पर्वों का धार्मिक महत्व

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जो कुछ सामाजिक बंधनों और रिश्तों की सुनहरी डोर से बंधा हुआ है। कोई भी व्यक्ति अपना संपूर्ण जीवन शिक्षा ग्रहण करने में, व्यवसाय, घर परिवार एवं बच्चों के पालन-पोषण इत्यादि में ही व्यतीत कर देता है। इन सब... और पढ़ें

अन्य पराविद्याएंउपायवास्तु

दिसम्बर 2013

व्यूस: 32615

महा पर्व दीपावली: पर्व के कारण अनेक

पर्व- एक बहुअर्थी या अनेकार्थी एवं बहु-आयामी शब्द है। हिंदी शब्द कोश में इस पर्व के अनेकार्थ या पर्यायवाची शब्द इस प्रकार दिये गये हैं- पर्व - अवसर, अंश, खंड,पुण्यकाल, संधि स्थान, उत्सव, त्योहार, दिन व क्षणिक काल, दूसरी ओर संस्कृत... और पढ़ें

अन्य पराविद्याएंउपायअध्यात्म, धर्म आदिवास्तु

दिसम्बर 2013

व्यूस: 7001

दीपावली की वैज्ञानिकता व् जीवनोपयोगी टोटके

कार्तिक अमावस्या की काली घनी रात जब अपनी यौवनावस्था के चरमोत्कर्ष पर होती है और सूर्य कन्या राशि से बाहर आकर अपनी नीचाभिलाषी तुला में प्रवेश कर चुका होता है। तो उसके परिणाम स्वरूप पृथ्वी पर विशुद्ध, सूक्ष्म व् सकारात्मक प्रकाश ऊर्... और पढ़ें

वास्तु

अकतूबर 2011

व्यूस: 8330

वास्तु ने बनाया ताज को सरताज

दुनिया की कोई भी इमारत प्रसिद्द है तो यह तय है की उसकी बनावट वास्तु के अनुकूल होगी। ताजमहल की विश्व प्रसिद्धि का कारण इसकी सुंदर बनावट तो है ही, परन्तु इस प्रसिद्धि में चार चाँद लगा रहा है। इसका वास्तु के अनुकूल भूखंड पर हुआ वास्त... और पढ़ें

अन्य पराविद्याएंस्थानवास्तु

आगस्त 2007

व्यूस: 7397

वास्तु कि नजर में कोणार्क का सूर्य मंदिर

भारत में अनेक धर्म एवं जातियां है तथा वे सभी किसी न किसी व्यक्ति कि पूजा आराधना करते है। सबकी विधियां अलग है परन्तु आराधना करते हैं, जहां पूर्ण रूप से ध्यान लगा सकें, मन एकाग्र हो पाए। इसलिए मंदिर निर्माण में वास्तु का बहुत ध्यान... और पढ़ें

वास्तु

नवेम्बर 2007

व्यूस: 8939

वास्तु परिचय एवं बिना तोड़ फोड के वास्तु उपाय

अंधक् राक्षस का वध करने के उपरांत भगवान शंकर के थकित शरीर के पसीने से उत्पन्न एक क्रूर भूखे सेवक कि उत्पति हुई जिसने अंधक राक्षस के शरीर से बहते हुए खून को पिया फिर भी उसकी क्षुधा शांत नहीं हुई तब उसने शिवजी कि तपस्या कि और भगवान... और पढ़ें

वास्तु

दिसम्बर 2007

व्यूस: 10490

दिशाओं का शुभाशुभ फल

दिशाओं का शुभाशुभ फल

फ्यूचर समाचार

वास्तुशास्त्र कि चार मुख्य दिशाएं-पूर्व, उतर, पश्चिम और दक्षिण। इसी तरह इसकी चार ही उपदिशाएं भी होती हैं उतर, पूर्व, उतर, पश्चिम, दक्षिण पश्चिम। वास्तु शास्त्र में ब्रहास्थल का स्थान भी महत्वपूर्ण है। वास्तुशास्त्र के अनुसार हर दि... और पढ़ें

वास्तु

दिसम्बर 2007

व्यूस: 13262

वास्तु में जल ऊर्जा का स्थान

वास्तु विचार के क्रम में जल ऊर्जा के प्रायोजित समायोजन पर विचार अपेक्षित है। जल ही जीवन है क्योकि जल के द्वारा ही प्राणी कि नित्य सभी क्रियाएं संपादित होती है, जल प्यास बुझाता है। और ताप के प्रभाव से रक्षा करता है। अस्तु,... और पढ़ें

वास्तु

दिसम्बर 2007

व्यूस: 8777

अपने घर को बनाएं वास्तुसम्मत

पर्यावरण में अनके प्रकार कि शक्तियां कार्यरत रहती है। धन आयन एवं ऋण आयन दोनों का बल समान है। स्वसन क्रिया कि एक निश्चित गति होती है। वास्तु दोष युक्त स्थान में प्रवेश करने से इसकी गति में परिवर्तन अनुभव किया जा सकता है।... और पढ़ें

वास्तु

दिसम्बर 2007

व्यूस: 11411

संयुक्त परिवार में कहां हो शयन कक्ष

वास्तु शास्त्र के अनुसार गृहस्वामी और गृहस्वामिनी को दक्षिण दिशा में शयन करना चाहिए। गृहस्वामी , गृहस्वामिनी या कोई अन्य स्त्री यदि दक्षिण दिशा में शयन व् निवास करती है। तो वह प्रभावशाली हो जाती है। अत: परिवार कि मुखिया स्त्री को ... और पढ़ें

वास्तु

दिसम्बर 2007

व्यूस: 9171

औद्धोगिक प्रतिष्ठानों में वास्तु का उपयोग

वास्तुदोष जिस भवन में स्थान बना लेते हैं उस पर सदैव दरिद्रता कि छाया और क्लेश का वातावरण बना रहाता है। सुख दूर भागते है तथा लक्ष्मी का प्रवेश बाधित होता है, अर्थात समस्याएं निरंतर आती रहती है। बड़े बड़े महलों में विषाद तथा झोंपडियों... और पढ़ें

वास्तु

दिसम्बर 2007

व्यूस: 8045

होटल की वास्तु व्यवस्था

होटल एवं रेस्टोरेंट भी व्यावसायिक प्रतिष्ठान होते है। परन्तु इनकी आतंरिक व्यवस्था अन्य दुकानों या आफिसों से बिलकुल भिन्न होती है। आधुनिक समय में होटल, रेस्टोरेंट एवं जलपान गृह का प्रचलन पहले से काफी अधिक बढ़ गया है। वर्त्तमान में आ... और पढ़ें

वास्तु

दिसम्बर 2007

व्यूस: 7730

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