काल सर्प योग का वैज्ञानिक सिद्धांत
काल सर्प योग का वैज्ञानिक सिद्धांत

काल सर्प योग का वैज्ञानिक सिद्धांत  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 5729 | जून 2007

अन्य ग्रहों के विपरीत राहु और केतु अदृश्य ग्रह हैं। पौराणिक कथा है कि देवताओं और राक्षसांे में समुद्र मंथन से निकले अमृत के बंटवारे के समय राहु नामक दैत्य वेश बदलकर देवताओं के साथ पंक्ति में खड़ा हो गया, जिसे सूर्य और चंद्रमा ने देख लिया और इसका संकेत विष्णु भगवान को कर दिया। उन्होंने अपने चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया।

पौराणिक कथाओं में राहु को सर्प का सिर और केतु को सर्प की पूंछ कहा गया है। जब सभी ग्रह राहु और केतु के मध्य आ जाते हैं, तब काल सर्प योग बनता है। खगोलशास्त्र के अनुसार अंतरिक्ष में राहु व केतु अन्य ग्रहों के समान भौतिक पिंड नहीं हैं। पृथ्वी और चंद्र अपने अक्षीय भ्रमण के साथ-साथ सूर्य के चारों ओर अंडाकार वृत्त में इस प्रकार भ्रमण कर रहे हैं कि इन दोनों के पथ एक दूसरे को उत्तर और दक्षिण दिशा में काटते हैं।

चंद्र प्रत्येक माह पृथ्वी का एक चक्कर लगा लेता है, इसलिए वह पृथ्वी के पथ को एक माह में दो बार काटता है। इन संपात बिंदुओं को राहु और केतु कहते हैं। अपने पथ पर गतिमान चंद्र जिस बिंदु को पार कर उत्तर दिशा की ओर उन्मुख होता है, उसे राहु और जिस बिंदु को पार कर दक्षिण की ओर जाता है, उसे केतु कहते हैं।

इस तरह राहु और केतु अन्य ग्रहों की भांति कोई भौतिक पिंड नहीं हैं, बल्कि चंद्र और पृथ्वी के भ्रमण पथ के दो संपात बिंदु हैं, अतः इनका कोई आकार, भार या आकृति नहीं होती। ज्योतिष शास्त्र में इन्हें छाया ग्रहों से भी संबोधित किया जाता है।

वैज्ञानिक भाषा में इनका अस्तित्व चंद्र और पृथ्वी के गुरुत्वीय-चुंबकीय बल के युग्म के रूप में है, जिसका परिण् ाामी बल अन्य ग्रहों की अपेक्षा कई गुणा अधिक होता है। इसलिए मनुष्य के मन, चिंतन, और कार्यप्रणाली पर इस बल का अन्य ग्रहों की तुलना में कई गुणा अधिक प्रभाव पड़ता है, जो सकारात्मक भी हो सकता है और नकारात्मक भी।

भौतिक विज्ञान के अनुसार सभी भौतिक पिंडों में एक दूसरे को आकर्षित करने की विशेष शक्ति होती है, जिसे गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं। इस बल के अतिरिक्त इन पिंडों में चुंबकीय और विद्युत बल भी होते हैं। जब कोई दो बल आपस में मिलते हैं या टकराते हैं तो एक परिणामी बल उत्पन्न होता है, जो अनुकूल या प्रतिकूल फलों का कारक होता है।

अतः जब किसी कुंडली में सभी ग्रह इन युग्म बलों (राहु व केतु) के मध्य आते हैं, तो उनके परिणामी बलों (फलों) में अप्रत्याशित परिवर्तन हो जाते हैं। यही कारण है कि काल सर्प योग से प्रभावित लोगों में विशेष गुण-अवगुण और क्षमताओं का प्रादुर्भाव होता है, जिनके कारण उनकी सामान्य लोगों की तुलना में अलग पहचान होती है।

ज्योतिष के प्रसिद्ध विद्वान श्री माण् िाक चंद जैन के अनुसार राहु भविष्य की संभावनाओं को व्यक्त करता है और केतु भूतकाल अर्थात् पूर्वजन्म के कर्म को, जिसके आधार पर राहु उस जातक का भविष्य निर्धारित करता है।

कुंडली के अदृश्य भाग में विशेषकर प्रथम, द्वितीय, और चतुर्थ भावों में राहु शुभ नहीं माना जाता, क्योंकि इससे जातक के यश, धन, पद, सुख और समृद्धि के मार्ग में अनेक बाधाएं उत्पन्न होती हैं। किंतु कुंडली के दृश्य भाग में विशेषकर नवम, दशम और एकादश भावों में राहु अपनी दशा में जातक को जीवन की ऊंचाइयों को छूने की प्रेरणा देता है।

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