पित्ताशय की पथरी की उपस्थिति अधेड़ावस्था में पेट दर्द और उदर विकार का एक प्रमुख कारण है। इस बीमारी के कारण उठने वाला दर्द न केवल बर्दाश्त से बाहर होता है, बल्कि अपनी चरम सीमा पर कई प्रकार की जटिलताएं भी उत्पन्न कर सकता है। यकृत के निचले भाग में दाहिनी ओर नाशपाती के आकार का पित्ताशय होता है। इसमें एक ओर यकृत से आने वाली पित्त वाहिका खुलती है, दूसरी ओर इसमंे जमा पित्त महीन नलिकाओं द्वारा ग्रहणी तक पहुंच जाता है और वहां से पित्त छोटी आंत में मौजूद अन्न की पाचन क्रिया को तेज करने में सहायक होता है।
पित्ताशय का मुख्य कार्य है पित्त को जमा करना और गाढ़ा बनाना। इसके अतिरिक्त पित्ताशय एक चिपचिपे पदार्थ का स्राव करता है, जो पित्त वाहिका को चिकनाहट प्रदान कर पित्त के विकास में सहायक सिद्ध होता है। यह पित्त हरे रंग का होता है और स्वाद में कसैला होता है, जिसका मुख्य कार्य आंत के भीतर जमा होने वाली वसा का पाचन करना एवं उसे सोखकर खून में पहुंचाना होता है। यही प्रक्रिया कैल्शियम, कोलेस्ट्राॅल एवं विटामिनों के साथ होती है। पित्ताशय में पित्त के घटकों की जब किन्हीं कारणों से विकृति होती है, तो इन्हीं घटकों का रूप पथरी में बदल जाता है जिसके कारण पित्ताशय को क्षति पहुंचती है तथा यकृत और अन्य पाचन अंगों में विकार उत्पन्न होता है।
पित्ताशय की पथरी के कारण: पित्ताशय में पथरी होने के कई कारण हैं लेकिन मुख्य कारण आहार है। यदि आहार मद्य से युक्त, मांसाहारी, अनियमित और असंतुलित है, तो परिणामस्वरूप पाचन क्रिया मंद हो जाने के कारण पित्ताशय में कोलेस्ट्राॅल नहीं घुल पाता जो संचित होकर दूषित द्रव्यों के संयोग से पथरी का रूप धारण कर लेता है, जिसे पित्त पथरी कहते हैं। मोटापा, आनुवांशिकता, पित्ताशय का विकार, गर्भ निरोधक गोलियां आदि अन्य कारण हैं।
पित्ताशय की पथरी के लक्षण: इसका मुख्य लक्षण पित्ताशय में मरोड़ उठना है जो पित्ताशय का मुख अवरूद्ध हो जाने से होता है। दर्द की शुरूआत पेट की दाहिनी ओर ऊपरी हिस्से से होती है। दर्द अचानक उठता है और धीरे-धीरे कम होता है। यह दौरा कुछ मिनटों से घंटों तक एक सा रहता है। दर्द की मात्रा पूरे शरीर में एक समान होती है और अक्सर भोजन के पश्चात दर्द उठता है। पथरी के पित्त नली में अटक जाने से कई बार सिर में चक्कर और तेज-बुखार आ सकता है। अल्ट्रासाउंड द्वारा पथरियों की संख्या और स्थिति का पता चल जाता है।
उपचार और बचाव: बाजार में अब कई ऐसी दवाईयां उपलब्ध हंै, जिसके लगातार सेवन से पथरी घुलकर बाहर निकल जाती है। इसके अतिरिक्त शल्य-क्रिया से भी जरूरत के अनुसार लाभ उठाया जाता है। लेकिन यदि व्यक्ति चाहे तो खान-पान सुधार कर शरीर का शोधन कर रोग को दूर भगा सकता है। जौ, मूंग के छिलके वाली दाल, चावल, परवल, तुरई, अनार, आंवला, मुनक्का, ग्वार पाठा, लौकी, करेला, जैतून का तेल आदि लें, भोजन सादा, बिना घी-तेल तथा आसानी से पचने वाला हो और योगासन कर भी पथरी से राहत पा सकते हैं। मांसाहार, मद्यपान आदि न करने से पथरी रोग से बचा जा सकता है। ज्योतिषीय दृष्टिकोण: ज्योतिषीय दृष्टिकोण से पित्ताशय की पथरी सूर्य, मंगल और पंचम भाव के दूषित प्रभाव में रहने से होती है। चिकित्सा पद्धति के अनुसार, पित्ताशय की पथरी पित्ताशय में पित्त के विकार के कारण होती है। काल पुरूष की कुंडली में पित्ताशय का नेतृत्व पंचम भाव करता है।
सूर्य, मंगल पित्त कारक है, इसलिए जब सूर्य, मंगल और पंचम भाव गोचर और दशांतर्दशा दुष्प्रभावों में रहकर लग्न या लग्नेश को प्रभावित करते हैं, तो पित्ताशय में पित्त विकृत होकर पथरी का रूप धारण कर लेता है।
विभिन्न लग्नों में पित्ताशय की पथरी:
मेष लग्न: सूर्य दशम में राहु से दृष्ट या युक्त हो। मंगल षष्ठ भाव और शनि अष्टम भाव में हो तो पित्ताशय की पथरी का रोग होता है।
वृष लग्न: लग्नेश सूर्य अस्त और गुरु से दृष्ट हो, पंचमेश मंगल के साथ त्रिक भावांे में राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो, तो पित्ताशय की पथरी देता है।
मिथुन लग्न: पंचमेश षष्ठ भाव में लग्नेश से युक्त हो, सूर्य पंचम भाव में और मंगल एकादश भाव में गुरु से युक्त हो, तो पित्ताशय की पथरी होती है।
कर्क लग्न: सूर्य पंचम भाव में, मंगल अष्टम भाव में, शनि एकादश भाव में, लग्नेश चंद्र-गुरु से षष्ठ भाव में होने से पित्ताशय की पथरी होने की संभावना होती है।
सिंह लग्न: लग्नेश षष्ठ भाव में शनि से युक्त हो, शुक्र पंचम भाव में बुध से युक्त हो, बुध अस्त नहीं हो और पंचमेश द्वादश भाव में अशुभ प्रभावों में हो तो पित्ताशय की पथरी होती है।
कन्या लग्न: गुरु पंचम भाव में, मंगल दशम भाव में लग्नेश से युक्त हो और सूर्य एकादश भाव में शनि से दृष्ट हो तो पित्ताशय रोग होता है।
तुला लग्न: पंचमेश और लग्नेश दोनों अष्टम भाव में हो, गुरु की दृष्टि पंचम भाव पर हो और लग्न में राहु या केतु हो तो उपर्युक्त रोग को उत्पन्न करता है।
वृश्चिक लग्न: लग्नेश षष्ठ भाव में, बुध पंचम भाव में, सूर्य चतुर्थ भाव में, शुक्र लग्न में केतु से दृष्ट या युक्त हो, गुरु शनि से दृष्ट या युक्त हो तो पित्ताशय की पथरी होती है।
धनु लग्न: मंगल त्रिक भावों में शनि से दृष्ट या युक्त हो, सूर्य तृतीय भाव में, शुक्र चतुर्थ भाव में राहु से युक्त या दृष्ट हो और लग्नेश अस्त हो, तो पथरी रोग होता है।
मकर लग्न: गुरु लग्न में और तृतीय भाव में सूर्य हो, पंचमेश षष्ठ भाव में मृत अवस्था में हो और मंगल से दृष्ट या युक्त हो, तो पित्ताशय की पथरी देते हंै।
कुंभ लग्न: सूर्य एकादश भाव में, मंगल पंचम भाव में, पंचमेश अस्त हो, चंद्र लग्न में केतु से दृष्ट या युक्त हो, गुरु नवम भाव में हो तो पित्ताशय की पथरी होती है।
मीन लग्न: शनि पंचम भाव में चंद्र से युक्त और राहु या केतु से दृष्ट या युक्त, मंगल द्वितीय भाव में और लग्नेश अष्टम भाव में स्थित हो तो पित्ताशय की पथरी देता है। उपरोक्त सभी योग अपनी दशा-अंतर्दशा एवं गोचर के प्रतिकूल रहने से अपना प्रभाव डाल कर रोग उत्पन्न करते हैं। उसके उपरांत रोगी को राहत मिलती है।