हृदय रोग
हृदय रोग

हृदय रोग  

व्यूस : 5168 | फ़रवरी 2012
हृदय रोग आचार्य अविनाश सिंह हृदय प्राणी के शरीर का वह महत्वपूर्ण अंग है जो जन्म से लेकर मृत्यु तक क्रियाशील रहता है। परंतु कुछ विशेष कारणों से जब हृदय विकारग्रस्त होता है तो रोग उत्पन्न होते हैं, जो प्राणी को हानि पहुंचाते हैं, यहां तक कि जानलेवा भी साबित होते हैं। जिंदगी की दौड़-धूप एवं तनाव में हृदय-शूल की शिकायत बढ़ती जा रही है। यह कब, कैसे और कहां प्रहार करेगा, यह कहना आसान नहीं। इसलिए इस समय दुनियां भर में इसकी विशेष चर्चा है। हमारे शरीर में हृदय क्या कार्य करता है? इन पहलुओं पर विचार करने पर मालूम होता है कि हृदय शारीरिक रचना का वह महत्वपूर्ण अंग है जिससे शरीर के प्रत्येक सूक्ष्म हिस्से तक पोषक सामग्री पहुंचती है और वहां से अनुपयोगी तत्त्वों को इकठ्ठा कर उन्हें शरीर से बाहर निकालने में सहायक है। इस कार्य के लिए रक्त का उपयोग होता है । इसलिए रक्त का निरंतर प्रवाह आवश्यक है। हृदय द्वारा रक्त फेफड़ों तक भेजा जाता है जहां रक्त में आक्सीजन घुल जाती है और रक्त में विद्यमान अनुपयोगी वायु के अंश फेफड़ों में आकर श्वांस द्वारा शरीर से बाहर निकल जाते हैं। आक्सीजनयुक्त रक्त फिर हृदय में चला जाता है और हृदय उसे संपूर्ण शरीर में भेज देता है। एक बार श्वास लेने पर 1200 मिलीलीटर आॅक्सीजन रक्त में घुल जाती है। शरीर पांच मिनट में ही इसका उपयोग कर लेता है। इस सारी प्रणाली को कार्डीयो-वेस्कुलर सिस्टम कहते हैं। जब यह प्रणाली नियमित रूप से अपना कार्य करने में असमर्थ हो जाती है तो कई तरह के हृदय रोग हो जाते हैं। हृदय रोग में आयुर्वेदिक कारण आयुर्वेद में किसी भी रोग का मुख्य कारण तीन विकारों पर निर्भर करता है। वात, पित्त और कफ का असंतुलन भी हृदय रोग का मुख्य कारण होता है। प्रकोप-कारणों से, जैसे अधिक परिश्रम, भय, शोक, चिंता, तनाव एवं अधिक गर्म, अम्लीय, कसैले, तीखे एवं नशीले पदार्थों के सेवन से कुपित, वातादि दोष हृदय में पहुंचकर रक्त के साथ मिलकर हृदय रोग उत्पन्न होता है, सांस रूकने लगती है और कभी-कभी तो रूक ही जाती है। उसका तुरंत उपचार न होने पर व्यक्ति की मृत्यु भी हो जाती है। आयुर्वेद में इस रोग को हृदय-शूल कहते हैं। आधुनिक युग में ‘दिल का दौरा’ कहते हैं। हृदय-शूल ‘वायु’ प्रधान दोष होता है। वायु निजी प्रकोप-कारणों से तो कुपित होता ही है कफ तथा पित्त द्वारा उसका अवरोध होने से उनके प्रकार में और अधिक वृद्धि हो जाती है। यही वायु रक्त के साथ मिलकर हृदय के काम में बाधा डालती है, जिससे दर्द उत्पन्न होता है और दिल का दौरा या हृदय का कारण बनता है।



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