टैरो पद्धति तथा वैदिक ज्योतिष
टैरो पद्धति तथा वैदिक ज्योतिष

टैरो पद्धति तथा वैदिक ज्योतिष  

उमा कपुर
व्यूस : 8986 | अप्रैल 2012

टैरो पद्धति एवं वैदिक ज्योतिष दोनों को भविष्य फल कथन की विभिन्न प्रणालियों में से ऐसी विद्याएं मानी हैं जिनका भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में सर्वाधिक प्रचलन हो रहा है। आज विज्ञान ने मानव जीवन को सरल एवं सुखमय बनाने के लिये जहां अनेक आविष्कार किये हैं, वहीं इन्हें सुखी बनाने वाले साधनों ने जीवन को इतना जटिल बना दिया है कि प्रत्येक व्यक्ति चिंताओं में डूबा है। अब इन चिंताओं के भार से दबी जिंदगी अपने जीवन की समस्याओं का निदान ज्योतिष अथवा टैरो में देखती है। ज्योतिष की अपेक्षा टैरो कार्ड का अध्ययन सरल समझा जाता है। इसमें कुल 78 कार्ड हैं, जिसमें से 22 मुख्य अरकाना के अतिरिक्त 52 ताश के पत्तों से संसार के सभी देशों और सभ्यताओं के लोग परिचित हैं। इनमें चार और जोड़ दिये गये हैं। मुख्य अरकाना में भी चित्रों के माध्यम से समझाया गया है। जहां वैदिक ज्योतिष को अध्ययन करने के लिये एक लंबा समय चाहिए एवं भाषा, गणित, भूगोल एवं भौतिक शास्त्रों की एक सामान्य समझ होना आवश्यक है। वहीं दूसरी ओर चित्रों की भाषा को आत्मसात करना उतना कठिन नहीं है। टैरो कार्ड के चित्रों और संख्याओं को एक छोटा बच्चा जिसे अक्षरों एवं अंकों का ज्ञान है,

अथवा कोई सामान्य व्यक्ति जो साक्षर है आसानी से पढ़ लेता है। यह एक मनोवैज्ञानिक अध्ययन की विधि है। जिन व्यक्तियों को अंतज्र्ञान का आशीर्वाद प्राप्त है वे आसानी से इन्हें पढ़कर इनसे फल कथन कर सकते हैं। अलबत्ता जिन्होंने वैदिक ज्योतिष का अध्ययन किया है तथा जिन्हें ज्योतिष का अच्छा ज्ञान है, उनके द्वारा टैरो कार्ड का फल कथन सरल व सटीक हो जाता है। एक सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा वे इस विद्या में अधिक निपुण हो जाते हैं। प्रायः टैरो कार्ड से फल कथन करने वाले भी ज्योतिष का अध्ययन करते हैं। इसका प्रमुख कारण है कि टैरो कार्ड में राशियों, ग्रहों, नक्षत्रों, रंगों तथा अंकों का सभी चित्रों में प्रयोग किया गया है। इनमें ज्योतिष की राशियों के समान उन चारों तत्वों अग्नि, वायु, जल तथा पृथ्वी को प्रयोग किया गया है। अतः टैरो अध्ययन की सूक्ष्मता में वैदिक ज्योतिष का बहुत बड़ा योगदान है। वैदिक ज्योतिष पद्धति भारत में विकसित हुई वह विद्या है जिसे वेदों के छः प्रमुख अंगों में स्थान दिया गया है। यह वेदों की आंख मानी गई है। जैसे मानव शरीर में आंखें न होने पर मनुष्य जी तो लेगा, परंतु उसका जीवन कितना अधूरा होगा, यह कल्पना के परे का विषय है। वैदिक ज्योतिष भारत के प्राचीन ऋषि मुनियों, विद्वानों के सैकड़ो वर्षों की खोज का परिणाम है। आज भी किसी जातक के जन्म का समय, स्थान एवं काल का सही विवरण ज्ञात होने पर उसके भूत, वर्तमान एवं भविष्य के निश्चित समयावधि पर संपन्न होने की पूर्ण जानकारी दी जा सकती है। जातक के जीवन में होने वाली संपूर्ण घटनाक्रम का विवरण दिया जा सकता है। लेकिन टैरो कार्ड पद्धति में चंद दिनों से लेकर एक वर्ष तक की अवधि में होने वाली घटना क्रम के विषय में ही बताया जा सकता है।


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यह एक मनोवैज्ञानिक पद्धति है, जिसमें व्यक्ति न केवल दूसरों के विषय में बल्कि अपने गहन अंतर्मन को परतों में छिपे रहस्यों के विषय में ज्ञान प्राप्त कर सकता है, जिसे सामान्यतः बाहरी व्यक्तित्व को पता नहीं होता, लेकिन वो जीवन को बहुत निश्चित रूप से प्रभावित करती है। वैदिक ज्योतिष का विकास आज से हजारों वर्षों पूर्व माना जाता है, जबकि टैरो कार्ड का उल्लेख कुछ सदियों से ही इसका प्रारंभ माना जा रहा है। इतिहासकारों की मान्यता है कि अति प्राचीन काल में भारत में टैरो कार्ड का प्रयोग किया जाता था, जिन्हें गंजीफा कार्ड कहा जाता था। वे गोल आकार के होते थे, जिनके एक ओर देवी, देवताओं, राजा, रानी आदि के चित्र होते थे। इनको मनोरंजन एवं भविष्यकथन के रूप में प्रयोग किया जाता था। मध्य युग में जिप्सी लोग अपने कबीलों के साथ यात्रा करते हुए ये कार्ड यूरोप तथा पश्चिमी देशों में ले गये। कुछ की मान्यता है कि भारत के समृद्ध व्यापारी अपने साथ इन कार्ड को वहां ले गये, तथा बाद में इनमें ईसाई, यहूदी व अन्य धर्मों में से संबंधित व्यक्तियों के प्रतीक चित्रों को इसमें जोड़ दिया गया। अधिकतर विद्वान टैरो का स्रोत भारत से जोड़कर देखते हैं।

यूरोप में चैदहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में इटली में 52 ताश के पत्तों वाला पहले कार्ड का संग्रह पाया गया है। बड़े 22 कार्ड कैसे कहां से जोड़े गये इनका कोई विवरण अभी तक ज्ञात नहीं है। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि कार्ड इजीप्त को देवी जिसे जादू एवं गूढ़ रहस्यों की अधिष्ठात्री माना जाता था की किसी पुस्तक अथवा मोहरों से प्राप्त हुए हैं। इस गूढ़ विद्या का इतिहास अनेक व्यक्तियों व देशों से जोड़कर देखा जाता है। जहां प्राचीन सभ्यताओं का विकास हुआ। इनका वर्तमान इतिहास उन्नीसवीं सदी से प्रारंभ माना जाता है, जब यह यूरोप से लेकर अमेरिका तक प्रयोग किये जाने लगे। विशेष रूप से पिछले पचास वर्षों में इनका प्रचार प्रसार बहुलता से होने लगा और पश्चिम के देशों के साथ-साथ भाारत में भी यह टैरो कार्ड पद्धति भविष्य फल कथन के रूप में प्रयोग की जाने लगी। पश्चिम में तो टैरो कार्ड भविष्य फल कथन की एकमात्र पद्धति थी। टैरो कार्डस का संबंध कबालाह, मनोविज्ञान, ज्योतिष, संख्या शास्त्र, ईसाई सूक्ष्म तंत्र एवं भारतीय दर्शन से भी जोड़कर देखा जाता है। इसमें व्यष्टि आत्मा एवं समष्टि आत्मा अथवा जिसे भारत में जीवात्मा एवं परमात्मा कहते हैं उससे जोड़कर देखा जाता है।

टैरो कार्डस को आत्मा का आईना कहा जाता है। यह हमारे अंतर्मन की परतों में छिपे रहस्यों का उद्घाटन करने के साथ-साथ आगामी जीवन में लिये जाने वाले निर्णयों में भी सहायक होते हैं। यह व्यक्ति के मन में छिपी ऐसी बातों को प्रदर्शित कर देते हैं जो अन्यथा व्यक्ति अपने में ही सीमित रखता है। यह व्यक्ति की इच्छाओं, आकांक्षाओं और उद्देश्यों को दर्शाने वाली एक सफल विधि है। यह किसी निश्चित समय पर व्यक्ति की उन अस्पष्ट इच्छाओं और अपेक्षाओं को सफलता से प्रदर्शित कर सकती है जो अन्यथा व्यक्ति अपने आप में सीमित रखता है। अतः इस पद्धति का प्रयोग केवल दूसरे लोगों के भविष्य कथन के लिये न होकर अपने स्वयं के जीवन की समस्याओं में भी सफल मार्गदर्शन करने में सक्षम हैं। इसमें कर्म के सिद्धांत को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। जो हम कर आए हैं उन्हीं का परिणाम हमारे सामने आगामी परिस्थितियों के रूप में प्रकट होता है।


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यह ही हमारी इच्छाओं, आकांक्षाओं का उद्गम अथवा प्रेरणा स्रोत है। जो भी हमारा जीवन था, है तथा होना है, सब कुछ पूर्व निश्चित है, इसे देखा और पढ़ा जा सकता है। वैदिक ज्योतिष का आधार भी कर्म का ही सिद्धांत है तथा घटनाओं और परिस्थितियों को पूर्व निश्चित मान कर ही पिछले कर्मों का फल अगले जीवन में भुगतान करना होता है। सभी व्यक्तियों का जन्म उनके पूर्वार्जित पुण्य अथवा कमजोर कर्मों का परिणाम होता है जो व्यक्ति की कुंडली का अध्ययन कर बताया जा सकता है। कुंडली का पंचम भाव पूर्व पुण्य का भाव माना जाता है। दशम भाव कर्म भाव है, जबकि नवम भाव से धर्म तथा पिता एवं विदेश यात्रा के विषय में जाना जाता है। पंचम भाव संतान का भी भाव है जबकि सप्तम पति-पत्नी के साथ-साथ साझेदारी व अन्य संबंधों को बताता है। अतः वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली का अध्ययन मनुष्य जीवन के संपूर्ण रूप का प्रदर्शन कर सकता है, लेकिन टैरो कार्ड के द्वारा यह संभव नहीं। यह वर्तमान की समस्याओं का सरल निदान है। यह उन व्यक्तियों की समस्याओं को सुलझाने में बहुत सहायक है जो मानसिक अवसाद से ग्रस्त हैं। पश्चिम में इस पद्धति का प्रयोग अवसाद से ग्रस्त व्यक्तियों के पुर्नस्थापन के लिये विशेष रूप से किया जाता है तथा टैरो रीडर को वास्तव में मनोचिकित्सक माना जाता है। आज के युग में अनेक वैज्ञानिकों एवं डाक्टरों के अध्ययन के ऐसे परिणाम सामने आए हैं,

जिनकी मान्यतानुसार शरीर में उत्पन्न होने वाले अनेक भीषण रोग जैसे- दिल की बीमारी, कैन्सर आदि का कारण मानसिक अवसाद माना जा रहा है। बीसवीं सदी के प्रमुख मनोवैज्ञानिक कार्ल जुंग का इसमें विशेष योगदान माना जाता है। उनके अनुसार जब व्यक्ति टैरो कार्ड को छांटकर गड्डी से अलग करके निकालता है तो कार्ड का चयन उसके अंदर में छिपि ऐसी भावना से प्रेरित होते हैं, जिसे वो बाहर व्यक्त करना चाहता है। यह व्यक्ति की तात्कालिक मानसिकता से प्रेरित होते हैं। यह उस क्षण व्यक्ति के अन्तष्चेतन मन की सशक्त अभिव्यक्ति है, जो बाहर प्रकट होना चाहती है। हम सभी अपनी अचेतन मन में छिपी भावनाओं को किसी बाहरी माध्यम से अभिव्यक्त करना चाहते हैं। टैरो कार्ड इसका बहुत सफल माध्यम है। टैरो के प्रत्येक कार्ड में एक प्रतीक और चिन्ह में एक संदेश निहित है। हमारी अंतरात्मा उस संदेश को जानती है, अवचेतन को यह ज्ञात है कि हम अपने जीवन को किस स्थिति में देखना चाहते हैं, परंतु चेतन मन को यह पूर्णतः विश्वास नहीं कि यह संभव हो पायेगा। टैरो कार्ड इस काम को भली भांति कर देता है। हमारी अवचेन मन की रहस्यमय परतों को यह सरलता से उद्घाटन कर देता है। प्रत्येक टैरो कार्ड का कोई निश्चित अर्थ या संकेत नहीं होता। प्रत्येक टैरो कार्ड हमारे जीवन पथ के किसी निश्चित क्षण विशेष पर एक पड़ाव मात्र है। इसके प्रतीक और चिन्ह वो कहानी कह देते हैं जिसे हम सभ्यता के बाहरी प्रभाव के कारण व्यक्त नहीं कर पाते। प्रत्येक कार्ड संयोजन की अभिव्यक्ति विभिन्न टैरो रीडर को अलग-अलग संकेत देती है। इन कार्ड की भाषा आश्चर्यजनक रूप से समृद्ध है। सामान्य पाठक इसे पढ़कर यह प्रश्न सोच सकता है कि टैरो रीडिंग कोई भविष्य के फल कथन की विधि है,


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या जीवन की समस्याओं को सुलझाने के लिये कोई माध्यम अथवा मार्ग चयन है। संभव है यह दोनों ही है। यह किसी निश्चित आधार पर ठहरा तथ्य नहीं है जो परिवर्तित न हो सके। इस तरह वैदिक ज्योतिष से यह कोसों दूर है जहां पृथ्वी तथा उसके इर्द गिर्द संचरण करने वाले ग्रह नक्षत्रों के पृथ्वी के प्राणियों के जीवन पर पड़ने वाली ऊर्जा के विश्लेषण से मनुष्य जीवन की गतिविधियों का सफल भविष्य कथन किया जा सकता है। यूं तो ज्योतिष में भी जीवन की समस्याओं से घिरे मनुष्य की नकारात्मक सोच समझा कर परिवर्तित कर सकारात्मक जीवन जीने के लिये विभिन्न प्रकार के उपाय भी ऋषि महर्षियों ने सुझाये हैं। इनमें राशि अनुसार रत्न पहनना, दान, पूजा-पाठ, मंत्र उच्चारण, नदी-सागर स्नान, साधु महात्मा, वृद्धों, असहायों की सहायता एवं विभिन्न देवी देवताओं की उपासना आदि। जीवन की समस्याओं से निराश व्यक्ति को एक सहारा अथवा आश्वासन मिल जाता है। बस अब दुःख और नहीं। सब समस्याओं के होते हुए भी जीवन जीने जैसे एक चीज है। आज हमारे बुरे कर्मों का फल उदय हुआ है तो संभव है आने वाले कल में पुण्य फल भी उदय होगा। अथवा कुछ लोग जिन्होंने पहले पुण्य फल का भोग समाप्त कर लिया हो और आज समस्याओं से त्रस्त हैं, निश्चिंत रहें, आशा की नई किरण एक न एक दिन उनके जीवन में एक नया सवेरा लायेगी जब पुनः समृद्धि और खुशहाली उनके जीवन को ओत-प्रोत कर देगा। परिस्थिति और वातावरण नहीं बदलता, हमारा उनसे संघर्ष करने का साहस और बल बदल जाता है। पाठकों को संभवतः याद हो आज से हजारों वर्ष पूर्व का इतिहास जब स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के शांति के अथक प्रयत्न करने पर भी महाभारत युद्ध को रोका न जा सकता। युद्ध में दोनों ओर खड़े संबंधी और गुरुजनों की आसन्न मृत्यु रूपी युद्ध के भयंकर परिणाम को सोचकर अर्जुन जैसा महायोद्धा भी कांप उठा। उसने हथियार फेंक दिये तथा युद्ध को छोड़कर भिक्षा वृत्ति के द्वारा शेष बचे जीवन को बिताने की बात सोची। तब उसके परम सखा, संबंधी योगेश्वर श्रीकृष्ण ने उसे भली भांति समझाया कि प्रत्येक मनुष्य अपने कर्म फल से बंधा है। न चाहते हुए भी अनेक उतार-चढ़ाव हर प्राणी के जीवन में आते ही हैं।

स्वभावजेन कौन्तेय निबद्ध स्वेन कर्मणा। कर्तुनेच्छसि यन्मोहात्करिण्यस्यवशोऽपि तत्।। (भ.गी 18 अ-श्लोक 60) ईश्वरः सर्वभूतानाम् ह्रद्देशेऽर्जुन तिष्ठति। भ्रमयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया।। (भगवदगीता अ-18 श्लो. 61) भावार्थ - हे अर्जुन मोहवश होकर आज तू जिस कार्य को करने के लिये उद्यत नहीं है, वह सब तू अपनी प्रकृति के आधीन होकर अवश्य करेगा। सब प्राणियों के हृदय में परमेश्वर का निवास है जो उनके कर्मानुसार उनके जीवन को चला रहा है। अतः टैरो कार्ड एवं वैदिक ज्योतिष दोनों ही हमें अपने अंतर्मन में बसे परमेश्वर से जोड़ने की एक प्रक्रिया है। जाने अनजाने हम सब विश्वात्मा, समष्टि-आत्मा अथवा परमात्मा से जुड़े हैं। चाहें टैरो रीडर से सलाह लें अथवा ज्योतिष मर्मज्ञ से हमें अपनी परिस्थिति से समझौता करने का साहस एकत्र करना ही पड़ता है। आज विश्व भर में एवं विशेष रूप से भारत में जीवन की समस्याऐं इतनी जटिल हो गई है कि व्यक्ति परेशानियों से घिरा दर-दर की ठोकरें खाता कहीं किसी ज्योतिषी का अता-पता खोज रहा होता है और कभी टैरो रीडर का। आज विश्व भर में आतंक, असुरक्षा, नौकरी, व्यवसाय, विवाह, तलाक, कलह, क्लेश, आर्थिक व सामाजिक कमियां उसे भंवर में फंसी छोटी सी नौका की भांति हिलाती रहती है। प्रत्येक व्यक्ति किसी भी कीमत पर धनवान, सुखी, समृद्ध होना चाहता है। इसी भावना के वशीभूत मेहनत से कमाये धन से हजारों रूपये किसी भी ज्योतिषवेत्ता अथवा टैरो रीडर को देकर समस्याओं से जूझना चाहता है। कोई न कोई उपाय की जिज्ञासा लिये या तो बहुमूल्य रत्न, नग-नगीने धारण कर अथवा किसी भी विधि से समस्या के चक्रव्यूह से बाहर निकलने की भरसक कोशिश करता है।


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आज के जीवन में शांति और संतोष की भावना खो सी गई है। कवि के शब्दों में गोधन, गजधन, बानिधन और रतन धन खान। जब आवे संतोष धन, सब धन धूरि समान। अब सन्तोष धन को खोजने के लिये टैरो रीडर की अथवा ज्योतिष मर्मज्ञ की आवश्यकता बहुत बढ़ गई है। गहनता से विचार करने पर दोनों ही विधियां हमें अच्छा मार्गदर्शन दे रही हैं। हमें अपने अंर्तमन से सुलह करने की शिक्षा देती है। वैदिक ज्योतिष का विकास जहां पूर्णतया भारतीय है वहीं टैरो कार्ड को पश्चिमी मानसिकता, सभ्यता एवं संस्कृति से जोड़कर देखा जाता है। इनके प्रतीक चिन्ह, दृश्य आदि ईसाई, कबालाह, यहूदी धर्मों से जोड़े जाने के साथ-साथ वैदिक ज्योतिष तथा भारतीय संस्कृति व साहित्य से भी जुड़े हैं। इनमें 22 मेजर अरकाना में से कार्ड संख्या आदि के प्रतीक के रूप में समझा जाता है। 1 2 हाई को मां गौरी प्रीसटैस 2 7 चैरियट को अर्जुन कार्ड 3 8 स्ट्रेन्गथ को दुर्गादेवी कार्ड 4 9 हरमिट को सन्यासी जीवन 5 10 चक्र को सौर मंडल के ग्रहों का प्रतीक 6 16 टावर को भगवत गीता अध्याय 10 7 17 स्टार को कर्क राशि 8 18 मून को मन की (उथल-पुथल) चंचलता 9 19 सन को सूर्य, आत्मा व स्वास्थ्य, प्रगति 10 21 वल्र्ड को विश्वात्मा, संपूर्णता टैरो पद्धति की पहुंच मानव मन की गहराईयों को स्पर्श करने वाली विधा है। इसे आत्मा का संगीत बजाने व सुनने का साधन समझा जाता है। यह भारतीय मानस के इस सिद्धांत से घनिष्ठ रूप से संबंधित है,

जहां कहा है- जा की रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।। टैरो कार्ड रीडर तथा प्रश्न पूछने वाले की भावना से प्रभावित रहते हैं। चित्र वही है, लेकिन देखने वाले की आंख क्या परखती है, यह उसकी मानसिकता पर निर्भर है। भारत के लोग मूलतः अंर्तमन की गहराईयों को सदा से समझते आये हैं लेकिन पश्चिम ने उन्हें एक वैज्ञानिक स्वरूप दिया है। आज से 550 वर्ष पूर्व लिखि हुई रामचरितमानस की कुछ चैपाईयां यहां उदाहरण रूप में प्रस्तुत है - जिन्ह के रही भावना जेसी। प्रभु मूरत तिन्ह देखी तैसी।। देखहिं रूप महा रनधीरा। मनहुं वीर रस धरे समीरा।। डरे कुटिल नृप प्रभुति निहारी। मनहुं भयानक मूरति भारी।। विदुषन्ह प्रभु विराटमय दीसा। बहु मुखकर पग लोचन सीसा।। जोगिन्ह परम तत्वमय मासा। हरिभगतन देखे दोऊभ्राता। ईष्ट देव इव सब सुख दाता।। रामजी को प्रत्येक व्यक्ति अपनी अपनी भावना के अनुरूप देखते हैं। एक टैरो रीडर को सफल बनने के लिये योग, ध्यान, रेकी, मंत्रोच्चार आदि को साधना करना बहुत सहायक होता है। सफल भविष्य कथन के लिये इन साधनाओं का दैनिक अभ्यास किया जाता है। वैदिक ज्योतिष में अनेक समस्त् शास्त्रों के अध्ययन के साथ साथ सूर्य उपासना, गणेश एवं देवी सरस्वती की उपासना ही व्यक्ति को सफल भविष्यवक्ता बना सकती है।

ऐसा ज्योतिषी जिसकी भविष्यवाणी हमेशा सत्य होगी उसे- गणितेशु प्रविणो यः, शब्द शास्त्रे कृत श्रमः। न्यायविद, बुद्धिमान, देश दिक्कालज्ञो जितेन्द्रियः।। अहापोह पटुर्होरा स्कन्ध श्रवण सम्पतः। मैत्रेय सत्यम याति तस्य वाक्यं न संशयः।। गणित में प्रवीण, शब्द शास्त्र में योग्य, न्यायविद, बुद्धिमान, जितेन्द्रिय, देश दिशा और काल का ज्ञाता ऊहापोह (सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर निर्णय लेने की क्षमता) पटु तथा फलित ज्योतिष का अच्छा जानकार होना चाहिए। केवल कुछ पुस्तकें पढ़ लेने मात्र से न तो कोई व्यक्ति अच्छा टैरो रीडर हो सकता है न ही भविष्य कथन करने वाला कालज्ञ। अतः संक्षेपतः दोनों ही विद्याओं की विवेचना करने पर कुछ मुख्य समानताएं एवं विविधताएं स्पष्ट होती हैं-

1. ज्योतिष एवं टैरो कार्ड भविष्य फल कथन की विभिन्न प्रणालियां हैं।

2. टैरो कार्ड अध्ययन सरल एवं ज्योतिष का सम्यक ज्ञान परिश्रम साध्य है।

3. ज्योतिषीय गणना संपूर्ण जीवन से संबंधित होती है एवं दीर्घकालिक फल कथन किये जाते हैं। टैरो कार्ड का भविष्यकथन निकट भविष्य एवं वर्तमान को परखने की विद्या है।

4. वैदिक ज्योतिष का विकास पूर्णतया भारतवर्ष में हुआ है। टैरो कार्ड अध्ययन विधि का वर्तमान स्वरूप पश्चिमी देशों में विकसित एवं प्रचारित हुआ है।

5. वैदिक ज्योतिष का आधार समय स्थान तथा काल का सूक्ष्म अध्ययन कर विश्वव्यापी नियमों का अनुसंधान है जो सभी समय, देश व व्यक्तियों का पूर्ण चित्रण प्रस्तुत करते हैं। टैरो कार्ड के कोई निश्चित नियम या आधार नहीं है, जिनसे सार्वकालिक अथवा सार्वभौमिक नियम बनाये जा सकें।


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6. टैरो कार्ड प्रणाली एक कला है, जबकि वैदिक ज्योतिष विज्ञान सम्मत शास्त्र है। निश्चय ही दोनों मानव जीवन को सरल एवं सुखमय बनाने का एक प्रयास हैं। हमारे दैनिक जीवन की कठिनाईयों में बढ़ते रहने की प्रेरणा इन दोनों में ही समान रूप से हो जाती है। अपना तथा अपनों का अध्ययन भावी निर्णय लेने में सहायक की भूमिका निबाहता है।

 


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