रेकी चिकित्सा में स्फटिक बाॅल (गेंद) की प्रयोग विधि के. के. निगम रेकी वास्तव में हमारे देश की प्राचीन के. के. निगम ‘‘स्पर्श चिकित्सा’’ ही है। हमारे पूर्वज गुरु, संत, महात्मा इस विद्या के अच्छे जानकार थे और इस स्पर्श चिकित्सा के द्वारा ही समाज के प्राणियों, जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों के कष्ट दूर किया करते थे।
रेकी चिकित्सा में रेकी मास्टर प्रायः स्फटिक बाॅल (गेंद) का प्रयोग रोगी को निरोग करने में करते हैं। इस स्फटिक बाॅल को प्रयोग हेतु चुनने एवं जागृत, सक्रिय करने हेतु रेकी मास्टरों द्वारा कुछ क्रियाएं की जाती हैं जिनका विवरण इस प्रकार है- स्फटिक एक प्रकार का रत्न है।
इसकी असली पहचान करने के लिए यदि दो स्फटिक के टुकड़े, मोतियों, बाॅलों (गेंद) आदि को आपस में रगड़ा जाये तो उनसे चिंगारी निकलती हैं। कौन सी स्फटिक बाॅल चिकित्सा करने के लिए उपयोगी रहेगी, इसके लिए रेकी मास्टर अपने दोनों हाथों को आपस में रगड़ते हैं, इस रगड़न से उनमें गर्मी उत्पन्न होती है और एक सुखद अनुभूति, सनसनाहट महसूस होती है।
फिर रेकी मास्टर हथेलियों को, खोलकर और कुछ दूरी पर रखकर अपने सामने रखी हुई कई स्फटिक बाॅलों के पास ले जाते हैं। इस स्थिति में किसी-किसी बाॅल पर हथेली ले जाने से हथेलियों में कम्पन तथा मन को शांति आदि प्राप्त होती है।
इसी बाॅल का चुनाव रेकी मास्टर चिकित्सा करने हेतु कर लेते हैं। इस प्रकार चुनी हुई स्फटिक बाॅल को जागृत व सक्रिय रखने के लिए रेकी मास्टर इस बाॅल को पहली बार में नमक के पानी में 24 घंटे तक रखते हैं। बाद में सप्ताह में एक बार कुछ देर के लिए नमक के घोल में रखते हैं इससे स्फटिक बाॅल शक्तिवान बनी रहती ह।ै
फिर बाॅल को नमक के पानी से निकाल कर बालू (रेत) में एक दिन ढककर रखते हैं, फिर इस चुनी हुई बाॅल को बालू से निकाल कर नमक के पानी से धोकर चार स्फटिक बाॅलों के मध्य रखते हैं जिसकी अवधि दो दिन से लेकर तीन दिन तक होती है। उसके बाद बाॅल को अपने पूजा स्थान में 5 दिन रखते हैं।
इस प्रकार जागृत हो चुकी स्फटिक बाॅल को रेकी मास्टर उस पर ऊँ या शिव सूत्र तथा रेकी प्रतीक चिह्न अपनी अनामिका से करते हैं। अब जो अच्छे विचार, सूत्र आदि रेकी मास्टर देना चाहते हैं, उन विचारों, सूत्रों को मन में स्मरण करते हुए 11 बार इस स्फटिक बाॅल पर फूंक मारते हैं।
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