रुद्राक्ष की जांच कैसे करें असली रुद्राक्ष की पहचान करना कठिन कार्य है क्योंकि एकमुखी और एकाधिक मुखी रुद्राक्ष महंगे होने के कारण नकली भी बना लिए जाते हैं। अधिक लाभ लेने के लिए कम मुखों वाले रुद्राक्षों में अतिरिक्त मुख की धारियां बना दी जाती हैं। रुद्राक्ष सही है या नहीं इस तथ्य की जांच के लिए उसे बीच से काटकर फांकों की गिनती की जा सकती है। इस तरह कृत्रिम और प्राकृतिक धारियों में अंतर भी किया जा सकता है। कभी-कभी दो रुद्राक्षों को जोड़कर भी एक महंगा रुद्राक्ष बना लिया जाता है। नकली गणेश या त्रिजुटी अथवा गौरी शंकर रुद्राक्ष इसी प्रकार बनाए जाते हैं। कई बार नकली रुद्राक्ष को भारी करने के लिए छिद्रों में पारा या सीसा भर दिया जाता है। कई बार देखने में आता है कि रुद्राक्ष पर सर्प, गणेश, त्रिशूल आदि बने होते हैं। ये सभी आकृतियां बनावटी होती हैं। ऐसे में रुद्राक्ष किसी विश्वसनीय प्रतिष्ठान से ही खरीदना चाहिए, भले ही वह महंगा हो। प्रायः यह कहा जाता है कि पानी में डूबने वाला रुद्राक्ष असली और तैरने वाला नकली होता है। परंतु यह सत्य नहीं है। रुद्राक्ष के डूबने अथवा तैरने की क्रिया उसमें विद्यमान आर्द्रता, उसके घनत्व तथा उसके कच्चे या पक्के होने पर निर्भर करती है। यदि कोई रुद्राक्ष कच्चा होगा तो उसमें मौजूद तैलीयता एवं आर्द्रता की मात्रा कम होगी और वह वजन में हल्का होगा, फलस्वरूप पानी में तैरेगा। किंतु उसके पके होने पर स्थिति विपरीत होगी अर्थात वह पानी में डूब जाएगा। अतः पानी में डूबने या तैरने से रुद्राक्ष के असली या नकली होने की पहचान नहीं हो सकती है। इससे केवल यह जाना जा सकता है कि रुद्राक्ष कच्चा है या पक्का। तांबे के दो सिक्कों के बीच रुद्राक्ष को रखकर दबाया जाए तो वह एक झटके के साथ दिशा बदलकर घूम जाता है। किंतु यदि दबाव ज्यादा हो, तो रुद्राक्ष निश्चित ही किसी न किसी दिशा में घूमेगा इसलिए यह प्रयोग शुद्ध रुद्राक्ष की पहचान में खरा नहीं उतरता। एक भ्रांति यह भी है कि दोनों अंगूठों के नाखूनों के मध्य रुद्राक्ष को रखने से यदि वह किसी भी दिशा में घूमे तो असली होगा, अन्यथा नकली। वास्तव में किसी भी गोल वस्तु को इस प्रकार दो अंगूठों के मध्य में रखें तो वह किसी न किसी दिशा में अवश्य ही घूमेगी। रुद्राक्ष असली है या नकली यह देखने के लिए उसे सुई से कुरेदें। कुरेदने पर अगर रेशा निकले तो वह असली है, अन्यथा वह रसायन का बना हुआ होगा। जिस प्रकार दो व्यक्तियों के फिंगर प्रिंट एक समान नही होते हैं, उसी प्रकार दो असली रुद्राक्षांे की ऊपरी सतह के पठार एक समान नहीं हो सकते। किंतु नकली रुद्राक्षों के ऊपरी पठार एक समान हो सकते हैं। कुछ रुद्राक्षों पर शिवलिंग, त्रिशूल, सर्पादि आकृतियां बनी हुई मिलती हंै, जो प्राकृतिक नहीं बल्कि कुशल कारीगरी का नमूना मात्र होती हैं। रुद्राक्ष को बारीक पीस कर उसके मसाले के माध्यम से उसे अन्य किसी रुद्राक्ष के ऊपर चिपका दिया जाता है। कभी-कभी दो या तीन रुद्राक्ष प्राकृतिक रूप से जुडे़ पाए जाते हैं जिन्हें गौरी-शंकर या गौरीपाठ रुद्राक्ष कहा जाता है। गौरी-शंकर एवं गौरीपाठ रुद्राक्ष काफी महंगे होते हैं, अतः इनके नकली होने की काफी संभावना रहती है। कुशल कारीगर दो या तीन रुद्राक्षों को लेकर पत्थर पर पानी की सहायता से घिसकर अथवा काटकर मसाले और फेवीकाॅल, एरलडाइट आदि के सोल्यूशन के सहारे इस प्रकार चिपका देते हैं कि वे पूर्णतया जुड़े हुए और असली दिखाई देते हैं। इस तरह कभी-कभी असली गारै ी-शकं र रुदा्र क्ष म ंे एक अन्य रुदा्र क्ष को जोड़कर उसे गौरीपाठ (त्रिजुटी) रुद्राक्ष बना लिया जाता है। एकमुखी गोलाकार रुद्राक्ष के अति दुर्लभ और वर्तमान में अप्राप्य होने के कारण इसका मूल्य हजारों-लाखों में आंका जाता है। 14 से 21 मुखी रुद्राक्ष भी कम पाए जाते हैं। अतः इनके भी नकली होने की संभावना रहती है। प्रायः पांच या पांच से कम मुखों वाले रुद्राक्ष के मुखों को मसाले से बंद कर उसे एक मुखी बना लिया जाता है। गौर से देखने पर नकली एकमुखी रुद्राक्ष में भरा हुआ मसाला स्पष्ट दिखाई देता है। कभी-कभी पांच या इससे ज्यादा मुखों वाले रुद्राक्ष में कुशल कारीगर धारियां लगाकर मुखों की संख्या में वृद्धि कर देते हैं। प्राकृतिक तौर पर बनी हुई धारी और नकली धारी में एकरूपता नहीं होती है। प्राकृतिक धारी के दोनों ओर बने हुए पठार कुछ उभरे हुए होते हैं जबकि कारीगर द्वारा बनाई गई नकली धारी में वे सपाट या कुछ दबे (बैठे) हुए होते हैं। इसके अलावा प्राकृतिक धारी पूर्णतया सीधी नहीं होती जबकि नकली धारी प्रायः सीधी होती है। सावधानीपूर्वक देखने से असली-नकली का यह अंतर स्पष्ट दिखाई देता है। कभी-कभी बेर की गुठली पर रंग चढ़ाकर उसे असली रुद्राक्ष के रूप में बेच दिया जाता है। सस्ते दामों में बिकने वाली रुद्राक्ष की मालाएं प्रायः रुद्राक्षों से न बनी होकर बेर की गुठलियों से बनी होती हैं। वजन में भी ये प्रायः रुद्राक्ष से हल्की होती हैं और इनका आकार प्रायः मध्यम या छोटा होता है। रुद्राक्ष की पहचान हेतु निम्न विधि को अपनाना चाहिए- पानी को खूब उबालें। इस उबलते हुए पानी में रुद्राक्ष को डालें तथा 5-14 मिनट के बाद कटोरे को चुल्हे से उतार कर ढक दें। जब पानी ठंडा हो जाए तो ढक्कन उतार कर रुद्राक्ष का दाना निकाल लें। उसे गौर से देखें। यदि जाडे ़ लगा हागे ा ता े उसक े टुकडे़ हो जाएंगे। मसाले की सहायता से बनाए गए शिवलिंग, त्रिशूल, सर्पादि चिह्नों वाले रुद्राक्ष में चिपचिपा सोल्यूशन स्पष्ट रूप से दिखलाई पड़ेगा तथा जोड़ ढीला हो जाएगा अथवा टुकड़े अलग हो जाएंगे। जिन रुद्राक्षों में पारा या शीशा भरकर एकमुखी रुद्राक्ष बनाया गया होगा, उनके बंद किए हुए मुख स्पष्ट दिखाई देने लगेंगे। ऐसे में यदि रुद्राक्ष प्राकृतिक तौर पर कुछ फटा हुआ होगा तो वह थोड़ा और फट जाएगा। यदि बेर की गुठली को रुद्राक्ष बनाया गया हो, तो इस क्रिया से वह गुठली मुलायम पड़ जाएगी जबकि असली रुद्राक्ष में विशेष अंतर नहीं आएगा। असली गौरी-शंकर और गौरीपाठ रुद्राक्ष की पहचान यह भी है कि उनपर बनी हुई धारियां प्राकृतिक होंगी और उनमें परस्पर दूरी समान न होकर अलग-अलग होगी। असली गौरी- शंकर एवं गौरीपाठ वज्र के समान कठोर होते हैं। काफी शक्ति लगाने पर भी उन्हें तोड़ना या अलग करना कठिन होता है। यदि परीक्षण के दौरान उन्हें तोड़ भी दिया जाए तो उनके टूटे हुए भाग समान सपाट नहीं होंगे, उनका टूटना प्राकृतिक रूप से विखंडित होगा जैसे कोई पत्थर आड़े, तिरछे या टेढ़े टूटता है। असली गौरी-शंकर और गौरीपाठ रुद्राक्ष की पहचान यह भी है कि उनपर बनी हुई धारियां प्राकृतिक होंगी और उनमें परस्पर दूरी समान न होकर अलग-अलग होगी। असली गौरी- शंकर एवं गौरीपाठ वज्र के समान कठोर होते हैं। काफी शक्ति लगाने पर भी उन्हें तोड़ना या अलग करना कठिन होता है।