है।
प्रश्न: यंत्र टूट जाए, खो जाए, चोरी हो जाए, अशुद्ध हो जाए, तो क्या करना चाहिए?
उत्तर: यदि कोई यंत्र टूटता है, अथवा उसकी चोरी आदि होती है, तो वह एक प्रकार का शकुन है, अर्थात उससे संबंधित विपत्ति टलने का संकेत है; यद्यपि, टूटने एवं चोरी होने की स्थिति में नया यंत्र प्राप्त कर के, पुनः स्थापित करना चाहिए। अशुद्ध होने पर पुनः शुद्धिकरण, पूजा एवं प्रतिष्ठा करें। तत्पश्चात, प्रायश्चित्तस्वरूप, गायत्री मंत्र का 108 संख्या में जप करना चाहिए। इस प्रकार शकुन को ध्यान में रख कर, यंत्र पुनः स्थापित करना चाहिए।