रुद्राक्ष : पहचान एवं उपयोग
रुद्राक्ष : पहचान एवं उपयोग

रुद्राक्ष : पहचान एवं उपयोग  

व्यूस : 31412 | अप्रैल 2012
रुद्राक्ष: पहचान एवं उपयोग रुद्राक्ष आम के पेड़ जैसे एक पेड़ का फल है। ये पेड़ दक्षिण एशिया में मुख्यतः जावा, मलयेशिया, ताइवान, भारत एवं नेपाल में पाए जाते हैं। भारत में ये मुख्यतः असम, अरुणांचल प्रदेश एवं देहरादून में पाए जाते हंै। रुद्राक्ष के फल से छिलका उतारकर उसके बीज को पानी में गलाकर साफ किया जाता है। इसके बीज ही रुद्राक्ष रूप में माला आदि बनाने में उपयोग में लाए जाते हंै। इसके अंदर प्राकृतिक छिद्र होते हंै एवं संतरे की तरह फांकें बनी होती हंै जो मुख कहलाती हैं। कहा जाता है कि सती की मृत्यु पर शिवजी को बहुत दुख हुआ और उनके आंसू अनेक स्थानों पर गिरे जिससे रुद्राक्ष (रुद्र$अक्ष अर्थात शिव के आंसू) की उत्पत्ति हुई। इसीलिए जो व्यक्ति रुद्राक्ष धारण करता है उसे सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। चंद्रमा शिवजी के भाल पर सदा विराजमान रहता है अतः चंद्र ग्रह जनित कोई भी कष्ट हो तो रुद्राक्ष धारण से बिल्कुल दूर हो जाता है। किसी भी प्रकार की मानसिक उद्विग्नता, रोग एवं शनि के द्वारा पीड़ित चंद्र अर्थात साढ़े साती से मुक्ति में रुद्राक्ष अत्यंत उपयोगी है। शिव सर्पों को गले में माला बनाकर धारण करते हैं। अतः काल सर्प जनित कष्टों के निवारण में भी रुद्राक्ष विशेष उपयोगी होता है। रुद्राक्ष सामान्यतया पांचमुखी पाए जाते हंै, लेकिन एक से चैदहमुखी रुद्राक्ष का उल्लेख शिव पुराण, पद्म पुराण आदि में मिलता है। रुद्राक्ष के मुख की पहचान उसे बीच से दो टुकड़ों में काट कर की जा सकती है। जितने मुख होते हैं उतनी ही फांकंे नजर आती हैं। हर रुद्राक्ष किसी न किसी ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। इनका विभिन्न रोगों के उपचार में भी विशेष उपयोग होता है। रुद्राक्षों में एकमुखी अति दुर्लभ है। शुद्ध एकमुखी रुद्राक्ष तो देखने में मिलता ही नहीं है। नेपाल का गोल एकमुखी रुद्राक्ष अत्यंत ही दुर्लभ है। इसके स्थान पर दक्षिण भारत में पाया जाने वाला एकमुखी काजूदाना अत्यंत ही प्रचलित है। असम में पाया जाने वाला गोल दाने का एकमुखी रुद्राक्ष भी बहुत प्रचलित है। इक्कीस मुखी से ऊपर के रुद्राक्ष अति दुर्लभ हैं। इसके अतिरिक्त अट्ठाइस मुखी तक के रुद्राक्ष भी पाए जाते हैं। मालाएं अधिकांशतः इंडोनेशिया से उपलब्ध रुद्राक्षों की बनाई जाती हैं। बड़े दानों की मालाएं छोटे दानों की मालाओं की अपेक्षा सस्ती होती हैं। साफ, स्वच्छ, सख्त, चिकने व साफ मुख दिखाई देने वाले दानों की माला काफी महंगी होती है। रुद्राक्ष के अन्य रूपों में गौरी शंकर, गौरी गणेश, गणेश एवं त्रिजुटी आदि हैं। गौरी शंकर रुद्राक्ष में दो रुद्राक्ष प्राकृतिक रूप से जुड़े होते हैं। ये दोनों रुद्राक्ष गौरी एवं शंकर के प्रतीक हैं। इसे धारण करने से दाम्पत्य जीवन में मधुरता बनी रहती है। इसी प्रकार गौरी गणेश में भी दो रुद्राक्ष जुड़े होते हैं एक बड़ा एक छोटा, मानो पार्वती की गोद में गणेश विराजमान हों। रुद्राक्ष के बारे में कुछ भ्रम भी प्रचलित हैं। जैसे कि पहचान के लिए कहा जाता है कि तांबे के दो सिक्कों के बीच में यदि रुद्राक्ष को रखा जाए और वह असली हो तो धीमी गति से घूमता हुआ नजर आएगा। वास्तव में रुद्राक्ष जैसी किसी भी गोल कांटेदार वस्तु को यदि इस तरह पकड़ा जाएगा तो वह असंतुलन के कारण घूमेगी। दूसरा भ्रम यह है कि असली रुद्राक्ष पानी में डूबता है, नकली नहीं। यह बात इस तथ्य तक तो सही है कि लकड़ी का बना कृत्रिम रुद्राक्ष नहीं डूबेगा। रुद्राक्ष का बीज भारी होने के कारण डूब जाता है लेकिन यदि असली रुद्राक्ष पूरा पका नहीं हो या छिद्र में हवा भरी रह गई हो तो वह भी पानी से हल्का ही रहता है, डूबता नहीं। अधिक मुख वाले रुद्राक्ष एवं एकमुखी रुद्राक्ष महंगे होने के कारण नकली भी बना लिए जाते हैं। प्रायः कम मुखी रुद्राक्ष में अतिरिक्त मुख की धारियां बना दी जाती हैं जिससे कम मूल्य का रुद्राक्ष अधिक मूल्य का हो जाता है। इस तथ्य की जांच करने के लिए रुद्राक्ष को बीच से काटकर फांकों की गिनती की जा सकती है। दूसरे, अनुभव द्वारा इन कृत्रिम धारियों और प्राकृतिक धारियों में अंतर किया जा सकता है। कभी-कभी दो रुद्राक्षों को जोड़कर भी एक महंगा रुद्राक्ष बना लिया जाता है। गौरी शंकर, गौरी गणेश या त्रिजुटी रुद्राक्ष अक्सर इस प्रकार बना लिए जाते हैं। इसकी जांच के लिए यदि रुद्राक्ष को पानी में उबाल दिया जाए तो नकली रुद्राक्ष के टुकड़े हो जाएंगे जबकि असली रुद्राक्ष ज्यों का त्यों रह जाएगा। कई बार नकली रुद्राक्ष को भारी करने के लिए छिद्रों में पारा या सीसा भर दिया जाता है। उबालने से यह पारा या सीसा बाहर आ जाता है और रुद्राक्ष तैरने लगता है। कई बार देखने में आता है कि रुद्राक्ष पर सर्प, गणेश, त्रिशूल आदि बने होते हैं। ये सभी आकृतियां प्राकृतिक नहीं होती हैं, इस प्रकार के रुद्राक्ष केवल नकली ही होते हैं। अतः महंगे रुद्राक्ष किसी विश्वसनीय प्रतिष्ठान से ही खरीदना उचित है। रुद्राक्ष पहनने में किसी विशेष सावधानी की आवश्यकता नहीं है, लेकिन जिस प्रकार दैवी शक्तियों को हम पवित्र वातावरण में रखने का प्रयास करते हैं, उसी प्रकार रुद्राक्ष पहनकर शुचिता बरती जाए, तो उत्तम है। अतः साधारणतया रुद्राक्ष को रात को उतार कर रख देना चाहिए और प्रातः स्नानादि के पश्चात मंत्र जप कर धारण करना चाहिए। इससे यह रात्रि व प्राः की अशुचिता से बचकर जप की ऊर्जा से परिपूर्ण होकर हमें ऊर्जा प्रदान करता है। शिव सदैव शक्ति के साथ ही पूर्ण हैं। दैवी शक्तियों में लिंग भेद नहीं होता है। स्त्री-पुरुष का भेद केवल पृथ्वी लोक में ही होता है। रुद्राक्ष, जिसमें दैवी शक्तियां विद्यमान हैं, स्त्रियां अवश्य धारण कर सकती हैं। गौरी शंकर रुद्राक्ष व गौरी गणेश रुद्राक्ष खासकर स्त्रियों के लिए ही हैं। पहला सफल वैवाहिक जीवन के लिए एवं दूसरा संतान सुख के लिए। हां शुचिता की दृष्टि से राजो दर्शन के तीन दिनों तक रुद्राक्ष न धारण किया जाए, तो अच्छा है। रुद्राक्ष धारण करने के लिए सोमवार को प्रातः काल पहले कच्चे दूध से और फिर गंगाजल से धोकर व अष्टगंध लगाकर ऊँ नमः शिवाय मंत्र का जप कर धारण करना चाहिए। असली एवं विश्वसनीय रुद्राक्ष की प्राप्ति के लिए फ्यूचर पाॅइंट रत्न एवं रुद्राक्ष भंडार में आपका स्वागत है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.