भगवान शिव का आशीर्वाद - रुद्राक्ष डाॅ. संजय बुद्धिराजा रुद्राक्ष का परिचय रुद्राक्ष वह अद्भुत वस्तु है जिसे करूणा के सागर, संसार को विष की ज्वाला से बचाने वाले, उत्पत्ति-पालन-विनाष के कत्र्ता भगवान षिव स्वयं धारण करते हैं। रुद्राक्ष का अर्थ है - रूद्र का अक्ष अर्थात षिव के आंसू. अर्थात रुद्राक्ष षिव स्वरूप ही है। रुद्राक्ष मानव के लिये अपने अंतर्मन में गहराईयों तक जाने का स्रोत है। इसे पृथ्वी व स्वर्ग के बीच का सेतु माना जाता है। भारत के प्राचीन ग्रंथों व पुराणों में रुद्राक्ष का वर्णन बखूबी मिलता है जैसे कि षिवमहापुराण, निर्णयसिंधु, लिंगपुराण, पद्मपुराण, मंत्रमहार्णव, महाकाल संहिता, रुद्राक्षजाबालोपनिषद, वृहज्जाबालोपनिषद्, और सर्वोल्लासतंत्र में रुद्राक्ष के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है। एक समय भारतवर्ष में रुद्राक्ष का बहुत प्रचलन था। सभी छोटे-बड़े व्यक्ति रुद्राक्ष की माला अवष्य पहनते थे। परंतु अंग्रेजों के आने के बाद रुद्राक्ष का महत्त्व कम हो गया क्योंकि अंग्रेज लोग रुद्राक्ष पहनने वाले लोगों को असभ्य व जंगली कहते थे। धीरे धीरे लोग भी रुद्राक्ष के गुणों को भूल कर इसका प्रयोग कम करने लगे। रुद्राक्ष दरअसल भूरे रंग के दाने होते हैं जो कि रुद्राक्ष नामक फल के बीज होते हैं। यह फल रुद्राक्ष के पेड़ पर लगता है। जीव विज्ञान में रुद्राक्ष के पेड को ‘‘उतरासम बीड ट्री’’ कहा जाता है। इसके पत्ते हरे रंग के होते हैं। फल भूरे रंग का और स्वाद कसैला होता है। रुद्राक्ष वृक्ष अधिकतर इंडोनेषिया, नेपाल, भारत, जावा, सुमात्रा, बाली और ईरान, में पाये जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार लगभग 65 प्रतिषत रुद्राक्ष वृक्ष इंडोनेषिया में, 25 प्रतिषत नेपाल में और 5 प्रतिषत भारत में पाये जाते हैं। रुद्राक्ष के जन्म की कथा धार्मिक गं्रथ ‘‘देवी भागवत पुराण’’ के अनुसार जब सभी देवता त्रिपुरासुर नामक राक्षस के अत्याचारों से दुखी हो गये तो वे मदद के लिये भगवान षिव के पास पंहुचे। षिव तो सभी की मदद के लिये अग्रसर रहते हैं तो उन्होने त्रिपुरासुर का वध करने के लिये रूद्र (क्रोध) का रूप धरा और उसका अंत किया। तत्पष्चात षिव कुछ समय के लिये अंर्तध्यान हो गये और जब उन्होने अपनी कमल समान आंखें खोली तो उनमें से कुछ आंसू धरती पर गिर गये। बाद में वे ही आंसू रुद्राक्ष के वृक्ष बन कर उभरे। रत्नों से भिन्न रुद्राक्ष शास्त्र कहते हैं कि कितने भी मुख वाला रुद्राक्ष पहना जा सकता है। ये रत्नों की तरह से हानि नहीं पंहुचाते क्योंकि रुद्राक्ष कभी भी ऋणात्मक ऊर्जा उत्सर्जित नहीं करते। रत्नों को तो किसी सुयोग्य ज्योतिषी से ही सलाह लेकर पहना जा सकता है क्योंकि गलत रत्न पहनने से लाभ की जगह हानि भी हो सकती है जबकि आमतौर पर रुद्राक्ष को कोई भी व्यक्ति कभी भी धारण कर सकता है। किसी भी रत्न की माला से रुद्राक्ष माला अधिक पवित्र, षुभ व शक्तिषाली होती है। रुद्राक्ष की कार्यप्रणाली प्रत्येक इंसान की अपनी अपनी ‘‘ओरा’’ (ऊर्जा क्षेत्र) होती है जो उसके षरीर के चारो ओर 2 से 4 इंच तक की परिधि में रहती है। यह इंसान की आत्मिक ऊर्जा को दर्षाती है। यह अपने अंदर इंद्रधनुष के सभी रंग समेटे होती है। यही ऊर्जा व रंग ही इंसान के स्वभाव, गरिमा, मानसिक स्थिति, भावनाओं, इच्छाओं आदि के बारे में संकेत देते हैं। यह ओरा अंगुठे की छाप की तरह होती है जो कि प्रत्येक इंसान की अपनी अलग होती है और यह बताती है कि इंसान अपने आप में पूर्ण रूप से क्या है। यह माना जाता है और अब तो सिद्ध भी हो गया है कि रुद्राक्ष की अपनी कुछ खास चुंबकीय और विद्युतीय तरंगें होती हैं। जब कोई व्यक्ति रुद्राक्ष को दिल के पास पहनता है तो उसमें से कुछ विषेष रष्मियां या किरणें निकलती हैं जिनकी गुणवत्ता रुद्राक्ष के मुखों के अनुसार होती हैं। ये किरणें ही उस व्यक्ति के दिमाग के तंतुओं और कोषिकाओं को प्रभावित कर उसकी ओरा को पवित्र और षुद्ध रखने में मदद करती हैं। मेडिकल सांइस में भी यह बात सिद्ध हो चुकी है कि रुद्राक्ष में ऐंटी ऐजिंग गुण होते है जो उसकी डायनेमिक पोलेरिटी के कारण होते हैं। इसी कारण रुद्राक्ष की हीलिंग षक्ति किसी भी चुंबक आदि से अधिक होती हैं। रुद्राक्ष को किसी धातु विषेष जैसे कि सोने, चांदी या काॅपर के साथ भी पहना जा सकता है जो कि रुद्राक्ष की चुंबकीय व विद्युतीय गुणों को और अधिक बढा सकते हैं। गुणवत्ता की जांच रुद्राक्ष के पानी में डूबने या तैरने की विधि भी प्रामाणिक जांच नहीं है। सबसे अच्छा जांच का तरीका तो अनुभव ही है और कोषिष करें कि वहां से लें जहां पर भरोसा हो। एक अन्य तरीका है कि रुद्राक्ष को यदि यह असली रुद्राक्ष है तो इसका कुछ भी नहीं बिगडेगा और यदि यह नकली रुद्राक्ष है तो इसमें दरारें पड़ जायेंगी, इसका रंग उतर जायेगा, इसका आकार बदल जायेगा या यह बदबू देने लगेगा। रुद्राक्ष से संबंधित कुछ सावधानियां रुद्राक्ष सामान्य रूप से किसी भी व्यक्ति को स्वास्थ्य, षांति व समृद्धि देता है. हालांकि रुद्राक्ष की षक्ति किसी भी रत्न, यंत्र, तंत्र या मंत्र से अधिक है फिर भी रुद्राक्ष धारक को रुद्राक्ष की शक्ति और पवित्रता बनाये रखने के लिये कुछ नियम मानने चाहियें जो कि इस प्रकार हैं: रुद्राक्ष को किसी षुभ मुहुर्त में सोमवार या गुरूवार को पहनना चाहियेÛ रुद्राक्ष को धारण करने से पहले दूध, घी, तेल आदि से धोकर साफ व षुद्ध करना चाहिये। तत्पष्चात् रुद्राक्ष के मुख संख्या के अनुसार मंत्रों से जाप कर रुद्राक्ष को ऊर्जा देनी चाहिये व कार्यषील बनाना चाहिये। रोजाना सुबह नहाने के पश्चात् पूर्व दिषा की ओर मुख कर रुद्राक्ष मंत्रों का 9 बार जाप करके और रुद्राक्ष को घूप-दीप दिखाकर पहनना चाहिये। यही प्रक्रिया सोने से पहले भी दोहरानी चाहिये और सोने से पहले रुद्राक्ष को उतार कर पूजा स्थल पर रख देना चाहिये। रुद्राक्ष धारक को मांसाहारी भोजन व मदिरा सेवन नहीं करना चाहिये। उसे हमेषा सच बोलना चाहिये व रोजाना भगवान षिव के मंदिर में उनके आर्षीवाद के लिये जाना चाहिये। अषुभ स्थानों जैसे कि ष्मषान आदि पर रुद्राक्ष को नहीं ले जाना चाहिये। रुद्राक्ष को उस स्थान पर भी नहीं ले जाना चाहिये जहां किसी षिषु ने जन्म लिया हो। स्नान व षौचालय के समय भी रुद्राक्ष को धारण नहीं करना चाहिये। साबुन रुद्राक्ष के गुणों को प्रभावित करता है। स्त्री प्रसंग के समय भी रुद्राक्ष को उतार देना चाहिये। यदि रुद्राक्ष धारक स्त्री है तो उसे अपने महावारी के दिनों में रुद्राक्ष को उतार देना चाहिये। रुद्राक्ष को हमेषा साफ रखना चाहिये। धूल और मिटटी रुद्राक्ष के दानों के छिद्रों में जमा हो सकती है। उसे तुरंत किसी ब्रष आदि से साफ कर देना चाहिये। तत्पष्चात् गंगाजल से धो लेना चाहिये। रुद्राक्ष को तेल से भी धोना चाहिये और धूप आदि भी दिखाना चाहिये, विषेषकर उन दिनों में जब रुद्राक्ष कुछ समय के लिये प्रयोग में नहीं लिया जा रहा है। जो लोग त्वचा रोग के कारण किसी तरह की माला आदि नहीं पहन सकते, उन्हें रुद्राक्ष को पूजा स्थल पर रख कर पूजा-नमस्कार आदि करना चाहिये। रुद्राक्ष माला किसी अन्य व्यक्ति से बदलनी नहीं चाहिये। रुद्राक्ष पहनने के 40 दिन के बाद व्यक्ति को अपने अंदर व अपने व्यवहार में बदलाव महसूस होने लगता है। विभिन्न प्रकार के रुद्राक्ष एवं उनके लाभ विभिन्न प्रकार के रुद्राक्ष उनकी ‘‘मुख संख्या’’ के अनुसार जाने जाते हैं। रुद्राक्ष के दानों यानि मनकों पर कुछ धारियां सी होती हैं जिन्हें ‘‘मुख’’ कहा जाता है. इन्हीं मुखों के सहारे ही रुद्राक्ष की गुणवत्ता भी जांची जाती है। इन्हीं धारियों या मुखों के अनुसार ही रुद्राक्ष एक मुखी से बहुमुखी कहे जाते हैं। षास्त्रों में 1 से 32 मुखी तक के रुद्राक्ष की बात की गई है लेकिन ज्योतिषीय दृष्टि से 1 से 14 मुखी तक के रुद्राक्ष ही उपयोग में लाये जाते हैं। 32 मुखी तक के रुद्राक्ष आसानी से मिलते भी नहीं हैं। केवल 14 मुखी तक के रुद्राक्ष ही आसानी से मिल पाते हैं. कभी कभी 16 या 18 मुखी रुद्राक्ष भी उपलब्ध हो जाता है। लक्ष्मणझूला के स्वामी कैलाषानंद जी के पास 14 से 27 मुखी रुद्राक्षों का संग्रह है। हरिद्वार के श्री षिवदास मूलचंद खत्री जी के पास 36 और 37 मुखी तक के रुद्राक्ष देखे गये हैंलंकापति रावण द्वारा लिखे गये एक ग्रंथ में 108 मुखी तक के रुद्राक्ष होने की बात कही गयी है। परंतु यह ग्रंथ भी सुलभता से उपलब्ध नहीं है। प्राचीन पांडुलिपि ‘‘रुद्राक्ष कल्प’’ में भी 108 मुखी रुद्राक्ष का वर्णन आता है। जन्मकुंडली देख कर ही यह निष्चय किया जाता है कि जातक को कितने मुखी रुद्राक्ष पहनना चाहिये। विभिन्न मुखी रुद्राक्षों का वर्णन इस प्रकार है 1 मुखी - एक मुखी रुद्राक्ष तो भगवान षंकर का ही स्वरूप माना जाता है। यह रुद्राक्ष सूर्य से संबंधित हैं और सूर्य के अषुभ प्रभाव जैसे आत्मविष्वास की कमी, निस्तेज चेहरा, दब्बूपना आदि को ठीक करता हैं और सूर्य द्वारा दिये जाने वाले रोगों को ठीक कर सकते है जैसे दायीं आंख के रोग, सिर दर्द, कान के रोग, हडिडयों की कमजोरी आदि। साथ ही समृद्धि, षक्ति व नेतृत्वक्षमता भी देता है। यह धारक को उच्च पद, आदर व सम्मान दिलवाता है। जिस घर में एक मुखी रुद्राक्ष होता है, उस घर में सदा लक्ष्मी का वास होता है, षत्रु स्वयं ही परास्त हो जाते हैं. 2 मुखी - दो मुखी रुद्राक्ष षिव-षक्ति का स्वरूप है। यह चंद्रमा से संबंधित है और चंद्रमा के अषुभ प्रभाव को कम करता है। चंद्रमा द्वारा दिये जाने वाले रोग जैसे बांयीं आंख के रोग, किडनी का रोग, आंत के रेाग को ठीक करता है। साथ ही आपसी संबंधों में आई कड़वाहट को भी दूर करता है और मानसिक षक्ति बढाता है। जो व्यक्ति गौरी षंकर रुद्राक्ष धारण नहीं कर सकते, उन्हें गौरी व षंकर दोनों को प्रसन्न करने के लिये दो मुखी रुद्राक्ष ही धारण करना चाहिये। वक्ताओं, न्यायाधीषों, वकीलों, वैज्ञानिकों, अनुसंधानकर्ताओं व विद्यार्थियों के लिये यह उतम रुद्राक्ष है। 3 मुखी - तीन मुखी रुद्राक्ष ब्रह्मा, विष्णु और महेष तीनों का स्वरूप है। अतः इसे पहनने से त्रिदेव की प्रसन्नता मिलती है। यह मंगल से संबंधित है। मंगल द्वारा दिये जाने वाले अषुभ प्रभाव जैसे कि रक्त के रोग, उच्च रक्त चाप, षारीरिक कमजोरी, महावारी के रोग, किडनी के रोग, तनाव, नकारात्मक सोच, पापबोध आदि को ठीक करता है। दया, धर्म एवं परोपकार के विचारों को विषेष रूप से बढाता है। वात, पित्त व कफ का षरीर में उचित संतुलन रखता है। कमजोर विद्यार्थियों के लिये लाभदायक है। बार-बार बीमारियों से परेषान रहने वाले जातकों को लाभ देता है। 4 मुखी - यह देवी सरस्वती और ब्रह्मा का स्वरूप है। यह बुध से संबंधित है और बुध ग्रह के अषुभ प्रभावों जैसे कि दिमागी कमजोरी, कुछ भी समझने की कमी, बोल-चाल की दिक्कत, दिमाग की नसों की कमजोरी आदि से बचाता है। यह मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष देने वाला रुद्राक्ष है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैष्य व षूद्र चारों वर्गों से पूजित है। ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ व सन्यासी सभी इसे धारण कर सकते हैं। वेद, पुराण, संस्कृत पढने-पढ़ाने वालों को तो यह अवष्य ही धारण करना चाहिये। 5 मुखी - पांच मुखी रुद्राक्ष परमेष्वर का स्वरूप है। यह गुरु से संबंधित है और ज्ञान, सौंदर्य, मानसिक षांति, धन, संतान आदि देता है। यह गुरू के अषुभ प्रभाव जैसे कि वैवाहिक जीवन मंे तनाव, मोटापा, षुगर, जांघ व किडनी के रोग को ठीक करता है। यह दीर्ध आयु व अपूर्व स्वास्थ्य प्रदान करता है। टूटे दिलों को जोडता है व अचानक हमले से रक्षा करता है। 6 मुखी - छः मुखी रुद्राक्ष स्वामी कार्तिकेय का स्वरूप है। यह षुक्र से संबंधित है और षुक्र के अषुभ प्रभाव व रोग जैसे कि प्रजनन अंगों के रोग, उच्च रक्तचाप आदि रोगों को ठीक करता है और प्रेम व संगीत आदि में रूचि जगाता है। विद्या-अध्ययन में भी उपयोगी है। धन-संपत्ति के कष्टों से मुक्ति मिलती है। काम, क्रेाध, लोभ, मोह, मद, मत्सर नामक छः दुर्गुणों को दूर करता है। 7 मुखी - सात मुखी रुद्राक्ष लक्ष्मी का स्वरूप है। यह षनि ग्रह से संबंधित हैं और षनि के अषुभ प्रभाव जैसे कि रोग, मृत्यु, नपुंसकता, सर्दी, निराषा, अंधकार आदि को दूर करता हैं। यह सप्तकोटि मंत्रों के समतुल्य है। सप्तावरण का मोह भंग करवाता है। यह रुद्राक्ष धारण करने से सप्त द्वीप दर्षन की इच्छा होने पर यात्रा सुगम होती है। सात मुखी रुद्राक्ष से व्यापार व नौकरी में उन्नति मिलती है तथा धन-धान्य की कमी नहीं रहती। 8 मुखी - आठ मुखी रुद्राक्ष गणेष जी व रूद्र का स्वरूप है। यह राहु ग्रह से संबंधित है और राहु के अषुभ प्रभावों जैसे कि फेंफड़ों के रोग, अकस्मात् होने वाली घटनायें, मोतियाबिंद, पैर, त्वचा के रोग आदि को ठीक करता है। लेखन-कला में निपुणता देता है। व्यक्ति को अंतर्मुखी होने की षक्ति देता है। 9 मुखी - नौ मुखी रुद्राक्ष मां दुर्गा का स्वरूप है। अतः नवरात्री व्रतों का फलदाता है। नवग्रहों में से अनिष्टकारक का नाष करता है। ये केतु ग्रह से संबंधित है और केतु के अषुभ प्रभावों जैसे कि फेफड़ों के रोग, ज्वर, आंख का दर्द, त्वचा रोग, षरीर दर्द आदि को ठीक करता है व आत्मबल की वृद्धि करता है। दिल की धडकन, चलने से घबराहट पैदा होना, ष्वास फूलना, हाॅंफना आदि रोगों में लाभकारी होता है। गृहस्थी की समस्याओं को दूर करता है। 10 मुखी - दस मुखी रुद्राक्ष विष्णु का स्वरूप है। यह सभी ग्रहों के अषुभ प्रभाव को कम करने में सक्षम है तथा जातक को एक संपूर्ण सुरक्षा का अहसास देता है। इसे प्रमुख दस अवतारों का आर्षीवाद प्राप्त है। दस इन्द्रियों द्वारा किये गये पापकर्मों का नाष करता है। राजसी कार्यों में सफलता मिलती है। दस दिषाओं में यष की वृद्धि करता है। हृदय व दिमाग को मजबूत करता है। अपरिचित व्यक्ति भी मित्र बनने लगते हैं। 11 मुखी - ग्यारह मुखी रुद्राक्ष ग्यारहवें रूद्र का स्वरूप है। ग्यारहवें रूद्र महावीर बजरंगबली हैं। यह जातक को साहस व आत्मविष्वास देता है और जातक हिम्मत व बहादुरी से जीवन जीता है। विद्यावान, गुणी और चतुर भी बनाता है। जातक में दूसरों के मन की बात जान लेने का गुण आने लगता है। झुंझलाहट व अधीरता से मुक्ति दिलवाता है। गमगीन स्वभाव को दूर करता है। यह किसी से पूछे बिना भी धारण किया जा सकता है। 12 मुखी - बारह मुखी रुद्राक्ष सूर्य देव का स्वरूप है। यह सूर्य ग्रह से संबंधित है। बारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने से राजकीय कामों में सफलता मिलती है। महत्त्वाकांक्षायें ऊंची होने लगती है। यह आपसी कलह भी षांत करता है। 13 मुखी - तेरह मुखी रुद्राक्ष इन्द्र का स्वरूप है। यह 6 मुखी रुद्राक्ष की तरह से ही काम करता है और सांसारिक सुखों की पूर्ति भी करता है। राज्य में पद प्राप्त करवाता है। उदार व सात्विक भाव उत्पन्न होते हैं। नवीन योजनाओं को सफल करने के लिये यह लाभदायक है। 14 मुखी - चैदह मुखी रुद्राक्ष भगवान षिव त्रिपुरारी का स्वरूप माना जाता है। यह षनि ग्रह से संबंधित है। यह सभी अभिलाषायें पूर्ण करता है और मन ईष्वर में लगाता है। मस्तिष्क की षांति देने वाला है, हृदय को मजबूत करता है, उच्च रक्तताप को ठीक करता है, तपेदिक दमा कैंसर जैसे रोगों में लाभदायक है। इसे पानी में घिसकर पीने से अनेक रोगों का निवारण होता है। गौरी शंकर रुद्राक्ष यह सर्वश्रेष्ठ रुद्राक्ष है। दो रुद्राक्ष आपस में जुड कर यह रुद्राक्ष बनाते हैं। यह ष्षारीरिक व मानसिक षक्ति प्रदान करता है। यह षिव के अर्धनारीष्वर रूप का प्रतीक है। यह एक मुखी व 14 मुखी दोनो रुद्राक्षों का भी फल देने वाला होता है। इसे धारण करने से दुख-दरिद्रता पास नहीं आती। मान-सम्मान में वृद्धि होती है। वातावरण षुद्ध व पवित्र बनता है। रुद्राक्ष की माला रुद्राक्ष को एक अकेले दाने के रूप में या माला के रूप में भी धारण किया जा सकता है। एक ही माला के सभी दाने एक ही प्रकार के भी हो सकते हैं और विभिन्न प्रकार के भी हो सकते हैं। रुद्राक्ष की माला अनेक प्रकार से फलदायिनी होती है। इसमें गुण ही गुण होते हैं तथा इसमें कोई अवगुण नहीं पाया जाता। रुद्राक्ष की माला पर जप करने से अनेक रोगों का इलाज किया जा सकता है। रुद्राक्ष की माला पर किसी भी देवी देवता का जप किया जाये तो वे षीध्र ही प्रसन्न हो जाते हैं। रुद्राक्ष की माला रुद्राक्ष के दानों से बनाई जाती है। इसमें दानों की संख्या ज्योतिषीय दृष्टि से शुभ ली जाती है जैसे कि 108$1, 54$1, 27$1. इनमें से ‘$1’ वाले दाने को सुमेरू कहा जाता है जो कि जप के समय पार नहीं किया जाता. लेकिन माला को 108, 54 या 27 रुद्राक्षों की माला ही कहा जाता है। एक मुखी रुद्राक्ष मुष्किल से मिलता है और बहुत षक्तिषाली होता है। 5 मुखी रुद्राक्ष की माला पूजा के काम आती है। 16 रुद्राक्ष के दानों की माला माथे पर, 26 रुद्राक्ष के दानों की माला सिर पर और 50 रुद्राक्ष के दानों की माला हृदय पर पहनी जाती है। एक ही माला जप व पहनने दोनो कामों में उपयोग नहीं की जा सकतीपरंतु इस विषय पर अपवाद भी मिलते हैं। कुछ संत लोग तो जप की हुई माला ही पहनना लाभदायक समझते हैं। जप करते समय माला अनामिका और मध्यमा उंगलियों के बीच में रहती है। केवल रुद्राक्ष की माला ही ऐसी माला होती है जिसे किसी भी प्रकार के जप के लिये उपयोग किया जा सकता है। रुद्राक्ष की माला की इतनी खूबियों के कारण ही आज यह अमेरिका, जापान, जर्मनी, इंगलैंड आदि पष्चिमी देषों में बहुत लोकप्रिय है। ग्रंथों में कहा गया है कि रुद्राक्ष की माला को मंत्रों के द्वारा षुद्ध, पवित्र और ऊर्जावान करके ही पहना जा सकता है। तब रुद्राक्ष निष्चय ही काम करता है और अगर यह षुद्धता की कसौटी पर भी खरा उतरा हो तो यह और भी अधिक षक्तिषाली और प्रभावी हो सकता है बशर्तेकि निरंतर जप और हवन से इसकी ऊर्जा और षक्ति को बढाया जाये। रुद्राक्ष के मुखों की संख्या के अनुसार मंत्र 1 मुखी - ऊँ नमः षिवाय् , ऊँॅं ह्रीं नमः 2 मुखी - श्री गौरी षंकराय नमः, ऊँॅं नमः 3 मुखी - ऊँॅं क्लीं नमः, ऊँ नमः षिवाय 4 मुखी - ऊँॅं ह्रीं नमः 5 मुखी - ऊँॅं नमः षिवाय् , ऊँॅं ह्रीं नमः 6 मुखी - स्वामी कार्तिकेयाय नमः, ऊँॅं ह्रीं हं नमः 7 मुखी - ऊँॅं महालक्ष्म्यै नमः, ऊँॅं हं नमः 8 मुखी - ऊँॅं हं नमः, ऊँ गणेषाय् नमः 9 मुखी - नव दुर्गाय् नमः, ऊँॅं ह्रीं हं नमः 10 मुखी - श्री नारायणाय नमः, श्री वैष्णवाय नमः, ऊँॅं ह्रीं नमः 11 मुखी - ऊँॅं श्री रूद्राय नमः, ऊँ ह्रीं हं नमः 12 मुखी - श्री सूर्याय नमः 13 मुखी - ऊँॅं ह्रीं नमः 14 मुखी - ऊँ नमः षिवाय उपरोक्त सभी मंत्रों के बाद महामृत्युंजय मंत्र का 9 बार जाप किया जाता है जो इस प्रकार है - ऊँ त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ऊर्वारूकमिव बंधनानमृत्र्योमुक्षीय मामृतात् । रुद्राक्ष की उपयोगिता और लाभ 1 मानसिक तनाव से मुक्ति पाने में रुद्राक्ष रामबाण की तरह से काम करता है। 2 एषिया के विभिन्न साधु व सन्यासियों के अनुसार मात्र रुद्राक्ष धारण करने से ही उन्हें तपस्या करने के लिये घ्यान केंद्रित करने में और विचारषील मन को काबू करने में अत्यन्त मदद मिलती है। 3 रुद्राक्ष शरीर, मन और आत्मा के लाभ के लिये अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है। यह षरीर को बल प्रदान करता है और बीमारियों से लडने में मदद करता है। आयुर्वेद के अनुसार रुद्राक्ष षारीरिक सरंचना में सुधार लाता है। यह रक्त की अषुद्धियों को दूर कर षरीर को निरोगी बनाता है. 4 यह मानव षरीर के अंदर के साथ-साथ षरीर के बाहर की वायु में भी जीवाणुओं का नाष करता है। 5 यह तनाव, चिंता और डिप्रेषन का प्रभाव भी कम करता है। रुद्राक्ष सिरदर्द, खांसी, लकवा, और मातृत्व की रूकावटों को दूर करने में भी मदद करता है। 6 मेडिकल साइंस के अनुसार भी यह सिद्ध हो गया है कि रुद्राक्ष को धारण करने से ही हृदय गति में सुधार आ जाता है तथा उच्च रक्तचाप ठीक होने लगता है। 7. वे जातक जिनको उच्च रक्त चाप की षिकायत है, उन्हें रुद्राक्ष का लाभ निम्न तरीके से लेना चाहिये - ‘‘पांच मुखी रुद्राक्ष के दो दाने रात को एक गिलास पानी में रख दें व सुबह खाली पेट उस जल को पी लें। गिलास काॅपर के अतिरिक्त किसी भी धातु का हो सकता है।’’ 40 दिन तक नियमित लेने से फर्क महसूस किया जा सकता है। 8 वे जातक जो हमेषा चिंता में रहते है, अथवा जिनका आत्मविष्वास खो-सा गया होता है या जो कांपते ज्यादा हैं - उन्हें रुद्राक्ष का लाभ निम्न तरीके से लेना चाहिये: ‘‘ ऐसे जातक एक पांच मुखी रुद्राक्ष हमेषा अपने पास रखें और जब जब वे जरूरत महसूस करें, उस रुद्राक्ष को अपनी दांयी हथेली में जोर से भींच लें और इस प्रकार से दस मिनट तक रहें। इससे उनका आत्मविष्वास वापिस आ जायेगा और उनका षरीर भी स्थिर हो जायेगा।’’ 9 रुद्राक्ष को पहनने से चेहरे पर तेज आता है जो व्यक्तित्व को निखारने के काम आता है। 10 यह व्यक्ति की याददाष्त को बढाने में भी उपयोगी है। 11 रुद्राक्ष जीवन की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करता है, सुख-षांति प्रदान कर मान-सम्मान में वृद्धि करता है। 12 रुद्राक्ष षारीरिक स्वास्थ्य के साथ साथ आत्मा की उन्नति के लिये भी लाभदायक है। रुद्राक्ष को धारण करने से पूर्वजन्म के उन पापों से मुक्ति मिलती है जो कि इस जन्म में भी रूकावटें पैदा कर सकते हैं। 13 अगर कोई व्यक्ति अपनी बुरी आदतों से छुटकारा पाना चाहता है और षुद्धता का जीवन जीना चाहता है तो उसे रुद्राक्ष की माला पहननी चाहिये, निष्चित रूप से लाभ मिलता है। 14 रुद्राक्ष अषुभ ग्रहों के प्रभाव को भी कम करने में उपयोगी होता है। ब्रह्मांड में 27 नक्षत्र हैं जो कि 9 ग्रहों को चलाते हैं। प्रत्येक नक्षत्र किसी न किसी रुद्राक्ष से जुडा होता है जो कि संबंधित ग्रह से ऊर्जा प्राप्त करता है। यह केवल ऊर्जा प्राप्त ही नहीं करता बल्कि इसका वितरण भी करता है। यह निष्चित है कि रुद्राक्ष ग्रहों के बल से ऊंची और प्रभावषाली वस्तु है। तभी तो विभिन्न मुखी रुद्राक्ष विभिन्न ग्रहों की षांति के लिये काम में लिये जाते हैं। जो ग्रह जातक के लिये अषुभ है, उस ग्रह से संबंधित रुद्राक्ष ही धारण कर उस अषुभ ग्रह की षांति की जा सकती है। 15 प्रत्येक रुद्राक्ष किसी न किसी देवता या देवी से संबंधित होता है। यही धनात्मक बल रुद्राक्ष के धारक को नकारात्मक ऊर्जा और षत्रुओं से बचाता है। 16 रुद्राक्ष जीवन की अति आवष्यक वस्तु है क्योंकि यह भगवान षिव से संबंधित है और षिव देवों के देव महादेव हैं। अतः रुद्राक्ष पहनने वाले को अगर रुद्राक्ष से अधिक से अधिक लाभ लेना है तो उसमें श्रद्धा और विष्वास होना बहुत जरूरी है।