रुद्राक्ष का शिव से संबंध रुद्राक्ष भगवान शिव प्रदत्त प्रकृति का अनुपम उपहार है। रुद्राक्ष शब्द की निष्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों से हुई है- रुद्र और अक्ष। ‘‘अक्ष’’ का तात्पर्य आशुतोष भगवान शिव की उस कल्याणकारी दृष्टि से है जो धारण करने वाले का पथ निर्बाध एवं निष्कंटक बनाती है। रुद्राक्ष = रुद्र $ अक्ष अर्थात् शिव की आंख। शिवपुराण के अनुसार रुद्राक्ष का संबंध भगवान शिव के अश्रुकणों से है। मान्यता है कि सती वियोग के समय जब शिव का हृदय द्रवित हुआ, तो उनके नेत्रों से आंसू निकल आए जो अनेक स्थानों पर गिरे और इन्हीं से रुद्राक्ष वृक्ष की उत्पत्ति हुई। पद्म पुराण में कहा गया है कि सतयुग में त्रिपुर नामक दैत्य ब्रह्माजी के वरदान से प्रबल होकर संपूर्ण लोकों के विनाश का कुचक्र कर रहा था। तब देवताओंके अनुनय-विनय करने पर भगवान शिव ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखते हुए उसे विकराल बाण से मार गिराया। इस कार्य में अत्यंत श्रम के कारण भगवान शिव के शरीर से पसीने की जो बंूदें पृथ्वी पर पड़ीं उनसे रुद्राक्ष वृक्ष प्रकट हो गए। श्रीमद् देवी भागवत् के अनुसार त्रिपुर राक्षस को मारने के लिए भगवान की आंखें सहस्र वर्षों तक खुली रहीं और थकान के कारण उनसे आंसू बह निकले, जिनसे रुद्राक्ष वृक्ष का जन्म हुआ। रुद्राक्ष की उत्पत्ति के संबंध में कथाएं चाहे कितनी भी हों, परंतु विभिन्न पौराणिक एवं धार्मिक ग्रंथ और शास्त्र निर्विवाद रूप से इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि रुद्राक्ष के जन्मदाता भगवान शिव हैं। इसी कारण सनातन धर्म में रुद्राक्ष को भगवान शिव का स्वरूप कहा गया है और इसे अत्यंत पवित्र एवं सर्वमंगलमय, पापमुक्तिदायक, दुखनाशक व अरिष्टनाशक के अतिरिक्त लक्ष्मीदायक एवं सिद्धिदायक, दीर्घायु व अक्षयपुण्य प्रदाता तथा मोक्षदाता माना गया है।