सूर्य के राशि परिवर्तन का समय संक्रांति कहलाता है। सूर्य लगभग एक माह में राशि परिवर्तन कर लेते है। इस प्रकार एक वर्ष में मेष-वृषादि 12 संक्रांति होती है। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना मकर संक्रांति कहलाता है। मकर संक्रांति को सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाते है।
इसी कारण इस संक्रांति का पुराणों एंव शास्त्रों में बहुत महत्व प्रतिपादित किया है। अयन का अर्थ होता है चलना। सूर्य के उत्तर गमन को उत्तरायण कहते है। उत्तरायण के छह महीनों मे सूर्य मकर से मिथुन तथा दक्षिणायन में सूर्य कर्क से धनु राषि में भ्रमण करते है। ‘‘महाभारत’’ एंव ‘‘ भागवत् पुराण’’ के अनुसार सूर्य के उत्तरायण आने पर ही ‘‘भीष्म पितामह’’ ने देह त्याग किया था। भगवान कृष्ण ने भी गीता में कहा है कि जो प्राणी सूर्य के उत्तरायण होने पर शरीर त्याग करता है, वह जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है। शास्त्रो में उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि कहा गया है।
इस प्रकार मकर संका्रन्ति एक प्रकार से देवताओं का प्रातःकाल है। ‘‘हेमाद्रि’’/‘‘भविष्य पुराण’’ में घोषणा की गई है कि उत्तरायण के आ जाने पर यानी मकर संक्रांति में एक प्रस्थ घी से सूर्य को स्नान करावे। पीछे उसे ब्राह्मण को दे दे, कुटुम्बी ब्राह्मण के लिये घृतधेनुक दान करे, वह सब पापो से छुटकर सूर्यलोक को जाकर बहुत समय तक रहता है वहाँ से आकर प्रजा को आनंद देने वाला राजा होता है। मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान, जप, तप, श्राद्ध तथा अनुष्ठान आदि का सौ गुना फल प्राप्त होता है। उत्तर प्रदेश में इस पर्व को ‘‘खिचडी’’ कहते है। इसका वैज्ञानिक महत्व यह है कि बाजरे आदि की खिचडी से कड़ाके की सर्दी भी बेअसर हो जाती है।
महाराष्ट्र में विवाहित स्त्रियाँ पहली संक्रांति पर तेल, कपास, नमक, आदि वस्तुएं सौभाग्यवती स्त्रियों को दान करती है। बंगाल में इस दिन स्नान कर तिल का दान करने का प्रचलन है। दक्षिण भारत में इसे ‘‘पोंगल’’ कहते है। असम में मकर संक्रांति को बिहू का त्योहार मनाया जाता है। राजस्थान में इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियाॅ सुहाग की वस्तुए , गजक ,तिल के लड्डू, घेवर, या मोतीचूर के लड्डू आदि पर रूपया रखकर बायना के रूप में अपनी सास के चरण स्पर्श करके देती है। किसी भी वस्तु का चैदह की सख्ंया में संकल्प कर ब्राह्मणों या अन्य परिचितो को दान करती है।
इस दिन नव वर्ष का पंचांग ब्राह्मणों को दान करने की भी परम्परा है। इस दिन तिल ही से स्नान करे, तिल ही का उबटन लगावे, तिल ही का हवन, तिल का जल, तिल का ही भोजन तथा दान ये छः कर्म तिल ही से करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। ‘‘विष्णु धर्म’’ के अनुसार संक्रांति के दिन तिल, श्वेत वस्त्र, स्वर्ण, चाँदी, अन्न, गाय बछडे, पशु, आहार आदि दान करने से एक हजार गुना फल प्राप्त होता है। इस दिन बेटी-जवाँई को घर बुलाकर उनका आदर सत्कार करने से भी विशेष फल प्राप्त होता है। मकर संक्रांति के दिन यदि गंगासागर अथवा पवित्र सरोवर में स्नान किया जाये तो वर्ष भर में किये गये जाने-अनजाने सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। वहां के लोग यह मानते हैं कि जब सूर्य मकर राशि मे प्रवेश करते हैं, उस समय वहाॅ के मन्दिर के आस-पास जो पर्वत हैं उन पर आग की लपटे द्रष्टिगोचर होती है
जो अग्नि स्वरूप भगवान सूर्य एवं ईश्वर का साक्षात दर्शन है। केरल में इस दिन अयप्पा भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है। शास्त्रों में गऊधाट पर इस दिन स्नान करने से गोदान के बराबर फल बताया गया है। ‘‘बृह्माण्ड पुराण’’ में इस दिन दधि-मंथन का दान करने से पुत्र प्राप्ति होने तथा जन्म-जन्मान्तर के दारिद्रय नष्ट हो जाने की बात लिखी है। तमिलनाडु में मकर सक्रान्ति दीपावली की तरह उंमग व उल्लास से मनाई जाती है। पंजाब व जम्मू-कश्मीर, जो सिख बहुल क्षेत्र है वहाँ मकर संक्रान्ति की पूर्व संघ्या को लोहडी के रूप में गाजे-बाजे उमंग व रास-रंग के साथ मनाया जाता है। नव विवाहित एवं षिषुओ के उपलक्ष्य मे इस त्यौहार को धूम धाम से मनाते हैं, प्रार्थना करते हैं -
.. दे मा लोहड़ी - तेरी जीवे जोड़ी दक्षिण बिहार में मकर संक्रांति पर विशाल मेला भी लगता है जो एक पक्ष तक चलता है। यहाँ मंदार पर्वत के नीचे सरोवर में स्नान किया जाता है। मान्यता है कि मधु कैरभ नामक असुरों का भगवान विष्णु ने यहीं पर वघ कर इसी सरोवर में स्नान किया था। यह जल पापनाशक कहलाता है। इस दिन कुरूक्षेत्र के पवित्र सरोवर में भी लाखों व्यक्ति स्नान कर पुण्य कमाते हैं। ‘धर्म सिन्घु’ ग्रन्थ के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सफेद तिल से देवताआंे का तथा काले तिल से पित्तरांे का तर्पण करना चाहिये। षिवलिंग पर षुद्ध जल का अभिषेक करने से महाफल की कृपा प्राप्ति होती है। श् ‘‘शिव रहस्य’’ घोषणा करता है कि ’’मकर सक्रांति एंव माघ मास में जो घृत एंव कम्बल का दान करता है वह अनेक भोगांे को भोगकर अन्त में मोक्ष पाता है।
घृत व कंबल देने से कई मनुष्य राजा हो गये। ’ वायु पुराण के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त मे स्नान कर दूर्वा, दघि, मक्खन, गोबर, चंदन, लाल फूल जल सहित, गौ, मृतिका, धान्या को पीपल को स्पर्ष कराकर दोनो हाथांे से सूर्य को प्रणाम करना चाहिये। ़़़़़़इससे सूर्य देव अति प्रसन्न रहते हैं। ‘विष्णु घर्म सूत्र’ के अनुसार पितरो की शान्ति के लिये एवं स्वास्थ्यवर्द्धन एवं कल्याण के लिये तिल के यह प्रयोग स्नान, दान, भोजन, जल,अर्पण, तिल ,आहुति तथा उबटन मर्दन करने से पाप नष्ट होकर पुण्य की प्राप्ति होती है । हरियाणा एवं पंजाब मे इस दिन संघ्या होते ही आग जलाकर अग्नि पूजा करते हैं तथा तिल, गुड़, चावल, भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है ।
इस सामग्री को तिलचैली कहा जाता है । सभी लोग इन वस्तुओं को आपस मे बांटकर खुषियां मनाते हैं । उत्तर प्रदेष मे यह पर्व बहुत पवित्र माना जाता है। 14 जनवरी से इलाहाबाद मे हर वर्ष विशाल माघ मेले की शुरूआत होती है। बंगाल मे प्रतिवर्ष गंगा सागर का विषाल मेला लगता है। षास्त्रो में इसका बडा महत्व है। कहते भी है कि सारे तीर्थ बार बार गंगा सागर एक बार । राजस्थान के जयपुर शहर मे इस दिन इस राज्य में पतंगें उडाई जाती है। जयपुर मूल के निवासियो के घर से एक सदस्य अवश्य ही पतंग उड़ाता दिखाई देगा। इस दिन इस गुलाबी नगरी को आसमां मे पतंगांे का रंगीन शहर कहा जाये तो अतिश्योक्ति नही होगी।
यहां पतंगों के दंगल भी होते हैं। अधिक पतंग काटने वाले को पुरुस्कृत किया जाता है । तुलसी दास जी ने राम चरित मानस से इस अवसर को दोहे मे इस प्रकार रेखंाकित किया है। माध मकरगत रवि जब र्होई। तीरथ पतिहि आव सब होई ।। अर्थात माघ के महीने में और जब सूर्य मकर राषि मे प्रवेष करते हैं तब तीर्थराज प्रयाग मे सम्पूर्ण ब्रह्मांड की दैवी षक्तियां आकर एकत्रित हो जाती हैं।