भीमकाली मंदिर
भीमकाली मंदिर

भीमकाली मंदिर  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 5882 | जून 2007

हिमाचल की राजधानी शिमला से 200 किमी दूर सरहन की सुंदर वादियों में गगनचुंबी देवदार वृक्षों के बीच सतलुज नदी के तट पर बसा है प्रसिद्ध भीमकाली मंदिर। यह मंदिर देश के भव्य एवं वैभवशाली मंदिरों में से एक है। संपूर्ण मंदिर परिसर पुरातत्व की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है।

मंदिर की शिल्पकला यहां आने वालों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती है। कहते हैं कि दुष्टों का संहार करने के लिए माता काली विशालकाय रूप में यहां अवतरित हुईं इसीलिए उन्हें भीमादेवी के रूप में जाना जाने लगा। यह मंदिर पांच मंजिला है। लकड़ी की बनी नक्काशीदार ढलानयुक्त छत एक सम्मोहनीय आकर्षण पैदा करती है। मंदिर लगभग 800 वर्ष पुराना है।

इसका द्वार चांदी का बना है जिसका निर्माण 19वीं शताब्दी के मध्य राजा शमशेर सिंह ने करवाया। चीनी वास्तु शिल्प और हिंदू और बौद्ध संस्कृतियों का संगम मंदिर की सबसे बड़ी खूबसूरती है। यह मंदिर भारतीय पारंपरिक शैली से भिन्न है- ऐसा इस क्षेत्र के तिब्बत और उŸार पूर्व से जुड़े होने के कारण है।

मंदिर की छत एवं आसपास की इमारतों की छत भी पगोडा शैली में बनी है। चिरपरिचित गेरुए रंग की इन छतों को देखकर बौद्ध मठों की याद ताजा हो आती है। मंदिर बुशायर शासनकाल में बना था। जब पुराना मंदिर ध्वस्त हो गया तो सन् 1943 में पुराने मंदिर के पाश्र्व में एक नए मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हुआ।

इसका रूपाकार पुराने मंदिर सा ही है और छत अत्यंत ही आकर्षक है। काष्ठकला का यह एक बेजोड़ नमूना है। यहां अन्य अनेक देवी देवताओं के अतिरिक्त भीमकाली की दो प्रतिमाएं हैं- एक उनका कन्या रूप और दूसरा प्रौढ़ नारी रूप। मंदिर के परिक्रमा पथ में चामुंडा, अन्नपूर्णां, बृजेश्वरी, शिव-पार्वती, गणेश एवं बुद्ध की मूर्तियां हैं। मंदिर में एक छोटा परंतु खूबसूरत संग्रहालय है।

यहां पर पौराणिक साहित्य भी मिलता है। भीमकाली बुशायर राजाओं की कुलदेवी हैं। एक परंपरा है कि किसी भी व्यक्ति को इस मंदिर अथवा राजा के महल के रूपाकार वाला या वैसा ही भव्य भवन नहीं बनाना चाहिए। यहां के एक गांव में मसोई नामक एक व्यक्ति ने इस प्रथा का उल्लंघन कर ऐसा ही एक भवन बनाने का निश्चय किया।

उसके इस कदम को धर्म के प्रतिकूल मानकर उसके भवन को तोड़ डाला गया और उसकी छत को यहां मंदिर के परिसर में लाकर रख दिया गया। तब से मंदिर में प्रवेश करने वाला हर व्यक्ति उस पत्थर पर चलकर अंदर जाता है। संदेश यह है कि जो कोई भी इस परंपरा को तोड़ने की कोशिश करेगा उसके साथ यही व्यवहार किया जाएगा। ऐतिहासिक महत्व: जिस क्षेत्र में भीमकाली मंदिर अवस्थित है वह ऐतिहासिक एवं पौराणिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

प्राचीन काल में यहां बाणासुर का राज्य था। उसकी उषा नामक एक सुंदर कन्या थी। एक रात्रि को उषा ने स्वप्न में ऐसे राजकुमार को देखा जो किसी भी साधारण व्यक्ति से अधिक सुंदर एवं शक्तिशाली था। जब वह नींद से जागी तो उसका मन बहुत बेचैन हो गया और वह दोबारा उस राजकुमार को देखने के लिए मचलने लगी। उसने अपनी प्रिय सखी चित्रलेखा को बुलाकर सारी व्यथा बताई। चित्रलेखा चित्र बनाने में निपुण थी। उषा ने जैसे-जैसे नयन-नक्श का वर्णन किया उसी के अनुसार उसने राजकुमार का बड़ा सा चित्र बना दिया।

उसके बाद चित्रलेखा ने पूरे विश्व में उस राजकुमार की तलाश शुरू कर दी। बहुत लंबे समय के बाद जब श्रीकृष्ण के पुत्र अनिरुद्ध को देखा तो आश्चर्यचकित रह गई। उसे अपनी तलाश पूरी होती नजर आई क्योंकि उसकी सखी उषा के सपनों का राजकुमार कोई और नहीं अनिरुद्ध ही था। एक रात का े जब अनिरुद्ध गहरी नी में सोया था चित्रलेखा उसे उसके बिस्तर समेत उड़ाकर उषा के पास ले आई। इधर जब कृष्ण को अपने पुत्र के अपहरण की बात पता चली, तो उन्होंने उषा के पिता बाणासुर पर चढ़ाई कर दी।

बाणासुर को लड़ाई का कारण पता ही नहीं था। जब वह हार गया, तो पुत्री के सपने का सारा वृŸाांत उसे पता चला। इस घटना के बाद कृष्ण ने अनिरुद्ध का विवाह उषा से कर दिया और दहेज के रूप में बाणासुर का जीता हुआ शोणितपुर का साम्राज्य उसे लौटा दिया। यही शोणितपुर आज सरहन के नाम से जाना जाता है।

सतलुज नदी के तट पर बसा यह छोटा सा गांव नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर है। भीमकाली मंदिर के उद्भव की कथा: बहुत समय पहले हिमालय पर राक्षसों ने अपना प्रभुत्व स्थापित कर देवताओं और ऋषि-मुनियों को परेशान करना शुरू कर दिया। काफी लंबे समय तक यह सिलसिला चलता रहा। एक दिन भगवान विष्ण् ाु के नेतृत्व में सभी देवताओं ने अपनी-अपनी शक्ति का एक अंश निकाला। इस पुंजीभूत शक्ति के प्रभाव से गुलाब के फूल, बादल और धुआं चारों ओर फैला। उसी के बीच से एक युवा कन्या का जन्म हुआ। यही कन्या ‘आदि शक्ति’ कहलाई।

इस आदि शक्ति को सभी देवी- देवताओं ने अपने आयुध एवं शक्तियां प्रदान कीं ताकि वह राक्षसों का संहार कर सके। मार्कण्डेय पुराण एवं दुर्गा सप्तशती में भी इस घटना का उल्लेख मिलता है। एक अन्य कथा के अनुसार कई साल पहले बंगाल से भीमगिरि नामक एक श्रद्धालु हिमालय स्थित शिव व शक्ति के दर्शन को यहां आया और देवी की मूर्ति को छड़ी में लपेटकर अपने साथ ले गया।

जब वह सरहन पहुंचा तो उसकी छड़ी जमीन में गड़ गई। वहां मां भीमकाली प्रकट र्हुइं और भीमगिरि को दर्शन देकर कहा कि मेरा वास्तविक घर यही है, मैं यहीं रहना चाहती हूं। माता के विचार सुन भीमगिरि ने भी वहां निकट गुफा में अपना निवास बना लिया। भीमगिरि की मृत्यु के बाद यहां पर विशाल मंदिर का निर्माण किया गया। दशहरे के अवसर पर यहां एक विशाल पूजा का आयोजन किया जाता है।

सरहन के आसपास के क्षेत्र में टेªकिंग के लिए कई पर्वत श्रेणियां हैं। तीर्थयात्री श्रीखंड महादेव के आसपास सात दिन के पर्वतारोहण कार्यक्रम में सम्मिलित होते हैं। टेªकिंग की सुविधा अप्रैल से जून एवं सितंबर-अक्तूबर में ही उपलब्ध होती है। कैसे जाएं: सरहन सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। यहां नजदीक में कोई हवाई अड्डा अथवा रेलवे स्टेशन नहीं है। शिमला आकर बस या टैक्सी से भीमकाली जाना पड़ता है।

If you are facing any type of problems in your life you can Consult with Astrologer In Delhi



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.