हस्तरेखा ज्ञान : इतिहास एवं प्रामाणिकता
हस्तरेखा ज्ञान : इतिहास एवं प्रामाणिकता

हस्तरेखा ज्ञान : इतिहास एवं प्रामाणिकता  

डॉ. अरुण बंसल
व्यूस : 2796 | जून 2005

आयुः कर्म च वित्तं च विद्या निधनमेव च।
पं´चैतान्यपि सृज्यन्ते गर्भस्थस्यैव देहिनः।।
व्यक्ति की आयु, कर्म, धन, विद्या और मृत्यु का निर्धारण गर्भ में ही हो जाता है।

कर्मवादियों एवं ज्योतिषियों का विवाद युगों-युगों से चला आ रहा है। कर्मवादी अपने पक्ष की प्रबल पुष्टि हेतु प्रायः गीता के इस श्लोक की दुहाई देते हैं:

कर्मण्येवाधिकारस्ते, मा फलेषु कदाचन्।
मा कर्मफलहेतुर्भूमाॅ ते, संगोऽस्त्वकर्मणि।।

अर्थात व्यक्ति को अपना कर्म कर्तव्य समझ कर निरंतर करते रहना चाहिए, क्योंकि कर्म करना उसके हाथ में है। जहां तक किए गए कर्म के फल पाने की बात है उसकी चिंता नहीं करनी चाहिए। यदि फल की चिंता मन में रहेगी तो कर्म अच्छे ढंग से नहीं हो पाएगा। यदि कर्म ही अच्छा नहीं हुआ तो फल कैसे अच्छा मिलेगा।


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कर्म की अभिलाषा मन में न हो तो कर्म के बाद फल की प्राप्ति न होने पर निराशा नहीं होगी, क्योंकि मन में पहले से फल पाने की चाह बलवती नहीं थी। ‘जब फल ही नहीं मिलना तो कर्म क्यों करें’ का भाव भी मन में नहीं आना चाहिए। ऐसा होने पर अकर्मण्यता घेर लेगी। इसलिए सचेत होकर कर्म करते रहना चाहिए। हस्तरेखा देखने का प्रचलन भारत में वैदिक काल से रहा है। इसका एक सबसे पुराना प्रसंग रामायण में मिलता है जब नारद मुनि ने पर्वतराज हिमालय की पुत्री गिरिजा का हाथ देखकर बताया:

जोगी जटिल अकाम मन नगन अमंगल बेष।
अस स्वामी एहि कहं मिलिहि परी हस्त असि रेख।।

अर्थात इस कन्या के हाथ की रेखा के अनुसार इसका पति योगी, जटाधारी, निष्कामहृदय, अद्धर् नग्न और अमंगल वेषधारी होगा।

अथर्ववेद में भी हस्तरेखा ज्ञान का उल्लेख है:

कृत दक्षिण हस्ते, जयो मे सनय आहितः। (अथर्ववेद-752.8)

अर्थात व्यक्ति के दाएं हाथ में पुरुषार्थ और बाएं हाथ में विजय है।

मानव जाति के दोनों हाथों में अंतर है। दायां हाथ कर्म का और बायां हाथ भाग्य का है। दायां हाथ ही देखना चाहिए क्योंकि यही हमारे कर्म को दर्शाता है। हमारे हर कर्म मंे दायां हाथ ही सर्वप्रथम आगे बढ़ता है। हस्तरेखा विज्ञान समुद्र ऋषि द्वारा रचित सामुद्रिक शास्त्र का ही एक अंग है। सामुद्रिक शास्त्र में शिखा से लेकर पैरों तक सभी अंगों के वर्णन एवं उनके द्वारा भविष्य कथन की विधि बताई गई है। लेकिन उनमें ललाट एवं हस्त रेखाओं का ही सबसे अधिक वर्णन है।

ज्योतिष एवं हस्तरेखा विज्ञान में एक प्रमुख अंतर यह है कि ज्योतिष में जन्म के समय से ही जन्मांग नियत हो जाता है जबकि हमारे कर्मानुसार हमारी हस्तरेखाएं बदलती रहती हैं और इस प्रकार ये रेखाएं हमारे कर्मानुसार परिवर्तित भाग्य को दर्शाती हैं। जुड़वां बच्चों के भविष्य कथन में ज्योतिष पूरी तरह सक्षम नहीं है। ऐसे में हस्तरेखा ज्ञान भविष्य कथन में सहायक सिद्ध होता है। दो मनुष्यों की, जो एक ही समय और एक ही स्थान पर उत्पन्न हों, हस्त रेखाएं भी भिन्न होती हैं।

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हस्तरेखा विज्ञान में अनेक रिक्त स्थान हैं जिनके कारण भविष्य कथन में कमी रह जाती है। जैसे कि जीवन रेखा पूर्ण रूप से हमारी आयु को नहीं दर्शाती है। जिनकी जीवन रेखा छोटी होती है वे भी दीर्घायु होते हैं एवं जो बालक जन्म के तुरंत बाद ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं उनकी जीवन रेखा लंबी पाई जाती है। इसी प्रकार विवाह पक्ष, संतान पक्ष, मातृ, पितृ एवं भ्रातृ पक्ष, व्यापार पक्ष आदि के बारे में सटीकता से भविष्य कथन करने में अनेक व्यवधान आते हैं। इन पर ऐसे शोध की आवश्यकता है जिसमें जीवन परिचय सहित हस्तरेखा भंडार बनाया जाए एवं उनमें से सूत्र निकाल कर हस्तरेखा विज्ञान को नया रूप दिया जाए।


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