काल सर्प दोष शान्ति के कुछ अन्य उपाय
काल सर्प दोष शान्ति के कुछ अन्य उपाय

काल सर्प दोष शान्ति के कुछ अन्य उपाय  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 8605 | जून 2007

काल सर्प के शांति कर्म में दोष निवारक यंत्र का अत्यधिक महत्व होता है। ताम्र पत्र पर निर्मित या शोधन पत्र पर स्वनिर्मित यंत्र की विधि विधान से प्राण प्रतिष्ठा कर उसका विभिन्न तरह से पूजन करने से इस दोष का निवारण होता है।

इस दोष का निवारण कार्तिक या चैत्र मास में सर्पबलि कराने से होता है। किसी भी शिव मंदिर में नियमित रूप से जाना चाहिए और शिवार्चन कर और पंचामृत से अभिषेक कर 108 बार ¬ नमः शिवाय मंत्रा का जप करना चाहिए। पितृ पक्ष में पितृपूजन, तर्पण और हवन करना तथा ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए।

पितरों की जिस तिथि को मृत्यु हुई हो उसी तिथि से श्राद्ध करना चाहिए। पत्थर की नाग की मूर्ति बनाकर उसकी मंदिर में स्थापना करनी चाहिए। अगर कहीं मरा हुआ नाग मिले, तो उसका शुद्ध घी से अग्नि संस्कार करें और 3 दिन सूतक पालें। फिर किसी जीवित सर्प की पूजा कर उसे जंगल में छुड़वा दें।

राहु रत्न गोमेद धारण कर ¬ रां राहवे नमः मंत्र का रात्रि के समय 18 हजार जप करें व नीले फूल, चंदन आदि से राहु की पूजा करें। केतु का रत्न लहसुनिया धारण कर ¬ केतवे नमः मंत्र का 17 हजार बार जप करें। घर में नित्य गोमूत्र का छिड़काव करें। और सुबह शाम लोबान की धूनी दें। घर में हाथी दांत से निर्मित वस्तुएं रखें।

पलाश के फूल व फल गोमूत्र में कूटकर उसका चूर्ण बनाकर उसे जल में डालकर उस जल से स्नान करना चाहिए। उसमें हाथीदांत डालकर रखें। तिलपत्र भी जल में मिलाकर स्नान करना चाहिए। कोढ़ी, भंगी, अपंग और अंधे लोगों को भोजन कराना चाहिए।

ज्योतिर्लिंग मंदिर में रुद्राभिषेक करना चाहिए तथा गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करते रहना चाहिए। कुत्तों और कौओं को भोजन देते रहना चाहिए। नित्य सूर्य को जल का अघ्र्य देना चाहिए और पीपल के वृक्ष को नित्य जल अर्पित कर उसकी पूजा करते रहनी चाहिए।

जिस व्यक्ति की कुंडली में काल सर्प योग होता है उसे अचानक शुभ व अशुभ फल प्राप्त होते हैं। अतः उसे बुरे कर्म, मद्यपान मांसाहार आदि से बचना चाहिए। माता-पिता की सेवा व आज्ञा का पालन करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।

आंतरिक शांति बनाए रखने और उन्नति के लिए गायत्री मंत्र का जप नियमित रूप से करते रहना चाहिए। काल सर्प यंत्र पर राहु कवच एवं केतु कवच का पाठ कर यंत्र को पूजा स्थल पर रखें। किसी भी शिवमंि दर म ंे रुदा्र भिषके करवाकर नागबलि व नाग सहस्रावली का पाठ कर हवन करवाना चाहिए। हवन में पलाश के फूल, फल, समिधा, कुश अथवा दूर्वा का प्रयोग करना चाहिए।

यह प्रयोग सोम पुष्य अथवा रवि पुष्य के दिन करना चाहिए। बुधवार को नाग सहस्रनामावली या सर्प सूक्त का निरंतर पाठ करने से उत्तम फल प्राप्त होता है। हर बुधवार को काले कपड़े में एक मुट्ठी काले उड़द डालकर राहु के मंत्र जप कर किसी भिखारी को दें। बहते हुए पानी में अपने वजन के बराबर जौ अथवा कोयला प्रवाहित करें। चांदी अथवा सप्तधातु की सर्प की आकृति की अंगूठी धारण करनी चाहिए।

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