मकर संक्रांति के दिन पूर्वजों को तर्पण और तीर्थ स्नान का अपना विशेष महत्व है। इससे देव और पितृ सभी संतुष्ट रहते हैं। सूर्य पूजा से और दान से सूर्य देव की रश्मियों का शुभ प्रभाव मिलता है और अशुभ प्रभाव नष्ट होता है। इस दिन स्नान करते समय स्नान के जल में तिल, आंवला, गंगा जल डालकर स्नान करने से शुभ फल प्राप्त होता है। सूर्य को जगत की आत्मा माना गया है। इसी कारण सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश महत्वपूर्ण माना जाता है। इस एक राशि से दूसरी राशि में किसी ग्रह का प्रवेश संक्रांति कहा जाता है। सूर्य का धनु राशि से मकर राशि म प्रवेश का नाम ही मकर संक्रांति है। धनु राशि बृहस्पति की राशि है। इसमें सूर्य के रहने पर मलमास होता है। इस राशि से मकर राशि में प्रवेश करते ही मलमास समाप्त होता है और शुभ मांगलिक कार्य हम प्रारंभ करते हैं। मकर संक्रांति का दूसरा नाम उत्तरायण भी है क्योंकि इसी दिन से सूर्य उत्तर की तरफ चलना प्रारंभ करते हैं। उत्तरायण के इन छः महीनों में सूर्य के मकर से मिथुन राशि में भ्रमण करने पर दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं। इस दिन विशेषतः तिल और गुड़ का दान किया जाता है।
इसके अलावा खिचड़ी, तेल से बने भोज्य पदार्थ भी किसी गरीब ब्राह्मण को खिलाना चाहिए। छाता, कंबल, जूता, चप्पल, वस्त्र आदि का दान भी किसी असहाय या जरूरत मंद व्यक्ति को करना चाहिए। राजा सागर के 60,000 पुत्रों को कपिल मुनि ने किसी बात पर क्रोधित होकर भस्म कर दिया था। इसके पश्चात् इन्हें मुक्ति दिलाने के लिए गंगा अवतरण का प्रयास प्रारंभ हुआ। इसी क्रम में राजा भागीरथ ने अपनी तपस्या से गंगा को पृथ्वी पर अवतरित किया। स्वर्ग से उतरने में गंगा का वेग अति तीव्र था इसलिए शिवजी ने इन्हें अपनी जटाओं में धारण किया। फिर शिव ने अपनी जटा में से एक धारा को मुक्त किया। अब भागीरथ उनके आगे-आगे और गंगा उनके पीछे -पीछे चलने लगी। इस प्रकार गंगा गंगोत्री से प्रारंभ होकर हरिद्वार, प्रयाग होते हुए कपिल मुनि के आश्रम पहुंचीं, यहां आकर सागर पुत्रों का उद्धार किया। यही आश्रम अब गंगा सागर तीर्थ के नाम से जाना जाता है। मकर संक्रांति के दिन ही राजा भागीरथ ने अपने पुरखों का तर्पण कर तीर्थ स्नान किया था। इसी कारण गंगा सागर में मकर संक्रांति के दिन स्नान और दर्शन को मोक्षदायक माना है।
भीष्म पितामह को ईच्छा मृत्यु का वरदान था इसीलिए उन्होंने शर शैय्या पर लेटे हुए दक्षिणायन के बीतने का इंतजार किया और उत्तरायण में अपनी देह का त्याग किया। उत्तरायण काल में ही सभी देवी-देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा शुभ मानी जाती है। धर्म-सिंधु के अनुसार-मकर संक्रांति का पुण्य काल संक्रांति समय से 16 घटी पहले और 40 घटी बाद तक माना गया है। मुहूर्त चिंतामणि ने पूर्व और पश्चात् की 16 घटियों को ही पुण्य काल माना है। यदि संक्रांति अर्धरात्रि के पूर्व हो तो दिन का उत्तरार्द्ध पुण्य काल होता है। अर्ध रात्रि के पश्चात संक्रांति हो तो दूसरे दिन का पूर्वार्द्ध पुण्य काल होता है। यदि संक्रांति अर्द्ध रात्रि को हो तो दोनों दिन पुण्य काल होता है। देवी पुराण में संक्रांति के संबंध में कहा गया है कि मनुष्य की एक बार पलक झपकने में लगने वाले समय का तीसवां भाग तत्पर कहलाता है। तत्पर का सौवां भाग त्रुटि कहलाता है और त्रुटि के सौवं भाग में संक्रांति होती है। इतने सूक्ष्म काल में संक्रांति कर्म को संपन्न करना संभव नहीं है इसीलिए ही उसके आसपास का काल शुभ माना जाता है। इनमें भी 3, 4, 5, 7, 8, 9 और 12 घटी का समय पुण्य काल हेतु श्रेष्ठ माना है।
मकर संक्रांति पर भगवान शिव की पूजा अर्चना भी शुभ मानी गयी है। इस दिन काले तिल मिलाकर स्नान करना और शिव मंदिर में तिल के तेल का दीपक जलाकर भगवान शिव का गंध, पुष्प, फल, आक, धतुरा, बिल्व पत्र चढ़ाना शुभफल दायक है। कहा भी गया है कि इस दिन घी और कंबल का दान मोक्ष-दायक है। इस दिन ताम्बुल का दान करना भी श्रेष्ठ माना गया है। सूर्य प्रत्येक माह में एक राशि पर भ्रमण कर एक वर्ष में बारह राशियों पर अपना भ्रमण पूरा कर लेता है। इस प्रकार सूर्य प्रत्येक माह में एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश कर लेता है। इस एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश का नाम ही संक्रांति है। जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है तो इसे मकर संक्रांति कहा जाता है क्योंकि इस दिन से सूर्य उत्तर की तरफ चलना शुरू कर देता है जिससे दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। इस दिन से देवताओं के दिन प्रारंभ होते हैं जिससे इस दिन का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। उत्तरायण काल को ही हमारे ऋषि मुनियों ने साधना का सिद्धिकाल माना है। ज्योतिष के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य की पूजा उपासना करना परम फलदायक माना है।
पुराणों क अनुसार ‘‘सर्व रोगात समुच्यते’ अर्थात सूर्य उपासना से समस्त रोगों का नाश हो जाता है। ग्रहों में सूर्य को राजा का पद प्राप्त है इसलिए भी सूर्य की उपासना करना हमारे लिए महत्वपूर्ण है। सूर्य कृपा प्राप्त करने के लिए मकर संक्रांति पर किये जाने वाले प्रयोग .....
1. मकर संक्रांति के दिन प्रातःकाल नहा धोकर पवित्र होकर लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर बैठकर भगवान सूर्य की पूजा करने हेतु एक बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर सूर्य देव की तस्वीर रखकर उसे पंचामृत स्नान कराकर धूप, दीप जलाकर लाल रंग के पुष्प फल अर्पित कर लाल रंग की मिठाई अथवा गुड़ का भोग लगायें। सूर्य मंत्र का 28000 जप करें। इतना संभव नहीं हो तो 7000 जप अवश्य करें, इससे आपको सूर्य देव की कृपा साल भर तक प्राप्त होती रहेगी। मंत्र ..... ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः। ऊँ घृणी सूर्याय नमः ।।
2.....मकर संक्रांति के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर नहा धोकर पवित्र होकर एक कलश में स्वच्छ जल भरकर उसमें थोड़ा सा गुड़, रोली लाल चंदन, अक्षत, लाल फूल डालकर दोनों हाथों को ऊंचा कर सूर्य भगवान को प्रणाम कर निम्न मंत्र बोलते हुए अध्र्य प्रदान करें: एही सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते। अनुकम्पयमाम भक्तयम गृहाणअध्र्य दिवाकर ।। इसके पश्चात् लाल रंग की वस्तुओं का दान, तिल और गुड़ का दान करें तो आपको सूर्य देव की कृपा प्राप्त होने लगती है।
3. मकर संक्रांति के दिन सूर्य भगवान को अध्र्य देकर आदित्य हृदय स्तोत्र के 108 पाठ किये जायें तो वर्ष भर शांति रहती है।
4. मकर संक्रांति के दिन सिद्ध सूर्य यंत्र प्राप्त कर उसे पंचामृत स्नान कराकर धूप दीप दिखाकर: ऊँ घृणी सूर्याय नमः, का जप कर गले में धारण करें तो सूर्य कृपा प्राप्त होने लगती है।
5. मकर संक्रांति के दिन स्वर्ण पाॅलिश युक्त सूर्य यंत्र एक बाजोट पर लाल कपड़ा बिछाकर उसे पंचामृत स्नान कराकर स्थापित करें, फिर धूप, दीप दिखाकर लाल फूल, फल, गुड़ अर्पित कर लाल चंदन का टिका लगाकर ऊँ घृणी सूर्याय नमः, के सात हजार जप करें। फिर प्रतिदिन धूप, दीप दिखाने और इस मंत्र का एक माला जप करने से राजकीय सेवा का अवसर बनने लगता है। आप भी मकर संक्रांति के दिन सूर्योपासना का लाभ अवश्य उठायें।