क्या आप जानते हैं कि आकाश में लगभग 100 करोड़ ब्रह्मांड हैं और हमारे ब्रह्मांड ‘आकाश गंगा’ में लगभग दस हजार करोड़ तारे हैं। इस प्रकार पूरे आकाश में लगभग दस लाख करोड़ (1020) तारे हैं। हमारी आकाश गंगा का व्यास लगभग 1 लाख प्रकाश वर्ष है और हमारा सौर मंडल इसके एक कोने में स्थित है।
प्रतिवर्ष सूर्य और पृथ्वी की दूरी कम होती जा रही है। पृथ्वी सर्पिल आकार में चक्कर लगा रही है। इस प्रकार कुछ करोड़ों वर्ष बाद पृथ्वी सूर्य के काफी नजदीक आ जाएगी और मंगल, जो पृथ्वी पुत्र कहलाता है, वह पृथ्वी के समकक्ष हो जाएगा। पृथ्वी सूर्य के नजदीक आने के कारण पृथ्वी पर से सभी प्राणी एवं वनस्पतियां नष्ट हो जाएंगी और मंगल पर इनकी उत्पत्ति हो जाएगी।
ग्रह |
ग्रहों का अनुपातिक असर |
ग्रहों की पृथ्वी से दूरी अधिकतम/न्यूनतम |
वक्री होने पर अनुपातिक असर |
सूर्य |
6980000 |
1 |
- |
चंद्र |
520000 |
1 |
- |
मंगल |
1 |
4.83 |
23.36 |
बुध |
1.2 |
2.25 |
5.1 |
गुरु |
252 |
1.47 |
2.2 |
शुक्र |
17.1 |
6.29 |
40.0 |
शनि |
22.45 |
1.23 |
1.5 |
हर्षल |
.85 |
1.11 |
1.2 |
नेप्च्यून |
.039 |
1.06 |
1.1 |
प्लूटो |
.0000276 |
1.05 |
1.1 |
यदि मनुष्य पर ग्रहों का प्रभाव उनके गुरुत्वाकर्षण के कारण मान लिया जाए एवं मंगल के प्रभाव को एक इकाई माना जाए, तो सूर्य का प्रभाव लगभग 70 लाख गुना, चंद्र का 5 लाख गुना, गुरु का 250 गुना, शुक्र एवं शनि का 20 गुना और बुध का मंगल के बराबर होगा। सभी ग्रहों द्वारा मनुष्य पर प्रभाव का आकलन यहां दी गयी तालिका से किया जा सकता है।
इस गणना से साफ है कि सूर्य एवं चंद्र का प्रभाव सबसे अधिक है। हर्षल, नेप्च्यून, प्लूटो के प्रभाव अति सूक्ष्म हैं एवं गुरु का असर बहुत है।
ग्रह जब भी पृथ्वी की ओर आ जाते हैं, तो वक्री हो जाते हैं। मंगल और शुक्र की पृथ्वी से दूरी में कई गुना का अंतर आ जाता है। मंगल और पृथ्वी की अधिकतम एवं न्यूनतम दूरी में 4.83 का अनुपात रहता है, जबकि शुक्र के लिए यह अनुपात 6.29 है। बाकी ग्रहों के लिए यह अनुपात लगभग 1 के बराबर रहता है। बुध के लिए 2.25 होता है। इस प्रकार गुरुत्वाकर्षण ही यदि मुख्य कारण है, तो वक्री होने पर शुक्र का असर 40 गुना तक, मंगल का 23 गुना तक, बुध का 5 गुना तक, गुरु का दुगुना एवं बाकी ग्रहों का 10 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। भचक्र में मेष से मीन तक 12 राशियां हैं। लेकिन कुछ राशियां आकार में छोटी हैं और कुछ फैली हुई हैं। सबसे छोटी राशि कर्क है, जो केवल 20 अंशों में फैली है और सबसे लंबी राशि कन्या है, जो 45 अंश तक फैली है। सूर्य इन राशियों से लगभग निम्न लिखित तिथियों पर निकलता है।
विभिन्न राशियों में सूर्य का प्रवेश
राशि |
सायन |
दिन |
निरयण |
दिन |
मेष |
21 मार्च |
30 |
14 अप्रैल |
31 |
वृष |
20 अप्रैल |
31 |
15 मई |
31 |
मिथुन |
21 मई |
32 |
15 जून |
31 |
कर्क |
22 जून |
31 |
16 जूलाई |
31 |
सिंह |
23 जुलाई |
31 |
16 अगस्त |
31 |
कन्या |
23 अगस्त |
31 |
16 सितंबर |
31 |
तुला |
23 सितंबर |
30 |
17 अक्टूबर |
30 |
वृश्चिक |
23 अक्टूबर |
30 |
16 नवंबर |
30 |
धनु |
22 नवंबर |
30 |
16 दिसंबर |
29 |
मकर |
21 दिसंबर |
29 |
14 जनवरी |
29 |
कुंभ |
20 जनवरी |
30 |
12 फरवरी |
30 |
मीन |
19 फरवरी |
30 |
14 मार्च |
31 |
उपर्युक्त तालिका के अनुसार यह तो स्पष्ट है कि निरयण गणनाएं वास्तविक स्थिति के बहुत नजदीक हैं, अतः सूर्य के गोचर के अनुसार यदि मासिक फल लिखते हैं, तो निरयण पद्धति के अनुसार 14 अप्रैल को मेष में सूर्य का प्रवेश मान कर लिखना चाहिए। यदि सूर्य का विभिन्न राशियों में वास्तविक प्रवेश की तिथियों का अनुपात लिया जाए, तो यह लगभग 19 तारीख आता है। निरयण पद्धति के अनुसार यह तारीख 15 है। यह चार दिन का अंतर 2000 साल पहले भी था, जब सायन और निरयण गणनाएं एक ही थीं अर्थात मेष में सूर्य का प्रवेश 21 मार्च को न हो कर 25 मार्च को होता था। अतः यदि सूर्य के भ्रमण को सत्य माना जाए, तो अयनांश 4 अंश अधिक, अर्थात लगभग 28 अंश लेना चाहिए। अयनांश क्या है और उसे गणना के लिए क्यों लेना चाहिए, यह एक शोध का विषय है।