सुजोक: एक चमत्कारिक चिकित्सा पद्धति
सुजोक: एक चमत्कारिक चिकित्सा पद्धति

सुजोक: एक चमत्कारिक चिकित्सा पद्धति  

अजय कुमार
व्यूस : 11481 | फ़रवरी 2012

विश्व में प्रचलित विभिन्न वैकल्पिक चिकित्सा-पद्धतियों में ‘सुजोक’ चिकित्सा पद्धति का नाम अब अनजाना नहीं रह गया है। महर्षि वशिष्ठ द्वारा प्रतिपादित ‘वशिष्ठ-विद्या’ को ही बाद में चिकित्सा वैज्ञानिकों ने एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति के रूप में विकसित किया। इस पद्धति में शरीर के विभिन्न मर्म-बिंदुओं पर दबाव देकर रोगों को दूर किया जाता हैं। लेकिन कई मर्म बिंदु ऐसे स्थानों पर भी होते हैं, जिन पर उपचार देने में चिकित्सक असहजता महसूस करते हैं। इन समस्याओं के निराकरण तथा रोगों के उपचार में सफलता की दर को बढ़ाने के लिए निरंतर अनुसंधान होते रहे।

इस क्रम में कोरिया के नेत्र रोग चिकित्सक डाॅ. पार्क जे वू ने अपने अनुसंधान से यह सिद्धांत स्थापित किया कि मनुष्य के समस्त अंगों से संबंधित मर्म स्थल हाथों और पैरों के पंजों में भी स्थित होते हैं और इन पर भी उपचार करके असाध्य रोगों को दूर किया जा सकता है। यह तथ्य इस चिकित्सा पद्धति के ‘सुजोक’ नामकरण से भी स्पष्ट है क्योंकि कोरिया में ‘सु’ का अर्थ हाथ और ‘जोक’ का अर्थ पैर होता है। सुजोक चिकित्सा पद्धति का यह सिद्धांत सादृश्य सिद्धांत नाम से भी जाना जाता है। इस चिकित्सा पद्धति के अनुसार माना जाता है कि मानव शरीर में बारह मार्गों द्वारा ऊर्जा का निरंतर प्रवाह होता रहता है। इन मार्गों को ‘मेरिडियन’ कहते हैं।

जब यह प्रवाह सामान्य रूप से होता है तब व्यक्ति स्वस्थ रहता है परंतु ऊर्जा के प्रवाह-मार्ग में अवरोध अथवा अनियमितता के कारण रोगों की उत्पत्ति होती है। सुजोक चिकित्सा पद्धति द्वारा ऊर्जा के इसी प्रवाह को नियंत्रित कर रोगों से मुक्त करने का प्रयास किया जाता है। सुजोक की उपचार पद्धति इस उपचार पद्धति में उपचार देने के लिए सर्वप्रथम रोग से संबंधित अंगों की पहचान की जाती है। इसके बाद हाथ तथा पैरों में स्थित रोगग्रस्त अंगों के सादृश्य बिंदुओं पर उपचार द्वारा रोगों की चिकित्सा करने का प्रावधान है। शरीर का जो भाग, अवयव या संस्थान रोग से ग्रस्त होता है, उस संस्थान अथवा अंग से संबंधित बिंदु अत्यधिक संवेदनशील हो जाता है।

इस बिंदु पर हल्का सा भी दबाव देने पर रोगी को काफी पीड़ा होती है उपचार के लिए इन बिंदुओं पर छोटे-छोटे चुंबकों, अनाज के बीज, रंग अथवा सूई का प्रयोग दबाव देने के लिए किया जाता है। सादृश्य बिंदुओं की खोज के लिए ‘जिम्मी’ नामक उपकरण को उपयोग में लाते हैं। नए रोगों में इन बिंदुओं पर 2 मिनट तक दबाव दिया जाता है। इन सादृश्य बिंदुओं पर ऐसा दबाव दिन में तीन बार देने से रोगों से जल्दी मुक्ति मिलती है। पुराने रोगों जैसे गठिया, साइटिका, हेपेटाइटिस ‘बी’ आदि रोगों में उपचार की अवधि लंबी होती है। दबाव की तीव्रता जानने के लिए रोगी की आयु, उसकी अवस्था तथा सहनशीलता को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है।

यकृत तथा पित्ताशय (गाल ब्लैडर) से संबंधित किसी भी प्रकार की समस्या से मुक्ति के लिए हथेली में स्थित सादृश्य क्षेत्र को दिन के समय हरे रंग से रंगना काफी लाभप्रद होता है। इसी प्रकार निम्न रक्तचाप तथा हृदय की अनियमित धड़कन से मुक्ति के लिए हृदय से संबंधित सादृश्य क्षेत्र को लाल रंग से रंगना चाहिए। रंग के लिए बाजार में मिलने वाले स्केच पैन का प्रयोग किया जा सकता है। कभी-कभी सादृश्य बिंदु के ऊपर की त्वचा का रंग आस-पास की त्वचा के रंग से अलग लाल, काला अथवा पीले रंग का हो जाता है। बिंदु के आस-पास के हिस्से का तापमान बढ़ा हुआ हो सकता है अथवा त्वचा खुरदरी, फुंसी आदि से युक्त हो सकती है। ये समस्त तथ्य सही मर्म-बिंदु तथा सादृश्य क्षेत्र की पहचान में काफी सहायक सिद्ध होते हैं।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.