जब किसी को परिवार से ही जैसे ताऊ या चाचा जो कि या निःसन्तान हो या अविवाहित हो अथवा असमय अकाल मौत हुई हो या पूर्व जन्म में यदि किसी ने किसी को संताप दिया हो जैसे दैहिक, भौतिक या मानसिक भी तो वह अगले जन्म में उस जातक की कुंडली में पितृ दोष बन कर जीवन में बाधा का कारण बन जाता है लक्षण
परिवार में अशांति, विशेषतया भोजन के समय कोई बहस या तकरार, कन्या संतान का जन्म और पुत्र का अभाव, धन की बरकत न होना, घर में बीमारी बनी रहना, निःसन्तान रहना, बच्चों के विवाह में अड़चन, कोई भी शुभ काम के बाद कोई अशुभ होना जैसे झगड़ा, चोट लगना, आग लगना, मौत या मौत की खबर आदि कोई भी अशुभ समाचार मिलना। कई बार यह भी देखने में आया है कि जन्म कुंडली में कोई दोष नहीं होता है फिर भी जातक मुश्किलों में घिरा रहता है। तो इसके लिए उसे अपने परिवार की पृष्ठभूमि पर विचार करना चाहिए। क्या उनके परिवार में उनके पूर्वजों का विधिवत श्राद्ध किया जाता है। क्या उसके पूर्वजों को कहीं से मुफ्त का धन तो नहीं मिला। जब किसी निःसन्तान या अविवाहित की असमय अकाल मौत हुई हो और उनका कोई वारिस न हो तो ऐसे धन का उपभोग भी परिवार में अशांति लाता है। अक्सर देखा गया है कि ऐसे धन को उपभोग वाले की सबसे छोटी संतान अधिक संताप भोगती है। ऐसे में फिर क्या किया जाए ? यहाँ भी जिसका धन उपभोग किया जा रहा है उसका विधिवत श्राद्ध और उसके नाम से कुछ धन राशि का दान किया जाय तो शांति बनी रह सकती है। नवग्रहों में सूर्य स्पष्ट रूप से पूर्वजों के प्रतीक माने जाते हैं, इसलिए किसी कुंडली में सूर्य को बुरे ग्रहों के साथ स्थित होने से या बुरे ग्रहों की दृष्टि से अगर दोष लगता है तो यह दोष पितृ दोष कहलाता है।
इसके अलावा कुंडली का नवम भाव पूर्वजों से संबंधित होता है, इसलिए यदि कुंडली के नवम भाव या इस भाव के स्वामी को कुंडली के बुरे ग्रहों से दोष लगता है तो यह दोष भी पितृ दोष कहलाता है। पितृ दोष प्रत्येक कुंडली में अलग-अलग तरह के नुकसान कर सकता है जिनका पता कुंडली का विस्तारपूर्वक अध्ययन करने के पश्चात ही चल सकता है। पितृ दोष के निवारण के लिए सबसे पहले कुंडली में उस ग्रह या उन ग्रहों की पहचान की जाती है जो कुंडली में पितृ दोष बना रहे हैं और उसके पश्चात उन ग्रहों के लिए उपाय किए जाते हैं जिससे पितृ दोष के बुरे असर को कम किया जा सके। बृहत् पराशर होरा शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में 14 प्रकार के शापित योग हो सकते हैं जिनमें पितृ दोष, मातृ दोष, भ्रातृ दोष, मातुल दोष, प्रेत दोष आदि को प्रमुख माना गया है। किसी भी व्यक्ति की कुंडली देखकर यह बताया जा सकता है कि उसे पितृ दोष है या नहीं और यदि है तो किन ग्रहों के कारण। इन शाप या दोषों के कारण व्यक्ति को स्वास्थ्य हानि, आर्थिक संकट, व्यवसाय में रुकावट, संतान संबंधी समस्या आदि का सामना करना पड़ सकता है। पितृ दोष के बहुत से कारण हो सकते हैं। उनमें से जन्म कुण्डली के आधार पर कुछ कारणों का उल्लेख किया जा रहा है जो निम्नलिखित हैं:-
जन्म कुण्डली के पहले, दूसरे, चैथे, पांचवें, सातवें, नौवें या दसवें भाव में यदि सूर्य-राहु या सूर्य-शनि एक साथ स्थित हों तब यह पितृ दोष माना जाता है। इन भावों में से जिस भी भाव में यह योग बनेगा उसी भाव से संबंधित फलों में व्यक्ति को कष्ट या संबंधित सुख में कमी हो सकती है। सूर्य यदि नीच का होकर राहु या शनि के साथ है तब पितृ दोष के अशुभ फलों में और अधिक वृद्धि होती है। किसी जातक की कुंडली में लग्नेश यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है और राहु लग्न में है तब यह भी पितृ दोष का योग होता है। जो ग्रह पितृ दोष बना रहे हैं यदि उन पर छठे, आठवें या बारहवें भाव के स्वामी की दृष्टि या युति हो जाती है तब इस प्रभाव से व्यक्ति को वाहन दुर्घटना, चोट, ज्वर, नेत्र रोग, ऊपरी बाधा, तरक्की में रुकावट, बनते कामों में विघ्न, अपयश की प्राप्ति, धन हानि आदि अनिष्ट फलों के मिलने की संभावना बनती है।
पितृदोष की शांति के सरल और सस्ते उपाय
* गाय की सेवा करें। इसके लिए किसी भी मजबूर व्यक्ति की गाय के लिए साल भर के चारे की व्यवस्था करंे।
* चिड़ियों को बाजरा के दाने डालें।
* कौवों को रोटी डालें।
* हर अमावस्या को मंदिर में सूखी रसोई और दूध का दान करें।
* हर अमावस्या को गाय को हरा चारा डालें।
* किसी धार्मिक स्थल पर आम और पीपल का वृक्ष लगवा दें।
* तुलसी की सेवा करें।
* अपने पूर्वजों के नाम पर प्याऊ आदि की व्यवस्था करें।
पितरों के निमित्त दूध देने की विधि:
एक गिलास कच्चे दूध में चीनी मिला कर छान लीजिये। अब थोड़ा दूध एक कटोरी में डाल कर उसे अपनी हथेली से ढंक कर विष्णु भगवान को स्मरण करते हुए कहिये विष्णु भगवान के लिए। गिलास के बचे हुए दूध को भी हथेली से ढंकते हुए कहिये सभी पितरों के लिए। अब कटोरी के दूध को गिलास के दूध में मिला दीजिये। यह दूध पुजारी को पीने को दीजिये साथ ही श्रद्धा अनुसार दक्षिणा भी दीजिये।
- सूर्य को रोज तांबे के लोटे में जल, उसमें लाल फूल, कुंकुम व चावल मिला कर अघ्र्य दें।
- निम्नांकित मंत्र का जप रोज करें। मंत्र जप करते समय आपका मुख पूर्व दिशा में होना चाहिए: ऊँ आदित्याय विद्महे, प्रभाकराय, धीमहि तन्नो सूर्यः प्रचोदयात।।
- पांच मुखी रूद्राक्ष धारण करें व रोज 12 ज्योतिर्लिंगों के नामों का स्मरण करें।
- गायत्री पूजा व गायत्री मंत्र का जाप करें।
- बुजुर्गों का अपमान न करें तथा उनकी मदद का प्रयास करें।
- रविवार के दिन गाय को गेहूं व गुड़ खिलाएं। स्वयं घर से निकलते समय गुड़ खाएं।
- जिन व्यक्तियों के माता-पिता जीवित हैं उनका आदर-सत्कार करना चाहिए। भाई-बहनों का भी सत्कार आपको करते रहना चाहिए। धन, वस्त्र, भोजनादि से सेवा करते हुए समय-समय पर उनका आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए।
- सोमवार के दिन 21 पुष्प आक के लें, कच्ची लस्सी, बिल्व पत्र के साथ शिवजी की पूजा करें। ऐसा करने से पितृ दोष का प्रभाव कम होता है।
- कुंडली में पितृ दोष होने से किसी गरीब कन्या का विवाह या उसकी बीमारी में सहायता करने पर भी लाभ मिलता है।
- कुंडली में पितृ दोष बन रहा हो तब जातक को घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने स्वर्गीय परिजनों का फोटो लगाकर उस पर हार चढ़ाकर रोजाना उनकी पूजा स्तुति करना चाहिए। उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।
- अपने स्वर्गीय परिजनों की निर्वाण तिथि पर जरूरतमंदों अथवा गुणी ब्राह्मणों को भोजन कराएं। भोजन में मृतात्मा की कम से कम एक पसंद की वस्तु अवश्य बनाएं।
- इसी दिन अगर हो सके तो अपनी सामथ्र्यानुसार गरीबों को वस्त्र और अन्न आदि दान करने से भी यह दोष मिटता है।
- शाम के समय में दीप जलाएं और नाग स्तोत्र, महामृत्युंजय मंत्र या रुद्र सूक्त या पितृ स्तोत्र व नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें। इससे भी पितृ दोष की शांति होती है।
- कुंडली में पितृदोष होने से किसी गरीब कन्या का विवाह या उसकी बीमारी में सहायता करने पर भी लाभ मिलता है।