रुद्राक्ष एक, औषधीय गुण अनेक के. के. निगम रुद्राक्ष से सभी परिचित हंै। रुद्राक्ष की माला से पूजा, अर्चना तो की ही जाती है, पहनने आदि में भी इसका प्रयोग बहुत अधिक किया जाता है। विभिन्न रोगों में भी रुद्राक्ष का प्रयोग किया जा सकता है- सिरदर्द: रुद्राक्ष, तगर, सोंठ, कूट, देवदार तथा रवस को लेकर महीन चूर्ण बनाने के पश्चात पानी में लेप बनाकर माथे पर लगाने से सिरदर्द में लाभ होता है। जल-जाने पर: रुद्राक्ष, सफेद चंदन व गिलोय को समान मात्रा में लेकर चूने के पानी में पीसकर बराबर मात्रा में नारियल का तेल मिलाकर जले हुए स्थान पर लगाने से तुरंत जलन समाप्त होती है, घाव जल्दी भर जाता है तथा जलने का दाग भी नहीं पड़ता है। वादी या खूनी बवासीर: रुद्राक्ष की तौल से पांच गुना अपामार्ग के बीज लेकर इन्हें एक लीटर पानी में उबालें। जब पानी 100 ग्राम रह जाये तो उतारकर 250 ग्राम देशी घी मिलाकर इसे कांच की बर्नी में रख लें। फिर नित्य रोगी को 10-12 बूंद देने से कैसी भी बवासीर हो, वह समाप्त जायेगी। मुंहासे एवं दाग: रुद्राक्ष और मंजीठ को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। फिर चूर्ण को मक्खन और शहद में मिलाकर चेहरे पर आधा घंटे तक लगा रहने दें। फिर गुनगुने पानी से चेहरा धो डालें। कुछ दिनों के प्रयोग से चेहरे के मुंहासे एवं दाग दूर हो जायेंगे तथा चेहरा कांतिमय हो जायेगा। उपदंश: रुद्राक्ष से चार गुना अधिक त्रिफला भस्म को शहद में मिलाकर लेप बनाकर उपदंश में लगाने से लाभ होता है। बाल काला: बाल असमय सफेद हो गये हों तो उन्हंे रुद्राक्ष, आंवला, वहेडा, भांगरा, लोहे का चूर्ण तथा नील कमल के पŸो समान मात्रा में लेकर भेड़ या बकरी के मूत्र में पीसकर लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं तथा बाल जड़ से काले आने लगते हैं। बाल झड़ना: रुद्राक्ष से पांच गुना गुंजाफल इन दोनों को लेकर महीन पीसकर कपड़े से छानकर शहद में मिलाकर लगाने से बाल स्वस्थ्य होते है तथा बालों का झड़ना बंद हो जाता है। उदर विकार: पांच रुद्राक्ष लेकर उन्हंे तांबे के पात्र में जल भरकर उसमें डाल दें फिर उसे सिरहाने रखकर सो जायें। सुबह उठकर जल में से रुद्राक्ष निकालकर खाली पेट इस ताम्रपत्र के जल को पीने से समस्त प्रकार के उदर विकार समाप्त होते हैं। नेत्र रोग: यदि किसी प्रकार का नेत्र रोग हो या चश्मा लगता हो, तो तांबे के बर्तन में जल भरकर उसमें एक रुद्राक्ष डाल दें। प्रातः उठकर इस जल से आंखों को साफ करें और बचे हुए जल को पी जायें। कुछ ही दिनों में नेत्र रोग समाप्त हो जायेंगे तथा चश्मा भी कुछ माह में छूट जायेगा। दाद खुजली (एग्जीमा): यदि हाथ-पांव में खुजली हो या उनमें मवाद पड़ गया हो, तो रुद्राक्ष वायबिडंग, गंधक, कूट, सिंदूर समान मात्रा में लेकर पीसकर फिर इसमें धतूरा, नीम व पान के पŸो पीसकर मिला दें और इस लेप को पीड़ित स्थान पर लगायें। एक सप्ताह में लाभ दिखाई देगा तथा कुछ समय तक प्रयोग करने से रोग समाप्त हो जायेगा। शीतज्वर: अधिक प्यास लगने, उल्टी आने व मूच्र्छा तथ चक्कर आने पर रुद्राक्ष, महुआ, मुनक्का, अडूसा, धनिया एवं पिŸा पापडा को 25-25 ग्राम की मात्रा में लेकर चूर्ण बनाएं। फिर दो ग्राम केशर के साथ मिट्टी के बर्तन में पांच गुना जल भरकर उपरोक्त बनाये गये चूर्ण को मिलाकर 12 घंटे के लिए बंद करके रख दें। फिर कपड़े से छानकर बोतल में भरकर रख लें। दिन में दो बार सेवन से उपरोक्त रोगों में लाभ होता है। रक्त प्रदर: रुद्राक्ष 1 ग्राम, रसौत 2 ग्राम, चोलाई की जड़ 2 ग्राम मिलाकर महीन चूर्ण बना लें। फिर इसको मिट्टी के पात्र में पांच गुना पानी में डालकर रातभर के लिए रख दें। फिर सुबह इस मिश्रण को छानकर चावल के मांड में मिलाकर पीने से रक्त प्रदर समाप्त हो जाता है।