ग्रह स्थिति एवं व्यापार

मासारंभ में 1 मार्च को तुला राशि स्थित वक्री गति के शनि व राहु ग्रहों के साथ मंगल का भी वक्री गति में रहना क्षेत्रीय दलों का विशेष राजनैतिक प्रभाव बढ़ना तथा जनता के द्वारा इनकी आलोचना का योग भी बनाता है।... और पढ़ें

ज्योतिषगोचरग्रहभविष्यवाणी तकनीकज्योतिषीय विश्लेषणविविध

मार्च 2014

व्यूस: 9365

शादी में मंगल की भूमिका

हमारे देश में विवाह (शादी) के समय वर-वधू की कुंडली में मंगलीक-दोष का बहुत विचार किया जाता है। आमतौर पर मंगल के वर के लिए मंगल की वधू ठीक समझी जाती है अथवा गुरु और शनि का बल देखा जाता है। मांगलिक दोषानुसार पति या पत्नी की मृत्यु... और पढ़ें

ज्योतिषग्रहविवाहभविष्यवाणी तकनीककुंडली व्याख्याज्योतिषीय विश्लेषण

जुलाई 2015

व्यूस: 9943

लाल किताब के अनुसार नीच ग्रहों के उपाय

सूर्य - पाठशालाओं में पढ़ने वाले बच्चों को गेहूं और गुड़ से बनी चीजें खाने को दें। स्वयं गुड़ मिश्रित दूध के साथ चावल (भात) खाएं।... और पढ़ें

ज्योतिषउपायग्रहलाल किताब

सितम्बर 2015

व्यूस: 6938

सूर्याष्टकवर्ग से सटीक फलकथन

भारतीय ज्योतिष में फलकथन हेतु अष्टकवर्ग विद्या की अचूकता व सटीकता का प्रतिशत सबसे अधिक है। अष्टकवर्ग में लग्न और सात ग्रहों (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि) को सम्मिलित किया जाता है। सूर्य ग्रह द्वारा विभिन्न भावों व ... और पढ़ें

ज्योतिषअष्टकवर्गग्रहघरभविष्यवाणी तकनीककुंडली व्याख्या

अकतूबर 2008

व्यूस: 10099

कुंडली के विभिन्न भावों में केतु का फल

प्रथम भाव केतु यदि प्रथम भाव में हो तो व्यक्ति रोगी, चिन्ताग्रस्त, कमजोर, भयानक पशुओं से परेशान तथा पीठ के कष्ट का भागी होता है। वह अपने द्वारा पैदा की गई समस्याओं से लड़ने वाला, लोभी, कंजूस तथा गलत लोगों का चयन करने के कारण... और पढ़ें

ज्योतिषग्रहघरराशिभविष्यवाणी तकनीक

मई 2014

व्यूस: 9626

शुक्र-चंद्रमा की युति सौंदर्यप्रदायक

शुक्र-चंद्रमा की युति सौंदर्यप्रदायकसुंदरता अपने आप में काफी मनमोहक होती है। हर व्यक्ति, हर नर-नारी अपने आप को सुंदर दिखाने की कोशिश करता है और इसके लिए अनेक प्रयास भी करता है।... और पढ़ें

ज्योतिषग्रहभविष्यवाणी तकनीक

सितम्बर 2015

व्यूस: 18608

शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या का प्रभाव

प्रत्येक जातक को अपने जीवन में दो या तीन बार शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या का सामना करना ही पड़ता है। जिन जातकों की दीर्घायु होती है उनके जीवन में कुल तीन साढ़ेसाती आती है क्योंकि 30 वर्षों के पश्चात ही शनि वापस राशि में आता है। यह आव... और पढ़ें

ज्योतिषउपायग्रहभविष्यवाणी तकनीक

फ़रवरी 2017

व्यूस: 9637

एक सही तिथिपत्रक का गणितीय आधार

हिंदू संस्कृति में पंचांग का अपना विशेष महत्व है। जीवन के विभिन्न संस्कारों, यात्राओं, किसी कार्य के आरंभ आदि में पंचांग की सहायता ली जाती है। उद्देश्य केवल एक होता है... और पढ़ें

ज्योतिषनक्षत्रगोचरपर्व/व्रतग्रहपंचांगखगोल-विज्ञानआकाशीय गणित

अप्रैल 2010

व्यूस: 8156

मंगलीक एवं गैर मंगलीक कुंडलियों का उदाहरण सहित तुलनात्मक अध्ययन

ज्योतिषीय दृष्टि से जन्मांग का सप्तम, द्वितीय, द्वादश (पुरुषों के मामलें में) और अष्टम (स्त्रियों के मामले में) भाव, सप्तमेश, द्वितीयेश, द्वादशेश और अष्टमेश तथा वैवाहिक सुख प्रदाता शुक्र वैवाहिक सुख, गृहस्थ सुख से संबंधित भा... और पढ़ें

ज्योतिषग्रहभविष्यवाणी तकनीककुंडली व्याख्याज्योतिषीय विश्लेषण

जुलाई 2015

व्यूस: 7985

शनि देव एक परिचय

शनि देव एक परिचय

फ्यूचर पाॅइन्ट

इस संसार में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो शनि के प्रभाव से अछूता हो। शनिदेव का नाम सुनते ही जनता में भय उत्पन्न हो जाता है। शनि ग्रह उतने अशुभ नहीं जितना इन्हें समझा जाता है। व्यक्ति को अध्यात्म और मोक्ष दिलाने वाले केवल शनि ग... और पढ़ें

ज्योतिषदेवी और देवग्रहअध्यात्म, धर्म आदि

जून 2016

व्यूस: 8640

न्यायकारी और ज्ञान-वैराग्य प्रदायक शनि देव

केतु और उच्च शनि की दृष्टि है। केतु की द्वादश (मोक्ष) भाव पर भी दृष्टि है। शनि अष्टम (गुप्त विद्या) भाव में उच्चस्थ होकर पंचम भाव स्थित उच्च ज्ञानकारक बृहस्पति पर दृष्टिपात कर रहा है। नवमांश में चंद्र व शनि की युति गहरी साधन... और पढ़ें

ज्योतिषग्रहभविष्यवाणी तकनीक

नवेम्बर 2014

व्यूस: 8279

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