आपके विचार प्र श्न: शनि ग्रह के क्या-क्या उपाय हैं? और कौन सी स्थिति में कौन सा उपाय करना चाहिए? शनि पाप ग्रह है। यह सूर्य का पुत्र यम तथा यमुना का भाई है। मनुष्य को उसके पूर्व पाप का दंड देने के लिए वह अपने हाथ में (अपने भाई यम की भांति) लोहे का दंड धारण किए हुए है। शनि को ”कालपुरुष“ का दुख माना गया है। इसके भयंकर प्रकोप से राजा भी रंक हो जाता है।
शनि प्रीत्यर्थ किए जाने वाले विविध उपाय: शनि ग्रह की पीड़ा से ग्रस्त जातकों को विभिन्न उपायों का सहारा लेकर शांति कार्य करना चाहिए, तभी वे शनि बाधा से मुक्त हो सकते हैं और सुख शांति पूर्वक अपना जीवन-यापन कर सकते हैं। शनि की महादशा हो या शनि की अंतर्दशा या शनि की साढ़ेसाती अथवा अढैया शनि के शान्त्यर्थ नीचे लिखी बातों अथवा युक्तियों को अपनाने से शनि ग्रह जनित कष्टों से बचा जा सकता है। शिवलिंग का पूजन-अर्चन और रुद्राभिषेक करना।
हनुमान जी को चोला चढ़ाना और सुंदरकांड, हनुमान चालीसा तथा हनुमानाष्टक का पाठ करना। का पाठ करना। शनि चालीसा का नित्य पाठ, शनि स्तोत्र का पाठ, शनि के मंत्रों का जपादि करना। शुभ मुहूत्र्त में शनि यंत्र बनाकर धारण करना। यंत्र को ताबीज में भरकर काले धागे में पहनना। शनिवार को कहीं से काला कुत्ता लाकर पालना, उसके गले में काला बेल्ट बांधना और दूध पिलाना। शनिश्चरी अमावस्या को सरसों के तेल से शनिदेव का अभिषेक करना।
माता महाकाली के मंदिर में शनिवार को काले आसन पर बैठकर काली सहस्रनाम का पाठ करें। शीतऋतु में ठंड से ठिठुरते हुए किसी गरीब व्यक्ति या भिखारी को काला कंबल भेंट करना। कम से कम उन्नीस शनिवारों की संध्या बेला में पीपल वृक्ष की जड़ में तिल के तेल का दीप जलाना। काले घोड़े की नाल की अथवा मल्लाह की पार उतारनी नाव की कील निर्मित अंगूठी पहनना। शनिवार को लोहे के बर्तन में अथवा टीन के कटोरीनुमा ढक्कन में सरसों का तेल भरकर उसमें मुंह देखकर दान करना। स्वर्ण धातु में नीलम रत्न धारण करना अथवा नीली या लाजवर्त की अंगूठी बीच की उंगली में पहनना।
शनि मंत्र का जप करते समय सदैव रुद्राक्ष की माला का ही प्रयोग करना। शनिवार को काले वस्त्र, काले रंग का छाता, काली उड़द दाल, काला तिल दान करना। शनिवार को शनि और भैरव मंदिरों में क्रमशः शनि चालीसा, भैरव चालीसा और वितरित करना। सप्तमुखी रुद्राक्ष धारण करना। हनुमत कृपा से भरपूर चैदहमुखी रुद्राक्ष धारण करना। भैरव या शनि मंदिर में शनिवार को भंडारा करना। शनिवार को एक तरफ घी और दूसरी तरफ तेल चुपड़ी रोटी काले कुत्ते को पीड़ामुक्त होने तक खिलाना।
काले रंग की पाली हुई मछलियों को ले जाकर आजादी से जीने के लिए किसी जलाशय में छोड़ आना। शनिवार को काले रंग की चिड़िया खरीदकर उसे दोनों हाथ आसमान में उड़ा देना। शनिवार को बंदरों के बसेरा वाले वृक्ष के चारों ओर भुने चने बिखेरना (साथ में सहयोगी या लाठी हो)। सात शनिवार सवा किलो सतनाजा लेकर भैंस की डेरी या चरागाह जाकर किसी भैंसे को खिलाकर घर लौट आना। दारु हल्दी के जल से 23 शनिवार को स्नान करना।
बैगन के रंग के वस्त्र धारण और वितरित करना। अशुभ शनि जनित धन की हानि रोकने हेतु शनिवार से कौओं को दाना डालना आरंभ करना। शनिकृत रोगों से निपटने के लिए प्रत्येक शनिवार भिखारियों को 1900 ग्राम तक उड़द दान में देना। शनिवार को हनुमान जी को तेल चढ़ाना। ब्राह्मण को संकल्प के साथ बछड़े सहित श्यामा गौ का दान करना। पूर्ण श्रद्धा विश्वास के साथ 23 शनिवार सं ध्याकाल सरसो ंके तेल से शनि यंत्र का अभिषेक करना।
लघु आकार का स्वर्ण पालिश युक्त शनि यंत्र धूम्रवणर्् ा गणपति एवं काली के पाकेट साइज चित्र के साथ ऊपरी जेब में रखना। दशहरा के दिन से शमी वृक्ष का पूजन आरंभ कर अगले दशहरे के दिन समाप्त करना। दशरथ जी वाले शनि स्तोत्र का पाठ (मूल हो तो उत्तम) साढ़ेसाती शनि की दशा में शनि सहस्रनाम का शनिवार के दिन पाठ करना। शनिवार दोपहर काली गाय को गुड़, रोटी या भैंसे को दाना, चारा, पानी या रीछ को भोजन देना।
शनिवार को खुले सिर-पैर अर्थात बिना जूता चप्पल आदि के शनि मंदिर/भौरव, हनुमान मंदिर दर्शन करने जाना। लोहे का त्रिशूल महाकाल शिव, महाकाल भैरव या महाकाली मंदिर में शनिवार को अर्पित करना। शनिवार की रात दोनों हाथों एवं पैरों की उंगलियों के नाखूनों में सरसों का तेल लगाना। सोमवार को ¬ नमः शिवाय जपते हुए तुलसी, शहद, दूध, दही, गंगाजल या कूप जल से शिवलिंग को नहलाना।
सिद्ध शनि मंदिर जाकर लगातार सात शनिवारों को शनि-पूजन करना। शिव तांडव स्तोत्र, युधिष्ठिर कृत शनि स्तोत्र, शनि कवच और अमोघ शिव कवच का पाठ कना। सूर्यपुत्रो दीर्घदेहो विशालाक्षः शिवप्रियः। मंदचारः प्रसन्¬नात्मा पीड़ा हरतु मे शनिः मंत्र से शनि की प्रार्थना करना।
सोमवार को शिवालय में पूजनोपरांत रुद्राक्ष की माला से एक माला महामृत्युंजय मंत्र का जप करना। शनि पुष्य नक्षत्र में बिच्छू व शमी की जडें़ काले कपड़े में लपेटकर दाहिनी भुजा में धारण करना। शनिवार को हनुमान जी के मंदिर में सिंदूर एवं चमेली का तेल चोला हेतु अर्पित करें। प्रति शनिवार अपने भोजन का कुछ भाग बचाकर कौओं को खिला देना।
शारीरिक व्याधि शमन हेतु ¬ नमः शिवाय इस षडाक्षर मंत्र का जप निरंतर करते रहना। शनि पीड़ा काल में रुद्राष्टक का हर शनिवार को प्रातः पाठ करना। शनिवार को शनि मंदिर में जाकर शनि देव को गुग्गल की धूप देना।
शनि पीड़ा निवारण के लिए शनि के दान-पदार्थों का शनिवार को सुपात्र को दान देना। शनि पीड़ा शमनार्थ काली जी की निम्न स्तुति का मानसिक-स्तवन करना। ”काली काली महाकाली कालिके परमेश्वरी। सर्वानन्दकरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते।।“ शनिवार का व्रत निष्ठापूर्वक करना। यह व्रत शुक्लपक्ष के प्रथम शनिवार से किया जा सकता है। व्रतों की संख्या 7,19,25,33,51 हो सकती है। इस दिन भोजन सूर्यास्त से 2 घंटे बाद करना चाहिए। इस दिन काली बछिया को, जिसके सींग न हो, घास खिलाना ऋणग्रस्त व्यक्ति के लिए शुभ माना गया है। शनिवार को बजरंगबली श्री हनुमानजी की आराधना करनी चाहिए।
श्री सुंदरकांड व हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए तथा हनुमान जी के सामने सरसों या चमेली के तेल का दीपक जलाना चाहिए। अंतिम व्रत के दिन उद्यापन में संक्षिप्त हवन करना चाहिए। हवन में शमी वृक्ष की लकड़ी का उपयोग करना चाहिए। लाल किताब द्वारा शनिदोष निवारण के टोटके दैनिक जीवन में झूठ का सहारा न लें।
वांसुरी में शक्कर भर कर उसे एकांत स्थान में दबा दें। काली गाय को तेल की जलेबी खिलाएं। आर्थिक नुकशान से बचने के लिए एवं शनि पीड़ा को दूर करने के लिए रोज कौओं को रोटी के टुकड़े खिलाएं। रोटी पर सरसों का तेल चुपड़ कर गायों और कुत्तों को खिलाएं। शनि अशुभ होने पर लोहा, काला नमक, काला सुरमा धारण करें। बंदरों को गुड़ तथा चने खिलाएं। कुएं में दूध डालें एवं सर्प को दूध पिलाएं। चांदी का एक चैकोर टुकड़ा हमेशा अपने पास रखें।
भैरव जी का पूजन करें और उन्हें शराब चढ़ाएं। सरसों का तेल या शराब बहते पानी में प्रवाहित करें। नीच शनि वाले लोग शनिवार को तेल, शराब, उड़द, मांस एवं अंडा इत्यादि का सेवन न करें। उस दिन उड़द, तेल, लोहे की वस्तु, काला वस्त्र आदि दान करें। यदि शनि विपरीत चल रहा हो तो सफेद वस्त्र में काले तिल बांधकर पानी में प्रवाहित करें। तिल व गुड़ की रेवड़ियां बांटें।
शनि के सभी प्रकार के दुष्फल टालने के लिए सरसों के तेल से भरा घड़ा नदी के तली की गाड़ें, जिसके ऊपर से पानी बहता रहे। शनि के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए रोज भोजन करते समय परोसी गई थाली में से एक हिस्सा गाय को, एक हिस्सा कुत्ते को और एक हिस्सा कौए को खिलाएं।
शनि बाधा मुक्ति के प्रमुख उपाय:
दान: काले तिल, छिलका लगी हुई उड़द की दाल, जो देखने में काले रंग के होती है, काला कपड़ा, काले चमड़े के जूते, काले रंग का छाता, लोहा या लोहे का बना चिमटा, आदि किसी निर्बल, असहाय, कंगाल वृद्ध को शनिवार को मध्याह्न काल में दान देने से शनि का खतरा टल जाता है और शुभ इच्छाएं पूर्ण होने लगती हैं। नीलम रत्न, स्वर्ण, भैंस, श्यामा गौ, कस्तूरी आदि मध्याह्नकाल में शनिवार को किसी ब्राह्मण को उससे शनि दान का संकल्प पढ़वाकर दक्षिणा देकर दानस्वरूप भेंट कर देना चाहिए। ”सर्वेषाम उपायानां दानं श्रेष्ठतम“ ऐसा विद्वानों का मत है।
शनिवार को तेल मांगने वाले भिक्षुकों को शनि शमनार्थ तेल का दान केवल मध्याह्न काल में ही करना चाहिए। अन्य ग्रहों के समान शनि का भी दान-समय विद्वानों, ज्योतिष के मनीषियों, आचार्यों आदि ने पहले से ही निश्चित कर रखा है।
अतः दान समय का विशेष महत्व है। जैसे शनिवार को कोई भिखारी आपके द्वार पर सुबह के समय तेल मांगने के लिए आ जाए और आप हंसी खुशी उसे तेल या रुपया पैसा अथवा कच्चा या पका अन्न भिक्षा में दे, दें तो अपना अहित ही करेंगे। आपको पुण्य लाभ नहीं मिलेगा, अपितु आई हुई लक्ष्मी और आने वाली लक्ष्मी दोनों ही भाग खड़ी होंगी।
माला-धारण: शनि की महादशा, अंतर्दशा, ढ़य्या, साढ़ेसाती और जन्मकालिक शनि की नीचस्थ, शत्रुराशिस्थ, पापयुत, पापदृष्ट स्थिति आदि के अशुभत्व निवारण के लिए लाल चंदन या रुद्राक्ष की अभिमंत्रित माला धारण कर सकते हैं। पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ ¬ नमः शिवाय मंत्र को जपते हुए ये मालाएं धारण करने वाले जातक की अनिष्ट से रक्षा होती है और शांति मिलती है। एक बात विशेष ध्यान देने की यह है कि इन मालाओं को अशुद्ध एवं गंदे, साथ ही छूत वाले स्थान से दूर रखना चाहिए। मालाओं को सदैव शुद्ध तथा साफ रखना चाहिए।
शयन के पूर्व माला उतारकर पवित्र स्थान में रखना चाहिए। दूसरे दिन सुबह पांच बार ¬ नमः शिवाय का पाठ कर स्नानोपरांत माला धारण कर लेना चाहिए। यह क्रिया नियमित रूप से करनी चाहिए। मालाओं को उतारते और धारण करते समय टूटने से बचाना चाहिए, क्योंकि उनका टूटकर गिर जाना और दानों का बिखर जाना महान अपशकुन है जिसका दुष्परिणाम धारक को भोगना ही पड़ता है। अतएव माला सदैव मजबूत धागे में ही गुथी हुई होनी चाहिए। माला द्रव्य लाभ कराती है।
कहा जाता है कि माली हालत उसी की खराब होती है, जिसके गले में कोई माला ही न हो। पहनी जाने वाली माला से जप नहीं करना चाहिए। इसी तरह जिस माला से मंत्र जप करते हैं उसे कभी भी पहनना नहीं चाहिए।
श्री रामदूत का स्तवन: लंका दहन के अवसर पर महाबली वीर श्री रामदूत हनुमान ने रावण की कैद से शनि देवता का उद्धार किया था। तभी से शनि देव ने अपना वार शनिवार हनुमान जी को दिया और उनसे कहा कि जो कोई शनिवार को आपकी पूजा करेगा उसे शनि दशा की पीड़ा नहीं सताएगी। इसलिए तभी से शनि शांत्यर्थ श्री हनुमान जी की शनिवार के दिन पूजा होती है। शनि देवता की कैसी भी कुदृष्टि क्यों न हो, हनुमन स्तवन करने वाले भक्त पर कभी भी किसी प्रकार से प्रभावित नहीं कर सकती।
शनिवार को सुंदरकांड का पाठ करने वालों पर हनुमान जी की कृपा से शनि पीड़ा शांत हो जाती है। संकट कटै मिटे सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलवीरा। शनि ग्रह जनित रोग निवारण में हनुमान बाहुक के पाठ से सहायता मिलती है। नित्य 8 बार हनुमानाष्टक का पाठ करने से सभी संकट कट जाते हैं।
श्री शनि देव का स्तवन: शनि बाधा निदान हेतु पीड़ित शनि देवता की पूजा अर्चना का अपना विशेष स्थान है। जो अपने को कष्ट दे रहे हों उन्हें पूजा पाठ आदि के माध्यम से प्रसन्न करना ही अधिक अच्छा होता है, ताकि वे अपने क्रोध एवं क्रूरता को शांत करे जिससे जातक सुख-पूर्वक अपना जीवन यापन कर सकें। शनि की सौर मंडलीय ग्रहों में अनुचर का पद प्राप्त है। साढ़ेसाती/ढय्या में अनिष्ट फल देने में यह कोई कोताही नहीं बरतता। यह मनुष्य को शासक से सेवक बनाने में पूर्णतः सक्षम है।
प्रसन्न होने पर यह ग्रह रंक से राजा बना सकता है। शनि को प्रसन्न करने के कुछ उपाय यहां प्रस्तुत हैं। शनि मंत्र: गुरु के निर्देशानुसार निम्न मंत्रों के जप करने से कार्य की सिद्धि होती है। ¬ शं शनैश्चराय नमः (शास्त्रोक्त मंत्र) ¬ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमः (पूजा आराधना मंत्र) ¬ ह्रीं श्रीं ग्रहचक्रवर्तिने शनैश्चराय क्लीं ऐं सः स्वाहा। (अरिष्ट नाशक मंत्र) ¬ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः (बीज मंत्र) ¬ शन्नो दे वी रभीष्टय आपा े भवन्तु पीतय े शं य्यो रभिस्रवन्तुनः (वैदिक मंत्र) (शनि मंत्र की जप संख्या - 23000) अरिष्टकारक शनि ग्रह का जपानुष्ठान शनिवार मध्याह्न काल में आरंभ करना चाहिए। जप संख्या 23 हजार हो।
दशांश हवन शमी वृक्ष की लकड़ी से करना चाहिए। यदि जप स्वयं न कर सकें, तो किसी योग्य, अनुभवी, कर्मकांडी ब्राह्मण से कराएं। समापन के उपरांत विप्र पूजा अन्न, धन, वस्त्र, भोजन, दान, दक्षिणा देकर करनी चाहिए। पूर्ण विधि-विधान के साथ मंत्रानुष्ठान करने पर क्रूर शनि कृत कष्टों का शमन हो जाता है एवं परम शांति मिलती है। शनि यंत्र धारण एवं स्थापन: शनिदेव का पूजन, पाठ-परायण अर्थात् चालीसा, स्तोत्र आदि के पाठ, शांति विषयक कृत्य आदि में शनि के यंत्र का अपना अलग महत्व है।यंत्र में संबंधित देवता ाअैर ग्रह का वास होता है, अतः ग्रह से संबंधित धातु अथवा मिश्र धातु से बने यंत्र की स्थापना और प्राण-प्रतिष्ठा घर की पूजास्थली में की जाती है।
आवश्यकता पड़ने पर प्राण-प्रतिष्ठित यंत्र को अपनी कार्यस्थली आदि में भी स्थापित कर उसके दर्शन और पूजन नित्य कर सकते हैं। शनि पीड़ा की अवधि में शनि के शांति विधान में मंत्र जप के समय यंत्र की स्थ¬ापना करने से जप का पुण्य फल कई गुना बढ़ जाता है और कष्ट की वेदना क्रमशः धीरे-धीरे कम होने लगती है। बीज-मंत्र युक्त एवं धनुषाकार यंत्र उत्तम होता है।
शुक्ल पक्ष के पहले शनिवार को सूर्यास्त से लगभग एक घंटा पूर्व अष्टगंध या रक्तचंदन की स्याही और अनार की कलम से भोजपत्र पर इस यंत्र को तैयार कर ताबीज रूप में शनि बीज मंत्र से अभिमंत्रित कर धारण कर सकते हैं। इस हेतु चांदी या तांबे के ताबीज और काले धागे का इस्तेमाल करना चाहिए। 9 वर्ग वाले इस यंत्र में 7 से 15 तक के अंक प्रयुक्त होते हैं एवं यंत्र की प्रत्येक पंक्ति का योग हर तरफ से 33 ही आता है।
श्री भैरव पूजन स्तवन: बं बं ह्रीं ¬ नमः श्री बटुक भैरवाय। साढ़ेसाती, ढय्या, दशांतर्दशा, गोचर आदि में जब शनि अरिष्ट फल देता है, तब शनि स्तवन के समान भैरव नाथ जी का स्तवन भी किया जाता है। भैरव काली के लाल हैं। ये नींबू, नारियल, सरसों तेल, अर्क, पुष्प, उड़द के बड़े और सोमरस के पान से जल्दी प्रसन्न होते हैं।
शनि पीड़ा मुक्ति हेतु भैरवनाथ भगवान के दर्शन, पूजन, परिक्रमा करने होते हैं। ये भी आशुतोष शिव जी के समान थोड़े में ही प्रसन्न हो जाने वाले देवता हैं। शनिवार को लोग दर्शनार्थ भैरव मंदिर अवश्य जाते हैं। कहीं-कहीं उनके मंदिरों में रविवार को पूजन, अर्चन का विशेष महत्व है। ”रवि के दिन जन भोग लगावहिं। धूप दीप नैवेद्य चढ़ावहि।।“ भै रव चालीसा का पाठ, भैरवाष्टक का पाठ, भैरव अष्टोत्तर शत नाम का पाठ, कवच-पाठ आदि भैरव देव को प्रसन्न करने के सरल साधन हैं जिनसे शनि पीड़ा शांत होती है, शत्रुओं का नाश होता है और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। भैरव जी के अद्भुत चमत्कारिक आपदुद्धारक मंत्र का कम से कम एक माला जप नित्य करना चाहिए।
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